दो दिन हो गये सारा घटनाक्रम देखते. ढ़ेर प्रशंसक/ चहेते/मित्र सामने आये माननीय ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पर मेरे विषय में टिप्पणी देखकर. जान पाया सबका प्यार. अभिभूत हुआ, लोगों को इस पर नाराजगी भी हुई कि मैं क्यूँ असभ्यता से किये गये विरोध के बावजूद भी अभिभूत हुआ. अनूप जी ने खुल कर पोस्ट के माध्यम से जाहिर किया और किसी ने उस पर टिप्पणी के माध्यम से.
प्रशंसकों का प्यार, भद्र और अभद्र दोनों, अभिभूत करता ही है, भले ही आप अभद्र और असभ्य तरीके से जाहिर समर्थन को उचित न करार दें. मैं भी इसे उचित नहीं मानता किन्तु स्नेह ही तो है जो वो भड़क उठे. मेरी नजर में ,अब भी, ऐसी बात उठाना ही औचित्यहीन है, जो लोगों को भड़काये. क्या जरुरत है?
जिस तरह से असभ्य भाषा में किया गया विरोध या समर्थन गलत है, उसी तरह से ऐसा औचित्यहीन प्रश्न जो इस बात को भड़काये. बात दोनों ओर से ही दूसरे तरीके से कही जा सकती थी. गुस्से में इंसान आपा खो देता है, यह जग जाहिर है.
आज तक मैने, जब भी ब्लॉग जगत की बात आई या मेरे लेखन पर बात आई, हमेशा ही खुल कर कहा है कि अनूप जी ही मुझे गद्य लेखन में लाये. उनसे मैने सीखा, उनका मैं प्रशंसक हूँ और सीख रहा हूँ, फिर तुलना कैसी.
अनूप जी लाख तारीफ करें, मैं हमेशा ही उनके लेखन से सीखने का तत्पर रहा और यह बात वो भी अच्छी तरह जानते हैं. शायद मानते भी हैं.
उनकी मुझसे मौज लेने की प्रवृति भी हमेशा से रही. मुझे कभी नहीं खला. मैने भी उनसे खूब मौज ली. जब बुरा लगा कि जो बात व्यक्तिगत तौर पर उनसे की, उन्होंने जग जाहिर की, उनको बताया और उन्होंने उसे वापस लिया. अपने आलेख को सुधारा.
आज भी उन्होंने अपने आलेख में जाहिर किया कि मैने अपने कमेन्टस में कहा है मैं कठिन समय से गुजर रहा हूँ.जबकि ऐसा मैने कहीं नहीं कहा. मैने बस अपने चाहने वालो से इतना कहा कि जैसा आपने समझा, वैसा आपने लिखा. आपने मुझे संबल दिया, मैं अभिभूत हुआ इस स्नेह के लिए और फिर मैने विवाद से दूर रहते हुए हिन्दी की सेवा की अपील की. एक शाब्द बदल देने मात्र से बात बदल जाती है, इसका ज्ञान तो अनूप जी को है ही, इसमें मैं क्या कहूँ.
उद्देश्य मात्र इतना था कि बात जो बढ़ चुकी है वो शांत हो जाये और लोग पुनः पूर्ववत पहले की तरह सक्रियता से हिन्दी के प्रचार प्रसार में जुट जायें.
मैं कभी अभद्र और असभ्य भाषा का न समर्थक रहा हूँ और न ही इस्तेमाल करता हूँ. समर्थकों के गुस्से में आये बयानों में भी आशा ही कर सकता हूँ कि भाषा की मर्यादा का पालन हो, निवेदन कर सकता हूँ, उससे उपर मेरे वश में क्या है.
मेरे ज्ञान जी से भी मधुर संबंध हैं, मैं उनका सम्मान करता हूँ और मुझे कोई शिकायत नहीं. उन्होंने मेरे लेखन के विषय में जैसा समझा, वैसा लिखा. सबको सब का लेखन पसंद आये, यह जरुरी नहीं. उन्हें मेरा लेखन नहीं पसंद, वो स्वतंत्र हैं यह कहने के लिए कि मेरा लेखन कचरा है. मैं उन्हें भी नहीं रोक सकता और न ही रोकने की कोई वजह है.
बस, अफसोस इतना है कि नित ईमेल पर बात होने के बावजूद भी और उनकी प्रशंसा की टिप्पणी लगभग हर आलेख पर प्राप्त करते हुए भी इतना बड़ा सत्य वो दिल में छिपाये बैठे रहे और मुझे न जाहिर कर, इसे खुले मंच पर जाहिर किया. सोचता हूँ, क्या सच मानूँ-उनकी प्रशंसा में प्राप्त नित नई टिप्पणी या एक बार जग जाहिर नापसंद का आलेख.
मेरा वश मेरे व्यवहार, मेरे लेखन और मेरे विवेक पर है. कोशिश होती है उसमें भूल न हो.
मित्रों और शुभचिन्तकों ने रोका कि आपकी टिप्पणी विवाद पर ठीक नहीं लग रही. मैने बिना एक क्षण गंवाये रोक दी. इससे ज्यादा मुझसे क्या आशा है, मुझे बताये मैं करने को तैयार हूँ.
निवेदन बस इतना है कि मैं नहीं जानता कि आप कोई भड़काऊ बयान जारी करे अनजाने में भी, तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी और किस भाषा में आयेगी. किन्तु जहाँ भी मुझे लगेगा कि भले ही अभद्र भाषा में, मुझे स्नेह जाहिर किया है, मैं आभार तो व्यक्त करुँगा, भले ही मैं उसकी भाषा का समर्थन न करुँ.
अपने चाहने वालों से और समर्थकों से बस एक निवेदन है कि अब बहुत हुआ. अव्वल तो भाषा का संयम बनाये रखें और दूसरा, किसी के कहने या समझने से अपनी सोच मत बदलें. आप सब समझदार है, संयम से काम लें.
कृपया इस विवाद को विराम दें और आगे हिन्दी की सेवा में तत्पर रहें.
कुछ रात के अंधेरों से अक्रांत
भयभीत
दुबक कर सो जाते हैं
और
कुछ उसी रात के
सितारों की रोशनी में
जीवन की राह खोज लेते हैं.
-यह दुनिया भी कितनी अजीब है.
-अनेक शुभकामनाएँ एवं साधुवाद!!
105 टिप्पणियां:
महान लोगों को अपने आपको कचरा ही कहना चाहिए / महान लोगों को मानसिक विकृति वाले लोग भी कचरा ही समझते हैं / इसलिए महान और महानता को इसकी परवाह किये वगैर न्यायसंगत और तर्कसंगत राहों पे निरंतर चलते रहना चाहिए /
समीर जी ऐसी ही कुछ बात है जो दिल जीत लेती है...मुझे ब्लॉगजगत में आएँ १ साल से ज़्यादा हो गये अभी शायद ही ज्ञानदत्त जी मेरा नाम तक जानते हो और आप जो हमेशा हम सब के करीब रहते हैं....और आज फिर आपने हम सब का दिल जीत लिए.....प्रणाम समीर जी
विवाद ख़त्म हो यह दुआ करता हूँ..विवाद में शामिल सभी ब्लॉगर्स से मेरा भी यही निवेदन है कि बस हिन्दी की सेवा करें यह विवादित बात छोड़ दे ...
