गुरुवार, जुलाई 17, 2008

उड़ी उड़ी रे पतंग देखो उड़ी रे!!!

सबको सुबह की चाय देने से आंगन लीपने तक सब काम निपटा कर वह अब नहा कर बाल सुखाने छत पर चली आई थी. पूरा आसमान रंग बिरंगी पतंगों से पटा पड़ा था और एकदम रंगीन हो उठा था. उसने एक नजर आसमान पर डाली और अटक गई उस दूर उड़ती आधे पीले और आधे नीले रंग वाली पतंग में.

patang

मानो वो उसके सपने हों जिसे वो बचपन से देखती आई थी. कुछ नीले, कुछ पीले और कुछ नीले पीले मिले हुए धानी सपने.

नीले सपने, हाँ एकदम नीले! देखती थी बचपन से. देखती कि वो भईया हो गई. स्वच्छंद गली के लड़कों के साथ सारा सारा दिन खेल पा रही है, न कोई रोक न कोई टोक. बस, भईया होते ही वो साईकिल लेकर दोस्तों के साथ पूरे गांव में घूम रही है. घर का कोई साथ नहीं. न कोई पूछने वाला कि कहाँ जा रही हो और कब लौट कर आओगी. बड़े होने तक वो नीले सपने देखती चली गई. भईया बन पास के गांव में ८ वीं से आगे पढ़ने जा रही है. पिता जी के साथ दुकान में हाथ बटा रही है और न जाने क्या क्या!! बस, एक स्वच्छंद एवं बेरोक टोक जीवन जीने की चाह.

कभी पीले सपने देखने लग जाती. किताबों में विदेश की तस्वीरें देखती थी. सपने में वहीं पहुँच जाती. गोरे गोरे उजले साफ सुथरे लोग. रुई के फुओं से, बादलों की तरह बिखरे बरफ के मैदान और उनमें गिर गिर के बल खाती, इठलाती, खेलती वो. बड़ा सा गोला बना कर अपने सपनों के राजकुमार पर उछाल कर खिलखिलाती वो. फिर पीले नीले मिले जुले धानी सपने. वो भईया की तरह पतलूम कमीज पहने अपने सपनों के राजकुमार पति की बाहों में झूलती रोशन विदेशी संसार में खोती जाती, डूबती जाती. पाश्चात संगीत की स्वर लहरी पर झूमती वो. अपने सपनों में सपनों को सच होता देखती वो.

बस उलझी रही एकटक उस पीली नीली पतंग में. दूर बहुत दूर, ऊँचे आसमान में खूब उपर. इतनी ऊँचाई कि धुंधली होती दिखती पतंग. बड़ी लेकिन एकदम छोटी सी दिखती पतंग. सोचने लगी, शायद, उतनी उपर से पतंग को उस पार विदेश भी दिखता होगा. एक मुस्कराहट सी तैर गई उसके चेहरे पर.

एकाएक काली पतंग ने आकर उस पीले नीले रंग वाली पतंग को काट दिया और वो पीली नीली पतंग अपने अस्तित्व को नाकारती हवाओं के थपेड़ों संग बह चली, जहाँ तक हवा उसे उड़ा कर ले गई और फिर कटीली झाड़ियों में उलझ कर हो गई छिन्न भिन्न. जैसे उसके सपनों का ढहता महल.

आँसू बस गिरने को ही थे कि एकाएक राजू उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर बोला "माँ" मानो उसको यथार्थ की दुनिया में वापस ले आया हो.

वो उसके साथ नीचे उतर आई. माँ की पूजा भी खतम होने को है. वो सर पर पल्लू रख लेती है. पति, जो कि स्कूल में बाबू हैं, उनके खाने पर आने का वक्त भी हो चला है.

जल्दी से वो खाना बनाने में जुट जाती है. खिचड़ी, चोखा और तिल के लड्डू.

उसे याद है, आज मकर संक्राति है. Indli - Hindi News, Blogs, Links

110 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

किसी के सपनों की पतंग कोई क्यों काटता है ?

अजित वडनेरकर ने कहा…

आपके पतंग चिंतन में हम भी हिलोर खाने लगे।
सुंदर पतंग, सुंदर डोर
उड़नतश्तरी की पतंग से होड़ !

