प्रभु से बड़ा प्रभु का नाम..वही हालत मुझे नमक की भी लगती है. जितना नमक बतौर नमक खाने में इस्तेमाल होता होगा, उससे कहीं अधिक इसके नाम की उपयोगिता है.
वैसे तो नमक अपने आप में ही
महान है. भगोना भर दाल में यूँ तो इसका
रोल एक चम्मच भर का है मगर दाल में डालने से रह जायें या
ज्यादा पड़ जायें, दोनों ही हालातों में इतनी
मँहगी दाल की कीमत कौड़ी भर की कर देता है.ये मिली जुली सरकार
में शामिल उस निर्दलीय सांसद की हैसियत रखता है, जिसके नाराज होते ही पूरा सरकार संकट में आ जाती है.
इसके अपने औषधीय गुण भी जग जाहिर
हैं..सरसों के तेल को नमक में
डाल कर दाँतों पर घिसने पर मसूड़ों को बलवान करने से लेकर गरम पानी में मिलाकर पैर
डुबा देने मात्र से सारे शरीर का दर्द और सूजन खींच लेने की क्षमता रखता है.
नमक का महत्व ऐसा कि गाँधी
जी इसके नाम से सत्याग्रह ही कर डाला और एक मुठ्ठी नमक का कमाल ऐसा कि अंग्रेजी
हुकुमत की जड़ें हिल गई.
ये लड़कियों के चेहरे की एक
अलग सी सुन्दरता का परिचायक भी होता है..न जाने कितनी बार
लोगों को कहते सुना होगा कि फलानी लड़की के चेहरे पर कितना नमक है..
अमरीका, कनाडा जैसे बर्फीले देशों में तो बर्फ गिरते ही इसका सड़को
और साईड वॉक पर छिड़काव न हो तो न तो गाड़ियाँ चल पायें और न ही पैदल चलना संभव हो. सार्दियों में नमक लाईफ लाईन होता है ऐसे देशों में..
इसके प्रयोग ने उन मुहावरों
को मुहावरों की अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया जिसमें इसका जिक्र आता है कि ’क्यूँ जले पर नमक छिड़कते हो?’ या ’उसकी तो आदत ही है हर बात में नमक मिर्च लगा कर बताना’
वैसे जिन्दगी की असलियत
बताने के लिए, अवधी में जिस कहावत का हर तरफ जबरदस्त इस्तेमाल हुआ है, उसमें भी
नमक जिसे नून भी कहते हैं, अपनी पैठ जमाये बैठा है- कहावत का अपभ्रंश ’ भूल गये राग रंग भूल गये
छकड़ी, तीन चीज याद रही, नून तेल लकड़ी’
यहाँ तक की फिल्मी गानों पर
भी इसने अपनी छाप छोड़ी है..’समुन्दर में नहाकर
और भी, नमकीन हो गई हो..’
और इसी नमक का अफवाह के तौर
पर हालिया इस्तेमाल देखकर लगा कि वाकई इसकी ताकत का कोई जबाब नहीं.
जब सारा देश असली और नकली नोटों की
अदला बदली और ठिकाने लगाने की जुगत में हलाकान था. किसी को भी और कुछ सोचने की
फुरसत ही न थी, तब न जाने किसने यह अफवाह उड़ा दी कि देश में नमक का स्टॉक खतम होने
को है..
फिर तो पूछिये मत...गरीबों
से लेकर अमीरों के बीच और सभी की पहुँच में रहने वाला नमक ऐसा नमकीन हुआ..कि १०००
के नोट की ललाई फीकी पड़ गई. २००० के नोट का गुलाबी रंग तक अपना आकर्षण खो बैठा और
लोग भागे नमक खरीदने के लिए...
ऐसा उत्कर्ष मिले तो जमीन
भूल जाने में वक्त ही कितना लगता है..गरीबों के दर्द को खुद जीने का दावा करने
वाला भी इसी उत्कर्ष के उन्माद में, खुद ही गरीबों के दर्द का कारण बन जाता
है...तब नमक की क्या गल्ती...यह भी बिकने लगा ७०० रुपया किलो...
इतिहास में काले धन से
निपटने की अब तक की सबसे बड़ी मुहिम की चर्चा को कालाबाजारियों नें मिनट भर में नमक
चटा दिया.
बहुत मुश्किल से अफवाह को
विराम दिया गया और नमक लौटा है अपनी जमीनी हकीकत पर...
-समीर लाल ’समीर’
8 टिप्पणियां:
एक कहानी भी याद आ गयी - एक राजा अपनी बेटियों से पूछता है -मुझसे कितना प्यार करती हो तो छोटी राजकुमारी कहती है-नमक जितना। ..
पिछले दिनों आपने पाक-कला में आपने अपना कौशल दिखाया ,नमक का महत्व और उसके लिये लोगों की बौखलाहट का मसाला खूब काम आया.
बहुत ख़ूब , समीरलाल जी, आपने तो इतवारी सुबह को नमकीन कर दिया !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 14 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह मस्त. फुल्ली नमकीन. :)
बस अब एक नमकीन बाबा की कमी रही गई है मार्किट में.. नहीं समीर सर? ;)
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत अच्छी रचना है आपकी
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