एक चार लाईन की कथा कहीं पढ़ता था, उसी से प्रेरित हो इस गीत का मुखड़ा उभरा और फिर ढल गया एक पूरे गीत में:
माँ को उसकी निगल गया था, सुनामी का ज्वार उबल कर
खड़ा किनारे वो दरिया के, लहरें छूती उछल उछल कर
कहता वो नादान सा बच्चा, कितना भी तुम पाँव को छू लो
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
जीवन के इस कठिन सफर मे, यूँ चलना आसान नहीं है
माँ रहती है साया बन कर, मर कर भी आराम नहीं है...
हर बच्चे का सारा बचपन, उसके संग ही जाये फिसल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही..
कोमल मन है कोमल तन है, क्या बीती है उसके दिल पर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
-समीर लाल ’समीर’
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85 टिप्पणियां:
बच्चा आगे चल कर एंग्री यंग मैन बनेगा, लगता है, समन्दर की छाती चीरेगा.
मां के प्रति असीम प्रेम को दर्शाती ,अच्छी रचना
धरती पर अगर कहीं कोई परी है...तो वो माँ है...जो हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करने का सामर्थ्य रखती है...वो किस्सों-कहानियों से हमें हिम्मत दिलाती है...पर कभी ना नहीं करती...इस बच्चे को भी शायद माँ के निकल आने पर विश्वास है...जब ज्यादा ज़रूरत हो...परियां आ ही जातीं हैं...
आदरणीय समीर लाल ’समीर’ जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
क्या बात है …आज कितनों की आंखें नम करने का इरादा है सर ?
( मेरी माताजी का अभी स्वास्थ्य उतार-चढ़ाव पर रहता है , इसीलिए तो आप सहित लगभग सबके यहां मेरी ग़ैरहाज़िरी लग रही है… )
मुझे तो भिगो गई आपकी रचना … … …
बहुत श्रेष्ठ रचना है …
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
हृदयस्पर्शी !
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
बहुत ख़ूब !
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
वाह वाह !
आपने अच्छा रचना पाठ किया है , आवाज़ में एक दर्द का एहसास होता है … इसके लिए अलग से बधाई !
# समय मिले तो नीचे दिये गए लिंक पर मेरी तीन रचनाएं जो मां के बारे में हैं , देख लीजिएगा । कृपया , संभव हो तो प्रतिक्रिया भी दीजिएगा …
मां ! तेरे क़दमों तले जन्नत …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
समीर जी,बहुत ही हृदय चीरने वाला दृश्य प्रस्तुत किया है आप ने एक त्रासदी का.
माँ को खोने से बड़ा दुखांत दुनिया में शायद ही हो.
मार्मिक रचना! त्सुनामी पीडितों के लिये मैने भी यहाँ कुछ काम किया था। एक दिन यूँ ही बातचीत में एक मित्र का सुझाव आया कि जिन पेरेंट्स ने अपने बच्चे खोये हैं, वे इन स्थानीय अनाथों को अपनाकर दोहरी कमी पूरी कर सकते हैं। य्यँ ही याद आ गयी वह बात!
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
bahut umda post !!
maan par jitna bhi likha jae kam hi hai ,us ke prashnsatmak bakhan ke liye shabd kam pad sakte hain lekin us ke gun tab bhi baqi rahenge .
achchhee ,bahut achchhi rachna ke liye badhaai.
चिट्ठिए वतना दिए, तैनू चुम अखियां नाल लावां,
किसने तैनू पाया डाके, किस लिखया सरनावां (पता),
मावां ठंडिया छावां, मावां ठंडियां छावां...
जय हिंद...
indu puri goswami to me
show details 1:06 AM (8 minutes ago)
जानते हैं आज मैं बहुत खुश थी कि आज सबसे पहले मैं कमेन्ट करूंगी,किन्तु.....एरर ४०० शो हो रहा है. मेरे दादा की तरह ये नेट भी मुझसे रूठ गया लगता है.क्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो अनजाने ही दिल दुख बैठती हूँ सबका.