ALOK PURANIK ने कहा…

अजी हाथ की पतंग और लेफ्ट की लतंग में पेंच हो रहे हैं आप जाने कहां की पतंगों को ताक रेले हो। इस उम्र में छत पे जाने की आदत गयी नहीं है जी। समीरजी क्या बात है। जमाये रहिये।

रंजू भाटिया ने कहा…

पतंगो के जिन रंगों को आपने लफ्जों में ढाला है वह दिल को छू लेने वाला एक सच है ..आपकी सोच को नमन है

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपको पढ़ना एक सुखद एहसास देता है,अब हमारा ही ब्‍लाग दुनिया में सक्रियता कम है इस कारण कम पढ़ पा रहे है। मैने आपको अपने ब्‍लाग के साईड में जगह दे दिया है, जिससे आपके नये लेखों की जानाकरी मुझे मिल जाती है। और कोशिश करके पहुँच जाते है। चूकिं इधर गम्‍भीर लेखन और गम्‍भीर पाठन से दूरी बनी हुई है क्‍योकि ये समय ज्‍यादा व्‍यर्थ करते है इस कारण गम्‍भीर विषयों पर न लिख रहा पढ़ रहा हूँ।

मुझे पंतग उड़ना नही आता, किन्‍तु पंगबाजी के शौकीनों से काफी वाकिफ हूँ बचपन में जब कानपुर में था तो हर हफ्ते छत से दो चार लोगों की गिरने की खबर मिलती थी।

गरिमा ने कहा…

जाने क्यों काली पतंगो की संख्या हमेशा ही ज्यादा होती है।

Tarun ने कहा…

कैसी पतंग और कैसे सपने थे, इस पोस्ट तक पहुँचते पहुँचते ग्रे रंग मे बदल गये

बवाल ने कहा…

Iseeliye to kah gaye the bhaiya :-
Saddee pe kaaTtee hain, allah kee sazayain !
Manjha hee manjha karle, lekar ke kuchh duayain !!
Magar kisi ne ek Tippani tak nahin dee thee is sher e bavaal par.
khair. Ati sunder bhav-pravah tha yah. Aapkaa javaab nain. Kya kahna !

Saddee (sada dhaga ya dor)

संजय बेंगाणी ने कहा…

अरे बाप रे..क्या तानाबाना बूना है...बहुत खुब..कहीं छपवाते क्यों नहीं?

कुश ने कहा…

एक और संवेदनशील पोस्ट.. ना जाने कितनी पत्नगे उही काट जाती है आसमानो में..

कुश ने कहा…

एक और संवेदनशील पोस्ट.. ना जाने कितनी पत्नगे उही काट जाती है आसमानो में..

रंजन गोरखपुरी ने कहा…

गृहस्त जीवन की अपने बचपन से मुलाक़ात बहुत सुखद होती है!
सपने में ही सही...

उड़नतश्तरी की सफल उड़ान...!!!

Arun Arora ने कहा…

कई बार मन की उडान ही कुछ ना कर पाने की जिजिविषा को शान्त कर पाती है

Shiv ने कहा…

बहुत खूब उड़ान है इस पतंग की...संवेदना का झरना..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

"जल्दी से वो खाना बनाने में जुट जाती है. खिचड़ी, चोखा और तिल के लड्डू....!"
To yae thaa ek khoobsoort mod...!
badhaiyan

CG ने कहा…

सुंदर कल्पनालोक है

अंगूठा छाप ने कहा…

रंग और सपनों का जोड़ पहली दफा सुना-पढ़ा। कथ्य सामान्य होते हुए भी शैली के कारण खास हो गया है। इस पोस्ट के साथ तरह तरह की रंगीन पतंगे होनी चाहिए थी।

Shishir Shah ने कहा…

ek sapno ke safar mein ud chala tha padhte padhte...lekin jab achanak aapne haqikat se parichit karvaya to bas...sannata fail gaya man ke shorgul se...

annapurna ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति !

बेनामी ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति !

बेनामी ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति !

Rajesh Roshan ने कहा…

पसंद आया आपका पतंग और उस बहाने संक्रांति को याद कराना

डॉ .अनुराग ने कहा…

गौर से देखिये अब भी आसमान में कोई रंग बिरंगी पतंग उड़ रही होगी.....

