परस्पर विरोधाभास दर्शाती इन पंक्तियों पर आप सुधीजनों का ध्यान चाहूँगा:
हर मौसम को आते देखा, हर मौसम को जाते देखा
हर उत्सव एक नये तरीके, उसको गीत सुनाते देखा.
हैवानो की इस दुनिया मे, इन्सानों की कमी नही है
अनजानों की कब्रों पर जा, उसको फ़ूल चढाते देखा.
मदहोशी के इस आलम मे, जो भी हो बस वही सही है
दुख और सुख दोनों रातों मे, उसको जाम पिलाते देखा.
नफरत की इस आंधी मे, बुद्धि उड़ कर कहां गई है
अपने ही भाई के घर मे, उसको आग लगाते देखा.
शर्तों की बुनियाद कभी भी, रिश्तों का आधार नही है
खुद की हस्ती बेच बेच कर, उसको साथ निभाते देखा.
--समीर लाल 'समीर'
और साथ ही पेश हैं कुछ सामायिक हाईकु:
//१//
वाह रे देश
गरीबी पाती भूख
मूर्ति को दूध.
//२//
नेता की चाल
जनता है बेहाल
वो मालामाल.
//३//
राजनीति है
बेरोजगार रोया
नेता है सोया.
//४//
बाढ़ का नाच
लाशों की बिछी सेज
नेता की ऎश.
//५//
हवाई दौरा
गिध्द हैं घबराये
मंत्री जी आये.
//६//
मेरा ये देश
कितने परिवेष
फिर भी एक.
//७//
नेता का काज
आरक्षण है आज
युवा नाराज
.
--समीर लाल 'समीर'
हर मौसम को आते देखा, हर मौसम को जाते देखा
हर उत्सव एक नये तरीके, उसको गीत सुनाते देखा.
हैवानो की इस दुनिया मे, इन्सानों की कमी नही है
अनजानों की कब्रों पर जा, उसको फ़ूल चढाते देखा.
मदहोशी के इस आलम मे, जो भी हो बस वही सही है
दुख और सुख दोनों रातों मे, उसको जाम पिलाते देखा.
नफरत की इस आंधी मे, बुद्धि उड़ कर कहां गई है
अपने ही भाई के घर मे, उसको आग लगाते देखा.
शर्तों की बुनियाद कभी भी, रिश्तों का आधार नही है
खुद की हस्ती बेच बेच कर, उसको साथ निभाते देखा.
--समीर लाल 'समीर'
और साथ ही पेश हैं कुछ सामायिक हाईकु:
//१//
वाह रे देश
गरीबी पाती भूख
मूर्ति को दूध.
//२//
नेता की चाल
जनता है बेहाल
वो मालामाल.
//३//
राजनीति है
बेरोजगार रोया
नेता है सोया.
//४//
बाढ़ का नाच
लाशों की बिछी सेज
नेता की ऎश.
//५//
हवाई दौरा
गिध्द हैं घबराये
मंत्री जी आये.
//६//
मेरा ये देश
कितने परिवेष
फिर भी एक.
//७//
नेता का काज
आरक्षण है आज
युवा नाराज
.
--समीर लाल 'समीर'
15 टिप्पणियां:
आपको ऐसे खयाल कहां से आते हैं? - वाह वाह और वाह - आपका हर शब्द बहुत ही जानदार है
शर्तों की बुनियाद कभी भी, रिश्तों का आधार नही है
खुद की हस्ती बेच बेच कर, उसको साथ निभाते देखा.
वाह, बहुत बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं। क्या बात है!!!
वाह,वाह!कुंडलिया गुरू हायकू उस्ताद भी हो गये!
और कितनी तारीफ करू? वैसे ही..... :-)
पर रहा भी नहीं जाता!!
वापिस रंग में आ गये.
बहुत खुब.
बड़िया है।
बहुत अच्छा लिखा है।
तारीफ़ करूँ
कितनी हद तक
आप बतायें
-०-०-०-०-०-०-०
बन्दी नहीं हुआ है मौसम,लहराते हर एक दिशा में
केवल इन्सानों ही को तो है दीवार बनाते देखा
जिन रिश्तों पर फ़ख्र कभी था,आज बदलते फिर मौसम में
उन रिश्तों को बाज़ारों में बोली खूब लगाते देखा
bahut sundar ....
समीर जी ,
बहुत बढ़िया गज़ल कही है आपने ..हर शे'र लाजवाब और इसकी तो बात ही क्या ..वाह
शर्तों की बुनियाद कभी भी, रिश्तों का आधार नही है
खुद की हस्ती बेच बेच कर, उसको साथ निभाते देखा.
और हर हाइकू कमाल..बधाई जानदार सृजन के लिए
सादर
मुदिता
हालात का अवलोकन करती शानदार रचना।
हैवानो की इस दुनिया मे, इन्सानों की कमी नही है
अनजानों की कब्रों पर जा, उसको फ़ूल चढाते देखा.
bahut hi sahi
हैवानो की इस दुनिया मे, इन्सानों की कमी नही है
अनजानों की कब्रों पर जा, उसको फ़ूल चढाते देखा\
वाह जबर्दस्त्त प्रवाह
हाइकू भी मस्त हैं.
शर्तों की बुनियाद कभी भी, रिश्तों का आधार नही है
खुद की हस्ती बेच बेच कर, उसको साथ निभाते देखा.
शायद तभी अभी तक धरती टिकी हुई है ..
हाईकू सभी बहुत अच्छी लगीं
मदहोशी के इस आलम मे,जो भी हो बस वही सही है
दुख और सुख दोनों रातों मे,उसको जाम पिलाते देखा.
बहुत खूब ग़ज़ल,
हाइकु भी बहुत पसंद आये, ख़ास तौर पर ये वाले:
वाह रे देश
गरीबी पाती भूख
मूर्ति को दूध.
मेरा ये देश
कितने परिवेष
फिर भी एक.
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