आप जिनके साथ उठते बैठते हैं, ज्यादा समय बिताते हैं वो निश्चित ही आपके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं. (इसके कुछ अपवाद आपको अपने ब्लॉगजगत में भी मिलेंगे जो सुधरने का नाम नहीं लेते मगर बड़े बड़ों के संरक्षण में पले जा रहे हैं-खैर, उनसे क्या करना, उन्हें तो इग्नोर करते रहूँ, उसी में मेरी भलाई है और उनका अंत).
शायद इसीलिए कहा गया होगा ’संगत कीजे साधु की’
कुछ सालों पहले जब ब्लॉगिंग शुरु की तो एकाएक वाह वाह कहने की आदत सी पड़ गई. पत्नी घर पर खाना परोसे और हम कह उठें-वाह वाह, बहुत खूब!! इस चक्कर में वैसी ही तरोई और लौकी की सब्जी तीन तीन दिन तक खाना पड़ी मगर आदत के चलते मजबूर.
दो साल पहले पूरे मसिजीवी परिवार को हमसे साधुवाद की ऐसी छूत लगी थी कि पहाड़ों पर घूमते वो परिवार बादल से लेकर जल तक का साधुवाद करता रहा और कहता रहा आकाश से कि क्या चित्र उकेरा है, बहुत खूब!!
आज जब ब्लॉगजगत का विचरण करता हूँ तो पाता हूँ कि कितने ही एक दूसरे से प्रभावित हैं. जिसे देखो वो कहता है कि बहुत उम्दा...बेहतरीन अभिव्यक्ति...अति भावपूर्ण. और भी जाने क्या क्या.
एक नया सा चलन आजकल देखने में आ रहा है-जो भी दस दिन से ज्यादा अंतराल के बाद लिख रहा है वो पहले अपनी अनुपस्थिति की क्षमा मांगता है कि माफ करियेगा इतने दिन आपके बीच नहीं आ पाया. वैसे सच सच कहें तो अगर वो बताते नहीं तो हमें पता तक न चलता कि वो इतने दिन से आये नहीं. किसे इन्तजार था भाई.
ये तो वो जगह है दोस्तों, जहाँ आ गये तो वाह वाह-न आये तो वाह वाह!! टंकी पर चढ़ जाओ तो वाह वाह!! उतर आओ तो वाह वाह!! वहीं रह जाओ तो भी वाह वाह!! हो चुका है ऐसा और लोग अपनी मूँह की खाये उतरते भी दिखे हैं. अगर दस दिन से ज्यादा का अन्तराल क्षमा मांगने का तय हो जाये तो जाने कितने ब्लॉगर ’क्षमा देहि’ का कटोरा लिए घूमते नजर आयें. जीतू (अरे वो नारद वाले) तो खुद ही कटोरा बन जायें ऐसा अन्तराल रहता है उनका.
कई बार सोचता हूँ कि काश, यह ’व्यवहार बदलाव’ ’प्लेटफॉर्म इन्डिपेन्डेन्ट’ (मंच उदासीन-ज्ञान जी से एफेक्टेड) (उन्मुक्त जी सुन रहे हो) होता तो कितना बढ़िया होता. ब्लॉगर से साहित्यकार प्रभावित होते और साहित्यकारों से ब्लॉगर. दूसरा हिस्सा जरुर दुखदायी और कष्टप्रद रहता मगर पहले हिस्से के लाभों को देखते हुए उसे हम सह जाते. जैसे कई बार पूरे शरीर में जहर न फैल जाये इस लिहाज से पैर काट कर अलग कर देना इन्सान झेल जाता है अन्य लाभ देखते हुए.
आम जन से नेता प्रभावित होते और नेता से आम जन. पुनः, दूसरा हिस्सा जरुर दुखदायी और कष्टप्रद रहता मगर पहले हिस्से के लाभों को देखते हुए उसे हम सह जाते. शायद कोई नेता इस प्रभाव में कह उठता कि आम जन तकलीफ में है, नेताओं को कुछ करना चाहिये. कुछ तो भला हो ही जाता.
