गुरुवार, अप्रैल 05, 2007

मान गये भाई कवि!!

मान गये भाई कवि जी आपको. बड़े अजू्बे जीव हो. रात को जब सारा जग सो जाता है, घोर अंधेरा छा जाता है तब जागते हो. जब सारा घर दिन भर कामकाज करके, दुनियावी झंझावतों से जूझकर, थक हार के सो जाता है तब तुम सोकर उठते हो. लाईट भी नहीं जला सकते. नाकारों की कमाने वालों के सामने कहाँ चल पाती है. लाईट जलाओ तो सबसे डांट खाओ. तो अंधेरे कमरे में ही भटकते रहते हो. ज्यादा से ज्यादा छत पर चले गये. अब जब लाईट ही नहीं जला सकते तो अंधेरे में उजाले की किरण, आशा की किरण खोजते हो. सन्नाटों की आवाजें सुनते हो. जुगनुओं की जल बुझ निहारते हो. चाँद को देखकर कृदन करते हो. तन्हाई का रोना रोते हो. अरे भाई, इतनी रात रात में तन्हाई नहीं तो क्या तुम्हारी माशूका तुम्हारे साथ बैठी रहे. तुम्हें तो कुछ करना नहीं है. सूरज उगने तक तो तुम सो जाओगे. फिर दिन भर पलंग तोडो़गे. उसे तो दफ्तर जाना है. घर चलाना है. कविता तो खा कर जिंदा नहीं रहा जा सकता. उसके लिये अनाज, सब्जी, दूध-घी सब लगता है और उसके लिये चाहिये पैसा. वो तो उसको कमाना है. तुम्हें तो बस कविता करना है तो तन्हाई, अंधेरा, जुगनु ही न साथ देंगे!!

कविता तो खा कर जिंदा नहीं रहा जा सकता. उसके लिये अनाज, सब्जी, दूध-घी सब लगता है और उसके लिये चाहिये पैसा. वो तो उसको कमाना है. तुम्हें तो बस कविता करना है तो तन्हाई, अंधेरा, जुगनु ही न साथ देंगे!!

न प्रेमिका से मिलना न जुलना. मिलोगे भी कैसे, जब वो जागती है, तब तुम सोते हो. अक्सर तो उसे यह तक नहीं पता चल पाता कि तुम उसे चाहते हो. तुम तो बस रात रात भर रोते रहो और आंसूओं की बरसात में भींग भींग कर गम के तराने रचो और सुबह होते ही उनका तकिया लगा कर सो जाओ. फिर उसकी शादी कहीं और हो जाये. तुम्हें बेवफाई के नये मैटर मिल जायें और तुम फिर शुरु हो जाओ इस पर लिखने को. क्या कमाल की चीज हो यार!!.

मकान है बड़के नाले के पास. शहर भर की बजबजाती गंदगी उसमें ठहरी हुई. दुर्गंध ही दुर्गंध. घर के पिछवाड़े मुहल्ले भर के कचरे का ढ़ेर और तुम रात में खिड़की पर बैठे, मन की उड़ान में बिना टिकिट सवारी करते, उपवन में टहलते हो. फूलों में महक खोजते हो. फिजाओं में उसके बदन की खुशबू तलाशते हो. अगर उसके बदन से केवड़े की खुशबू भी उठे न, तो भी हवाओं के संग तुम्हारे दर पर पहुँचने के लिये नाला पार करते करते सिवाय कचरे की सड़ांध के तुम्हारे नथूनों में कुछ नहीं पहुँचेगा. और तो और, दरवाजे पर आहट हो तो कहते हो शायद हवाओं ने खटखटाया होगा. अब इतनी रात गये और कौन खटखटायेगा? चोर तो खटखटा कर आता नहीं और आता भी होगा तो तुम्हारे यहाँ क्यूँ आयेगा. वो भी जानता है तुम कवि हो. फक्कड़ दीन के यहाँ कैसी चोरी. आज तक का पुलिस इतिहास उठा कर देख लो अगर किसी कवि के यहाँ चोरी हुई हो तो.