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ओह, यह सब के साथ है। हमारी पतंग तो बदरंग-विदीर्ण हो चुकी है।
नये बीज डालते हैं पथरीली जमीन के क्रेवाइसेज में रोज, कल्पना करते हैं लहलहाती फसल की और काटतें हैं स्वप्न में दिन।
कभी कभी अकेले में आखों के कोर पोंछ लेते हैं - कोई देख न ले!
यही जिन्दगी है जी।

PD ने कहा…

हर किसी कि अपनी कोई पतंग होती है..
और सबकी पतंग कभी ना कभी कटती भी है..

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

पंतगों का उड़्ना कटना यूँही चलता रहेगा।यहाँ सभी एक दूसरे की पंतग काटना ही तो चाहते हैं।सभी पंतगें आकाश को सजा दे...एक साथ उड़ते हुए..पता नही ऐसा कभी होगा भी या नही।

बहुत सुन्दर ्कल्पना!!

Anil Pusadkar ने कहा…

humko bhi yaad aa gayi rang-birangi patange

travel30 ने कहा…

KAfi dino se Intezaar tha aapki nayi post ka... Aap theek ho gaye bahuta chi baat hai... Sach mein aapko padhna ek alag anubhav aur ehasaas deta hai.. kabhi kabhi aisa lagta hai ki sameer ji itna kam kyon likhte hai?? kyon na Sameer ji daily 4-5 post likh dale mai unhe padhta rahu.. sach aapke shabd hamesha bandh lete hai sameer ji.. Aap you hi Hindi blogging ke AAkash pe Suraj ki tarah chamakterahe aur Likhte rahe :-)

Rohit Tripathi


New Post - Happy Birthday Katrina : You are so Beautiful :-)

Abhishek Ojha ने कहा…

पतंग से रंग फिर माँ... एक मध्यमवर्गीय परिवार बहुत कुछ समेट गए आप इस पोस्ट में... कमाल की पोस्ट है... साधुवाद :-)

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मानव जीवन की त्रासदी का चित्रण जैसा आप ने किया है वैसा सिर्फ़ आप की कर सकते हैं...शशक्त लेखन...
नीरज

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

"एकाएक काली पतंग ने आकर उस पीले नीले रंग वाली पतंग को काट दिया"

शायद जीवन की नीली पीली हसीं पतंग को भी कोई काली पतंग रूपी दुःख या निराशा काट दे तो ?

ghughutibasuti ने कहा…

पतंग उड़ाने से डर लगता है
पतंग बनी ही कटने के लिए है
सपने देखने से डर लगता है
सपने बने ही टूटने को हैं।
हर लड़की के जीवन में कोई भैय्या होता है, जिसे प्यार तो किया जाता है परन्तु जो बचपन से ही असमानता का क्षण क्षण बोध कराता जाता है और शायद भावी जीवन के लिए हमें पत्थर बनाता जाता है।
बहुत खूब सत्य को उकेरती रचना।
घुघूती बासूती

कामोद Kaamod ने कहा…

उड़न तश्तरी में बैठकर नीली , पीली पतंगें काट रहे हो जी. अच्छी उड़ान भरी आपने.

Ek ziddi dhun ने कहा…

आख़िर में बेटे का पल्लू खींचना और पति के आने का वक्त होना अच्छा लगा. सपने से खींचकर ज़मीन पर पटकने वाली पित्र्सत्ता में पति और बेटा एक ही तो हैं....

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा ने कहा…

किसी की सपनों की पतंग ऐसी बेरहमी से क्यों काट दी जाती है, ये सोचनीय है लेकिन उससे बड़ी सच्चाई ये है कि ऐसा होता है बार-बार होता है

मसिजीवी ने कहा…

इन पतंगों को दोष न दें..नीली और पीली पतंगे ही नहीं उड़ाते वरन ये कानी पतंगे भी हम ही उड़ाते हैं। सच कहें तो हमें तो लगता है कि हम पीली-नीली पतंग ही उड़ा रहे हैं पर हमारे ये नीले पीले फुहा सपने न जाने कितनों के सपनों से जा टकराते हैं उन्‍हें काट देते हैं- उनके लिए ये काली पतंग होती हैं।