कुछ समय पहले ब्लॉगजगत का प्रभाव कुछ यूँ होना शुरु हुआ कि मैं तो घबरा ही गया.
एकाएक एक मित्र से दूसरे मित्र के बारे में पूछा और साथ में कहा कि यार, वो कुछ स्वभाव से ठीक नहीं लगता.
आम आदमी के स्वभाव की तरह उस मित्र ने भी हाँ मे हाँ मिला दी और हमने जाकर दूसरे मित्र को बता दिया कि यार, तुम्हारा स्वभाव उस मित्र को पसंद नहीं.
बस, बात का बतंगड़ बन गया. कुछ मित्रों ने बैठ कर मसला हल कराया तो बात खुल कर सामने आई और हम फंसने लगे. अब क्या रास्ता था. बस दांत चियारे हम कह उठे कि अरे भई, हम तो यूँ ही मौज ले रहे थे और आप सब इतने छुईमुई कब से हो गये कि बुरा मान गये.
बात आई गई तो हो गई मगर हमने इस कुप्रभाव को तुरंत झटक कर अपने से अलग किया. तुरंत समझ गये कि इस तरह की बातें ठीक नहीं. इसमे ध्यान देने योग्य है कि हम समझ गये वरना कौन समझ पा रहा है. :)
इधर कुछ दिनों से मेरी आदत और भी कुछ ज्यादा ही प्रभावित हुई है.
कल पत्नी मोहित हुई और कहने लगी कि क्या तुम भी मुझे उतना ही चाहते हो, जितना की मैं?
अब बताओ, क्या जबाब है इसका और वो भी इस उम्र में? बहु, बच्चों के घर में ऐसी बातें, क्या शोभा देती हैं?
ब्लॉग प्रभावित हम कह उठे: ’बूझो तो जानें?"
आजकल जिस ब्लॉग पर देखो, यही तो है. यहाँ तक की रचना जी भी इसी काँटे में अटक गई हैं, इससे तो उनका खौफ लोगों पर से जाता रहेगा, मगर उन्हें समझाये कौन? :) (स्माईली प्रोटेक्शन के लिए, हालांकि उनसे ठिठोली करना मेरा हक है और मुझे स्माईली की जरुरत नहीं, कम से कम रचना जी के सामने)
अब पत्नी का पारा तो सातवें आसमान पर कि इसमें वो क्या बूझे. किसी तरह मनाया और उसने बुझे मन से पूछा, ’खाने में क्या खाओगे आज?’
हम तो प्रभावित वातावरण के जीव, पूछ बैठे कि ;"क्या खिलाओगी, कुछ क्लू तो दो, रामप्यारी "
अब ये रामप्यारी कौन है, इस पर बखेड़ा मचा है और हम ताऊ रामपुरिया का फोन ट्राई कर रहे हैं जो कह रहा है कि ’आप कतार में हैं, कृप्या प्रतिक्षा करें.”
न जाने और कौन कौन क्या लफ़ड़ा कर बैठा है और ताऊ से बात कर रहा है.
अब आजकल की आदत के अनुसार:
मै कौन: बूझो तो जरा!! (क्लू नीचे देखो)
रामप्यारी का क्लू:
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65 टिप्पणियां:
देखने में तो तीनों एक से ही लग रहे हैं...बट इ ऍम नोट श्योर -:)
कुछ नहीं लिखा, सब कुछ कहा! आप के लेखन में बहुत विविधता है।
एक नया सा चलन आजकल देखने में आ रहा है-"जो भी दस दिन से ज्यादा अंतराल के बाद लिख रहा है वो पहले अपनी अनुपस्थिति की क्षमा मांगता है कि माफ करियेगा इतने दिन आपके बीच नहीं आ पाया. वैसे सच सच कहें तो अगर वो बताते नहीं तो हमें पता तक न चलता कि वो इतने दिन से आये नहीं. किसे इन्तजार था भाई".
