रविवार, जून 24, 2007

दो दिन की बात: आशीष के साथ

पता चला कि खाली पिली और अंतरीक्ष वाले आशीष श्रीवास्तव कनाडा आ रहे हैं. हम अधीर हो उठे, मालूम किया तो खबर आई कि मान्ट्रियल पहुँच चुके है और स्थापित होने का प्रयास कर रहे हैं. हमने फोन किया और कह दिया कि हम मदद के लिये एक ईमेल की दूरी पर हैं और औपचारिकतावश कह दिया कि हमारे पास भी आओ. यहाँ से २५० किमी नियाग्रा है, वो घूम जाओ और टोरंटो भी देख लो. हम फोन पर बात कर रहे थे और पत्नी आँख दिखा रही थी कि किस मेहमान को बुलाये ले रहे हो. एक तो ब्लॉग से वैसे ही परेशान और उस पर से ब्लॉगर मेहमान. हमने फोन होल्ड करा कर इन्हें समझाया कि भई, औपचारिकतावश कह रहे हैं. कोई आयेगा थोड़ी इतने पैसे लगाकर हमसे मिलने. ६०० किमी मायने रखता है, कौन आता है.अब कह तो दिया और आशीष से बात आगे शुरु हुई. लगने लगा कि वो तो तैयार ही बैठे हैं. जब आप खाली हों, हम आ जायेंगे. हमने भी सोचा कि मुसीबत जितनी जल्दी आये और टले, उतना अच्छा तो सप्ताहंत में ही बुलवा लिया और वो भी तैयार हो गये.

टिकिट बुक करवा ली और हमें खबर कर दी कि शुक्रवार को रात में ११.४५ बजे आ रहे हैं. आकर साथ खाना खायेंगे. लो, अब कर लो बात...मेहमान आधी रात में और आकर खाना खायेंगे, बतियायेगे और तब सोयेंगे. हमने भी अपना बार वार साफ सुफ कर लिया कि बंदा थका आयेगा तो पहले एक दो पेग की चुस्की लगायेंगे, बात होगी, कविता भी टिका ही देंगे और फिर देखी जायेगी. ११.४५ पर हम स्टेशन पर थे. गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर ही रहे थे तब तक महानुभाव चले आ रहे थे कुकड़ते हुये ठंड में. हमारे लिये गर्मी २० डिग्री और उनकी कुल्फी जमीं जा रही थी जबकि ७००० रुपये का लेदर जैकेट पहने थे (उन्होंने ही बताया:)) और हम हॉफ शर्ट में पसीना बहा रहे थे. पता चला कि १०.४५ से स्टेशन पर इंतजार कर रहे हैं और उन्हें याद भी नहीं कि उन्होंने हमें ११.४५ लिखा था. हमने कहा तो फोन कर देते. तो ये न तो फोन नम्बर साथ लाये थे और न ही मेरा पता...वाह!! हमें लगा कि हम खामखाँ अपने बेटों को लापरवाह समझते रहे. उस खास वक्त की टिक के साथ मेरे मन में मेरा अपने बेटों के लिये सम्मान एकाएक बढ़ गया. बेटों की गैर जिम्मेदाराना हरकतें एकदम से नगण्य सी हो गई.

खैर, लाद लूद कर घर लाये. पता चला कि पीते ही नहीं. तब हमें लगा कि यह बंदा जब इत्मीनान से पूरे होशो हवास में बैठा रहेगा तो हमारी कविता तो सुनने से रहा और यह खाना खाने बैठ गये.बात चली...फिर सो गये.

अगले दिन नियाग्रा गये. सारी दोपहर वहीं गुजारी गई.

