पिछले साल होली पर यह गीत लिखा था किन्तु इस साल अदा जी की आवाज और संतोष जी की म्यूजिक नें इस गीत में चार चाँद लगा दिये. बिना किसी की भूमिका के आप आनन्द उठायें.
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
रंग लगा दो,
गुलाल लगा दो,
गालों पे मेरे
लाल लगा दो..
भर भर पिचकारी से मार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
गुझिया भी खाई
सलोनी भी खाई
चटनी लगा कर
पकोड़ी भी खाई..
भांग का छाया है खुमार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
-समीर लाल ’समीर’
97 टिप्पणियां:
behatreen prastuti......geetkar,sangeet kar aur gayayika teeno ke karyo ki sarahana ka karya lajawab hai!!
Aannd aagaya ji ....bahut bahut dhanywaad sabhi ko
एक तो आपके सोने की कलम से लिखा गया खूबसूरत गीत.. उसपे अदा दी की मखमली आवाज़ और संतोष सर की अँगुलियों का जादू.. बस गीत रहा कहाँ अब ये?? सम्मोहन ही हो गया ये तो... बधाई..
सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
होली पे पुरा ही भंगिया गए हैं।
सास ससुर को भी बहु के साथ
होली खेलवा दिए-रंग लगवा दिए
अदा जी बहुत ही सुंदर गाया है।
सुनकर मजा आ गया और
चढ गया फ़ागुनी बुखार,
होली की हार्दि्क शुभकामनाएं
एक तो आपके सोने की कलम से लिखा गया खूबसूरत गीत.. उसपे अदा दी की मखमली आवाज़ और संतोष सर की अँगुलियों का जादू.. बस गीत रहा कहाँ अब ये?? सम्मोहन ही हो गया ये तो... बधाई..
अरे वाह.....!
यह तो बहुत सुन्दर होली लोक-गीत है!
अदा जी ने इसे बहुत मस्त होकर गाया है!
दोनों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
गीला रंग मोहे लगाई दो !!
मजा आ गया, गीत,संगीत और आवाज मस्त !!
वाह! स्वर-संगीत का यही कमाल है.
पहले से बहुत अच्छी लगने लगी कविता.
holi ke sare rang is geet men sanjo diye hain , behad sunder rachna, sununga shaam ko aakar office se.
सुबह सुबह सुना मजा आ गया , गीत
भी सुन्दर लिखा है और अदा जी की आवाज ने उसे
चार चाँद लगा दिया है ! आभार !
वाह समीर भाई .......... मज़ा आ गया ......... सुन्दर गीत.
सुबह सबेरे मन मोह लिय आपनें,वाह क्या कहनें.
लाजवाब गीत को जब लाजवाब स्वर मिले तो
अभिभूत कर दिया
गीत कुछ सुना- सुना सा लग रहा है ....:)
आपने लिखा बढ़िया और अदाजी की मधुर आवाज से तो चार चाँद लगने ही थे ....!!
अदा जी ने तो कमाल ही कर दिया। इसे गाने में।
वे किसी भी मुश्किल गीत को गा सकती हैं।
बहुत खूबसूरत गीत।
शब्द और आवाज़ दोनो बाकमाल।
समीर भाई
माफ़ कीजियेगा...रंग पर्व के हिसाब से कम्पोजीशन काफी स्लो लगी...पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि इस दिन सारे सुर फास्ट ट्रेक / बीट पर ही होना चाहिये ? क्या ये मेरा वहम है ? पोस्टिंग भी मिसटाइम्ड लगी !
[ गीत की नायिका गीले रंग के लिये सार्वजनीन आमंत्रण देती है ! खाने , यहां तक कि भांग भी , के मामले में भी कोई कोताही नहीं करती तो ये कैसे मान लूं कि बुखार की वज़ह से सुर मद्धम पड़ गये हैं :) ]
गीत सुनकर वैसा ही आनंद आया जैसा नौशाद के संगीत, कवि प्रदीप के गीत और लता मंगेशकर की आवाज से सृजित रचना को सुनकर आता...
आप तीनों को बहुत-बहुत बधाई...
जय हिंद...