:-))
"आप जिनके साथ उठते बैठते हैं, ज्यादा समय बिताते हैं वो निश्चित ही आपके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं."
संगत का असर है ना।
भाई समीर लाल जी! ताऊ जी की तर्ज पर आपको घणी राम राम।
आपने संगत की बात की है तो आपके लेख में आये दोहे को पूरा कर देता हूँ।
"संगत कीजे साधु की, हरे और की व्याधि।
संगत बुरी असाधु की, आठो पहर उपाधि।।"
इस लेख के लिए इतनी ही टिप्पणी पर्याप्त होगी। फिर से ब्लाग की दुनिया में सक्रिय होने के लिए बधाई।
वाह वाह , बहुत खूब ,साधुबाद ,नारायण नारायण ,बेहतरीन ,राम राम
जलवा है आपका
हंसते हंसते बुरा हाल है -टिप्पणी बाद में !
आपने इशारे -इशारे में बता दिया कि आप कहना क्या चाहतें हैं ,आप की पीडा जायज है ,मैं आपकी हाँ में हाँ नहीं मिला रहा हूँ ,आप ने जो लिखा है ,उसे आज कल मैं स्वयं भी महसूस कर रहा हूँ .
ब्लॉग जगत का सुंदर खाका खींच डाला आपने आज तो हा हा हा हा और हाँ ये रामप्यारी का क्लू बेहद ही पसंद आया.....हम तो original फोटो को छोड़ रामप्यारी के क्लू के साथ ही जायेंगे वही सही है..."
Regards
apnae hak ka galta istmaal kar rahey ho anuj , chalo kam sae kam tum to khoff nahin khaatey aur baaki bhi nahin khaatey bas naatak kartey haen !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पत्नी घर पर खाना परोसे और हम कह उठें-वाह वाह, बहुत खूब!! इस चक्कर में वैसी ही तरोई और लौकी की सब्जी तीन तीन दिन तक खाना पड़ी मगर आदत के चलते मजबूर
वाह जी ये तो गांधी बाबा की नीम की चटनी हो गई?:) किसी अंग्रेज को खिला रहे थे, उसने आपकी तरह मन रखने को तारीफ़ कर दी. और बस गांधी बाबा तो पिल पडॆ बिचारे को नीम की चटनी खिलाने को. :)
ब्लागीवुड का सटीक चित्रण किया है जी आज तो.
और ताऊ और रामप्यारी तो आपके फ़ोन का नही आपका इंतजार कर रहे हैं. आप रामप्यारी को कुछ वादा करके सिक्किम की यात्रा पर गये थे.
भाभी जी आप रामप्यारी से वादे वाली बात मत पढना.:)
रामराम.
वाह वाह समीर जी बहुत सही कहा है ...... वहां जो टंकी है उसके बारे में सभी कहते है कि टंकी से उतरो तो वाह वाह और टंकी पे चढो तो वाह वाह मिलती है . टंकी के प्रबंधक भी अपने जनों को टंकी पे चढाने और उतारने का काम बखूबी संचालित कर रहे है आखिर मेरी समझ से परे है कि वे अपने ही जनों को चढाने उतारने का काम क्यों करते है भाई अपनों को तो छोड़ दो हा हा हा . समीर जी पूर्वांचल की ड्रेस में आप ऐसे दिख रहे है कि आप वही के वाशिंदे है जबलपुर या कनाडा के नहीं है . मगर आपने पेट शर्ट के ऊपर वहां की ड्रेस जल्दबाजी में पहिनकर फोटो खिचवाई है . फोटो को गौर से देखने पर पेंट का थोडा सा हिस्सा झलक रहा है . हा हा . कल आपसे मुलाकात और सुबह सुबह आपकी पोस्ट पढ़कर आनंद आ गया और लग रहा है कि मुझे भी असम मेघालय घूमने चले जाना चाहिए पर ससुरी चुनाव ड्यूटी नाक में दम ........ आभार
बस वाह वाह...
