दो तीन दिन पहले भाई फ़ुरसतिया जी एक पोस्ट हवाई अड्डे से दागे थे, पढ कर मन इतना आन्नदित हो गया और एक नये उत्साह के साथ हमने भी ठाना कि हम भी अपनी पोस्ट अगली हिन्दी की पोस्ट कही एतिहासिक जगह बैठ कर लिखेंगे और हमने यह पोस्ट हवाई जहाज मे बैठकर लिख डाली. रात नौ बजे टोरंटो से हवाई जहाज रवाना हुआ लंदन जाने के लिये और जैसे जैसे घडी मे रात घिरती जा रही थी, सूरज चडता जा रहा था और जब घडी मे रात के दो बज रहे थे, तब तक सुरज पूरे शबाब पर था, ना जाने बाहर कितना बजा है, उतर कर पूछ भी नही सकते.अब लंदन मे ही उतर कर पूछूँगा.तब तक एक बडी प्रसिद्ध अंग्रेजी कविता का के भावार्थ मे अपना नज़रिया पेश करता हूँ:
हमेशा की तरह, पहले मूल कविता अंग्रेजी मे और फ़िर मै:
Footprints in the Sand
One night I dreamed
I was walking along the beach with the Lord.
Many scenes from my life flashed across the sky.
In each scene I noticed footprints in the sand.
Sometimes there were two sets of footprints,
other times there were one set of footprints.
This bothered me because I noticed
that during the low periods of my life,
when I was suffering from
anguish, sorrow or defeat,
I could see only one set of footprints.
So I said to the Lord,
You promised me Lord,
that if I followed you,
you would walk with me always.
But I have noticed that during the most trying periods of my life
there have only been one set of footprints in the sand.
Why, when I needed you most, you have not been there for me?
The Lord replied,
The times when you have seen only one set of footprints in the sand,
is when I carried you.
Written By: Unknown
वो कदमों के निशां
एक रात मै स्वपन लोक मे,सागर तट पर टहल रहा था
गिरधर मेरे साथ साथ मे, चर्चा से मन बहल रहा था.
जीवन भर की ढेरों बातें, कुछ मीठी कुछ खट्टी यादें
सबका ब्योरा नील गगन पर,चलचित्र सा चल रहा था.
हैरत से मै देख रहा हूँ, जीवन पथ पर कदम निशां
कहीं पे दो और कहीं अकेले, जीवन ऎसे चल रहा था.
सोचा जब तब रुठ के बोला, इंसानों से निकले तुम भी
साथ निभाने का वादा कर, तू भी मुझको छल रहा था.
सुख मे मेरे साथ चले तुम, दुख मे कसा किनारा हमसे
बात सुनी गिरधर मुस्काये, मेरा मन तो मचल रहा था.
तुझको इस जीवन मे जब भी, गम ने आकर घेर लिया
तुझको अपनी गोद उठाये,वो मै ही तो चल रहा था.
--नज़रिया: द्वारा समीर लाल 'समीर'
अब आगे कहीं और लिखा जायेगा, तब तक के लिये नमस्कार.
सोमवार, मई 29, 2006
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11 टिप्पणियां:
बहुत खूब सफरिया पोस्ट है !
बहुत खूब!! जबलइपुर जा रहे है क्या!!
भारत मे स्वागत की तैयारी करें?
क्या बात है, अब भारत मे भी उड़नतश्तरी दिखेगी,भारत से पहले आबूधाबी मे भी।
समीर भाई, आपकी यात्रा मंगलमय हो। आपका काम नही कर सका हूँ, क्योंकि मै अपने मित्र की इमेल के जवाब का इन्तजार कर रहा हूँ। आशा है आप बुरा नही मानेंगे।
इन्डिया मे मिलते है, रूबरू ना सही, फोन पर ही सही।
अति सुन्दर, समीर जी। आपकी भारत यात्रा मन्गलमय हो।
अरे इतनी भारी कविता लिख रहे थे, हवाई जहाज तो पूरा हिलता रहा होगा इसके वज़न के कारण।
भारत यात्रा मंगलमय हो।
भारत पहुंच कर उडन तशतरी को बहाल रखें। भारत को हम परदेसियों का सलाम कहना :)
बहुत खूब समीर जी, आपकी यात्रा मन्गलमय हो।
SHUAIB जी की तरह भारत को हम परदेसियों का सलाम कहना :)
अच्छा लगा पढकर। अब कृपया हमारे ब्लोग पर भी नजर डालिये और बताइये कि कैसी है हमारी लेखनी।
बुरा ना मानीयेगा हमारी बातों का।
निशान्त
...NYSH Space
'अब आगे कहीं और लिखा जायेगा'
हम सब आगे का इन्तजार कर रहें हैं
क्या कविता लिखते है आप, वाह! अंग्रीजी को आर्चीज़ के पोस्टर पर कहीं पढ़ा था पर आपने हिन्दी में इतने रोचक ढंग से डाला कि बस शब्द नही हैं।
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