बहुत ही अच्छा
लाजबाब है आपका ये फाग गीत ,सुबह सुबह जैसे ही ब्लॉग को देखा मजा आ गया
इंतज़ार ही कर रहा था आपके पोस्ट का ,
त्यौहार के इस अवसर पर बहूत बढियां प्रसतुति है |
बहूत बहूत आभार और आपको सपरिवार होली की रंगारंग बधाई |
वाह भाई वाह ..बहुत ही खूबसुरत गीत !! होली की बहुत-२ शुभकामनायें !!
गीत संगीत गायन बहुत खूब सूरत अदा जी की आवाज़ मे जादू है। धन्यवाद इसे सुनवाने के लिये। शुभकामनायें
गीला रंग उतारे ना उतरे
रंग चमरिया चमड़ी से चिपके
कैसे उतारू तु ही बता दे
माथे अबीर की बिन्दी लगा दे
पानी क्यों बहाए बेकार
गुलाल बस मोहे लगा दे
गीला रंग है बेकार,मोहे ...
अबीर चल सबको लगा दे
काहे कहूँ गालो पे लगा दे
छूट जो दे दूँ सबको मैं इतनी
कहाँ कहाँ हाथ धर देंगे मुरदार
दूर से रंग लगाना
कहे देती हूँ सौ बार
सूखा रंग मोहे लगाना
पहले रंगे फिर रंग छुडावे
एक मुम्बई में ही इत्ता पानी गिरावे
साल भर खेती सींच जाये
तरसे ना मेरा राजस्थान
सूखा रंग मोहे लगा दे
सब मर्दों के तिलक लगा दे
चुटकी भर से चाहे मोहे सजा दे
तु सयाना ,तेरी बातें सयानी
बढ़ आगे नया चलन चला दे
गीला रंग बेकार,मोहे.....
तुम को ही कुछ ज्यादा ही चढ़ता
ए बबूआ , ये फागुनी बुखार .......
गीला रंग उतारे ना उतरे
रंग चमरिया चमड़ी से चिपके
कैसे उतारू तु ही बता दे
माथे अबीर की बिन्दी लगा दे
पानी क्यों बहाए बेकार
गुलाल बस मोहे लगा दे
गीला रंग है बेकार,मोहे ...
अबीर चल सबको लगा दे
काहे कहूँ गालो पे लगा दे
छूट जो दे दूँ सबको मैं इतनी
कहाँ कहाँ हाथ धर देंगे मुरदार
दूर से रंग लगाना
कहे देती हूँ सौ बार
सूखा रंग मोहे लगाना
पहले रंगे फिर रंग छुडावे
एक मुम्बई में ही इत्ता पानी गिरावे
साल भर खेती सींच जाये
तरसे ना मेरा राजस्थान
सूखा रंग मोहे लगा दे
सब मर्दों के तिलक लगा दे
चुटकी भर से चाहे मोहे सजा दे
तु सयाना ,तेरी बातें सयानी
बढ़ आगे नया चलन चला दे
गीला रंग बेकार,मोहे.....
तुम को ही कुछ ज्यादा ही चढ़ता
ए बबूआ , ये फागुनी बुखार .......
गजब का आनन्द आया।
अदाजी, सन्तोष जी और समीर जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं और आभार...।
गजब का आनन्द आया।
अदाजी, सन्तोष जी और समीर जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं और आभार...।
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
KISE SAMJHAWOGE SAMEER JEE , TASLEEMAA KE BURKE PAR LIKHE EK LEKH PAR TO KAL INHONE KARNATAKA ME KAI GAADIYAA PHOONK DAALEE !
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
KISE SAMJHAWOGE SAMEER JEE , TASLEEMAA KE BURKE PAR LIKHE EK LEKH PAR TO KAL INHONE KARNATAKA ME KAI GAADIYAA PHOONK DAALEE !
बहुत बढ़िया !
सुन्दर गीत संगीत .
आभार.
बहुत बढ़िया !
सुन्दर गीत संगीत .
आभार.
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
sir holi ke bhang mein rang daal diye aapne..dhol ki thaap chahiye bas :)
क्या बात!