अर्श
क्या बात है जनाब
पहले हंसी तो बंद हो तब कुछ कहे ..बूझो तो जाने ...:) ब्लॉग जगत का सही विश्लेष्ण कर डाला आपने समीर जी :)
अब आप से क्या छुपा रह सकता है समीर जी।आप की लेखनी सब कुछ उगलती रहती है।यथार्त का दर्शान कराती रहती है।बात बिल्कुल सही है जी-संगत साधू की ही करनी चाहिए।शायद इसी लिए वाह-वाह करने की आदत हमे भी पड़ गई है;))
आखरी फोटों बहुत अच्छा लगा।वैसे फोटो मे दिखने वाले को शायद हर ब्लोग पर वाह वाह करते अक्सर देखा है::)) (०।०)
आदरणीय लाल साहब,
हा हा हँसी के मारे हमसे टिप्पणी लिखते ही नहीं बन रहा है हा हा। शाम तक सामान्य होने पर टीप लिखते हैं।
कुछ भी कहो मजा आ गया... खासकर तस्वीर देख कर...
आप बिलकुल मेरे मामा जी की तरह लगते हैं...
मीत
बहुत मजेदार लिखा है आपने आज तो. आनन्द आगया किस्से पढ कर.
बहुत लाजवाब लेखन.
क्या बात है समीर भाई...........पता ही नहीं चला और इतने ब्लोगेर्स के मजे भी ले लिए.
और फोटो...........क्या बात है...........और भी ज्याद निखर आ गया...........भाभी की भी फोटो लगा दिया करो कभी तो
दद्दा आजकल हमसे ऐसी क्या गुस्ताखी हो गई कि आप हमारे बिलाग पर नहीं टिपिया रहे हो? आपकी टिप्पणियां ज्यादा लिखने को प्रेरित करती हैं और आप हैं कि गुसियाए हुए हैं..।
अंत में जो तस्वीर चिपकाई है. क्या खूब लग रहें है. स्वाजिलेंड के बादशाह से कम नहीं लग रहे :)
बहुत कठिन पहेली है.. आपको और क्लू देने पडेंगे..
Theek baat hai.
सरकार ब्लागरों पर मनोरंजन कर ठेल सकती है.हाँ तो अंतिम चित्र ईदी अमीन का लगता है.
मुश्किल सवाल .ओप्त्शन थोड़े ज्यादा होने चाहिए थे .....
Hindi FILMON ke dekhne aur unaka POSTMORTEM karne ka ASAR hua hai........DOUBLE ROLE.....
वाह वाह , बहुत खूब
sangat ka sar hai:
koi kehta hai ki sangat se sabhi tarbooj sad jaate hai,
koi kehta hai:
chandan vish vyapat nahi liptat rahe bhujang...
वाह वाह, बहुत खूब!!
साधुवाद!
क्या चित्र उकेरा है, बहुत खूब!!
समीर अंकल टिप्पणी देने में देर के क्षमाप्रार्थी हूँ :-)
वाह वाह, बहुत खूब, बेहतरीन , उम्दा, क्या खूब, भावप्रण मज़ा आ गया, साधुवाद,
लेकिन इन तीनो मैं आप कौन है, इसके लिए रामप्यारी से कोई क्लू तो दिलवा दीजिये न.
सोच कर तो हम भी यही आए थे कि टिप्पणी कर देंगे कि "वाह्! वाह्! क्या खूब लिखा है"लेकिन आपकी पोस्ट पढकर विचार बदलना पडा..))