आशीष नियाग्रा फॉल्स को अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश में:






हमने सोचा, चलो हम भी लगे हाथ एक पोज दे दें. आशीष नया कैमरामैन है इसलिये थोडी डार्क आ गई है हमारी फोटो :) :





और उसके अगले दिन टोरंटो घूमा गया. फोटू वगैरह खींचे गये. चिठ्ठों के बारे में बात हुई, चिट्ठाकारी के बारे में बात हुई. लगभग हर चिट्ठाकर और चिट्ठा कवर किया गया. घर परिवार की बात हुई. आशीष की हमारे पिता जी लंबी लंबी चर्चायें हुई. बहुत मजा आया. इस बीच एक ऑनलाईन कवि सम्मेलन भी था तो उसके बहाने कवितायें भी झिलवा दीं. मजबूरीवश वो कह गये हैं कि अच्छी लगीं.

आशीष सी एन टॉवर के प्रवेश द्वार पर






कुछ फुरसत के क्षण:





एक मजेदार तथ्य: आशीष के घर का नाम पप्पू है, उसके छोटे भाई का नाम पिन्टू और बहन-महिमा. क्या संजोग है...हमारे बडे भाई पप्पू हैं, हम पिन्टू और हमारी बहन का नाम महिमा. क्या कभी कोई सोच सकता है.

दो दिन रुककर आशीष चला गया और घर सूना सूना सा हो गया. अब हम हुये रवि रतलामी के दोस्त तो पूरे समय यही जांचते परखते रहे कि बालक कैसा है? अब जाकर बड़ा संतोष हुआ कि लड़का हीरा है हीरा....रवि रतलामी जी को हीरा दामाद पाने के लिये पुनः बहुत मुबारकबाद...बस यही तो थी हमारी और आशीष की भेंट....उम्मीद करता हूँ कि वो अगली बार और हमारे पास आये अपने प्रवास के दौरान. पुनः बहुत मजा आयेगा. अब पत्नी आँख नहीं दिखा रही. वो भी तुम्हें निमंत्रण भेज रहीं है.

बाकी की दास्तान आशीष सुनायेंगे. आज तो भारत वापस भी पहुँच गये होंगे. Indli - Hindi News, Blogs, Links

23 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

आप हमें भी कभी औपचारिकता वश ही पूछ लीजिये
हम अनौपचारिक होकर के टोरांटो फिर आ धमकेंगें
सर्दी हो या गर्मी, बारिश, हम तो सब के प्र्रोफ़ हो चुके
आप भले ही न न कर दें, हम तब बिल्कुल नहीं टलेंगे

और दूसरी बात, नियाग्रा पहले रस्ते में आता है
नहीं जरूरत पड़े आप की,हम खुद ही कुछ घूम सकेंगें
दाल भात में मूसर्चन्दों की बोलो कब पड़े जरूरत
आप नहीं ओ मित्र, आपकी भाभी के संग में घूमेंगे.

RC Mishra ने कहा…

आपका अन्दाज़ अच्छा लगा, ये भी कि आपने इसे 'मीट'(हम शाकाहारी हैं) नहीं बताया :)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

आपकी पोस्टों से यह साफ हो गया कि आप बढ़ियातम मेहमान जवाज हैं. कमी सिर्फ यह है कि मेहमाननवाजी की कीमत कविता ठेल कर वसूलते हैं. :) :) :)

Neeraj Rohilla ने कहा…

समीरजी,

कभी हमको भी बुला लीजिये, :-)
तेल के धन्धेवाले लोगों के साथ दोस्ती रखने में फ़ायदा ही फ़ायदा है, बाकी आपकी इच्छा :-)

और, हम पीने और जीने में तनिक भी नहीं शर्माते, फ़िर हो जाये कभी आपके साथ बैठकर एक महफ़िल...


वैसे आपको तो ह्यूस्टन आने का न्यौता हम पहले ही दे चुके हैं ।

साभार,
नीरज

पंकज बेंगाणी ने कहा…

हम्म,

तो यह राज है आपके अचानक गायब हो जाने का , घुमने फिरने का प्रोग्राम बना लिया था.

बडिया कवरेज की है मीट की. बहुत सुन्दर. आशिषजी के साथ आपका अच्छा वक्त गुजरा. उम्मीद है आशिषजी अधिक "बोर" नही हुए होंगे. :)


अरे नियाग्रा के आगे आप तो बडे उजले उजले दिख रहे हैं. बधाई स्विकार करें.