रंग चाहे सूखा हो
या हो गीला
पर कर दे मन रंगीला।
रंग सदा ऐसा पाना जी
हमें तो वही लगाना जी।
बहुत ही सुन्दर, होली के उन्मुक्त भाव को सरलता से समाहित करता हुआ । मधुर गायन । आनन्द आ गया ।
सचमुच चढ़ गया, हिन्दू लगावे मुस्लमा लगावे। सचमुच आपके मुंह में धी-शक्कर
आपके गीत में सम्मोहन है, वहीं अदा जी की आवाज़ मे जादू है। मंत्र मुग्ध हो गया मैं ....और संगीत ऐसा की दीवाना बना दे ...ग़ज़ब क़ा संयोजन ...बधाइयाँ !
awaaz ka jadu chadh gaya
उत्कृष्ट रचना की उत्कृष्ट संगीतमय प्रस्तुति! बेहद दिलकश -पूरी टीम को बहुत बधाई !
Cherry on the cake :)
मस्त कविता व् गायकी...... लेकिन
गीलो रंग लायो ज़ुकाम,
मोहे विक्स लगाई दो.
ye to gaa kar bhi sunana padega
जितना सुन्दर गीत लिखा है उतना ही सुन्दर इसे गाया और संगीत से सजाया गया है...अप्रतिम रचना...आनंद ही आनंद आ गया...बहुत आभार हम सब को सुनवाने के लिए...
नीरज
गीला रंग मोहे लगाई दो!
रंग गीला हो या सूखा..क्या फर्क पडता है। वैसे भी अब काले रंग पे ओर कौन सा रंग चढने वाला है :-) हो...ली की बहुत बहुत मुबारकबाद!
गीत बहुत बढिया लगा...और अदा जी की मधुर आवाज नें तो सोने पे सुहागे का काम कर डाला ।
great work
वाह!
sameer dadda ki kalam aur santosh ji ki jhnkar aur ada ji kook ...maja aa gaya ...manohari ,samayik uphar....aabhar
गाना तो बेहतरीन था, और गायि्का की आवाज भी अच्छी है… उनको भी कमेन्टिया आता हूँ :)
"अच्छा लगा........"
amitraghat.blogspot.com
खूबसूरत गीत।
खूबसूरत आवाज़।
बहूत बहूत आभार
आपको सपरिवार होली की रंगारंग बधाई |
सुन्दर है गीत,गायन और संगीत सब कुछ! अच्छा किये भूमिका नहीं लिखे। सब चौपट हो जाता।
Sameer ji bahut acha laga geet sabko badhai..
Geet,sangeet...aur sumadhur swar ka adbhut sangam...bahut bahut shukriya..
वाह जी आनंद आ गया गीत सुनकर। ऐसा लगा जैसे आज भी होली है।
@ अली जी से कहना चाहूंगी...होली के भी बहुत से गाने धीमी गति में है...जैसे
आई होली आई सब रंग लाई,
पिया संग खेलूं होली फागुन आयो रे
होली आई रे कन्हाई होली आई रे....
हमने इस गीत को मात्र ३ घंटे में तैयार किया है, अपने सीमित साधनों से...
जिसमें गीत को सुर में ढाल कर शब्दों में थोड़ी-बहुत फेर बदल करना और संगीत बनाना था और रिकॉर्ड करना ...इसलिए कमियाँ रह गई हैं....
आशा है आप उन कमियों को नज़रंदाज़ करेंगे..
एक बार फिर आप सभी का मैं हृदय से आभार मानती हूँ...अगली बार इससे बेहतर प्रस्तुति के साथ हम हाज़िर होंगे अगर समीर जी ने मौका दिया तो...
साधना जी का मैं दिल से शुक्रिया अदा करना चाहुगी चाहूँगी, उन्होंने न सिर्फ़ मेरा हौसला बढ़ाया अपितु मान भी बढ़ाया है...इस गीत को पसंद करके..
धन्यवाद...