अब इतनी रात गये और कौन खटखटायेगा? चोर तो खटखटा कर आता नहीं और आता भी होगा तो तुम्हारे यहाँ क्यूँ आयेगा. वो भी जानता है तुम कवि हो. फक्कड़ दीन के यहाँ कैसी चोरी. आज तक का पुलिस इतिहास उठा कर देख लो अगर किसी कवि के यहाँ चोरी हुई हो तो.

और हाँ, अपना पहनावा और लुक वगैरह भी ठीक करो यार. कभी कदा जो देर शाम सामने ठेले तक चाय पीने निकलते भी हो तो वही खद्दरिया कुर्ता पैजामा, चट चट करती बाटा की स्लीपर, काले मोटे फ्रेम का चश्मा, रफ लुक दाढ़ी और उस पर से कँधे से झूलता वो कपड़े का झोला. चाय भी पिओगे तो काली- नींबू डालकर, उस पर से नम आँखें, बुझा चेहरा, जली सिगरेट- कौन देखेगा यार तुमको. उन्हें तो बेवफा कहलाने में ही फक्र होगा.

आज अपनी एक रचना देख कर लगा कि शायद ऐसे ही किसी माहौल में अटके हमने भी कभी यह कविता रची होगी, आप भी सुनें:

लिखता हूँ बस अब लिखने को
लिखने जैसी बात नहीं है
सोचा समय बिताऊँ कैसे
कटने वाली रात नहीं है

यादों का मेला भरता है
मैं तो फिर भी तन्हा हूँ
बेहोशी में सिमटा सिमटा
डर कर खुद से सहमा हूँ

हैं बेबस सब प्यार के मारे
सब के यह ज़ज्बात नहीं है
लिखता हूँ बस अब लिखने को
लिखने जैसी बात नहीं है

गिनता जाता हूँ मैं अपनी
आती जाती इन सांसों को
नहीं भूला पाता हूँ फिर भी
प्यार भरी उन बातों को

आँखों से गिरती जाती जो
थमती वो बरसात नहीं है
लिखता हूँ बस अब लिखने को
लिखने जैसी बात नहीं है.

--समीर लाल ‘समीर’

नोट: यह सिर्फ मौज-मस्ती के लिये है. कृप्या कोई आहत न हो!! Indli - Hindi News, Blogs, Links

41 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Bahut Achche Sameer Bhai. Aap to khud ka bhi mazak udaa lete hain. Isase bada koi kya kar sakta hai ki khud ko hasya ka vishya bana le. Aapke hum murid hote jaa rahe hain. Badhiya likha hai.:)

Neeraj Rohilla ने कहा…

क्या बतायें समीरजी हमें भी एक बार कविता लिखने का शौक चर्राया था । उस समय होस्टल में रहते थे, रूमी को आठ दस बार अधूरी कविता सुनाय़ी और वो भी त्रस्त हो गया । उसने हमें कमरे से बाहर निकाल कर कुण्डी चढा ली । हमें पूरी रात विंग की टैरेस पर बितानी पडी थी । तब कसम खाई थी कि अधूरी कविता किसी को नहीं सुनायेंगे, और पूरी कविता कर नहीं पाते हैं ।

आपकी रचना ने मन को अच्छा गुदगुदाया । ऐसे बढिया बढिया विषय कहाँ से छाँट कर लाते हैं ।

साधुवाद स्वीकार करें ।

बेनामी ने कहा…

नारद हिट काउंट 56 और टिप्पणी सिर्फ 2, बहुत नाइंसाफी है, कहीं मुझे ऐसा तो नही कहना चाहिये माजरा क्या है ;)

आज तक का पुलिस इतिहास उठा कर देख लो अगर किसी कवि के यहाँ चोरी हुई हो तो.