इस रहस्यमयी कल्‍पनालोक का यथार्थ बहुत क्रूर है...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

पतंग चर्चा काफी हो ली। खिंचड़ी का त्यौहार जनवरी में पड़ता है तो फिर सावन की हरियाली में यह नीली-पीली-काली का चक्कर क्या है जी? कहीं पुराना माल छाँटकर तो नहीं लाए……. खैर जो भी हो, पढ़कर मजा आया।

मीनाक्षी ने कहा…

दिल को गहरे तक छू गई.... बहुत गहरे तक... जी चाहने लगा कि हम भी कुछ देर पतंग बन आसमान को छूने निकले...

बेनामी ने कहा…

sir patng to hoti hi katne ke liye hai.sab ki patang ak na ak din kat hi jati hai. bas ye jarur hai ki kaun kitanu unchi udan bharta hai....

बेनामी ने कहा…

आपके बारे में जो सुना था सही सुना था

dpkraj ने कहा…

भई वाह!कहानी लिखने का अंदाज पसंद आया।
दीपक भारतदीप

dpkraj ने कहा…

उड़न तश्तरी जी
आप माडरेशन हटा लें तो ठीक रहेगा । हमारे एक नये ब्लागर को लग रहा है कि टिप्पणी के लिये आपसे पूर्वानुमति लेना पड़ती है। उन्होंने कहा मैंने आपको बताया। बाकी आपकी मर्जी।
दीपक भारतदीप

Arvind Mishra ने कहा…

सभी पतंगों को एक दिन कटना ही है ,उनकी नियति ही है यह पीली हो या काली .आज पीली कल काली !यही जीवन है -मगर जब तक वह उडे शान से !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

हर स्त्री के भीतर छिपी युवती को बखूबी दर्शाती लघु कथा पसँद आयी - इसी तरह सँवेदनाशील होकर ,
लिखते रहिये,
स्नेह,
- लावण्या

Reetesh Gupta ने कहा…

बहुत खूब लालाजी,

पढ़ना खुरू किया तो पढ़ता ही चला गया...सुंदर प्रस्तुति....बधाई

समयचक्र ने कहा…

उडी उडी जाए पतंग......समीर जी अति संवेदनशील और सराहनीय रचना है . पढ़कर बहुत अच्छा लगा कहानी लिखने में आपका तो कोई जबाब नही है . बहुत मनभावन सुंदर पोस्ट. बधाई
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाये .

डा. अमर कुमार ने कहा…

यहाँ अपनी पतंग तो भीग कर लुगदी हुई पड़ी है, सर जी !

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

टिप्पणियों के सहारे आपकी उपस्थिति रहती थी पर आज पतंग पर आना सुखद लगा, स्वास्थ्य की मंगल कामना.

राज भाटिय़ा ने कहा…

उस काली पंतग ने राजु की मां की यादो की पंतग काट कर एक तरह से उस के बचपन की यादो से झटका दे दिया ओर मां लोट आई अपनी आज की जिन्दगी मे, वेसे राजु कभी भी मां को रोते नही देख सकता, ओर उसे पता चल जाये कि किसी ने उस की मां को दुख दिया हे तो उसे मां याद दिला देता हे, मे भी जानता हु राजु को.

pallavi trivedi ने कहा…

bahut samvedansheel lekhan...sundar.

वर्षा ने कहा…

कम से कम सपनों की पतंग न कटे

बेनामी ने कहा…

bahut accha likha hai

बेनामी ने कहा…

bahut accha likha hai

अवाम ने कहा…

Sirbhut accha likha hai.. patang ke madhyam se kisi ki bhawnao ki abhivyakti sarahniya hai..

बेनामी ने कहा…

पतंग तो मेरी भी उड़ा करती थी ,उसे किसी काली पतंग ने नही काटा बल्कि उसकी कन्नी ही टूट गयी…अपने आप।

:(

इस संवेदनशील रचना को पढ़ कर कई बाते याद आ गयी।

लेखन का एक और गुर सिखाने के लिये शुक्रिया

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है। उडा़ये रहिये पतंग। राहत इन्दौरी का शेर है-
जिंदगी क्या है ,खुद ही समझ जाओगे,
बारिशों में पतंगे उड़ाया करो ।

Abhijit ने कहा…

lekh padhkar patango ki tarah udne waale sapno ke baare me sochne par majboor ho gaya....sundar.