'माई' जिस एस.एम.एस. से प्रेरित हो कार आपने यह मार्मिक कविता लिखी है.वो मुझे भी किसी ने भेजा था.सुनामी में अपनी माँ को खो चूका बच्चा लहरों के बार बार अपने कदमो पर आ कर गिरने पर भी वो उन्हें माफ करने को तैयार नही.इन लहरों ने उसकी मान को उससे छीन लिया था.जितना दर्द,पीड़ा उस को पढ़ कर महसूस किया था आज वो ही सब कुछ इसे पढ़ कर महसूस कर रही हूँ.मेरी माँ को किसी सुनामी ने मुझसे नही छीना था.उन्हें जाना था,वो अपनी पीडाओं से मुक्त हो गई.किन्तु.....मेरे माथे और गालों को उनका चूमना .....जबकि वो अपने सिर के सिवा कोई अंग नही हिला पाती थी,उनका कहना 'मेरे पास आ. झुक.अपना माता पास ला....अब गाल भी.'.....जैसे सब अभी की बात हो.अपने माथे और गाल पर हाथ फिरा कर उस स्पर्श को महसूस करती हूँ.
भीतर तक भीग गई मैं आज.नही लिखूंगी 'दिल को छू गई' आपकी कविता.
........................ मैं आज फिर खूब रोई दादा!
इसे मेरा कमेन्ट मान कर अपने ब्लॉग पर लगा देना.दादा! माँ को नही भूल पाते ना आप ? और मैं??? क्या कहूँ? समझ सकते हैं आप खुद ......... छुटकी
मैं समझता था कि भावुकता से उबरकर अब व्यावहारिक जगत का प्राणी बन चुका हूं. दिल के जज्बात पर अक्ल का पहरा बिठा चुका हूं.....लेकिन आपने तो मेरा सारा भरम तोड़ दिया.
बहुत मार्मिक रचना है
सुनते हुये सचमुच आंखे नम हुई !
kya kahun....bas aapki chhutki aur hamari indu di ke shabd ki tarah mere andar bhi kuchh aisa hi ho raha hai...!!
sameer bhaiya aap sach me lajabab kar dete ho!
बस एक 'माँ' ............. और मूक भाव..
माँ से सम्बन्धित रचना ....बस सिर्फ़ माँ ......
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
मां के लिये जब कहीं कुछ पढ़ा मन भावुक ही हुआ है ...और आज भी इस रचना को पढ़कर ऐसा ही महसूस किया ...आभार इस रचना प्रस्तुति का ।
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर
ओह ...बेहद मार्मिक.दिल को भिगो गया यह गीत.
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
पोस्ट में लगी तस्वीर और इसमें वर्णित बातों का अच्छा समन्वय देखने को मिल रहा है,,,,,
माँ पर बहुत ही भावमयी कविता पढ़ी, फिर सुनी। शब्द नहीं हैं, व्यक्त करने के लिये।
बहुत ही मार्मिक रचना
कितना भी तुम पाँव को छू लो
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
वाह
बच्चे के लिए मां की बहुत अहमियत है । उसके बिना तो अधूरा ही रहेगा ।
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही..
waah!!
tum hi shakti, sahara tumhi ho
tumhi ho sansar, gur tumhi ho....
vande matram.....
माँ रहती है साया बन कर, मर कर भी आराम नहीं है... khoobsoorat abhivykti
अत्यंत मार्मिक और हॄदय सपर्शी रचना.
रामराम
मां पर लिखी हर कविता मन को छू लेती है ... और फिर कहते हैं समीर का है अंदाज़े बयां और :)
@
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर..............
भावपूर्ण लाइनें,आभार.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
अद्भुत। बहुत अच्छी लगी यह रचना।
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर. बहुत भावूक ....
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
क्या कहूं..... बहुत संवेदनशील मन को छूते शब्द ....
बचपन या बचपन जैसा मन ही करता है माँ को इस तरह याद वर्ना तो माँ आँखों के सामने ही ओझल सी हो जाती है ...बिना सुनामी के भी !