और एक बात ... अ... ह्म्म.. वो..... पेट कुछ ज्यादा ही..... नहीं नहीं अभी तो आप युवा ही हैं समझिए , तो सम्भालिए ना!!

संजय बेंगाणी ने कहा…

क्या बात है. कभी मौका आया तो हम भी प्रवास की सोचेंगे, ऐसा मेजबान कहाँ मिलेगा.
अच्छी मुलाकात रही. फोटो भी चकाचक है. आशिषभाई के बारे में जान कर अच्छा लगा.
पिंटूजी नामो का संयोग जोरदार मिला है.

काकेश ने कहा…

पहले सोचा था कि आप मित्र बने हैं तो कभी ना कभी तो मिल ही लेंगे...फिर आपकी पिछ्ली मुलाकात (रमण कौल वाली) से आपने अपनी कविताओं का खौफ दिखाया फिर भी हिम्मत बनायी कि आप कविता सुनायेंगे तो हम कहाँ पीछे रहने वाले है.लेकिन अब आप भाभी जी का खौफ दिखा रहे हैं.तो अब तो हम सही में खौफजदा हो गये हैं..अब मिलने की हिम्मत ही नहीं रही.

वैसे आपकी मुलाकात अच्छी रही.

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

मजा आ गया। आशीष जी के बहाने हमने भी टोरंटो घूम लिया। (तस्वीरों के जरिए) फुरसत के क्षण के बहाने आपके घर में भी घुस गए। आप अच्छे आदमी हैं। भाभी जी की इमेज बिगाड़ने की आपकी कोशिश नाकाम रही।

Arun Arora ने कहा…

दिल प्रसन्न हुआ,और अब हमने इस चिट्ठे को पढ कर जो दिन भर किया,यहा पर लिखने के बजाय कल सुबह पोस्ट करेगे,काहे की अच्छा नही लगता चिट्ठे से बडी टिप्पणी हो इस खयाल से
आशा है आप समझ गये होगे:)

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

पढ़ कर काफी अच्‍छा लगा और उससे भी ज्‍यादा अच्‍छा आपको देख कर, मै सोचता रह गया कि आखिर में इतनी भारी उड़नतश्‍तरी उड़ती कैसे है ?

:)

mamta ने कहा…

वाकई कमाल का लिखते है आप। और हम मिश्राजी की बात से सहमत है।

रवि रतलामी ने कहा…

धन्यवाद, आपने भी हमारी परख पर मुहर लगा दी. :)

सुनीता शानू ने कहा…

समीर भाई सबसे पहले माफ़ी चाहूँगी बहुत अधिक व्यस्तता के कारण मै कोई भी रचना पढ़ नही पाई ना ही लिख पाई हूँ...

फोटो बहुत ही खूबसूरत आये है...जब आप दिल्ली आयेंगे हम भी एसे ही आपके फोटो अपने ब्लोग पर डालेंगे...:)

सुनीता(शानू)

Pratyaksha ने कहा…

अच्छा रहा मुलाकाती विवरण , और फोटो भी :-)

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बढ़िया अंदाज़ में विवरण दिया आपने!!
फोटो मस्त आई है बस एकै दिक्कत है गुरुवर, फोटू में आप खाते-पीते घर के नही बल्कि पीते-खाते घर के लग रहे हो, हे हे!!
इतनी कम उमर में ये ……पेट गलत बात है भाई, अभी से ये हाल है तो बुढ़ापे मे का होगा!

बेनामी ने कहा…

हमने सोचा, चलो हम भी लगे हाथ एक पोज दे दें. आशीष नया कैमरामैन है इसलिये थोडी डार्क आ गई है हमारी फोटो

अरे का बात करते हैं समीर जी। जैसा पंकज ने कहा, आप उजले-२ दिख रिये हो!! ;) :D

इस बीच एक ऑनलाईन कवि सम्मेलन भी था तो उसके बहाने कवितायें भी झिलवा दीं. मजबूरीवश वो कह गये हैं कि अच्छी लगीं.