बेनामी ने कहा…

वाह, क्या लिखे हैं, आधी बात तो अपने सिर के उपर से ही निकल गई, दोबारा पढ़ना पड़ेगा। :)

वैसे संजय भाई की बात गौर करने योग्य भी है। आपकी किताब आ रही थी उसका क्या हुआ? कब रिलीज़ हो रही है?

seema gupta ने कहा…

" wonderful article full of emotions and thoughts, enjoyed reading it"
Regards

राकेश जैन ने कहा…

samvednaon ko chhuna koi aap se jane.

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

नीले पीले सपनों को कालिमा काट ही देती है फ़िर भी जिजीविषा सपने बुनती ही रहती है !खिचडी ,चोखा ,और तिल के लड्डू भी तो उसी सपनों के उपहार है !एक अच्छी रचना , बधाई !

G Vishwanath ने कहा…

बहुत खूब!
पतंग हम भी उडाया करते थे।
बचपन की याद हमें भी आ गई।
पतंग के अलावा जब बाग में तितलियों को देखता हूँ , बस ऐसी ही यादें आती हैं मनमें।
कभी कभी सोचता हूँ क्या आजकल बच्चे बचपन की दौर से गुजरते हैं ?

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह समीर जी अच्छी लघुकथा बन पड़ी है

HBMedia ने कहा…

क्या बात है!! संवेदनशील पोस्ट..

बेनामी ने कहा…

ab kya kahe sab to bhai bahano ne kha diya. itana hat kar likhana bhut badi baat hai. vo bhi aap likhe to kya kahane. jari rhe.

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर.

vipinkizindagi ने कहा…

अपने सपनों में सपनों को सच होता देखती वो...

उसके सपनों का ढहता महल............

राजू उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर बोला "माँ" मानो उसको यथार्थ की दुनिया में वापस ले आया हो..................

behtarin post hai

Kavita Vachaknavee ने कहा…

इस सर्जनात्मक प्रविष्टी के बहाने स्त्रीजीवन की महीन रेखा-सी अभिलाषाओं और सपनों को उकेरने की बधाई!

Ashok Pandey ने कहा…

स्‍वस्‍थ होते ही पतंग उड़ाने लगे :) पतंग भी ऐसी उड़ी कि हम अभी फसल बो रहे हैं, आप मकर संक्रान्ति मनाने लगे :)

vijaymaudgill ने कहा…

समीर जी पहले तो बहुत-2 बधाई। सच में क्या ग़ज़ब लिखते हैं आप। पतंगे तो बहुत देखी हैं, लेकिन शब्दों की पतंग पहली बार अच्छे से देखी है। लेकिन आजकल बहुत कम ही अच्छे पतंगबाज और पतंगे रह गई हैं, क्योंकि आज के युवा उड़ान की पवित्रता को नहीं समझते।
धन्यवाद लेख पढ़वाने के लिए और बधाई भी

Satish Saxena ने कहा…

सब कुछ तो कह दिया गे ! बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sapne aur yathrth ke bich aapne jo sunaya,wah meri aankhon me patang sa udne laga-kuch neele,kuch peele,
bahut sundar

admin ने कहा…

मकर संक्रान्ति के बहाने आपने बचपन की याद दिला दी, जब हम भी पतंग की डोर थामे धूप में मंडराया करते थे।

Praveen राठी ने कहा…

मैंने कभी पतंग तो नहीं उडाई (दरअसल मुझे उडाने में इतना मज़ा नहीं आता, जितना उड़ती हुई पतंगों को देखने में आता है), पर आपने पीली-नीली पतंग के ज़रिये जिस तरह से सपनों को जोड़ा है, वाकई कबीले तारीफ है.
गौर करने की बात यह है कि आपने यह भी बताया है कि जो पतंग पीली-नीली पतंग को काटती है उसका रंग काला है. बहुत ही अच्छा विवरण, बधाई!

