मेरी माँ लुटेरी थी...
माँ!!
तेरा
सब कुछ तो दे दिया था तुझे
विदा करते वक्त
तेरा
शादी का जोड़ा
तेरे सब जेवर
कुंकुम,मेंहदी,सिन्दूर
ओढ़नी
नई
दुल्हन की तरह
साजो
सामान के साथ
बिदा
किया था...
और हाँ
तेरी छड़ी
तेरी एनक,
तेरे नकली दांत
पिता
जी ने
सब कुछ ही तो
रख दिये थे
अपने हाथों...
तेरी
चिता में
लेकिन
फिर भी
जब से लौटा हूँ घर
बिठा कर तुझे
अग्नि रथ पर
तेरी छाप क्यों नजर आती है?
वह धागा
जिसे तूने मंत्र फूंक
कर दिया था जादुई
और बांध दिया था
घर
मोहल्ला,
बस्ती
सभी को एक सूत्र में
आज
अचानक लगने लगा है
जैसे टूट गया वह धागा
सब कुछ
वही तो है
घर
मोहल्ला
बस्ती
और वही लोग
पर घर की छत
मोहल्ले का जुड़ाव
और
बस्ती का सम्बन्ध
कुछ ही तो नहीं
सब कुछ लुट गया है न!!
हाँ माँ!
सब कुछ
और ये सब कुछ
तू ही तो ले गई है लूट कर
मुझे पता है
जानता हूं न बचपन से
तेरा लुटेरा पन.
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार
अब सब कुछ लुट गया है!!
स्तम्भित हैं
पिताजी तो
यह भी नहीं बताते
आखिर
कहां लिखवाऊँ
रपट अपने लुटने की
घर के लुटने की
बस्ती और मोहल्ले के लुटने की
और सबसे अधिक
अपने समय के लुट जाने की....
-समीर लाल ’समीर’
102 टिप्पणियां:
भाई समीर लाल जी!
आपने अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
शब्द-संयोजन बहुत खूब है।
पुस्तक के विमोचन पर
मेरी हार्दिक बधायी स्वीकार करें।
लूट का यह रूप
लूट की यह धूप
लूट की यह छूट
ममतामयी जप
कायम रहे
विस्तार पाए
यही कामना है।
मार्मिक रचना !
कविता संग्रह के विमोचन पर बधाई !
बिखरे मोती क्या ठीक वैसे ही जैसे दिल के टुकड़े हजार हुए कुछ इधर गिरे कुछ उधर गिरे ! या इसके इतर या अनंतर !
क्या प्रकाशक से कहकर एक वी पी पी प्रति इधर भिजवाने का अनुग्रह करेंगें !
अरविन्द मिश्र
१६ काटन मिल कालोनी
चौका घाट ,वाराणसी -२२१००२
अरे समीर भाई ,आपका ये गँभीर रुप स्तब्ध कर गया और नयनोँ की कोर जल से भीँज गये :-(
आपकी माताजी को मेरे सादर नमन ! वे आज भी यहाँ उपस्थित हैँ आपको आशिष दे रहीँ हैँ
- लावण्या
अत्यन्त मर्मस्पर्शी।
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
bahut hi marmik rachana dil ko chu gayi,pustak vimochan ki bahut badhai.
अंतरिम विमोचन पर बधाई, अमेरिका में मुझे एक प्रति कैसे प्राप्त हो सकती है?
kitab kae liyae badhaayii
aur maa kaa kyaa kahene wo to maa hi hoteehaen
बिखरे मोती की बधाई.....कैसे पढ़ सकती हूँ इस किताब को।
हाय, माँ का लुटेरापन...
कविता संग्रह की बधाई.
मुझे मेरी प्रति का इंतजार है. :)
इस रचना को पढने के बाद भूख और बढ गई है.
आपकी प्रस्तुत कविता मुझे सबसे अच्छी लगी.
मां की याद में डूबे हुए सुंदर भाव के साथ कितनी अच्छी रचना की है आपने ... कविता संग्रह के विमोचन पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर हैं माँ से जुडी हुई यह भावनाएं ...बधाई आपको ...मुझे भी अपनी प्रति का इन्तजार रहेगा मेरे घर का पता मेरी किताब "साया" के पीछे लिखा हुआ है :) शुक्रिया
भई बधाई...बहुत बहुत
हमें तो प्रकाशक का नाम बताया जाए। हम खरीद कर पढ़ेंगे। जब भी मौका लगा...तब दस्तखत करा लेंगे।
कविता संग्रह की बधाई,मां के बारे मे क्या कहूं,ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी।
Bahut gehra asar choda is rachna ne.
