बस ऐसे ही, दो रोज पहले एक मंच के लिए गीत गुनगुनाया तो सोचा सुनाता चलूँ, शायद पसंद आ जाये.
जब से बसाया तुझे अपने दिल में,
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
जमाना मुझे इक दीवाना समझता
मगर तुमने मुझको हरपल दुलारा
कभी दूर से ही करती इशारा
कभी पास आकर तुमने पुकारा
जीना सिखाया था तुमने ही मुझको
ये मैं हूँ कि तुम पर मरने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
ऐसा नहीं था कि रहा मैं अकेला
फिर भी न जाने, क्यूँ तन्हा रहा मैं
लहरों ने आकर, मेरा हाथ थामा
फिर भी न जाने, अकेला बहा मै..
सभी मुझको थोड़ा थोड़ा चाहते
मुझे लगता मैं ही बंटने लगा हूँ
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ है.
अभी तक विरह के, गीतों को जाना
नये प्रेम गीतों को, रचने लगा हूँ
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
-समीर लाल ’समीर’
यू ट्यूब पर यहाँ देखें:
85 टिप्पणियां:
क्या बात है समीर भाई। बड़ा मस्त सीन है और मस्त गाना। वो ऎसा भी लग रहा है कि जब भाभी साथ बैठीं हैं तो गाने की खूबसूरती और बढ़ गई है...:)
मित्रवर!
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल परोसी की है आपने तो!
टिप्पणी में मैं भी अपनी पूरी ही नज़्म ठेल देता हूँ!
--
दिल है शीशे सा नाजुक हमारा प्रिये!
ठेस लगते ही यह तो चटक जायेगा।
प्रीत का खाद-पानी पिलाओ इसे,
प्यार पाते ही यह तो मटक जायेगा।।
फूल सा खिल रहा यह तुम्हारे लिए,
दीप सा जल रहा यह तुम्हारे लिए,
झूठी तारीफ से यह भटक जायेगा।
प्रीत का खाद-पानी पिलाओ इसे,
प्यार पाते ही यह तो मटक जायेगा।।
मन जरूरत से ज्यादा सरल है प्रिये,
दुर्जनों के लिए ये गरल है प्रिये,
नेह के गेह में ये अटक जायेगा।
प्रीत का खाद-पानी पिलाओ इसे,
प्यार पाते ही यह तो मटक जायेगा।।
मस्त रहता भ्रमर पुष्प की गन्ध में,
मन बंधा भावनाओं के सम्बन्ध में,
प्यार में यह हलाहल गटक जायेगा।
प्रीत का खाद-पानी पिलाओ इसे,
प्यार पाते ही यह तो मटक जायेगा।।
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ है.
समीर भाईईईईईईईईईईईईईईईईई.....!!!!!!!
समीर जी
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......
प्यार कर, पता पा गये, जहाँ में हम,
आवारगी अपनी हमेशा दुरुस्त रही है।
फिर भी न जाने, क्यूँ तन्हा रहा मैं
लहरों ने आकर, मेरा हाथ थामा
फिर भी न जाने, अकेला बहा मै.. सभी मुझको थोड़ा थोड़ा चाहते
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
लहरों पर छाती पर दिल से लिखी कविता.
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
.....क्या कहने !!
.
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ ..
बहुत बड़ी हकीकत -आज के दौर की।
.
सुंदर ,सराहनीय गजल । खुद से डरने वाला तो खुदा से डरने वाले की तरह सच्चा होता है ।
शब्द.... आवाज़ और स्केच.... तीनों बहुत बहुत अच्छे लगे...
... बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!
सुन्दर गीत ...
स्केच भी सुन्दर है ..आपने बनाया ..?
वाह वाह और वाह!!!
regards
वाह वाह वाह .............मन प्रसन्न हो गया बहुत सुन्दर
आभार
MAIN JAB SE MOHABAT KARNE LAGA.
MAIN BHI KAZA SE DARNE LAGA.....
KHUBSURAT TASHVIR.. ACHCHI AWAZ.. ACHCA GEET....
आपकी कविता ऊपर से शास्त्री जी की टिप्पणी. सोने पर सुहागे का फुल बोरा.
अच्छा दृश्य खींचा है
जब से बसाया तुझे अपने दिल में,
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
मजा आ गया।
गीत सुना ,बहुत भावपूर्ण सरल-तरल .
बधाई .
suna nahi....speed bahut kam aa rahi hai ...geet likha apne kaafi achha hai
बहुत ही सुन्दर ...आपकी आवाज़ में सुननेमे मज़ा आगया !
koun sahi hai koun galat hai,kya rakha is nadani me , koudi kee chinta karne se heera bah jata pani me. aapka get bahut mast karne wala hai.narayan narayan
प्रणाम !