होली का एक बेहतरीन प्रस्तुति
वाह जी वाह ।
मज़ा आ गया ।
समीर जी --गीतकार ,
संतोष जी -- संगीतकार
अदा जी --अदाकारा
सब मिलाकर निर्मल आनंद ।
होली की हार्दिक शुभकामनायें।
जय हो आनंद आ गया .. रोचक प्रस्तुति ....आभार
मेरा लिनक्स आज कुछ गड़बड़ है...बस पढ़ कर आनंद ले पा रहा हूँ
बहुत ही सुंदर गीत और उतने ही सुंदर युग्म आवाजों ने इसमें चार चांद लगा दिये हैं.
होली की घणी रामराम.
Holee ke mauke par ek behatareen prastuti----apko bhee holee kee mangalkamnayen.
Poonam
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
समीर जी, बहुत खूबसूरत गीत---आपको एवम परिवार के समस्त सदस्यों होली की शुभकामनायें।। हेमन्त कुमार
मिठ्ठी आवाज सुंदर कविता, होली का महोल गीत सुन कर हमे तो भांग का नशा हो गया.
बहुत सुंदर
ध्न्यवाद
सुंदर कविता की संगीतमय प्रस्तुति।
ओह! नेट से दूर रहने से कितना कुछ छूट जाता है।
मै इस गीत में रंग के साथ जुड़े विशेषण " गीला " के बारे में सोच रहा हूँ । कवि का यहाँ गीला लिखने का विशेष आशय है । यहाँ केवल रंग भी हो सकता था और होली की आधुनिक औपचारिकता के चलते सूखा रंग भी । लेकिन गीला आर्द्रता का प्रतीक है । यह वही आर्द्रता है जिसकी वज़ह से खेतों में बीज से अंकुर निकलते हैं , यह वही आर्द्रता है जिसकी वजह से दुख और भावनायें चरम पर पँहुचती है और आँसू निकल पड़ते हैं । यही आर्द्रता सृष्टि को जन्म देती है और इसकी वज़ह से ही संवेदना इस जग में स्थान पाती है । इसकी वज़ह से ही सम्बन्धों में नमी बनी रहती है और देह में जीवन शेष रहता है ।कल्पना करके देखिये यदि जीवन में तरलता न हो तो यह जीवन कितना शुष्क हो जाये और फिर यह संसार भी कहाँ जीवित रहेगा । आज इसी तरलता की खोज चान्द से लेकर अन्य ग्रहों पर की जा रही है .. क्योंकि इस गीलेपन के अभाव मे जीवन सम्भव ही नही है । बधाई समीर भाई ।
वाह.. एकदम होली के माफ़िक.
समीर लाल जी, आदाब
आनन्द आ गया....होली की शुभकामनाएं
kya baat hei.....ab to ada ji ki awaj mei 2 gane sunne ko mil gaye holi par......ek apka ek lalit ji ka.....kah kahe.....bas gila rang mohe lagai do.....
सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई holiyane maje ko jahir karta jabulpariya saskriti ka ghotak vah - vah ...........
सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई holiyane maje ko jahir karta jabulpariya saskriti ka ghotak vah - vah ...........
आनंद आ गया .. क्या गीत है और संगीत भी लाजवाब है ... समीर भाई .. मज़ा आ गया .. झूम रहे हैं हम भी ...
अदा जी की आवाज और संतोष जी के फ़न ने आप के गीत में चार चांद लगा दिये हैं।
चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!! ....बधाई..
पिछले साल होली पर यह गीत लिखा था किन्तु इस साल व्यक्त हुआ...यही तो होली की फगुनाहट का कमाल है. होली की शुभकामनायें !!
Comments reply at mere geet :
महाराज कभी नीचे भी आ जाओ , हम लोग जमीन के प्राणी हैं , गूढ़ वचन नहीं समझ पाते ...मदद करो
अन्यथा ...
;-)
पहले से बहुत अच्छी लगने लगी कविता.
सुन्दर गीत
सुन्दर आवाज
एकदम से फाग में डूबे हुए हैं
आपका लिखा हुआ यह फ़ाग गीत वाकई गज़ब ढा गया. शरद कोकास जी कि टिप्पणी का मर्म अगर सही होतो बात बहुत ही गहरे पैठ जाती है.
रही बात गीत के संगीत और गायन पक्ष की..
