शनिवार, मई 20, 2006

अनुगूँज १९ : संस्कृतियाँ दो और आदमी एक

Akshargram Anugunj
फ़िर एक बार अनुगूँज मे हिस्से लेने की कोशिश कर रहा हूँ, वही अपने तरीके से. मेरी समझ से संस्कृतियों की अच्छाई बुराई के प्रति लोगों का नजरिया वक्त के हिसाब से बदलता रहता है, इन्ही को दर्शाती मेरी प्रस्तुति, कबीर दास के दोहे के साथ:


चलती चक्की देख के,दिया कबीरा रोय,
दुई पाटन के बीच मे,साबुत बचा ना कोय

साबुत बचा ना कोय, आ कनाडा मे बस गये
जवानी के सब दिन, बडी ऎश मे कट गये
कह समीर अब क्यूँ, वही सब बातें हैं खलती
बिटिया भई सयानी, उस पर एक ना चलती.

जब उम्र बढी तब, यह बात समझ मे आई
अपने कल्चर की कहें, हर बात अलग है भाई
दिल करता है चलो, अब भारत मे बस जायें,
बिटिया कहिन, जाना है तो आप अकेले जायें.

--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

15 टिप्‍पणियां:

उन्मुक्त ने कहा…

बहुुत खूब

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

अति सुन्दर!!

Udan Tashtari ने कहा…

धन्यवाद, उन्मुक्त जी और नितिन जी.

संजय बेंगाणी ने कहा…

अगर हैं इतनी ही वहां बुराई,
जाकर क्यों बसे यहां से भाई ?
अगर हमारी संस्कृति हैं इतनी अच्छी,
फिर क्यों नहीं आना चाहती आपकी बच्ची?

Manish Kumar ने कहा…

समीर जी जिंदगी के इतने वर्ष आपने विदेश में गुजारे हैं इसलिये इस विषय पर आपसे एक विस्तृत लेख की उम्मीद थी । बिटिया ठीक ही तो कहती है आखिर नई पीढ़ी जो विदेशमें पली बढ़ी हो वो तो यही कहेगी ही ।

प्रेमलता पांडे ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति है।
प्रेमलता

Udan Tashtari ने कहा…

संजय भाई

बहुत सुंदर काव्यात्मक प्रश्नावली है, यह तो मात्र एक चित्रण है इन दो पाटों मे पिसती बहुतेरी मानसिकताओं का.वैसे तो यह मेरी कहानी नही है मगर फ़िर भी दिल लौट जाने को ही करता है.

समीर लाल

Udan Tashtari ने कहा…

मनीष भाई

मै यहाँ भारत से बाहर ६ वर्षों से ही हूँ, मगर दिल मे जल्द लौट जाने की प्रबल इच्छा है.

समीर

Udan Tashtari ने कहा…

धन्यवाद, प्रेमलता जी.

Basera ने कहा…

संजय भाई, मैं आपके प्रश्न से सहमत नहीं हूं। जो जहां पला बड़ा होता है, उसका मन वहां से हमेशा के लिए टूट नहीं पाता। समीर जी भारत में पले बड़े हुए, उनकी बच्ची कनेडा में (ये मानकर कि ये उनकी कहानी है)। दोनो सही हैं। इसमें सांस्कृति को बीच में लाना मुझे अच्छा नहीं लगता।

Udan Tashtari ने कहा…

रजनीश भाई

संजय भाई ने तो मात्र कोतुहलवश प्रश्न पूछा है. आप का कथन भी सही है, जहाँ भी हम बडे होते हैं, बचपन बितता है, उस स्थान से विशेष लगाव स्वभाविक होता है, अब वो स्थान कही भी हो.

समीर लाल

ई-छाया ने कहा…

क्या बात है समीर जी।

Udan Tashtari ने कहा…

धन्यवाद, छाया भाई.

अभिनव ने कहा…

समीर भाईसाहब,
कविता में बड़ी सच्ची बात कह गए आप, ना जाने कितने प्रवासी माता पिता इन भावों में स्वयं का चित्र देखने में सक्षम होंगे।
दिल करता है चलो, अब भारत मे बस जायें,
बिटिया कहिन, जाना है तो आप अकेले जायें।

ई-छाया ने कहा…

आपने तो हमारी बात का अनुमोदन कर दिया।