यह कचरा क्या होता है ?
वैसे विवाद था क्या
sameer
common blogger needs a commoner like you to appreciate them and that is why the common blogger is happy with you
we have come here to express and not write on each other . I have been against this tactics since day one i came to know "what hindi bloging is "
kindly move on and do what you are best at bulding relationships based on personal touch
i as usual will like to put in my blessings for you because you ahve never said "u are the owner and judge of hindi bloging "
भाई साहब,
मैं तो टिप्पणी दूंगा ही.. अब इसे ज्ञानदत्त के चमचे असभ्य माने या कनपुरिया के पंडे अभ्रद। मैं तो ऐसा ही हूं। बुर्का पहनकर लिखने-पढ़ने का काम अपने पिताजी ने नहीं सिखाया और हां आज तक तो यही होता आया है कि मैंने कभी गलत का साथ भी नहीं दिया है।
अपनी भाषा और उसकी उग्रता को लेकर मुझे कोई सफाई इसलिए भी नहीं देनी चाहिए क्य़ोंकि मेरा मानना है कि जो जिस हालात का सामना करता है भाषा उस ढंग से उसका साथ देती है। भाषा आदमी नहीं हालात का साथ देती है। पसीना बहाने वाले श्रमिक से यदि कोई साहित्यकार निर्मल वर्मा की भाषा लाओ कहेगा तो मैं समझता हूं यह थोड़ा उचित नहीं है।
गाय प्लास्टिक खाती है.. कुछ लोग बौद्धिक ढंग से जुगाली करते हैं। यह जुगाली भी एक तरह की गाली ही है। जो लोग मामू बनकर अपनी बात रखते हैं वे दरअसल गालियों को चबाने का काम करते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए ज्यादा खतरनाक है।
आप क्या लिखते हैं क्यों लिखते है। अच्छा लिखते है या नहीं इसका फैसला पाठकों पर छोड़ दे। प्रमाण पत्र बांटने वाले ज्ञानदत्त पर नहीं। ज्ञानदत्त यदि यह बात एक पाठक बनकर लिखते तो शायद मैं बहस में हिस्सा भी नहीं लेता लेकिन जब कोई न्यायधीश बनकर अपना फैसला सुनाता है तो फिर वही शेर याद आ जाता है- सियासत की बाजीगरी देखी नहीं जाती। समीरलालजी अच्छे लेखक है या नहीं इसका फैसला पाठकों को करने दो। मेरे ख्याल से पाठकों ने यह फैसला काफी पहले कर लिया है।
ज्ञानदत्त का पूरा अन्दाज वर्ग पहेली भरो जैसा था और उनके चमचे मायापुरी मैग्जीन के संवाददाता बनकर घूम रहे हैं।
मुझे ब्लागिंग में आए हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन तमाशों को मैं अच्छी तरह से जान गया हूं। कोई यदि अपना समर्थक बना रहा है तो क्या बुरा कर रहा है। आखिर लेखक अपने चाहने वालों के लिए ही तो लिखता है न। चाहने वाले को भी भाई लोग यह सलाह देने लगे है कि गलती कर रहे हो। अरे भाई मैं जिसका सम्मान करता हूं.. प्यार करता हूं क्या अब आप उसका सम्मान करने से भी रोक दोंगे। जो अपने व्यवहार और आचरण से मेरा प्रिय बन बैठा क्या वह जब संकट में घिरा दिखेगा तो मैं उसका साथ नहीं दूंगा। अपनी फितरत हरामखोरों जैसी नहीं है।
अभी कोई आता होगा हरामखोर शब्द को परिभाषित करने या फिर गलत ठहराने।
हां.. इस टिप्पणी के जरिए मैं एक बात और साफ कर देना चाहता हूं मैंने ज्ञानदत्त का कभी विरोध नहीं किया। मैं तो ज्ञानदत्त के भीतर बैठ चुके न्यायधीश का विरोधी हूं। कईयों की प्रवृति न्यायधीश बनने की होती है। विरोध प्रवृतियों का ही है। समझे ज्ञानदत्त के छर्रों।
अरे भाइयों छर्रे का मतलब समझते भी हो नहीं।
शीर्षक अगर यूँ होता तो...............
मेरा लेखन कचरा हैं जो हर सोमवार और गुरुवार यहाँ पर सड़ांध फैलाता हैं और सब सूघने आते हैं
हास्य नजर आ गया मुझे तो शीर्षक में ही और मैंने सोचा की आपको ये वाला शीर्षक बता देता हूँ
आपको मजा आये तो कमेन्ट छाप दीजियेगा नहीं तो कचरा पेटी तो हैं ही न
और अब कुछ सोलिड सा हो जाये
शीशे के घर में नहीं रहते
जो पत्थरों से डरेंगे
लोहे का आशियाना हैं हमारा
ये पत्थर क्या असर करेंगे
समीर जी , मेरे विचार से ब्लॉग पर व्यक्तिगत लेख लिखना , जिसमे एक व्यक्ति विशेष पर छीटा कसी की गई हो , उचित नहीं लगता ।
आप मुद्दों पर बात कीजिये , कवितायेँ लिखिए , हास्य -मनोरंजन सामग्री लाइए , जानकारी दीजिये , ज्ञान बाँटिये । किसी के बारे अनुचित लिखकर आप क्या साबित करना चाहते हैं ?