'जीना सिखाया था तुमने ही मुझको
ये मैं हूँ कि तुम पर मरने लगा हूँ...'
बहुत खूब .....
'लहरों ने आकर, मेरा हाथ थामा
फिर भी न जाने, अकेला बहा मै..'
ये दुनिया स्वीकार्य नहीं .........कोई और जहां होता अच्छा होता......तू जहाँ होता अच्छा होता.....आभार !
क्या बात !!!!!!!!!!!!क्या बात !!!!!!!!!!क्या बात!!!!!!!!!!!!.आज तो बड़े आशिकाना अंदाज में लिखा है .बढ़िया है .
स्केच बहुत अच्छा है .आपने बनाया या कंपयूटर से मदद ली है ?:)
क्या बात !!!!!!!!!!!!क्या बात !!!!!!!!!!क्या बात!!!!!!!!!!!!.आज तो बड़े आशिकाना अंदाज में लिखा है .बढ़िया है .
स्केच बहुत अच्छा है .आपने बनाया या कंपयूटर से मदद ली है ?:)
जब से बसाया तुझे अपने दिल में,
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
बहुत गजब के भाव.... दिल की हिफाजत तो करना ही चाहिए ... आभार
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ है.
बेहतरीन...उम्दा.
दिल की हिफाजत करने का कंसेप्ट नया लगा.
सुंदर ग़ज़ल... बहुत उम्दा... !
bahut bariya kavita hai
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ
समीर लाल जी आपकी जितनी तारीफ की जाए कम है. बेहतरीन आवाज़ और आत्मविश्वास के मालिक हैं आप.
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ है.
अभी तक विरह के, गीतों को जाना
नये प्रेम गीतों को, रचने लगा हूँ
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
bahut sunder sameer ji aur sacchi bhi ........
किसे प्यार मिलता सच्चा जहाँ में
यहाँ प्यार भी एक, सौदा हुआ है
तुम्हें पाकर मैने इतना तो जाना
दुनिया में सबको ही, धोखा हुआ है.
अभी तक विरह के, गीतों को जाना
नये प्रेम गीतों को, रचने लगा हूँ
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
bahut sunder sameer ji aur sacchi bhi ........
kya baat hai sir..
nahi ye samndar ab aankhon mein rukta
iss liye hi lafzon mein bharne laga hoon ..!
किस किस चीज़ की तारीफ करूँ स्केच, स्लाइड शो, आवाज़ या गीत. पर ये जरुर कहूँगी की चलो किसी बहाने ही सही दिल की हिफाज़त तो शरू की बहुत जरुरी है आज के दौर में
बहुत ही गज़ब की लाजवाब गज़ल है…………बेहतरीन्।
बेहद खूबसूरत एहसासों से भरा गीत ,एक एक पंक्ति कबीले तारीफ है.
वाह...लाजवाब गीत रचा है आपने....
आनंद आ गया पढ़कर/सुनकर ...
और हाँ,आपके टाँके चित्रों ने भी आँखें शीतल
कर दी...
बहुत बहुत आभार..
sundar rachna badhai
wowwww....बड़े अंदाज़ में पढ़ा है...
पढना और सुनना दोनों बहुत भाया
बहुत बढिया ..
अच्छी लगी ये पोस्ट ..
जीना सिखाया था तुमने ही मुझको
ये मैं हूँ कि तुम पर मरने लगा हूँ...
क्या बात है, समीरजी, बहुत खूब । खूबसूरत गज़ल ।
आरम्भ में सनम की तारीफ़ । फिर उन्ही पर इलज़ाम ।
ये तो वैसा ही हो गया जैसा शादी से पहले और शादी के बाद होता है ।
चौथी पंक्ति में यदि यह लिखें ---खुद से खुद मैं डरने लगा हूँ --तो शायद मेडिकली ज्यादा तर्कसंगत रहे ।
वैसे यह मेरी समझ है , गलत भी हो सकता हूँ ।
लेकिन बताइयेगा ज़रूर ।
6.5/10
सुन्दर गीत का सृजन
पढने-गुनगुनाने और याद रखने लायक भी.
मुझे फिल्मी गीत जैसा लगा. नजर रखियेगा इस गीत पर. कहीं किसी फ़िल्म में इसी गीत पर कुल्हे मटकाते हुए कभी सलमान खान न दिख जाएँ.
ऑडियो तो कल यूट्यूब पर ही सुन लिया था. बढ़िया.
अच्छा है बढ़िया है
मुगेम्बो खुश हुआ.
यहाँ रूमानियत के दर्शन हुए...अच्छा लगा!
बहुत खूब :-)
शब्द, चित्र और स्वर सब लाजबाव . इससे अधिक कहूं तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा.
शब्द, चित्र और स्वर सब लाजबाव . इससे अधिक कहूं तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा.