आप की विशेषता ये है कि आप जब हँसाते है तो हम चाह कर भी मुस्कुराने से खुद को रोक नही पाते और जब संवेदनशील होते हैं तब गंभीर होने से खुद को नही बचाया जा सकता।
मुझे अपनी प्रति का इंतज़ार नही मैं मँगा लूँगी :)
अंदर तक हिल गया हूँ इसे पढ़कर... इस रचना की तारीफ जितनी की जाये कम है... इसे कई बार पढने का दिल कर रहा है...
बहुत सुंदर... भाव के व्याख्यान से तो में मुग्ध हूँ...
शुक्रिया इतनी सुंदर रचना पढ़वाने के लिए...
मीत
पुस्तक बिमोचन पर बधाई ...
मर्मस्पर्शी रचना है यह ..... सभी बिधायों के महारथी हैं आप तो
बहुत बधाई.. आपकी पहली पुस्तक के लिये..
बहुत ही मार्मिक रचना. लगता है जैसे आपने मेरी ही व्यथा लिख दी हो. बस क्या लिखूं ? इसको पढकर पुरानी यादों को उजागर कर दिया. जैसे जिया हुआ हर पल आंखों के सामने कौंध गया.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
रामराम.
माँ के उपर लिखी हर बात मुझे अच्छी लगती है
बहुत ही भावपूर्ण रचना . पुनः बिखरे मोती काव्य संकलन के अंतरिक विमोचन के लिए बधाई और शुभकामना .
पुस्तक के विमोचन की बहुत बहुत बधाई!आपकी कविता पढ़कर ही पूरी पुस्तक पढने की उत्सुकता बढ़ गयी!बहुत भावुक कर देने वाली कविता है....
स्तम्भित हैं
पिताजी तो
यह भी नहीं बताते
आखिर
कहां लिखवाऊँ
रपट अपने लुटने की
घर के लुटने की
बस्ती और मोहल्ले के लुटने की
और सबसे अधिक
अपने समय के लुट जाने की....
----------------------
बहुत मार्मिक कविता। सोच कर ही सिरहन सी दौड़ती है कि कल माँ नहीं होगी तो क्या होगा?
-------------------------
एक बहुत पुरानी कहानी याद आती है जिसमें एक युवक अपनी माता को बहुत ही परेशान करता था। रात-रात घर न आना उसकी आदत में था। एक दिन उसकी माँ मर गई। जिस घर में माँ काम करती थी वहाँ के लोगों ने ही अन्तिम संस्कर किया क्योंकि युवक का कहीं अता-पता नहीं था। उस घर के लोगों ने उस माँ की फोटो खिंचवा रखी थी। युवक जब आया तो उसने अपनी माता की मौत की खबर सुनी। वह बहुत रोया और मालिक के पास अपनी माँ की फोटो मांगने गया।
जब मालिक ने उसको डाँटा तो उसने कहा कि मुझे मालूम ही नहीं था कि माँ भी कभी मरती है।
-------------------------
एक निवेदन है कि ऐसी रचना न लिखा करें जो आँखों में आँसू ला दें।
आप पर वही हास्य रूप अच्छा लगता है।
marm ko amrit ki tarah udel diya hai......
समीर जी
इतनी गहरी....इतनी मार्मिक, इतनी भाव पूर्ण रचना............सच कहूं तो काफी देर तक चुपचाप बैठा रहा इस रचना को पढने के बाद. लिखने को शब्द मौन हैं सारे
अद्वित्य भावाभिव्यक्ति.
बधाई स्वीकारें!