जाने क्यों हर थोड़े दिनों बाद एक विवाद उठकर सारा माहौल ख़राब कर देता है।
जिसको जो अच्छा लगे वो लिखे । जिसे पढना हो पढ़े , वर्ना पढने के लिए ब्लोग्स तो बहुत से हैं । फिर कहे का विवाद।
ऐसे में शांति बनाये रखना ज़रूरी है । जल्दी ही लोग भूल जायेंगे ।
आगे बढ़ना भी ज़रूरी है।
एक अनाम शेर याद आ रहा हैं। शायद आगे आने वाले किसी टिप्पणीकर्ता के लिए फिट बैठ जाए-
शीशे का घर नहीं रहेगा
या फिर ये पत्थर नहीं रहेगा
या होगा अपना बोलबाला
या फिर ये सर नहीं रहेगा
या उड़ जाएंगे सारे पंछी
या फिर ये पर नहीं रहेगा
या टूट गिरेगी ये सारी दीवारें
या फिर ये मंजर नहीं रहेगा
कचरा -
जहां तक मैं समझ पाया हूं
विचारों का चरना या चलना
कच यानी कच्चे
तो कच्चे विचारों के पकने की सतत प्रक्रिया
यही है कचरा
विचार सदा ही पकते रहते हैं
वे बतला रहे हैं
कचरे को सडांध या बदबू का संवाहक
अब खुलेमन से सोचें
विचारों से न तो आती है बदबू
और न फैलती है सडांध
फूटते हैं नवांकुर
वो तो मनोवृति के परिचायक होते है
और मनोवृति भी कच्चे विचारों के
परिपक्व होने पर कचरापन से पाकर मुक्ति
परिपक्व विचार बन जाते हैं
उनसे पहले भी नहीं आती है सड़ांध
बस विचारों के सड़ने
और उनके अंधेपन से बचो
न बच सको तो उनसे सीखो
बल्कि बाद में खुशबू असीम आती है।
सच लिखना
ज्ञान ही है
क्यों चाहते हैं सब
कि प्रशंसा लिखना ही है समर्थन
जबकि आलोचना करना समर्थन होता है
इसी से होता है सतत विकास
आप प्रशंसा करते रहिए
विकास रूक जाएगा प्रशंसनीय का
और आलोचना कीजिए
तो विकास के नए सोपान स्थापित होंगे
आप क्या चाहते हैं
सतत प्रवाहमान विकास
या प्रशंसनीय रूकावट।
कोई जब अपने लिए रूकावट नहीं चाहता
तो दूसरे के लिए कैसे चाह सकता है
वही इंसान है
सबके कचरे बकौल समीर भाई
को परिपक्व विचारों में बदलने दो
ऐसी ही आलोचना की सबको जरूरत है
पर सब इस आलोचना को झेल नहीं पाते हैं
जो इस आलोचना के मौसम में भी
सदा मुस्कराते हैं, खिलखिलाते हैं
वे ही नया इतिहास बनाते हैं।
ज्ञान नया दे जाते हैं
अनूप रहते हैं
समीर की तरह बहते हैं
मन में भाव सदा
कचरे की तरह ही गहते हैं।
महान लोग हमेशा अपनी प्रशंसा के वक्त विनम्र रहते हैं और वो कभी भी अपने आदरणीय व्यक्तियों के बारे में कभी भी कृतघन नही बनते.
आपके आज के विचार ने मुझसे सचमुच आज आपका फैन बना दिया हैं
पूरे मामले का पता नहीं
तो मेरी कोई खता नहीं
मैं अपने काम में था
यानी प्रोग्राम में था
लेकिन इतना जान गया हूँ कि लफड़ा है
और लफड़ा भी मामूली नहीं, तगड़ा है
ये लफड़ा मिट जाये
__शुभकामना है
यहाँ कोई छोटा नहीं मित्र
सभी महामना है
सभी महान लोगों को मेरा सादर प्रणाम !
हरे राम हरे राम हरे राम हरे राम
क्या सच मानूँ-उनकी प्रशंसा में प्राप्त नित नई टिप्पणी या एक बार जग जाहिर नापसंद का आलेख
लब्बोलुआब
पूरे मामले का पता नहीं
तो मेरी कोई खता नहीं
मैं अपने काम में था
यानी प्रोग्राम में था
लेकिन इतना जान गया हूँ कि लफड़ा है
और लफड़ा भी मामूली नहीं, तगड़ा है
ये लफड़ा मिट जाये
__शुभकामना है
यहाँ कोई छोटा नहीं मित्र
सभी महामना है
सभी महान लोगों को मेरा सादर प्रणाम !
हरे राम हरे राम हरे राम हरे राम
लेखन भी कचरा होता है क्या?????????????
जो भी है बेहद दुखद है.....
regards
आदरणीय प्रियजनों,
मुझे यह समझ में नही आता कि कुछ दिनों के अंतराल में कोई ना कोइ विवादास्पद, पोस्ट या टिप्पणी क्यों आती है?जिससे ब्लाग जगत का वातावरण प्रदुषित होता है।
मौज का सागर क्यों हिलोरे मारने लगता है?
ये बंदर वाली खुजली क्यों हो जाती है लोगों को?
मुझे तो पसंद नही है कि कोई मौज के नाम से किसी की बेइज्ज्ती करे। ब्लागिंग करने आए हैं कोई अपनी इज्जत उतरवाने नहीं।
कौन एक नम्बर,दो नम्बर या दस नम्बर है इससे क्या फ़र्क पड़ता है? अपना अपना लिखिए पढिए, अगर पाठक हैं तो पढेंगे। पाठक नही हैं तो खुद पढिये और खुद टिपियाईये।
समीर भाई, ब्लागिंग में एक विराम के बाद आने से एक बात समझ में आई है कि ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए। यहां प्रेम की भाषा बोलने वाले को कायर कहते हैं।
हम अब इस पर ही अमल कर रहे हैं,आनंद से ब्लाग लेखन कर रहे हैं,अगर कोई पहले से छेड़खानी करेगा तो उसको हम छोड़ेंगे भी नही।
चाहे जो भी हो जाए सब मजुंर है।
hmmm....
kachra to hai jaroor...
lekin is kachre ki peti me itne khubsurat kachre hain ki kya bataun....
iski badbu deewana kar deti hai mujhe.....kripya aage bhi ye badbu failaate rahein....
regards
http://i555.blogspot.com/
mer nayi kavita ko aapka intzaar hai//...
मुझ जैसा अज्ञानदत्त तो अभी तक यही नहीं समझ पाया कि यह बबाल खड़ा करने की जरुरत क्या थी और इससे फायदा ?
सबसे पहले तो ये माने कि आम ब्लागर ने जो प्रतिवाद किया वह उनके अन्दर एक लम्बे अरसे से खदबदा रहा था. न जाने कितनों की मौज लेने के बहाने से खिल्ली उड़ाई जाती रहती थी. कुछ दबे छिपे स्वर में प्रतिवाद करने की कोशिश करते थे तो उनका भीष्म पितामह होने का पुतला आगे आ जाता था.
एक समय आता है जब ताज उछाले जाते है, तख्त गिराये जाते है..
सो आगया, ताज-ओ-तख्त उछाल दिये गये
बस्स, यही सब कुछ था...
आदरणीय राजकुमार भैय्या से पूरी तरह सहमत।
शीशे का घर नहीं रहेगा
या फिर ये पत्थर नहीं रहेगा
या होगा अपना बोलबाला
या फिर ये सर नहीं रहेगा
या उड़ जाएंगे सारे पंछी
या फिर ये पर नहीं रहेगा
या टूट गिरेगी ये सारी दीवारें
या फिर ये मंजर नहीं रहेगा
जब ब्लॉग लेखन ही कचरा है फिर सवाल कहाँ उठता है? हम सब कचरा ठेलक हैं.
कुछ उसी रात के
सितारों की रोशनी में
जीवन की राह खोज लेते हैं.
Kisi deep shikha ki bhaanti hain yah panktiyan!