चोर इस डर से चोरी करने नही जाते कहीं कवि पकड कर कवितायें ना सुनाने लग जाये

Udan Tashtari ने कहा…

तरुण

तुमने सही जान लिया. एक मेक्रो की टेस्टिंग में यह हो गया. अब रोक दिया है मेक्रो को. :)

पधारने के लिये धन्यवाद. :)

Udan Tashtari ने कहा…

नीरज

अच्छा लगा तुम्हे पसंद आया प्रयास. विषय तो बस अपने आस पास ही होते हैं. बस नजर पड़ जाये. :)

तुम्हारी टैरेस पर रात बिताने की कहानी भी कभी पूरी सुनी जायेगी...मजेदार होगी. :)

Udan Tashtari ने कहा…

खालिद

सही कह रहे हो. अपना ही मजाक हो तो उचित,,वरना तो लोग बुरा मान जाते हैं न!! :)

बेनामी ने कहा…

sameer bhayee
likhane men baat to hai allah kare jore shraab aur jyada.aur likhiye hansee men bhee badee baat kahanaa mayane rakhata hai.

murli manohar srivastava

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शुक्रिया, मुरली भाई. आपका स्नेह है.

Tarun ने कहा…

समीर जी, वो मैक्रो जरा इधर भी सरका दीजिये, हमें लिखने की जरूरत नही पडेगी। हमको बहुत जरूरत महसूस हो रही है अपने चिट्ठे के लिये, सचिन की तरह अपने ब्लोग की भी वॉट लगी हुई है। ;);)

Udan Tashtari ने कहा…

तरुण

वो मेक्रो बेकार है वो तो सिर्फ यह साबित करने को बनाया था कि यह रेटिंग सिस्टम ठीक नहीं. इसे अलग कर देना चाहिये. यह लोगों को पूर्वाग्रह से ग्रसित कर देता है. बस वही मैसेज देना था. :)

यही बात प्रमेन्द्र ने भी मेन्यूली साबित करने की कोशिश की थी. :)

मसिजीवी ने कहा…

आप की तो बेकार के मैक्रो की टेस्टिंग हुई उधर किसी बेचारे (बेचारी) के ब्‍लाग की लोकप्रियता की वॉट लग गई। पिछले हफ्ते के लोकप्रिय लेख की सूची में नोट पैड आपके इस प्रयोग विरोध के कारण बलात दूसरे स्‍थान पर फिसल गईं हैं। :(
:
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खुदा करे आपके अगले कवि सम्‍मेलन में दूसरे कवियों के काव्‍य पाठ में ज्‍यादा वाह वाही मिले तभी पता चलेगा :)
अच्‍छा लिखा है, बिना 'बेईमानी' के भी हिट होता। :)

बेनामी ने कहा…

एक कवि का चरित्र चित्रण या मानसिक स्थिती का चित्रण मजेदार है.
कोई कवि पढ़ कर कसमसाएगा, हमें क्या. अपने को तो मौज हुई :)

पंकज बेंगाणी ने कहा…

ना लिखने वाली बात हो.

पर कभी कोई ऐसी रात हो..

जब खामोशीयाँ बोल उठे और,

महके से कुछ जज़्बात हो.


साथी उस एक पल में,

जन्मों का अहसास हो,

मन में जी लें सदीयाँ ऐसी,

एक ऐसी रात काश हो...

खो रहा हुँ एक स्वप्न में,

एक घडी एक पल एक हाथ हो,

थाम के जिसे बस बैठे रहें,

साथी तुम हो! तुम्हारा साथ हो!!

Neelima ने कहा…

वाह वाह कया बात है.अच्छा लेखक भी वही होता है जो बस लिख डालता है "चाहे बात न हो कुछा लिखने की";)

mkt ने कहा…

बहुत सुन्दर। पढ़ कर मज़ा आया। खास तौर पर कविता।

बेनामी ने कहा…

समीर भाई अब क्या कहें आपकी हर पोस्ट इतनी लाजवाब होती है कि अगर कायदे से तारीफ करनी शुरू करें तो सारे शब्द यहीं चुक जाएंगें और हमारा चिट्ठा सूना रह जाएगा। आपकी काबलियत को शत शत नमन।

सुजाता ने कहा…

baee nirdoSh, masoom see kavitaa!
sundar!!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