Praveen राठी ने कहा…

और हाँ बताना भूल गया था, नई फोटो बड़ी dashing है. फोटो में समा गए, यही बड़ी बात है. नहीं?

अंगूठा छाप ने कहा…

hello!!

kahaan hain aap??

tippadiyon ka shatak maarne ka irada hai kya??

नदीम अख़्तर ने कहा…

मैं समझता हूँ कि आपने जो भाव उकेरे हैं, वैसे भाव सूर्यकांत त्रिपाठी जी के बाद किसी ने नहीं उकेरे.
नदीम

बेनामी ने कहा…

पतंग और सपने,क्या खूब मिलाये हैं आपने.कमोबेश हर लडकी की कहानी लिख गये है आप.बधाई स्वीकार करें.
सस्नेह,
इला

साधवी ने कहा…

आपका लेखन कमाल का है. लगा कि कहानी खत्म ही न हो. बधाई.

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

पतंगों को आसमान से बातें करते
देखने के ही हैं ये दिन.
आज शाम छत पर गया तो यही नज़ारा था.
और अब अपने कक्ष में बैठकर
यह टिप्पणी लिख रहा हूँ तो
सोचता हूँ दुनिया में चीज़ों के रंग...ढंग....
सोच...सपने तो सबकी आंखों के
सामने से गुज़रते हैं.
पर उनमें से सपनों की
अठखेलियों की ऐसी दास्तां बुन देना
हरेक के बस की बात नहीं है.
इस लिहाज़ से....
आपकी यह पोस्ट बेमिसाल है.
===========================
शुक्रिया
डा.चन्द्रकुमार जैन

भारतीय दर्पण ने कहा…

achcha likha hai.
aapne jo salah di uske liye dhanyavad.

कुन्नू सिंह ने कहा…

बहुत अच्छा लीखे हैं पढते पढ्ते डुब गया था।
आपके कई बाते दील को छूती चली गई।

पतंगबाजी करने मे बडा ही आनंद आता है और 15august आने ही वाला है। बहुत मजा आता है पतंग बाजी मे। मेरा सारा का सारा पतंग कटता रहता है

sudhakar soni,cartoonist ने कहा…

bahut bhawuk kahaani h

बेनामी ने कहा…

Very Emotional Story, Keep Up The Great Work.

-Rajendra Agrawal
Nagpur

सतीश पंचम ने कहा…

कहा है कि जब कभी यादों की हूक उठने लगे तो आसमां की तरफ देख लो कुछ न कुछ दिख जाएगा...और आपने उसे देख लिया है बल्कि देख ही नहीं उन यादों को दिखा भी रहे है.....पतंग और डोर के रूप में।
अच्छी संवेदनशील रचना है।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

जीवन की इस उथल पुथल में
कटे हुए रंगों से जीते
आंखों से टपके यथार्थ के
कड़वे घूँट निरन्तर पीते
मन को एक दिलासा दे जो
जीने की अभिलाषा दे जो
दिन की गठरी से चोरी कर
तन्हाई में जी लेने को
जो कुछ पल अपने होते हैं
वे ही तो सपने होते हैं.

Geetkaar ने कहा…

आपकी इस सुन्दर कहानी की प्रशंसा के लिये जब शब्द्कोश का द्वार खटखटाया तो उसने खोलने से साफ़ इंकार कर दिया

Manish Kumar ने कहा…

pehle to bdhaai is record braking performance ke liye.

bada achcha laga nayika ke atteet mein patang ke nile peele rangon ke peeche jhankna.

बेनामी ने कहा…

आप् इस नये रूप मे वाकई अच्छे लग रहे हैं

चश्मा मजेदार है और आप तो ………… सब जानते है


क्या बात है ट्रेन में कोई नई लेडी आई है क्या ?

बेनामी ने कहा…

88 कमेंट्स पार कर लेने पर आपको बधाई


आखिर कार पतग काफ़ी उँची उड़ान भरी :)

saurabh ने कहा…

patang ke bahaane aapne ek gahari sanvedana ko ujaagar kiya hai

kafi gahari soch ko pradarshit kiyaa hai aapane

Unknown ने कहा…

lekh badhiya hai

ek mitra ne udan tashtari par baitha diya

बेनामी ने कहा…

badi achchhi rachana !