Idhar udhar comments me padh rahi hun,ki,kuchh vivad chal raha hai..ab tak asamanjas me hun,ki, baat kee jad kya hai!
समीर जी,
हमने तो भाषा के मामले में आपको गुरू मान रखा है। जिस दिन समीर लाल अभद्र लिख देगा, उसी दिन हम भी अभद्र लिखेंगे और अपनी शान समझेंगे।
आप साहित्य और कलाबाजी से mukt होकर अपनी सहजता में लिखते रहे. हम पढतें रहेंगे, तभी भले ही टिप्पणी न छोड़े.
सुनिए, समीर लाल, द साउंड ऑफ साइलेंस...
जय हिंद...
लेखन अच्छा है या कचरा है इसका निष्कर्ष पाठक निकाल सकते हैं . आप लाख कहें की ""आपका लेखन कचरा है"" हम सभी पाठक गण मानने तैयार नहीं है आपको पाठक गण हमेशा रूचि के साथ पढ़ते है जिसका आंकलन टीप संख्या को देखते हुए किया जा सकता है ..... बल्कि आपके लेखन से हम सभी ब्लागरो को कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है .... कलमकार को हमेशा आलोचना और प्रत्यालोचना से एक नई दिशा मिलती है और उसका लिखने का हौसला दिनोदिन बढ़ता है ... आप तो इसे ब्लागर है जो नव और वरिष्ट ब्लागरो की हौसलाफजाई करते हैं ....आभार
लेखन अच्छा है या कचरा है इसका निष्कर्ष पाठक निकाल सकते हैं . आप लाख कहें की ""आपका लेखन कचरा है"" हम सभी पाठक गण मानने तैयार नहीं है आपको पाठक गण हमेशा रूचि के साथ पढ़ते है जिसका आंकलन टीप संख्या को देखते हुए किया जा सकता है ..... बल्कि आपके लेखन से हम सभी ब्लागरो को कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है .... कलमकार को हमेशा आलोचना और प्रत्यालोचना से एक नई दिशा मिलती है और उसका लिखने का हौसला दिनोदिन बढ़ता है ... आप तो इसे ब्लागर है जो नव और वरिष्ट ब्लागरो की हौसलाफजाई करते हैं ....आभार
हम भी मौज ले लेते हैं :)
अब अगर हमको कचरा ही पसंद हो तो :)
ऐसे कचरे को भी प्रणाम :)
कोई बात नहीं समीर जी। कहने वाले शायद जानते होंगे कि कचरे से ही अच्छी
खाद बनती है। और आज के ब्लागरों को अच्छी खाद की बहुत जरूरत है।
जिसकी जाकी रही भावना.....
लगे रहिए।
ये सब क्या हो रहा है ...बिजली समस्या और शादियों में व्यस्तता के कारण नियमित नहीं रही ...आज थोड़ी देर ऑनलाइन हुई तो देखा बड़ी मारकाट मची हुई है ....इस निराशाजनक स्थिति में भी अच्छी कविता रच दी है आपने ...
कुछ रात के अंधेरों से अक्रांत
भयभीत
दुबक कर सो जाते हैं ...
क्या बात है ...!!
रचना ने बिलकुल सही कहा है।
पता नहीं ये सब कुछ क्यों होता है।
सम्यक् चिंतन।
कुछ उसी रात के
सितारों की रोशनी में
जीवन की राह खोज लेते हैं.
-यह दुनिया भी कितनी अजीब है.
कोयले की खान से हीरा निकलता है...हम कचरे से भावनाएं ढूढ़ लेते हैं.....
आपका लेखन बहुत सार्थक है.....बस इतना ही...शुभकामनायें
बहुत पहले ही किसी ने कहा था कि हर बात की कोई न कोई सीमा होती है , एक हद तय किया जाता है , या शायद अपने आप हो जाता होगा , मगर जब जाने अनजाने कोई इसे पार कर जाता है तो फ़िर कुछ तो असर निकलता ही है न उसका ।
ये भी नहीं कहूंगा कि छोडिए ये सब और आगे बढिए .....
बस यही कहूंगा कि .....आगे बढिए ..
"कृपया इस विवाद को विराम दें और आगे हिन्दी की सेवा में तत्पर रहें."
आपकी इस सदेच्छा में सभी साथ हैं...
beshak....Duniya bari ajeeb hai..
भाई समीर लाल जी!
यह तो आपका बडप्पन ही है कि आप झेलकर भी शान्त हैं, मौन हैं!
भाई राजकुमार सोनी जी से भी साधिकार आग्रह करूँगा कि इस प्रकरण को अब बन्द कर दीजिए!
हजारों दीपक भी सूर्य की बराबरी नहीं कर सकते!
समीर लाल हिन्दी ब्लॉ्गिंग के सूर्य हैं!
आसमान पर थूकने से आसमान का तो कुछ नही विगड़ता है किन्तु थूकने वाले का थूक उसी पर गिर जाता है!
प्लीज ............!
जाने दो!!
मेरा वश मेरे व्यवहार, मेरे लेखन और मेरे विवेक पर है
बस यही बात मुख्य है समीर जी ! और ये आपके खूबसूरत व्यक्तित्व को दर्शाता है....रही बात कचरे की ..तो लेखन कचरा है या सोना ..ये लेखक नहीं पाठक तय करता है ...और आपके पाठक आपका लेखन कितना अधिक पसंद करते हैं ये कहने की तो जरुरत मुझे महसूस नहीं होती .
मुझे लगता है इस पोस्ट पर टिप्पणी की कोई गुंजाइश नहीं है।
in my opinion you are Amithabh bachchan of Hindi Blogging world.
thats all
nothing more
पहली बार देख रहा हूँ केवल १० टिप्पणियां ही आई है अब तक .......... आप इसी से अंदाज़ लगाइए कितने लोग सहमत है आपसे कि आप का "लेखन कचरा है" !!
मेरे जैसे बहुत से नए पुराने ब्लॉगर आप से साथ थे, है और रहेगे सो just chill !!
सभी के साथ हम भी है जी.....
कुछ अलग से तो क्या कहे,जो है वो है भी और सभी को पता भी है,और सभी कह भी रहे है!आपकी विनम्रता का सबूत ये भी है की टिप्पणी बॉक्स में आपने लिखा है कि "आपकी टिप्पणी से हमें हौसला मिलता है!" जबकि सच्चाई ये है कि आपके लेख और टिप्पणियों से मुझ जैसे ना जाने कितनो को हौसला मिलता रहा है,और मिलता रहेगा!आप बस ये स्नेहाशीष हम पर यूँ ही बनाये रखे!
कुंवर जी,
आप एक सहृदय इंसान हैं और दिल से लिखते हैं...जो दिल तक पहुँचती है...इसमें क्या कचरा.. क्या सोना...हाँ जिन लोगों के दिल के दरवाजे खुले हों..आपकी बात पहुँचती है...जिनके बंद हैं..नहीं पहुँचती..आपने ही कहा है..हिंदी सेवा करते रहें...बस, आपने भावों को व्यक्त करते रहें..बिना क्षुब्ध हुए..यही समय की मांग है.
