बडी दुविधा मे हूँ, मित्रों, कुछ सुझाओ. पेश हैं दो कुंडली नुमा रचनाऎं:
॥१॥
अमरीका आ कर बस गये, पैसा खुब कमाये
बोले अमरीकन दोस्त से, घर की याद सताये.
घर की याद सताये तो एक बंगला तनवा लो
थोड़े पैसे पास के, बाकि का सब करज करा लो
कहे समीर कविराय कि हमने फिर माथा पीटा
घर मकान दुई चीज हैं कैसन समझे अमरीका.
दुविधा: क्या घर और मकान का अंतर समझाना पडेगा?
॥२॥
पंछी को तुम मुक्त करो, किया शंख मे नाद
नेता जी हर घर गये, बिना किसी अपवाद.
बिना किसी अपवाद कि वो ललकार लगाते
अगर किया है कैद तो तू उनको आज उड़ा दे
कहत समीर आंदोलन की वो खुशी मनाये
खोल के बोतल बैठे और साथ मे मुरगा खाये.
दुविधा: क्या मुर्गा पंछी की श्रेणी मे आयेगा?
समीर लाल 'समीर'
गुरुवार, सितंबर 21, 2006
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9 टिप्पणियां:
1.
है अमेरीका तो आपको भी अमरीकी होना होगा
दो पल हंसने के लिए दो पल रोना होगा
काहे बात मन पे लगाके लालाजी और दुःख हो
मकान हो तो वही सही.. बस अब ठुक लो
2.
गली गली में शोर है
नेता हमारा चोर है
15 अगस्त को पंछी उडाए
रोज घर पर मुर्गा "उडाए"
पहला वाला दर्द बड़ा हैं. घर तथा मकान में उतना ही अंतर हैं जितना भात था चावल में.
आप धन्य हैं, आपकी प्रेरणा से पंकज भी कविता करने लगा हैं !! आश्चर्य.
अमरीका में ढूँढ़ते हो घर का आराम
इससे बेहतर बैठ कर जप लो बस हरिनाम्
जप लो बस हरिनाम,अगर बन जाऒ नेता
सहज बनोगे फिर मकान-निर्माण प्रणेता
बस अभिशाप गई देकर इसको भौतिकता
घर से सदा विहीन रहा अब तक अमरीका
मौला आपको फंसावट में तरावट लेने वाला बनाये.
हंसने के लिये हम लोगों के ब्लाग आप देखते ही हैं और रोने की क्या जरूरत.
अब कुछ मेरी बात भी सुन लो यार समीर।
अमरीका के रहन की बात करूँ गम्भीर॥
घरवाली जहँ पर रहे वह घर ही कहलाय।
चाचा, ताऊ ससुर की नहीं ज़रूरत भाय॥
भाग्यवान खुद को कहो यार समीरालाल।
पत्नी की सेवा करो त्यागो सभी मलाल॥
बहूत खूब समीर लाल जी
बाल मजदूरों को
मुक्ति दिलाने हेतु
हुआ एक सम्मेलन
माननीय अधिकारी जी
बहुत गरजे और बरसे
ठूंसवाया कई व्यापारियों को
हवालात के अन्दर
जब थक कर घर आये
अपने आठ साला
नौकर पर गुर्राये
चल बे कलवे
जरा पाँव दबा दे।
(यह एक सत्य घटना है जिसमें सुरत महानगर पालिका के एक बड़े अधिकारी के घर में आठ साला बच्ची को नौकर रखा हुआ था और दिन रात पति पत्नी उस मासूम के साथ मार पीट करते थे)
यहाँ तो पोस्ट से लेकर चिट्ठा तक कुँडलीमय है । मज़ा आ गया
वाह समीर जी!!
आपकी पहली दुविधा के लिये---
"जाने कहाँ गुम हुई लोगों की मुस्कान है,
लोगों के 'घर्' नही दीवारों के 'मकान'हैं!!
और दूसरी दुविधा के लिये--
"हैं पानी जैसे ही पतले और वायु जैसे हल्के भी,
हैं लोहे जैसे ही कठोर और सोने से चमकीले भी.
उनमे हर तत्व के गुण मिलते, पर थोडी सी न मानवता,
मै सबसे ही कहती रहती,ये मेरे देश के हैं नेता!!"
वाह भाई वाह यहां तो मेहफिल सजी है - हम तो बस वाह वाह ही कह सकते हैं :)
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