कमाल करते है... समीर जी .....सबसे ज्यादा उन्दा ख्याल तो आपके होते है ...... हँस हँस के पेट मे बल पड रहे है..........
स्माइली लगा लगा कर बड़ी गंभीर बातें करी सर जी आपने...! ब्लॉगजगत का अपडेटेड दृश्यावलोकलन हुआ... एक स्माइली मेरी तरफ से..! :)
aaj ham bhi inspired hain...sadhuvaad hi de dete hain...vaah vaah vaah!
खूब ! बहुत खूब! वाह वाह।
(मैं भी ऐसी टिप्पणी ट्राई कर के देखने लगी हूँ)।
अच्छा लिखा आपने।
ये लो जी, उडनतश्तरी में भी पहेली। कमाल हो गया।
----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
क्या कहूँ.......
बस वाह वाह.....
:)
dekh kar aur padkar anand aa gaya.badhaai ho.
आपके इस लेख पर मैं बस यही कहूँगा
" बहुत उम्दा...बेहतरीन अभिव्यक्ति...अति भावपूर्ण. और भी जाने क्या क्या."
समीर जी नम्सार,
बिखरे मोती का विमोचन हो चौका है ये तो मुझे अब खबर लग गयी है मगर बात ये है के अब इसे प्राप्त कैसे करी जाए ... ?साथ में एक आपसे गुजारिश है के आपके इस पुस्तक पे मुझे आपकी हस्ताक्षर भी चाहिए.. ये तो मेरे लिए खासा जरुरी है ... ये तो आपको करना ही होगा... आप ऐसा करें की कुछ सौ पुस्तकों पे एक बारगी बैठ के हस्ताक्षर कर दे ताकि सभी को बहोत ही अच्छा लगे...
इस पुस्तक का सबसे पहला खरीदार मैं होना चाहता हूँ.. जैसे के गुरु जी के पुस्तक का भी पहला खरीदार मैं ही था...
आपका
अर्श
U.T.sir main fan hoon apka !fan hoon main!
आपका यह आलेख पढ़ तो sachmuch bhayakrant हो गयी...ब्लॉग जगत का विद्रूप chehra मन में vitrishna jaga गया.......
खैर, कोई भी जगह पूरी तरह अच्चा या bura नहीं होता.....बस bhay लगे तो aankhen बंद कर लो,filhaal के लिए तो मन ने यही samjhaya है........
वाह जी क्या खूब लिखा है |क्या ये भी पहले लिख चुके है । हमारे सोफ़्ट्वरे मे यही सब भरा हुवा है इस लिये यही टिप्पणी तो मिलेगी । ऑटो टिप्पणी जेनेरेटर मे यही तो एक कमी है वरना साफ्टवेयर बहुत अच्छा है ।
sab ne sab kuchh kah diya MERE LIYE KYAA BACHA??????
bs yahi shbdkosh he blog jagat ka..
वाह वाहियत बड़ी वाहियात चीज है - पर आपके संगत में वह करने की आदत पड़ गई है। :)
जय साधुवाद। जय लौकी-कूष्माण्ड!
यही बातें कहने का मन होता था। पर चलो खुश होने दो अपने आप को महत्वपूर्ण समझ के, या किसी की खुशफहमी को क्यों कम करना यही सोच कर रह जाता था।
प्रशंसा और सम्मान बिन मांगे मिले तभी अच्छा लगता है। शायद आपकी बातों से कुछ फर्क पड़े।
आपकी ब्लोगजगत पर द्रष्टि यूँ ही बनी रहे ..यही आशा है ..आप हमेशा बढिया लिखते हैँ और लिखते रहीयेगा
स स्नेह,
- लावण्या
वाह वाह !! :))
वाह! वाह!.........आदत जो पड़ गई है।:)
कतार तो यहाँ भी लम्बी हो ली है जी। लेकिन हम भीड़ में गुम होने का रिस्क लेकर भी टिपियाएंगे जरूर। अपनी पहचान तो ऐसइच बनेगी न इस ब्लॉगप्रभाव क्षेत्र में?