Bahut taazee see par santan samvedna ka sparsh karvaatee saarthak rachna.
Padhne ke saath saath sunne ka bhee anand aaya, dhanywaad
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
जीवन के इस कठिन सफर मे, यूँ चलना आसान नहीं है
माँ रहती है साया बन कर, मर कर भी आराम नहीं है...
हर बच्चे का सारा बचपन, उसके संग ही जाये फिसल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
bahut acchi rachna
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
माँ को खो देना दुनिया का सबसे बड़ा दुःख है आपने उसे अच्छी तरह व्यक्त किया है
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
vishal samandar ka dil bhi kahi kabhi kitna chota ho jata hai,jo nanhe bacche ki maa nigal gaya,bahut hi bhavuk rachana,dil ko chu gayi.
कविता पढ़कर कुछ सीरियस हुआ, इंदु जी का कमेन्ट पढ़कर भावुकता चरम पर पहुँच गयी...
क्या लिखूं... कुछ लिख पाने की हालत में नहीं हूँ....
Dil bhar aaya aapki rachna padhkar uspar aapki dukhi si dardbhari si aavaj....
मां की कमी यों तो हमेशा खलती है,बचपन को वह दुख ज़्यादा सालता है।
एक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति। इसी वेदना और चित्र पर मैने कुछ और लिखा था।
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...रुलाई आ जाय
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
बड़ी ख़ूबसूरत बात कही है...पूरी रचना ही लाजबाब है.
ATYANT MAARMIK KAVITA .
ATYANT MAARMIK KAVITA HAI .
प्राकॄतिक आपदाओं से आहत होने पर ईश्वर को भी माफ़ करने का दिल नहीं करता.....दिल के बहुत करीब ये पंक्तियां.....क्या मुझे भी पॉडकास्ट की अनुमति मिलेगी..इसे "मिसफ़िट" या "मेरे मन की"पर लगाना चाहूंगी.....
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही॥
भावपूर्ण पंक्तियाँ! दिल को छू गयी! मार्मिक रचना!
बच्चा एक उम्मीद को थामें, नित आता है दूर से चल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
Marmik prastuti.
माँ को समर्पित यह भावुक रचना बहुत ही खास है.
सुनने में कविता और अच्छी लगी...अच्छी भावपूर्ण तरीके से पढ़ी गई है...
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही..
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ...
maa ke liye jitna kaha jaye kam hai. sunder rachna.
भाव प्रवण और दिल को झकझोरती सुंदर मुक्तकीय प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें समीर भाई|
bhawuk karti hui....atyant marmik rachna.
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही..
जगत की समस्त माताओं के चरणों में वंदन...सुन्दर दिल को छूने वाली प्रस्तुति....
आंखें नम करने वाली रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
समीर जी मन में समां गयी ये रचना बच्चे का भोला मन माँ बिन सब अधूरा सूना -बेहद सुन्दर कृति
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
इस रचना के लिए क्या कहूँ ,सोचने में ही जी भर आता है -उस पर आवाज़ की मन को हिलाती गूँज!
निःशब्द हूँ !
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी ...
माँ के प्रेम का कोई ज़वाब नहीं होता..बहुत भावुक कर गयी आपकी प्रस्तुति..भावों की प्रस्तुति बहुत उत्कृष्ट..आभार
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट कल होगा यहाँ...........
नयी पुरानी हलचल
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
सच कहा । माफी तुमको तभी मिलेगी जब आयेगी माई निकल कर ।
समन्दर भी रोया होगा,बच्चे की "माँ-माँ" सुनकर !
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में....
समीर भाई ... सुन नहीं पा रहा ... पर कितनी करुण .. कितनी भावोक कर देने वाली रचना है ...
अरे आवाज़ भी मिल गयी ... बहुत अच्छा लग रहा है समीर भाई ...
वाह, क्या कल्पना है समीर जी! बहुत ही सुंदर!