हाय दईया! मरते क्या न करते आशीष भाई!! ;)

अब हम हुये रवि रतलामी के दोस्त तो पूरे समय यही जांचते परखते रहे कि बालक कैसा है? अब जाकर बड़ा संतोष हुआ कि लड़का हीरा है हीरा

अरे समीर जी, कैरट भी तो बताते कितने के हैं। और किस क्वालिटी के हैं! :)

बकिया सब बढ़िया। :)

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

आशीष के साथ मुलाकात अच्छी लगी लेकिन े समीर भाई यह आप भाभी जी को फ़ालतू मे बदनाम करने की व्यर्थ कोशिश न किया करें. अब आप की कोई युक्ति काम आने वाली नही हैं . यही हाल रहा तो आप के सारे के सारे चिट्ठा प्रेमी आप के घर धमकने की तैयारी मे हैं.
मजे की बात है कि कल शाम लखनऊ मे मेरे घर पर आशीष श्रीवास्ताव जी और अनूप शुक्ल जी आये थे और काफ़ी देर तक आप के बारे मे चर्चा करते रहे .मुझे आप को और अनूप जी देखकर ताज्जुब होता है कि आप लोग दनादन इतनी सारी पोस्ट कैसे निकाल लेते हैं और कितने घंटे सोते भी हो ?

Mohinder56 ने कहा…

समीर जी,

राकेश जी ने हमारे दिल की बात कह दी... कभी अचानक टपक कर आपको मेजवानी का मौका जरूर देँगे.. फिर चाहे उसके लिये कुछ कवितायेँ ही क्यूँ न झेलनी पडेँ.

ghughutibasuti ने कहा…

समीर जी अब हम क्या बोलें इतने लोगों ने तो सब कुछ ही बोल दिया । बस इतना ही कह सकते हैं कि आप कहें तो बिना चार्ज करे आपके लिए डाइट प्लैन कर सकते हैं ।
न टिपियाने का कारण हमारा खराब स्वास्थ्य था । शायद अधिक टिपियाने का साइड इफेक्ट !
घुघूती बासूती

Divine India ने कहा…

आपको साक्षात देख कर सोंचा कि यही वह दिमाग है जिसमें कविताओं की महान ग्रथी निवास करती है… :)
कितना सुंदर तस्वीर है वस मजा आ गया… और अलग रंग तो बिखेरने में आप माहिर तो हैं ही।

ePandit ने कहा…

हमने सोचा, चलो हम भी लगे हाथ एक पोज दे दें. आशीष नया कैमरामैन है इसलिये थोडी डार्क आ गई है हमारी फोटो :)

वाकई नए कैमरामैन हैं आशीष, डार्क के साथ-साथ थोड़ी हैवी भी आ गई है फोटो। :)

चिठ्ठों के बारे में बात हुई, चिट्ठाकारी के बारे में बात हुई. लगभग हर चिट्ठाकर और चिट्ठा कवर किया गया.

हे हे हम भी कवर हुए क्या?

वैसे हम कभी उधर आएं तो वो फॉल वगैरा दिखा देना, बदले में हम आपके कविता झेल (सुन) लेंगे। :)

विवरण रुचिकर रहा।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

pahle bhi eak comment diya tha na jane knha gaya?
aaj dekha to nahi mila ab dobara dete han. aapka lekh aapka sabse milna dekhakr lagta ha ki aap kafi milnsar han. achi bat ha.photo aadi bhi ache lage.

Udan Tashtari ने कहा…

अरे, आप सब ही आमंत्रित हैं. जो जब भी मौका निकाल पाये, अवश्य प्रयास करे. मेरा सौभाग्य होगा. वादा है कविता नहीं झिलवायेंगे (ज्यादा).

:)

-आपकी पंसदानुरुप ही भोजन होगा-शाकाहारी / मांसाहारी. सुरामय या बेसुरा. :)