...बहुत ज्यादा गर्मा-गर्मी चल रही है ... अब क्या कहें .... बवंडर उठा हुआ है .... चारों ओर तूफ़ानी माहौल नजर आ रहा है ... इस तूफ़ान/बवंडर को शांत करने का प्रयास किया जाये या फ़िर एक-दो पोस्ट चिपका दी जायें, यही सोच रहा हूं !!!!!
अंकल जी, आप अच्छा लिखते हैं. इसीलिए आपकी बुराई करने वाले भी लोग पैदा हो गए हैं. पापा एक बात कह रहे थे की कंकड़ भी उसी पेड़ पर फेंका जाता है, जिस पर फल लगे हों. ठूंठ पेड़ पर नहीं...आप तो सबसे अछे वाले अंकल जी हैं, फिर इन सब बातों की परवाह क्यों करते हैं...
__________________
'पाखी की दुनिया' में- जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा !!
प्रिय संजय
तुम तो बचपन से मुझसे जुड़े हो और उम्र में भी बहुत छोटे हो. आज पहली बार तो नहीं है जब मैं तुम्हें इस तरह आक्रोशित देख रहा हूँ मेरे विषय को लेकर. मैं जानता हूँ कि तुम मेरा सम्मान करते हो और मेरे विरोध की बात सुनकर ही भड़क जाते हो. किन्तु यह भी तो गलत है कि क्या कोई अपनी पसंदगी/ नापसंदगी भी न जाहिर करे. सिर्फ इस वजह से किसी पर इस तरह व्यक्तिगत टिप्पणी तो कतई शोभा नहीं देती.
तुमसे तो मुझे यह कहने की जरुरत भी नहीं कि क्षमा करना तुम्हारी टिप्पणी हटा रहा हूँ. :) बस, इतना जान लो कि हटा रहा हूँ. और आगे से ध्यान रखना कि गुस्सा अपनी जगह, भाषा की मर्यादा और मित्रों का सम्मान, दोनों अपनी जगह. बात बिना व्यक्तिगत हुए भी बेहतर ढंग से कही जा सकती है.
सस्नेह
समीर
ढपोरशंख जी
आपकी टिप्पणियां देखकर मैं समझ रहा हूँ कि कहीं न कहीं आप बहुत ज्यादा आहत हुए हैं और यह भी समझ आता है कि आप मुझे बहुत चाहते हैं, सम्मान करते हैं. आपका आभारी हूँ. गुस्सा होना याने नाराजगी या आहत होने के बावजूद भी भाषा का संतुलन तो अनिवार्य है ही. कोशिश यह रहे कि बात हो भी जाये और आक्रोश को विस्तार भी न मिले. वरना तो आक्रोश बढ़ता ही जायेगा और इससे किसी का भला नहीं होगा. मजबूरीवश यह जानते हुए भी कि आप आक्रोशित मेरे सम्मान को लेकर ही हुए हैं, मैं आपकी टिप्पणी हटा रहा हूँ ताकि इस बेवजही विवाद के विस्तार को विराम दिया जा सके और स्थितियाँ नियंत्रण में आयें. पुनः आपसी सामांजस्य स्थापित हो और सभी सार्थक लेखन में जुट हिन्दी को प्रचार एवं प्रसार दें. आप भी सहमत होंगे कि आपके हमारे सभी के यहाँ होने का अंतिम हेतु भी यही है.
पुनः क्षमायाचना के साथ आपका कमेंट अलग करता हूँ. आशा है आप उद्देश्य और भावना को समझेंगे.
समीर लाल ’समीर’
sameer ji..puri baat kya hai ..nahi pata..bas itna pata hai ki aap sabhi ke dil ajij hai aur rahengen.. :)
दुखी हूँ जो भी कुछ हुआ है उसकी वजह से !
पर अ-गम्भीरता बड़ों को सुहाती नहीं ! किसी भी ओर से क्यों न हो !
शीर्षक से 'कंटेंट' तक क्या आवश्यक था कि भावुकता को हथेली
पर लेकर दिखाया जाय !
दुःख में मैं भी आपके साथ हूँ इस रूप में कि उन सक्रिय योगदान
का साथी हूँ जिनसे ब्लॉग-जगत को कुछ सकारात्मक मिला है !
आभार !
समीर जी ,ज्ञानदत्त जी ने यह नहीं कहा की आपका लेखन कचरा है -उन्होंने केवल यह कहा की उत्तरोत्तर आपका लेखन हल्का हो रहा है जो उन्हें प्रभावित नहीं करता -यह कहने का हक़ किसी भी बुद्धिजीवी को है .......इसे तिल का ताड़ बनाया जाना कतई उचित नहीं है .
मैने कुछ रोज पहले हीँ ज्ञान ... नही नही ग्यान-दत जी जैसे " मै-मय " ब्लोगरोँ को मना किया था कि आप जो अपनी चालीसा पढते हैँ उसे बखूबी पढना जारी रखेँ और दुसरोँ के मामले मेँ टाँग न अडायेँ.
अब नही माने!
भैया कैसे वक़्त बदल गया. कल तक सबके लिये आदरणीय थे, एक बार मैने फजीहत कर दी अब देखो ... लग गयी है .. हे हे ..!
समीर जी... इस विवाद और इसके फल-स्वरूप उपजी प्रतिक्रियाओँ ने आपकी इज्जत और बढा दी है .
आप सदा सबके प्रिय रहेँ है और रहेँगे.
किसी के कहने या समझने से अपनी सोच मत बदलें. आप सब समझदार है, संयम से काम लें.
.....sanyam se yadi sabhi kaam le to wavtav mein kuch apriya ghatit ho kam hi dikhne ko milta hai...
Main samjhti hun ki Blogger's ko aapsi matbhed mein na ulajhkar sarthakta kee disha apne kadam badhne chahiye..
Chalo yah achha hai ki vivad samampt hua...
Aap hindi sahitya sewa mein samparpit hokar kayra karti rahi yahi hamari shubhkamnayne. hain.
भैया, प्रणाम,
ब्लॉगजगत में नया हूँ लेकिन इतने कम समय में ये समझ में आ गयी की आप कितने सरल ह्रदय हैं, और हर नए लेखक का जो उत्साहवर्धन आप करते हैं वो काबिले तारीफ़ है, मुझसे भी तो आपका कोई परिचय नहीं था, लेकिन फिर भी मेरी हर पोस्ट पर आप की टिप्पणी सबसे पहले आती है, सिर्फ मैं ही नहीं हर एक के लिए आपका व्यवहार ऐसा ही होता है, मुझे तो नहीं लगता की और कोई बड़ा लेखक नए ब्लॉगर की तरफ ध्यान भी देते हो, उत्साहवर्धन तो छोड़िये!