वाह गुरुवर एक तरफ़ तो कहते हो कि
"लिखता हूँ बस अब लिखने को
लिखने जैसी बात नहीं है"
वहीं एसी पोस्ट लिख मारते हो कि
" कत्ल भी कर देते हो और आह भी नहीं लेने देते"
और हां ये आप क्या क्या साबित करने में लग गए हो आजकल, प्रभु आप ना कुछ साबित मत करो, बस लिखो और पढ़ाओ हम सबको।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

काव्य लिखने के गुर जितने हैं, आपके लग रहा हैं सभी आजमाये हुए
एक के बाद इक सामने आ रहे, आपके लेख में झिलमिलाये हुए
आप राहों में हमको मिलेंगे अगर, कोई दिक्कन न पहचानने मेम रहे
मुंह में सिगरेट हो, दाढ़ी जरा सी बढ़ी और कांधे पे झोला उठाये हुए

Manish Kumar ने कहा…

सादी सुंदर कविता ! अच्छी लगी ।

बेनामी ने कहा…

कवि की व्यथा को एक कवि ही समझ सकता है। आपने अपना दर्द अच्छी तरह बयान किया। बधाई!

बेनामी ने कहा…

आलेख और ‍कविता दोनों का जवाब नहीं। हाँ एक ठो मैक्रो इधर भी भेज दीजियो, लगाने की विधि सहित।

Udan Tashtari ने कहा…

मसिजीवि जी

भाई, वॉट लगाना उद्देश्य नहीं था, मगर अगर लग गई तो खेद प्रदर्शीत किये देता हूँ. :)

शुभकामनाओं के लिये बधाई-तब उस माहौल को भी देखा जायेगा. :)

रचना पसंद करने का शुक्रिया, हौसला बढ़ गया, अब और लिखूँगा. :)

बेईमानी- फैशनवश कर ली!! क्या करुँ फैशन परस्ती के इस युग में बहुत कोशिश के बावजूद अपने को बचा पाना कितना मुश्किल है, यह तो आप जानते ही हो!! हा हा :)

संजय भाई

चलो, मौज हो गई-वाह, यही तो उद्देश्य भी था. धन्यवाद.

पंकज

थाम के जिसे बस बैठे रहें,
साथी तुम हो! तुम्हारा साथ हो!!

-वाह, अब राजनीति पर लिखना छोड़ कर फूल टाईम कविता लिखने लगो. अच्छा लिख रहे हो. :)

नीलिमा जी

बहुत शुक्रिया-आपने पहचान लिया. :)
हौसला अफजाई करते रहें.

मृणाल जी

आपको मजा आया, लिखना सफल हो गया. बहुत धन्यवाद.

रत्ना जी

अरे, इतना न चढ़ा दें कि हम गिर ही पड़ें. :)
आप आ गयीं, बस अब बढ़िया है. कविता पसंद आ गई, यह सबसे बढ़िया रहा. बहुत धन्यवाद. अब आपके चिट्ठे पर लिखना चालू करें, इंतजार लगा है. :)

नोटपेड जी

वाह, आपने कविता पसंद की, बहुत धन्यवाद.

Udan Tashtari ने कहा…

संजीत भाई

बस ऐसा ही स्नेह बनाये रखो. हम पढ़ते पढ़ाते चलेंगे. बहुत शुक्रिया रचना पसंद की. अब आह कर लो!! :)


राकेश भाई


चलिये यह बढ़िया हो गया कि आप अब हमको सरे राह पहचान लेंगे. :)
स्नेह और आशीष बनाये रखें. बहुत धन्यवाद.


मनीष भाई

बहुत धन्यवाद आपको कविता अच्छी लगी.

अनूप भाई

बहुत आभार और धन्यवाद. बस यूँ ही आपकी स्नेह वर्षा चलती रहे और हम भीगते रहें.

अतुल भाई

बहुत धन्यवाद लेख और कविता पसंद करने के लिये. हौसला मिलता है आगे लिखने को.

अरे, बड़ा नालायक मैक्रो है!! उसे डब्बे में ही रहने दो.