भावपूर्ण रचना।
पुस्तक लोकार्पण की बधाई॥
समीर जी ब्लाग जगत में एक सौहार्द पूर्ण माहौल रहता है जिसके चलते सब एक दूसरे की प्रशंसा ही करते हैं । ये अच्छी बात है । किन्तु आज की इस टिप्पणी को आप उस कारण से बिल्कुल न लें । दरअस्ल में आज की ये टिप्पणी लिखने की एक वजह है और वो ये है कि मैं आपको बताना चाहता हूं कि हर चित्रकार हर कवि हर रचनाकार अपनी श्रेष्ठ रचना बनाये जाने की प्रतीक्ष करता है । आप ये जान लें की ये रचना जो आपने लिखी है ये वही है । ये आपने क्या लिख दिया है ये आप भी शायद अभी नही जानते किन्तु मैं जानता हूं कि ये क्या है । हिंदी के वर्तमान के शीर्ष कवि तथा रीवा विश्व विद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष श्री दिनेश कुशवाहा जी की एक सुप्रसिद्ध कविता के समकक्ष ये कविता है । वो कविता पिता पर है । इस कविता का सम्भाल के रखियेगा, ये कविता वन्स अपान वाली कविता है । ये लिखी नहीं जाती ये लिखवा देती है स्वयं को । ये न तो पढ़ने की कविता है न सुनने की कविता है ये महसूस करने की कविता है, ये मौन की कविता है । पुन: कहता हूं इस कविता को थाती समझ के संभाल के रखियेगा क्योंकि ये वो कविता है जो बची रह जाने कविता है । ये बची रहेगी बीत जाने के बाद भी रीत जाने के बाद भी । ये ही बचा के रखेगी आपके नाम को ।
पीड़ा से भीगा एक नया भाव दिखा इस रचना में... और दिल को गहराई तक छू गया. 'बिखरे मोती' की चमक बनी रहे..यही शुभकामना है.
बिखरे मोती की बधाई....आपने अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है।.कैसे पढ़ सकती हूँ इस किताब को।
Regards
समीर जी कविता संग्रह के विमोचन पर हार्दिक बधाई!
मैं प्रशंसा जिन भी शब्दों में करूं - अण्डरस्टेटमेण्ट ही होगा।
सब कुछ
और ये सब कुछ
तू ही तो ले गई है लूट कर
मुझे पता है
जानता हूं न बचपन से
तेरा लुटेरा पन.
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार
अब सब कुछ लुट गया है!!
बेहद भावुक कविता है ये....
हर शब्द अपने-आप में कुछ कहता है...
हर शब्द भीगा हुआ है....
हर वाकया तर है...
कविता संग्रह के विमोचन पर मेरी भी बधाई स्वीकार करें . सुंदर मार्मिक रचना का निदर्शन .
लाजवाब प्रस्तुति है! बधाई स्वीकारें।
इस कविता पर कोई टिपण्णी करने के लिए मैं अपने आप को बहुत तुच्छ पाता हूँ.
और हाँ
तेरी छड़ी
तेरी एनक,
तेरे नकली दांत
पिता
जी ने
सब कुछ ही तो
रख दिये थे
अपने हाथों...
तेरी
चिता में
आपका ये रूप आज पहली बार ही नजर आया है इससे दिल को छूने वाली रचना है और किताब उसे तो पढकर ही बताएंगे
पुस्तक के बिमोचन पर आपको हार्दिक बधाई ...
मुझमें आपकी इस रचना पर टिप्पनी करने की क्षमता नहीं है.
बहुत भावपूर्ण कविता, लाजवाब!
संकलन के विमोचन की बधाई।
शादी तो हुई,गौना कब है भाई।
इस लूटी हुई दुनिया मे लुटेरी माँ की याद आ गयी और ऐसे आयी की मन करता है पंख लगाकर उसके पास पहुच जाऊ
बहुत बहुत धन्यबाद्
dheron badhaina.
संग्रह की बधाई ....कविता बहुत ही मार्मिक है .....बेहद हृदयस्पर्शी
पुस्तक की सफलता के लिए शुभकामनाएँ।
मार्मिक रचना। पहले कविता संग्रह के प्रकाशन के लिए ढेरो बधाई। दिल्ली में ये कहाँ मिलेगी ये भी बता देना जी जिससे हम भी इन बिखरे मोती को देख सके।
समीर जी अब इस कविता के बारे में क्या कहूँ मैं स्तब्ध हूँ आँखे भर आई .. सच में गुरु जी ने खुद ही खुल कहा है के ऐसी कवितायेँ लिखी नहीं जाती खुद लिखवाती है ... ये तो अल्लाह का मेहर है या ये के हो सकता है के आपकी माँ खुद सरस्वती बन के आपके कलम पे सवार हुई और ये कविता लिखती गयी ... सच में शायद ये हो के आप अपने इस कविता से जाने जाए... इतनी गहरी बात बखूबी किसी के जहन में नहीं आती ये तो सिर्फ महसूस करने वाली बात है...
आभार आपका
अर्श
शब्दों में अद्भुत ढंग से पिरोये भाव....विलक्षण रचना...पंकज जी सही कहते हैं ऐसी रचनाएँ लिखी नहीं जातीं अवतरित होती हैं...