आपका तो व्यवहार ही आपकी पहचान है, मैं आपसे नहीं मिला हूँ और जानपहचान भी नयी ही है, लेकिन फिर भी मुझे लगता है की आप को तो मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, ये आपका स्नेह ही तो है और क्या है? लोग तो ऐसे ही झूठा प्रचार पाने के लिए विवाद खड़ा करते हैं, हम और हमारा स्नेह हमेशा आप के साथ है!
आपकी सह्रदयता और भाषा की मर्यादा को सलाम ।
समीर भाई,
मैं आपको तब से पढ़ रहा हूं जब से आपने पहली पोस्ट लिखी थी। मैं आपसे जो बात पचासों बार कह चुका हूं वह एक बार फ़िर मैंने अपनी पोस्ट में लिखी थी:हर इंसान की तरह समीरलाल में भी कुछ कमियां भी होंगी। जहां तक ब्लॉगिंग का सवाल है मेरी नजर में उन्होंने जो अनामी, बेनामी, छद्मनामी ब्लॉगरों की नकारात्मक पोस्टों पर वाह,वाही टिप्प्णियां की हैं वह शायद न करते तो मेरी समझ में वे अपना और ब्लॉगजगत का बहुत भला करते। मेरी समझ में आप जो भी लिखते पढ़ते हैं, टिपियाते हैं वह सब आपके पूरे व्यक्तित्व का आईना होती है।
आपने न जाने कितनी नकारात्मक पोस्टों पर वाह-वाह वाली टिप्पणियां की हैं। सब नेट पर मौजूद हैं। देखियेगा।
मेरा मानना है कि बेवकूफ़ से बेवकूफ़ व्यक्ति समझदार से समझदार व्यक्ति के तौर-तरीके समझता है। जो बात मैंने याद से लिखी आप उसके शब्दों को पकड़ रहे हैं कि ये नहीं लिखा-वो लिखा था।
जिन तमाम पोस्टों पर ज्ञानजी के लिये निहायत भद्दी भाषा प्रयोग की गयी आप उन पोस्टों पर टिप्प्णी करते हुये लिखते हैं:-आपने जैसा महसूस किया, वैसा लिखा और मुझे संबल प्रदान किया. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ. स्नेह बनाये रखिये. बहुत आभार.
उधर ज्ञानजी को गरियाया जा रहा है वही पोस्ट आपका संबल बंधा रही है? जिस पोस्ट से ज्ञानजी की ऐसी-तैसी हो रही है उससे आपको स्नेह मिल रहा है!
गुस्से में इंसान आपा खो बैठता है! लोग खो बैठे समझ में आता है लेकिन आपका विवेक किधर था? यही आपका ज्ञानजी के लिये इज्जत का भाव है कि कोई अनामी किसी को (जिसकी आप इज्जत करते हैं) गरियाते हुये पोस्ट लिखे और आपकी तारीफ़ करे तो आप उससे अभिभूत हो जायेंगे?
ये तर्क तो कुछ उसी तरह के हैं जो तर्क किसी ने दिये जब दिल्ली में नरसंहार हुआ था और हजारों बेगुनाह मारे गये थे।
ये सवाल आप अपने आप से पूछिये कि ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं कि जिसके चलते कोई अनामी आपके किसी साथी इज्जतदार साथी को गरियाकर चला जाता है और आप उसमें अपना स्नेह खोजने लगते हैं क्योंकि गरियाने वाले ने आपके समर्थन में उसको गरियाया है।
समीरभाई, आपको मैंने कई बार कहा है, समझाया, बताया है, अनुरोध किया है कि इस प्रवृत्ति से ऊपर उठिये। आपका वक्तव्य एक राजनैतिक वक्तव्य सरीखा है। दूसरे से कुछ भी बोलिये अपने आप से तो ईमानदार बने रहिये।
मैंने कभी लिखा था -वह व्यक्ति बड़ा अभागा होता है जिसको कोई टोकने वाला नहीं होता। आपके ये सारे अंदाज मुझे इशारा कर रहे हैं कि आपको टोकने वाले दोस्तों की दोस्ती नहीं चाहिये बल्कि ऐसे लोगों का स्नेह चाहिये जो आपके खिलाफ़ कुछ लिखने वाले लोगों की इज्जत उतार सकें और आप उसमें स्नेह महसूस कर सकें।
और बहुत कुछ है कहने को लेकिन लिखना बेकार है क्योंकि आपको टोकना पसंद नहीं आयेगा।
आप मस्त रहें! ब्लॉग जगत के बेताज बादशाह बनें रहें। लोगों इसी तरह का स्नेह पाते रहें। आभार व्यक्त करते रहें। लेकिन कभी-कभी अपने से सवाल भी पूछते रहियेगा कि यह स्नेह अगर सही है तो आपकी संवेदना किधर है,बुजुर्ग मित्रों के प्रति इज्जत का भाव कहां है!
समीर अंकल, प्रणाम. क्या कहूँ इस झगडे पर. मुझ तो मुझे तो आप तीनों (शुक्ल जी, ज्ञान जी और आप) को पढ़ने में मजा आता है. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ..
देर से इस विषय का ज्ञान हुआ कि यहाँ इतना सब कुछ हो रहा है.
बेहद बेहद दुखद है.
अगर ब्लॉगजगत के सूर्य माने जाने वाले समीर जी के लेखन को कोई कचरा कह सकता है तो हम सब का लेखन तो कचरे से भी गया गुज़रा बता दिया जायेगा!
-मन व्यथित हुआ ये सब जानकर.
-समीर जी को पढने से बहुत पहले अनूप जी को ही पढ़ा है
और मानती हूँ ये दोनों अपने अपने क्षेत्र के चमकते सितारे हैं,जिनकी रोशनी में हम सब नए ब्लोगेरों को रास्ता दिखता है.
-समर्थक /विरोधी सभी से अनुरोध है कि कृपया इस बेवजही विवाद के विस्तार को विराम दें. और आपसी सामांजस्य स्थापित करें
ये मैं अपने तजुर्बे के आधार पर कहती हूँ कि जो महान व्यक्ति होते हैं वो बहुत ही सच्चे दिल के और साधारण होते हैं और सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनमें घमंड कभी नहीं होती और बहुत ही विनम्र होते हैं !
दिन भर धूप का परबत काटा रात को पीने निकले हम
जिन गलियों में मौत छुपी थी उनमें जीने निकले हम
पता नहीं क्यों यह याद आ गया
अपनी अपनी जगह सब बढ़िया लगते हैं जी हमें तो।
आप को पढ़ने में जो आनंद आता है, वैसा ही शुक्ल जी को पढ़ने में आता है।
आभार।
मेरा वश मेरे व्यवहार, मेरे लेखन और मेरे विवेक पर है. कोशिश होती है उसमें भूल न हो.
यही संस्कार हैं, यही अहिंसा है.
वरना बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जायेगी.
इस पोस्ट पर कुछ भी कहने में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ....