घुघूती बासूती
हर मौसम माँ से होता था, माँ गर्मी की रातें थीं
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं
होली और दीवाली भी तो, माँ के संग आबाद रही
बच्चे की सारी खुशियाँ भी, उसके संग में साथ बही..
"kitna dard bhara hai.....dil me jaise uthal puthal ho gyi.."
regards
एक बच्चे की वेदना देख कर आँखें नम हो गयी। दिल को छूने वाली रचना। शुभकामनायें।
अवाक हूँ...बस दर्द है...
समीर जी,
अच्छी रचना..
माँ सर्दी की धूप सुनहरी, माँ रिमझिम बरसातें थीं ...माँ पर बहुत ही भावमयी कविता....
आभार !
Is geet ke liye badhayi ... Bohot achha laga!!
Vishal
उसको नहीं देखा हमने कभी,पर इसकी ज़रूरत क्या होगी,ऐ माँ ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी.."माई" रचना पढ़ कर नेत्र नीरित हो गए, माँ की याद आई,अपने बचपन से मैंने माँ को नही देखा, ह्रदय द्रवित हो गया, बहुत बढ़िया कहूँगा क्योंकि माँ की महिमा से बढ़ कर और कुछ भी नहीं,अति उत्तम रचना..
आपका जवाब नहीं
मां के प्रति असीम प्रेम दर्शाती बहुत मार्मिक प्रस्तुति!
शब्द-शब्द संवेदना से भरी एवं अत्यंत मार्मिक रचना....
माँ को उसकी निगल गया था, सुनामी का ज्वार उबल कर
खड़ा किनारे वो दरिया के, लहरें छूती उछल उछल कर
...वाकई यह सच है. अंडमान -निकोबार में ऐसे कुछेक हादसे सुनामी के दौरान हुए थे...मर्मस्पर्शी कविता..बधाई.
Pooja Goswami to me
जीवन के इस कठिन सफर मे, यूँ चलना आसान नहीं है
माँ रहती है साया बन कर, मर कर भी आराम नहीं है...
बेहद अच्छी प्रस्तुति...
माँ मर कर भी जिंदा रहती, हर बच्चे के अहसासों मे
खुशबू बन कर महका करती, आती जाती हर सांसों में.
जीवन के इस कठिन सफर मे, यूँ चलना आसान नहीं है
माँ रहती है साया बन कर, मर कर भी आराम नहीं है.......
सुंदर सम्वेदनाओं का चित्र
इतने दिन हो गए समीर जी और कोई पोस्ट नहीं, ये तो बहुत बुरी बात है। मैं टिप्पणियां करने में आलसी हूं लेकिन ब्लाग पढ़ने में नहीं
बहुत मार्मिक रचना है....हृदयस्पर्शी !
माँ थी सुबह, माँ ही दुपहरी, माँ ही उसकी शामें थीं
अँधियारी रातों मे रोशन, माँ की ही मुस्कानें थी
सन्नाटा घर में पसरा है, माँ जब से उस पार गई
बाबू जी की हालत भी अब, बेबस और लाचार हुई
कुछ कहते ही नहीं बन रहा है महाराज। मालिक किसी को किसी के परिवार से न बिछुड़ाए। आह!
ऐसे भाव वो भी इस सूनी सी रात में.. :(
kitna sunder geet hai man bhar aaya aankhen chhalki aur dil ne kaha bahut achchha likha hai
saader
rachana
मां के प्रेम से सराबोर सार्थक रचना।
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हर बच्चे का सारा बचपन, उसके संग ही जाये फिसल कर
मुआफी तुमको तभी मिलेगी, जब आयेगी माई निकल कर.
dil tham sa gaya padte padte... un bachchon ke chehre yaad aaye jinke saath 2004 tsunami ke baad kaam kiya tha... maa se alag hone ka dukh zindagi mein hawa ki tarah ghul jata hai... kabhi alag hi nahi hota...
हर पंक्ित दिल को छूती है, जज्बातों से लबालब है आपकी रचना।
एक भावनात्मक उत्तम रचना. आभार.
मर्मस्पर्शी!
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