नीरज
माँ का है पर्याय नही कुछ,माँ ममता का दर्पण है,
जीवन मे जो जीत मिलेगी,सब कुछ माँ को अर्पण है,
मुस्काना उसने सिखलाया, आँसू सारे लूट लिए,
कुछ बनाने का ख्वाब दिखा,बेज़ान नज़ारे लूट लिए.
उंगली पकड़ के हमे सिखाया,मुश्किल पथ पर पैर जमाना,
फुलवारी मे हमे बिठा कर,पथ के काटें दूर हटाना,
आँचल की छाया देकर सूरज के रुख़ को लूट लिए,
अनमोल दुआयों से अपने,अनगिनत दुखों को लूट लिए.
माँ का लुटेरपन आपने गजब की दिखलाई,
इतने अलग मार्मिक संवादों की रचनाई,
अब तो बेसब्री हो गयी हमे भी ,बिखरे मोती का,
और आपको इस दिन का सप्रेम हार्दिक बधाई.
मर्म को छु गई आपकी ये कविता
बहुत सुन्दर
वीनस केसरी
बेहद उम्दा और मार्मिक रचना... सही लिखा है समीर जी आपने... माँ ऐसी ही होती है...
ह्रदय स्पर्शी एवं मार्मिक रचना । अद्भुत ।
Pustak vimochan ki hardik badhai...
kavita ka ek-ek shabd bahut sunder hai...
मार्मिक रचना, सुंदर अभिव्यक्ति.
"दर्द के मोती बिखर गये अब टूटी माला है,
बिछड़ गयी तो पता लगा होती ये माँ क्या है!"
-मंसूर अली हाशमी
देरी के लिए मुआफी चाहता हूँ .......हो सकता है कुछ लोग आपको एक बेहतरीन व्यंग्यकार मानते हो .पर मेरी नजर में एक अच्छा लिखने वाला ही एक अच्छा व्यंग्य भी लिख सकता है..आपकी गांधी वाली कहानी को मै आपकी सर्वश्रेठ रचना मानता हूँ ओर उससे आपके भीतर के एक ओर इन्सान को झाँकने का मौका मिलता है ...आपकी ये कविता उद्देलित कर गयी .......
दोस्तों को संग्रह गिफ्ट में देने का रिवाज है जी.....
वाकई बहुत बढि़या लगी आपकी ये रचना....पुस्तक के विमोचन के लिए बधाई
शब्दों मे बहाव है जिसमें कोई भी बह जाये । आपको पुस्तक विमोचन कि बधाई ।
आपने रुला दिया ..माँ पर इससे अच्छा भाव और कुछ हो ही नही सकता ...अपने समय के लुट जाने की....
पुस्तक विमोचन की अलग से बधाई बहुत..बहुत,
सब कुछ
और ये सब कुछ
तू ही तो ले गई है लूट कर
मुझे पता है
जानता हूं न बचपन से
तेरा लुटेरा पन.
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार
अब सब कुछ लुट गया है!!
अरे... समीर जी एक और लुटेरा भी घूम रहा है हम ब्लोगरों के बीच जरा सतर्क रहिएगा ....!!
हाँ ....माँ के प्रति एक संवेदनशील रचना है आपकी ...बहुत खूब....!!
पुस्तक के विमोचन पर
मेरी हार्दिक...ye rupchand ji kya kah rahe hain hame to btaya hi nahin aapne...??
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार।
अद्भुत !
समीर जी,बहुत बहुत बधाई। हम तो बहुत पहले से ही जान गए थे कि आप के भीतर एक कवि छुपा बैठा है।अब आप की इस पुस्तक के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा। आप की इस कविता को पढ़ कर लग रहा है कि वह उड़नतश्तरी, समीर में कहीं दूर उड़ गई है। उसकी जगह आज एक गंभीर कोमल ह्रदय कवि ने ले ली है।
बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना है।बधाई स्वीकारें।
अपनी माँ याद आजने वाली कविता,
पुस्तक-विमोचन पर बधाई!
पंकज जी की बात से सहमत हूं. ये वाकई में क्या लिख दिया आपने?
मां के जाने की पीडा मैं भी भोग रहा हूं, और यही कुछ मार्मिक उद्गार हैं मन के किसी कोने में पडे थे अभिव्यक्ति की तलाश में. आज आपकी ये कविता मेरी मां की कविता हो गयी है.