धन्यवाद
उड़न तश्तरी जी खैर मैं तो इस पूरे प्रकरण से अनभिज्ञ हूँ हाँ ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत पर अन्य ब्लॉगर बंधुओं का इस प्रकरण पर प्रकाशित पोस्टों पर ध्यान अवश्य गया पर शीर्षकों से वे विवादित लगे सो मैं ने नहीं पढ़ा । पर आपकी बातों से पूर्ण सहमत हूँ। वैसे भी जिंदगी विवादो से परे हो कर आगे बढ़ने का नाम है ना की विवादो के साथ हो कर रुकने का। शब्दों की मधुरता और संयमित प्रयोग ही उचित होता है क्योंकि शब्दों के घाव ही सबसे गहरे होते है।
आपकी विनम्रता के आगे नतमस्तक
लोगों को न सिर्फ जागरूक करती रचना बल्कि समस्या के प्रति सजग रहने का संदेश भी देती है।
All things said and done Samir bhai is a large hearted, generous human being and he is beyond comparisons !
किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है। कहने वालों ने पहले ही जरूरत से ज्यादा कह दिया है। अब जरूरत है कचरा साफ़ करने वालों की। आप का प्रयास बहुत अच्छा है। अनूप जी का प्रयास भी शानदार था।
शान्तिः शान्तिः शान्तिः
अपनी यह ब्लोगिंग की दुनिया एक परिवार की तरह है, बुज़ुर्ग सदस्य की तो हमेशा इज्ज़त होती है, और परिवार के सभी अनुजो और बच्चो को उसकी इज्ज़त करनी ही चाहिए.....
आगे की सुधि लेना ही समय की मांग है...
जय ब्लॉगर, जय ब्लागिया... और जय हो समीर भाई...
समीर जी आप ठीक कहते हैं मामले को ज्यादा हवा नहीं देनी चाहिये ।हां भाषा पर ध्यान देना जरूरी है ।क्या हिन्दी ब्लॉगिंग इसलिये शूरू की गई थी कि एक दूसरे पर छींटाकसी करते रहे।किसी एक आदमी की सोच किसी के लेखन को परिभाषित नहीं कर सकती है।
आप जो हैं वो हैं आपका लेखन जो है वो सभी के सामने है।
चारों तरफ से मस्त रहें:)
हम आपके चाहनेवालों में, आपके लिखे को पसंद करनेवालों में और आपसे मिलकर खुश होने वालों में हैं। यकीन मानिए, यह प्रसंग सिर्फ ब्लागिंग है और कुछ नहीं। चाहनेवालों ने तूल दे दिया। अब क्या किया जाए?
आपका लेखन कचरा है या माल है पता नहीं लेकिन पढके दिल को शुकुन मिलता है |लेखन औरो से हटकर है | मै कोइ साहित्यकार नहीं हूँ जो दूसरों के लिखे को सही या गलत अच्छा या बुरा बताऊ मेरी नजर में, वो लिखा हुआ सब अच्छा है, जो मेरे दिल को दिमाग को अच्छा लगता है |बाकी सब मेरे नजर में कचरा है |वार & पीस नामका किताब बहुत ही अच्छी बतायी गयी थी लेकिन मै इसका एक पेज भी नहीं पढ़ पाया मेरी नजर में वो कचरा है |( भले ही लियो टालस्टॉय नाराज हो )
आपका लेखन कचरा है या माल है पता नहीं लेकिन पढके दिल को शुकुन मिलता है |लेखन औरो से हटकर है | मै कोइ साहित्यकार नहीं हूँ जो दूसरों के लिखे को सही या गलत अच्छा या बुरा बताऊ मेरी नजर में, वो लिखा हुआ सब अच्छा है, जो मेरे दिल को दिमाग को अच्छा लगता है |बाकी सब मेरे नजर में कचरा है |वार & पीस नामका किताब बहुत ही अच्छी बतायी गयी थी लेकिन मै इसका एक पेज भी नहीं पढ़ पाया मेरी नजर में वो कचरा है |( भले ही लियो टालस्टॉय नाराज हो )
आपका लेखन कचरा ?
वाह.. इत्ता सारा कचरा, और हमें ख़बर तक नहीं ?
आरोपकार न सही, पर कुछ परोपकार तो कर लिया करो..
क्योंकि इधर मैं ब्लॉग-मेहतर बेरोज़गारी के दिन काट रहा हूँ, बता तो देते बड़े भाई !
"कृपया इस विवाद को विराम दें और आगे हिन्दी की सेवा में तत्पर रहें"
एक सौ एक प्रतिशत सही बात कही है आपने ....जो हुआ सो हुआ...बीती बात बिसार के आगे की सुध ले...
नीरज
पूरे प्रकरण में ब्लॉगजगत की छीछालेदर ही हुई है.
समीर जी.
चलिये अब जल्दी नयी पोस्ट लगा भी दीजिये..
कोई सुन्दर सी कविता... जो माहौल बदल दे....
VERY NICE
दादा
एक क्षण भी नही लगाया और आपने मेरे व्यूज़ छाप दिए ?
आप जैसा व्यक्ति ही ऐसा करऩे का साहस कर सकता है .
मेरे मन में आपका दर्जा और ऊंचा हो गया है दादा !
मैं जानती हूँ आपको मेरी बात ऩे कहीं न कहीं आहत तो किया ही होगा.
माफ़ कर दीजिये .
किन्तु हम जिन्हें चाहते हैं ,प्यार करते हैं,सम्मान देते हैं उसके सामने सत्य ना बोल कर बहुत अच्छा नही कर रहे ,
बल्कि उसका बुरा ही कर रहे होते हैं.
आप जैसे व्यक्तित्व के लिए ये सब लिख कर मैंने आपके परिजनों को नाराज कर दिया है और बिजली मुझ पर गिरेगी ये भी जानती हूँ किन्तु .......
इन सबकी बहुत ज्यादा परवाह भी मैं नही करती .
ये मेरी एक बहुत बड़ी कमी या विशेषता ??????? भी है
हा हा हा
क्या करूं ऐसीच हूँ मैं
'छुटकी '
१५ मई २०१० ४:३२
हिन्दी की सेवा में तत्पर रहें.....,
यही महत्त्वपूर्ण है.
कहने को कुछ बचा ही नहीं, सिर्फ़ इसके कि अब इस विवाद को विराम दिया जाए। सबने बहुत कुछ कह लिया
वाह! जरा यह कचरे वाली गाडी "सच में" पर लेकर आयें और थोडा कूडा वहां भी यदा कदा गिरायें स्नेह के रूप में!