अदाजी के स्वर अदायगी में जो शोखी, अल्हडता, और निश्छल सादगी है, वह इस फ़ाग गीत या लोकगीत के जोनर को सपोर्ट करती है, विश्वसनीयता प्रदान करती है.
बाकी संतोष जी का स्वर संयोजन भी अनूठा, और माधुर्य भरा है. साथ में बीच में जो उन्होने सिम्फनी का उपयोग किया है वह गीत को ऊपर के स्तर पर ले जाता है.
बस यह बात अली जी की कुछ हद तक सही प्रतीत होती है,कि जिस मूड का यह गीत लिख गया है, या गाया गया है, या तर्ज़ बनाई गयी है, उसके साथ लय अधिक होती तो और मस्ती बढ जाती , समा और रंगीनीयत बढ जाती .परकशन वाद्यों में धोलक, और अन्य भारतीय ताल वाद्यों की कमी अखरी ज़रूर.
मगर शायद समय की कमी और सीमित संसाधनों के होते हुए जिस प्रकार का भी सृजन हुआ है उसे यही कहा जा सकेगा कि-
HATS OFF TO ALL!!!
बहुत बढिया लगा यह होली गीत सहज सरल लेकिन रंगों से सराबोर ।
देर से ही सही पर गीला रंग मोहे लगाई दो .
अदा जी की आवाज ने aapke geet ko एक lambi umra de di hai
अरे वाह! किसी ने लगाया भी या नहीं?
sir geet bahaut sunder likha hai.....abhi suna nahi
Behtareen, bahut khoob. Kanada main bhee aapne jabalpur aur Bharat ko India nahin banane diya hai! Badhayee!!
गुझिया भी खाई
सलोनी भी खाई
चटनी लगा कर
पकोड़ी भी खाई..
बहुत सुन्दर लगी ये पंक्तियाँ और मुँह में पानी आ गया! बेहद पसंद आया आपका ये पोस्ट!
समीर जी जबलपुर संस्कारधानी है बुंदेलखंडी मध्यप्रदेश की... उहां का रंग तनक छल्काय देते तो मज्जा दुगुना न भय जाता... काय ?
गुझिया भी खाई
सलोनी भी खाई
चटनी लगा कर
पकोड़ी भी खाई..
भांग का छाया है खुमार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
ati sundar rachna,bahut pasand aaya.
VIKAS PANDEY
http://vicharokadarpan.blogspot.com/
और वो नहीं जिसका फोटो छापे थे एक बार नहीं लिए
होली मुबारक
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
आप ने कहा तो बहुत ही अच्छा हे पर आप ही बतायिये इस होली मे कहा दगे नही हुये..काश आपके लेख को शरारती तत्व भी पढ लिये होते तो शायद मॆ भी कहता हेपी होली
sir ek bar mere blog ko dekhane ki kripa kare.mera pryas bilkul naya -naya hai.
हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!
is adbhut rang par bahut bahut badhai
सरल शब्दों में असरदार रचना...
सब कुछ रंगीन, गीत, स्वर और संगीत.
हिन्दी गीत संगीत जगत को नई लता और समीर मिल गए। ऐसा नहीं कि जो बॉलीवुड से संगीत रिलीज हो वो ही हिन्दी गीत संगीत जगत का है, अब जो ब्लॉगवुड से भी जारी होगा, वो भी गीत संगीत जगत का हिस्सा है। अदा की आवाज, समीर के बोल। बेहद प्यारे लगे, संतोष जी का संगीत भी गजब का है।
Puri ki puri kavita ka ek hi bhav parilachhit hota hai,hua sabhi rangon ki tarah milkar ek ho jayen.
poonam
rangbhari + rasbhari = udantashtari....
JAI HO>>>>>>>>>>>>>
बड़े महीन गीतकार निकले आप तो !
देर कर दी हमने इसे सुनने में।
बधाई। इस साल जो लिखा वो कहाँ है?
आपकी इस 'अदा' से हमें 'संतोष' नहीं हुआ। और, और, और …
संतोष जी को और अदा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद, इस गीत को सुर और स्वर देने के लिए। आपको बधाई और ऐसी एक गुझिया और…और…और…
Oh... I liked it. Thanks for the efforts of all.
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