फ़रक मात्र यह है, कि उसके नकली दांत, और अंतिम समय अस्पताल में रखे स्कूटर की पार्किंग का टोकन अभी भी रखा है.
कविता संग्रह के विमोचन पर बधाईयां..
भईया
आप ऐसा लिखेंगे एक दिन मुझे मालूम था. कोई नहीं लिख सकता मेरे भईया सा अभुत.
तीसरी दफ़ा वापस आया हूँ इस पन्ने पर खास इस कविता को पढ़ने सरकार....
इससे पहले दोनों बार लुछ नहीं लिख पाया ...कविता से चकित, हैरान हो बस यूं ही लौट आया था...
अभी फिर आया हूँ तो गुरू जी की टिप्पणी पढ़ कर बस संतुष्ट हो जा रहा हूँ
i salute you
समीर भाई:
एक बेहद मार्मिक और दिल से लिखी गई कविता के लिये बधाई । पुस्तक के विमोचन के लिये शुभ कामनाएं । टोरोंटो में बुलायेंगे ना ?
समीर भाई जी,
लुट कर भी इतना गुणगान लुटेरे का शायद ही अब तक किसी ने किया हो
माँ जैसे पवित्र शब्द, भाव को लुटेरे जैसे शब्द से संबोधित करने का साहस शायद ही कोई कर सकता था, पर आपने वह भी इतनी खूबसूरती से किया कि लुटेरे शब्द का अर्थ भी निकालने के लिए अब लोगों को पहले धैर्य से काम लेते हुवे घटना की जानकारी भी लेनी होगी.
इससे सुन्दर माँ के प्रति श्रद्धा और क्या और कैसे व्यक्त की जा सकती है जिससे लुटेरे शब्द में भी ममता का मरहम दिखने लग गया.
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
cant say, how penetrating this poem is!
मेरी एक विनती है आपसे, कृपया ऎसी रचनाएं पोस्ट न किया करें। क्योंकि आपको एक साथ लाखों लोगों के आंख नम करने का कोई अधिकार नहीं है। मैं आज 14 साल के बाद रो पड़ा, इसके जिम्मेवार आप हैं।
sameer sir mein to pustak ki pehli kavita padh kar behad bhavuk ho gaya aur aage padne ki himmat abhi tak nahi juta paa raha hoon .....par padunga jaroor.....ek baar punah badhai......
बहुत ही मार्मिक रचना.. कविता संग्रह के विमोचन पर बधाई..
नहीं नहीं मैं दे न सकूंगा इस पुस्तक के लिये बधाई
जब तक नहीं हाथ में आती, तब तक गायें राम दुहाई
टोरांटो में सम्मेलन कर, विधिवत करें विमोचन इसका
मुझे प्रतीक्षा है उस दिन की, यद्यपि होती है दुखदाई.
और आपकी रचना पर क्या लिखूं, समझ ये नहीं आ सका
संवेदन को शब्द दिये हैं जिसको कोई नहीं गा सका
मन के गहरे अंधियारे में कितना अन्तर्वेदन होता
जो गहरे उतरा है वोही उस का कोई अंश पा सका.
सादर
राकेश
बहुत भावपूर्ण तथा सारगर्भित रचना जो मेरे दिल की गहराइयों में उतर कर आँखों से बह गयी...
अत्यंत भावुक लेख,
अत्यधिक भावुक कर देने वाली दो पंक्तियाँ...
और सबसे अधिक
अपने समय के लुट जाने की....
भगवन आपकी लेखनी को संबल दे तथा ब्लॉग जगत से आपका लगाव और उन्मुक्त करे..
इसी आशा के साथ...
maa ki har baat niraali. badhaai.
ेअपने तो कमाल कर दिया शायद मां के लिये ऐसी अभिव्यक्ति पहले कहीं नही पढी थी बहुत बहुत बधाई
पहली बार, किसी रचना को पढ़ कर मैं सच में रोई हूँ.. पिछले बरस माँ हमें छोड़ कर भगवान् के घर चली गयी.. बहुत मुश्किल से खुद को संभाल रहे है हम, लेकिन आपकी इस रचना ने वो ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पल फिर आँखों के सामने ला कर रख दिए.. इतना जीवित अहसास है आपकी रचना में..
इस रचना और पुस्तक दोनों के लिए ही बधाई!!
कविता संग्रह के विमोचन पर बधाई। रचना दिल को छू गई।
sameer ji
aapko hamari bahot bahot bandhaii ..aapki pustak ke vimochan par.
aap jo bhi likhte hai yakinan sarthak or marmsparshii hota hai.