बहुत सुंदर गीत, शुभकामनाएं.
रामराम
बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!
हर कविता में कुछ पंक्तियां विशेष रूप से अच्छी लगती हैं, आमतौर पर वही कापी करके वाह वाह लिख देते हैं हम भी। इस गीत में कौन सी पंक्तियाँ छोड़ी जायें, यही मुश्किल है।
बहुत शानदार, आभार स्वीकारें।
!! सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा !!
चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए,
सावन जो अग्न लगाए, उसे कौन बुझाए...
जय हिंद...
हमारा तो दिल ही बेठ गया जी, अब इस की हिफ़ाजत हमारा डा० करता हे, आप की इस हसीन गजल ने फ़िर से उसे टटोलने पर मजबुर कर दिया,देखते हे क्योकि पिछले २२,२३ साल से तो हमे अपनी भी सुध नही रही.
इस अति हसीन गजल के लिये आप का दिल से धन्यवाद
ब्लैकबेरी का सिर्फ नाम सुना हूं।ईसमे हिन्दी स्पोर्ट करता है लेकीन किसी नए मोडल मे ये फंसन आया है।
जिम्मेदारियों के बाद यह केवल प्रेम ही है जो आदमी को न तो बूढा होने देता है और न ही थकने देता है-यही सन्देश देती है आपकी यह सुन्दर
sameer ji bahut achchha likhte hai aap aur saath bahut achchhe se aapne padha bhi hai .........bahut achchha lagaa ........
सरल ह्रदय से निकली बड़ी प्यारी रचना है समीर भाई ! आनंद आ गया !
अरे...... यह फोटो तो बड़ा अलग सा लग रहा है.... मुझे बहुत पसंद आया
--------------------------
मेरे ब्लॉग पर आपके एक वोट की बहुत ज़रुरत है.... समीर अंकल...
ऐसा नहीं था कि रहा मैं अकेला
फिर भी न जाने, क्यूँ तन्हा रहा मैं
लहरों ने आकर, मेरा हाथ थामा
फिर भी न जाने, अकेला बहा मै..
तनहाई मे लिखा गया भावमय गीत । बहुत अच्छा लगा। शुभकामनायें
प्रेम अपनी मौलिकता में ऐकान्तिक ही होता है। वह एक अलग दरिया है जिसमें कोई प्रेमी ही तिर सकता है।
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ ...
समीत भाई .. मज़ा आ गया पढ़ कर और सुन कर ... और श्वेत श्याम चित्र देख कर भी ...
दिल ही हिफ़ाज़त ज़रूर करो भाई ...
sundar rachna!
SAMEER DADDA KI JAI HO ...HAR BAR KI TARAH ..FIR AK SUNDER GAZAL KA DHAMAKAA....WAH BAHUT ...............!!!
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ।
समीर जी, ज़रूरी तो नहीं था कि मैं अपनी टिप्पणी घुसेड़ूं। लेकिन, रोक नहीं सकी खुद को। पढ़ने से ज्यादा आपको सुनने में मज़ा आया। ऐसे मुशायरे करते रहें। ज़बर्दस्त है।
जब से बसाया तुझे अपने दिल में,
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
real good writing...sir ji...
सच्चाई को बयां करती रचना।
समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
स्कैच का विवरण तो दे जाते ..बाकी रचना तो हमेशा की तरह लबालब , मस्त १०/१०
जब से बसाया तुझे अपने दिल में,
दिल की हिफ़ाजत मैं करने लगा हूँ...
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
बहुत सुन्दर ... बेहतरीन
अभी तक विरह के, गीतों को जाना
नये प्रेम गीतों को, रचने लगा हूँ
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
...kabhi kabhi aisa bhi ho jaata hai jo sabse paas rahta hai wahi door dikhta hai....
....bahut sundar bhabhivakti....
नहीं कोई मेरा, दुश्मन जहाँ में
अपनों से खुद मैं, डरने लगा हूँ
डरो मत... आगे बढो नौजवान :)
जनाब समीर साब ,मिलन और विरह का अदभुत संगम आपके गीत में देखने को मिला आनंद आ गया .धन्यवाद
बेहतरीन पंक्तियां----।
बहुत रोचक ..उम्दा रचना भाईसाहब ..!!
बहुत अच्छा लगा यह गीत.
स्केच भी बहुत बढ़िया.
वाह सर...
वाकई बहुत अच्छा लगा
'मिलन के गीत'
अच्छी रचना
27/30 उत्तम गीत।
Very nice poetry....
Liked the dil ki hifazat ....line .
It's a great experience whenever i come to your blog.
You have given love a new meaning :)
dil mein kisi ko badane se wo mandir sa lagane lagta hai,sunder geet,badhai.
क्षमा करें...चित्र रचना पर भारी है :-)
नीरज
एक टिप्पणी भेजें