Priya Ranjan Jha ने कहा…

aisane likhte rahiye. etana "sidha" sochana bahut badi baat hai...

Udan Tashtari ने कहा…

प्रियरंजन भाई

बहुत आभार. आप आये, हौसला कई गुना बढ़ गया. बहुत धन्यवाद. आते रहें.

बेनामी ने कहा…

ek dam bindaas :)

Ripudaman

Udan Tashtari ने कहा…

रिपुदमन

बहुत बहुत धन्यवाद. :)

रजनी भार्गव ने कहा…

बहुत खूब समीरजी. कविता और कवि का मर्म अच्छा है. पंकज जी की भी कविता अच्छी लगी.
आपकी संगत का असर अच्छा ही है.

Udan Tashtari ने कहा…

रजनी जी

आलेख पसंद करने के लिये बहुत धन्यवाद.

अब पंकज पर संगत का असर बुरा हो रहा है या अच्छा- यह तो पंकज जाने मगर आजकल कविता जरुर करने लग गये हैं. :)

रवि रतलामी ने कहा…

आपसे आग्रह है कि इस मैक्रो में थोड़ा और विस्तार दे दें जो कि सभी कविता-पोस्टों पर काम आए. :)

और, खासकर, मेरे भी पोस्टों पर :)) इदर क्लिक रेट देखकर तो मन ही नहीं करता लिखने को!

योगेश समदर्शी ने कहा…

लिखा तो लिखने के लिये ही जाता है.
जब लिखा जाता है तभी तो लिख पाता है
लिखा हुआ ही दूर तक जाता है.
लिखा शब्द सबको यही बताता है
शब्द केवल आक्रति नही होते.
एक शब्द मे पूरा ब्र्ह्माण्ड समाता है.

कई बार तो एसे ही लिखा गया वाक्य
जिंदगी का सार कह जाता है.
आप भी गुरू हो साहब
आपके चिट्ठे का शब्द शब्द यही बताता है.

बेनामी ने कहा…

आपके लिखने का अंदाज़ सर आंखों पर - शब्दों का इस्तेमाल करना कोई आपसे सीखे :-)

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

"मान गये भाई कवि!!" नही बलिक "मान गये समीर भाई कहिये " क क्या कायदे से धोया है और वह भी बगैर डिटर्जेंट लगाये :)

Udan Tashtari ने कहा…

रवि भाई

जिस दिन आपको मेक्रो की जरुरत पड़ जायेगी, यकिन मानिये वो हिन्दी चिट्ठाकारी का काला दिवस होगा. आप जैसे बेहतरिन लेखकों से ही तो शान है.

आप आये, अच्छा लगा. :)


योगेश भाई

सब आपका स्नेह है योगेश भाई.
बहुत आभार और धन्यवाद आपका.

शुएब भाई

चढ़ा रहे हो?? बहुत खूब...धन्यवाद लेखनी को सराहने और पसंद करने के लिये.


प्रभात भाई

यकिन मानिये, धोना धुलाना उद्देश्य नहीं था, बस ड्राई क्लिनिंग में लगे थे. :)

बहुत आभार और धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

लेख और कविता दोनो पसंद आए!

Udan Tashtari ने कहा…

रचना जी

देर से आये, मगर आ ही गये. बड़ा अच्छा लगा. लेख और कविता पसंद करने के लिये बहुत धन्यवाद.आते रहें.

सोमेश सक्सेना ने कहा…

समीर जी, अब तो इतनी टिप्पणियाँ हो चुकी हैं कि मेरे कहने को कुछ नहीं बचा। फिर भी कहूंगा कि अच्छा लिखा है।

Udan Tashtari ने कहा…

सोमेश

अच्छा लगा तुमने पढ़ा और पसंद किया, बहुत धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

हम आपके मुरीद हैं साधू जी, भला आपको क्यों चढाएं? और आपको चढाने मे भी हमें ख़ुशी होती है :)

Udan Tashtari ने कहा…

सही है, शुएब तुम्हारा अधिकार क्षेत्र है. यह स्नेह ही तो है जो हौसला देता है लिखने का. :)