मर्मस्पर्शी।
वाकई हृदय स्पर्शी- रचना है-सहेजकर रखने की
बधाई-श्यामसखा ‘श्याम;
चूमती है माँ मेरे तपते हुए माथे को जब
लगता है,तुलसी के हाथों राम को चन्दन लगे
माँ पर मेरी एक और http:/katha-kavita.blogspot.com/की पुरानी पोस्ट में देखें
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम’
सब कुछ
और ये सब कुछ
तू ही तो ले गई है लूट कर
मुझे पता है
जानता हूं न बचपन से
तेरा लुटेरा पन.
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार
अब सब कुछ लुट गया है!!
aap sachmuch hee doosre grah ke praanee hain chaliye ek aur motee lag gaya mukut mein , shabd nahin hain isse jyada ki kuchh keh sakun.
मेरी मनोभिव्यक्ति की प्रशंसा के लिए हार्दिक
धन्यवाद !......यूँ ही प्रोत्साहन बनाए रखिये !
rula dia na!!
माँ की सम्वेदना की अत्यंत मर्मस्पर्शी तस्वीर खींची है आपने इस कविता में। मानवीय संवेनना से उब-डूब इस कविता के लिये आपको बधाई समीर लाल जी।
बिखरे मोती के विमोचन हेतु हार्दिक बधाई।
-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
bahut bariya hai
अब ये बताएं की हम 'बिखरे मोती' की हस्ताक्षरित प्रति कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं?
एक एक शब्द एक एक कहानी बन पड़ा है.. शीर्षक पर आप चाहे तो मेरी असहमति दर्ज कर सकते है.. पर फिर भी कविता को पढ़कर उसे भुलाया जा सकता है..
jab bhee koyee betaa apnee maako istarahse yaad karta hai, to mere manme anayas ek khyal aahee jaataa hai...wo maa kitnee mahan aur khushqismat hogee.....jisne aise sanskar diye ki bete yaad raaaaakhe aur, beton ne itnaa pyar, izzat dee....ye bhagya thodasa mere hisse bhee aa jaye to kitna sukoon mil sakta hai, ye ek maahee jaan saktee hai...
aur aapko to zamane hue apne blogpe paake...na koyee rehnumayee na tippanee, naa hauslahafzayee...kaheen to khata huee hai hamse...kshamaprarthi hun..shama
"The light by a lonelely path" delete to nahee kiya, lekin active nahee hai...vishayon nusaar vibhajan kar diya hai....
"और सबसे अधिक
अपने समय के लुट जाने की...."
अब क्या लिखूं?
माँ के इतने अच्छे विवरण के बाद क्या कहूँ?
यूँ तो देखे बहुतेरे,
तरह तरह के लुटेरे,
वो लूटते थे स्वार्थ से,
माँ ही थी अलग सबसे,
जो लुटे दुख-दर्द हमसे,
कौन बड़ा है कहो उससे??
कोटि कोटि बधाईयाँ...
~जयंत
sheershak padh ke pahle achambhaa hua magr jab kavita padhi to sach apne aansuo ko rok na paya . saneer ji scha apki is rachna ke liye mere pas shabd nahi hai . ..........
sheershak padh ke pahle achambhaa hua magr jab kavita padhi to sach apne aansuo ko rok na paya . saneer ji scha apki is rachna ke liye mere pas shabd nahi hai . ..........
Mujhe bhitar tak jhankjhor ke rakh diya hai is rachna ne.
आपने शब्दों में जो माँ और उसकी यादें लिखी हैं वह तो लाजबाब हैं, पर मैं आपकी उस मनोस्थिती की कल्पना करता हूँ कि आपने कैसे लिखी होगी।
MAA KE PRATI YE UDGAAR JAISE HAR HRIDAY KE UDGAAR HAIN.
KAVITA ANDAR TAK JHAKJHOR GAYI...........BAHUT HI SAMVEDANSHEEL AUR MARMIK RACHNA HAI.
MERE KHYAL SE MAA KE PRATI BHAVNAON KA JO SAGAR AAPNE YAHAN UNDELA HAI WO SABSE ALAG HAI AUR ISILIYE HAR HRIDAY KO DRAVIT KAR RAHA HAI.
AAPKI LEKHNI KO NAMAN HAI.
EK BAAT AUR ...........
PUSTAK KE VIMOCHAN PAR HARDIK BADHAYI.
p
एक टिप्पणी भेजें