क्य केने क्या केने...:)
बहुत खूब वर्णित किया आपने संगति का असर....
कलम उठाया लिख दिया,दिल की बात सिआहि से,
बातों से बातों को खींचा, ब्लॉगजगत् के राही से,
खूब कहा संगत की बातें,जिसके सब जन भोगी है,
बहकी बातें ,बात बनाना,बातों के ही रोगी है.
संगत ही गुणवान ही बनाए, संगत मुर्गी चोर,
सत् संगत से प्यार की खुशबू,बिखरे चारो ओर,
संगत हमको सही दिशा दे,संगत ही भरमाये,
और आप की संगत पाने को,हम ब्लॉग जगत मे आए.
समीर जी इस बूझो भैया से तो हम भी परेशान हैं
(क्या पता कोई हमारी गजलों से परेशान हो)
अब तो हमारी कोशिश रहती है नियमित लिखा करैं जिससे छमा मांगने की नौबत न आये
पुस्तक विमोचन के लिए हार्दिक बधाई
आपका वीनस केसरी
चलो
जो हुआ सो ठीक था तरोई और लौकी की सब्जी तीन तीन दिन तक खाना
कोई ज़ुल्म थोड़े था समीर जी ....! जो इस केस में साइटैट किया गया है .
भाइयो बहनों सही बात तो ये है कि श्रीमान जी को जो बीमारी है उसके
लिए भोजन में लिजलिजी तरोई या लौकी खाने का हुक्म मिला था डाक्टर
की और से .
रही बात अनुपस्थिति की तो सटीक बात है :"
एक नया सा चलन आजकल देखने में आ रहा है-जो भी दस दिन से ज्यादा अंतराल के बाद लिख रहा है वो पहले अपनी अनुपस्थिति की क्षमा मांगता है कि माफ करियेगा इतने दिन आपके बीच नहीं आ पाया. वैसे सच सच कहें तो अगर वो बताते नहीं तो हमें पता तक न चलता कि वो इतने दिन से आये नहीं. किसे इन्तजार था भाई."
बधाई कोरी वह वह नहीं वास्तव में हार्दिक बधाइयां
:)
घुघूती बासूती
shaandaar lekhan ke liye badhaai.
:) जब टिप्पणी का इंतजार ही नहीं तो देर से टिपियाने की माफ़ी क्युं मागें। इस लिए न टिपियाते हुए हम तो अपना मनोरंजन कर के जा रहे हैं हमेशा की तरह्। लेकिन क्या करें ये साधूवाद की छूत की बिमारी हमें भी लगे हुई है, इस लिए
:) वाह वाह , ही ही ही
ha ha umda lekh,hame to aakhirwali rangabirangi tasveer bha gayi:) mast ek dam nodel ki maafik poz hai:),gustakhi maaf:)
Waah! Waah!
Bhaiya, anubhav ka bahut mahatva hota hai.
Roman mein comment karne ke liye kshamaa karein.
टिप्पणी दे तो पहले ही देते पर क्या करें कई दिनों से नेट से दूर है, अनुपस्थिति के लिए क्षमा चाहते हैं। हे हे हे
samir ji apka danik bhashakar main vichar padhkar prabavit hua (50 tippniya ?!?) bhagariti prayas hai...
...par log iske abhari raheinge. tippani sabko pasand hoti hai! (Sabko)!!
meri taraf se ek smiley :)
अच्छी लेखनी हे / पड़कर बहुत खुशी हुई / आप जो हिन्दी मे टाइप करने केलिए कौनसी टूल यूज़ करते हे...? रीसेंट्ली मे यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा ता, तो मूज़े मिला " क्विलपॅड " / आप भी " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...? www.quillpad.in
aapko aise kapare kaha se mile
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