Manish ने कहा…

आपके शब्दों से ऐसा लगा कि अभी भी आपकी तबियत कुछ खराब ही है

मन भारी रह्ता होगा। बीमारी के बाद ऐसा होता है

बेनामी ने कहा…

जो सचाई है लिखी, वो तो कहानी हो गई
पाठिका ये आपकी लेकिन दिवानी हो गई

बेनामी ने कहा…

आपके ब्लाग पर आज पहली बार आई और आते ही इतनी सुन्दर कहानी आपने पढ़वाई, मेरा अभिवादन स्वीकार करें

बेनामी ने कहा…

ज़िन्दगी की पतंग को बखूबी उड़ाया है. सुन्दर.

मैथिली गुप्त ने कहा…

वाह क्या शब्द चित्र उकेरा है?

CG ने कहा…

बचपन में सिर्फ एक बार पतंग उड़ायी थी. फिर घर वापस आया तो डैड ने पिटाई कर दी. असल में हमारे यहां पतंग उड़ाना बैन था. मुझे अब तक पतंग उड़ाना नहीं आता.

अब आपकी पोस्ट पढ़कर दिल कर रहा है कि उड़ाना सीख लूं. आप कृपया डैड से सिफारिश कर दें, ताकि इस बार मार न पड़े. :)

निशा मधुलिका ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना है;
लेकिन पंतगो के रंग ज़मीन पर भी तो होते हैं.

बेनामी ने कहा…

हर एक की अपनी नीली, पीली, हरी पतंग होती है....और हर एक को कभी न कभी काली पतंग का सामना करना ही पडता है...इस उम्दा प्रस्तुति और ढेर सारी प्रशंसा भरी टिप्पणीयों के लिये अभिनन्दन!!!

पंकज बेंगाणी ने कहा…

कहानी भावुक है और अपनी स्टाइल की है इसलिए बेहद पसंद आई. आज जाना कि कवि सम्राट कहानी भी बडी खुब लिखते हैं. यह "ऑल राउंडर" वाली बात हुई.

पतंग तो कटनी ही होती है. किसी की नही बचती. जिसकी बच जाती है वो थक हार उतार लेता है, उसमें भी झंझट.. अच्छा होता कट ही जाती.. कहानी तो बनती! क्या ख्याल है . :)

आभा ने कहा…

सपने में उड़ती पतंग मे सच बयान किया किसी भी स्त्री का या किसी का भी, बहुत अच्छा ,उपमा भी सटीक चूना .. सही है तकलीफ,आमीन

बोधिसत्व ने कहा…

बहुत- बहुत बढ़ियाँ और मन को छूनेवाली बातें रैसे आप इतनी आसानी से कर लेते हैं...मैं आपसे जलता हूँ....मेरी जलन भर शुभकामनाएँ दर्ज करें

बेनामी ने कहा…

मेरा सफ़र पूरा नही हुआ , हजार पार कर ले तो सोचेंगे :) :)

:)

अंगूठा छाप ने कहा…

lo ek tippani or sahi meri taraf se...

रवि रतलामी ने कहा…

देखा कि 106 टिप्पणियाँ आ गई हैं इस पोस्ट पर तो टिप्पणी सम्राट के लिए ये मेरी 107 वीं टिप्पणी पहले. अब आगे पढ़ता हूं कि आपने आखिर लिखा क्या है जो सैकड़ा पार हो गया और हम हैं कि इकाई में टिके हुए हैं... :)

Anita kumar ने कहा…

पहुंचने में थोड़ी देर हो गयी , लाइन बहुत लंबी थी हमारा नंबर 108वां था…।:) आशा है आप बुरा नही मानेगें। आप की कहानी ने हमें बरबस अपनी एक कविता की याद दिला दी "पतंगी चिड़िया", कहानी और बाप बेटे की फ़ोटो दोनो ही अच्छे दीख रहे हैं ये तो कहने की जरुरुत ही नही है न?

Satish Saxena ने कहा…

मुबारक हो !

विवेक सिंह ने कहा…

vijay gaur जी की बोहनी अच्छी रही . मेरी टिप्पणी धीमी गति से आरही है . चार दिसम्बर तक पहुँचने का अनुमान है . आपकी पतंग खूब उडी .