चलो अच्छा किया आपने, अब विवाद खत्म कर दिया । परन्तु यह तो विचारणीय है कि इतने माननीय ब्लॉगर इस तरह की भाषा का प्रयोग क्यों कर रहे हैं ।
मैने भी वह पोस्ट पढ़ी थी लेकिन आदत के अनुसार मै इस तरह की पोस्टों को , जान बूझ कर विवाद पैदा करने के लिए पोस्ट की गयी मानता हूं इस लिए उन पर टिप्पड़ी नही करता ।
कुछ उसी रात के
सितारों की रोशनी में
जीवन की राह खोज लेते हैं
आप विचलित मत होइए ,हम आप के साथ है
माफ़ करना टिपण्णी डालने में देरी हो गयी ...पर आपका ये कचरा मुझे बहुत भाता है लोग आपके लिखे को कचरा कहे ....मुझे अच्छा लगा...ऐसा कचरा काश मैं भी लिख सकू
Hi..
Pichhle kuchh samay se jab se maine blog padhne shuru kiye tab se maine aapko har blog ke tippani box main apne sakaratmak tippani ke saath paya hai..
Kisi ki tippani ya aalekh se kya ahat hona..yah jeevan hai, esme utar chadhav to aate hi rahte hain, apni sakaratmak soch ko jaise aap pakde hain, vaise hi pakde rahen..bas.. Log samajhdar hain, sab samajhte hain..
Achhai se buraai par hamesha jeet milti hai..
Shubhkamnaon sahit
DEEPAK...
www.deepakjyoti.blogspot.com
हमारे परम मित्र और बड़े भाई समीरलालजी के लेखन को कचरा कहते हुए आपको लाज न आई, समीरलाल जी। हाँ नहीं तो।
आज प्रथम बार अनूप चच्चा को इसी लेख पर (टिप्पणियों की सूची में) आपकी आलोचना करते हुए पाया, अब लग रहा है कि कोई बात कहीं पर तो है !!
अब बस करिये......
आप दोनों बड़े हैं.........
दोनों मेरे चच्चा हैं और आपकी विरासत का उत्तराधिकारी मैं हूँ.
पर आज आप लोगों को लड़ते हुए देख कर हमारा मन दुखी हुआ.
आपको अनूप चच्चा के विरुद्ध और अनूप चच्चा को आपके विरुद्ध सार्वजनिक बोलने का कोई अधिकार नहीं है !!!
कहना-सुनना है तो ई-मेल है चैट है और भी बहुत कुछ है पर लड़ाई.....!!!!!
क्या यही सिखाया है हमने आपको !!!
दुनिया क्या कहेगी...या तो आपके साथ होगी या अनूप चच्चा के साथ.
बंटेगा तो मेरा परिवार न !!
उसकी चिंता आप दोनों को नहीं है !!
अनूप चच्चा को अपनी टिप्पणी हटानी चाहिए.
आखिर घर है ये मेरा....आप दोनों का अखाड़ा नहीं !!
चलिये, मामला खतम हुआ.
अब मैं चुप हूँ.
vivad ke baare me jara vistar se batayenge?
@ sameeksha
चिन्ता न करें. सब शान्ति है. विवाद का कोई मसला न था बस यूँ ही!!
समीर भाई के संयम, स्नेह, भाषा की गहराई, और उद्देश्य परक रचनाओं को मैंने जितनी गंभीरता से अनुभव किया है, शायद अन्य किसी ब्लॉगर की नहीं. "लेखन और स्वयं का विवेक एक दूसरे के पूरक होते हैं." हम जैसा सोचते है या चाहते हैं ये जरूरी नहीं है कि अगला रचनाकार वैसा ही लिखे ... यदि सब एक जैसा लिखने लगेंगे तो स्वयं कि पहचान या छाप कहाँ रह पाएगी. संभवतः लोग इन्हीं विशेषताओं के कारण पहचाने जाते हैं. अब चाहे सारे विवादित ब्लॉगर हों या भाई समीर लाल जी हों.. सभी आकाश की उड़न तश्तरी या धरा की धूलि तो नहीं बन सकते. लोग मानें या न मानें हर शख्स की अपनी एक विशेषता तो होती ही है जिसके सहारे वह अपनी पहचान बना सकता है. पर लोग ऐसा कहाँ करते हैं.. बस यहीं से मुश्किलें बढ़ना शुरू होती हैं. इंसान यदि आत्म अवलोकन कर अपनी गलतियाँ सुधारने लगे तो शायद कभी किसी को परेशानी नहीं होगी .. अब वे चाहे समीर भाई हों या फिर अन्य बंधुगण..
अंत में एक महत्वपूर्ण बात कि संयम एक बहुत बड़ा आदर्श अस्त्र है जो आपसी मतभेदों का अंत करने में सक्षम है.
जय हिंदी जय ब्लागर्स .
- विजय तिवारी " किसलय "
very touching
अमां बॉस कहां फंस गए। कोई कुछ भी कहे आप मस्त रहें..क्या फर्क पड़ता है. आप अपने विचार लिख रहे हैं जिसे पढ़ना है पढ़े बाकी जाएं बाढ़ में..अभी ब्लॉगिंग शुरु होकर चंद कदम चली है..औऱ आप किस तरह के विवाद में फंसने जा रहे हैं..आप कचरा लिखें या बेहतर....अरे ये आप सोचते क्यों हैं..भई हमने पढ़ा रोज कई लोग पढ़ते हैं ..उन्हें कोई दिक्त नहीं तो फिर आप क्यों परेशान हैं....अरे हाथी राजपथ पर अपनी मस्ती में चलता आप भी चलते रहों न बॉस....
सही समापन किया है आपने विवाद का . और बात भी आपने अपनी सही तरीके से रखी और इसीलिए तो हम आपके मुरीद है.
...सरल, सारगर्भित और सत्य.
सर मैं आपसे इतना ही अनुरोध करूंगी..आप तो बस लिखते जाइए...टिप्पणियों की परवाह किए बगैर अपनी भावनाओं को पिरोते जाइए...आपके विरोधी अपने आप शांत हो जाएंगे...और आपके चाहनेवाले हमेशा आपका साथ देंगे
ISASE PHLE BHI MAI KAH CHUKA HOON .KI SAMEER JI KI AAV-BHAGAT PA KAR YHAN KITNE BLOGGER NA CHAH KAR BHI AB TAK DATE PADE HAIN ..CHAHE UNKI AK BHI RCHNA AAYI HO ..AUR AGR SAMEER JI NE LIKH DIYA..''BAHUT KHOOB.''BAS HO GYA BLOGGER BAM-BAM..AUR GYAN DUTT JI SHAYAD KABHI AASHIRWAD DE BHI JATE TO KOI NA KOI MEEN MEKH NIKAL JATE ,,..ACHCHHI BAT HAI ..PAR BURI BAT BHI HAI ..KYONKI JIS BAT KO AAP GALAT MAN RAHE HO VO LIKHNE WALE KE HISAB SE SAHI HO...ISLIYE ''SAMEER JI KE LEKHAN AUR LEKHKON KE PRATI JO UNKA SAHIRDY VYVHAR HAI USKI BARABARI KOI NAHI KAR SAKTA ....
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