भारत-दुबई यात्रा हमेशा की तरह मंगलमयी, शुभकारी एवं सुखदायी रही.धन्य हो इस ब्लाग का, धन्य हो ब्लागिंग और धन्य हो ब्लागर्स...कालेज के जमाने के बाद पहली बार इस माध्यम ने करीबी मित्रों टाईप की व्यवस्था फिर से की है.वरना तो बस सब व्यवसायिक या स्वार्थवश...नतमस्तक हूँ ब्लाग का यूँ कहें चिठ्ठाकारी का.
इस माध्यम से, बातचीत हुई:
जीतू भाई(नारद) जितेन्द्र चौधरी से-दुबई मे फोन से कुवैत से और भारत जबलपुर मे भोपाल से फोन पर.
शोयेब भाई से दुबई मे
संगीता मनराल जी से दिल्ली मे-ट्रेफ़िक मे फंसी हुई थी फिर भी फोन उठा ही लिया और फिर मिलने की बात भी हुई..गल्ती मेरी, मुलाकात नही हो पाई.
अभिरंजन कुमार जी-बात हुई, मुलाकात का हमारा राजनितिक वादा राजनितिक ही रह गया.
विजेन्द्र विज-ना बात हुई ना मुलाकात हुई-लखनऊ भाग गये एन समय पर-खैर आगे कभी.
सागर चन्द्र नाहर जी-बिना फोन नम्बर दिये बात करना चाहते थे-हा हा-जैसा होना था हुआ-बात नही हुई.
पंकज बेगानी-खाने की थाली लिये बैठे रहे-हम नही गये बस फोन पर बात हुई-मगर मजा बहुत आया.
संजय बेगानी-पतली आवाज़ के धनी-बस फोन पर बात-इंतजार करते रहे हमारे आने का-और हम कलटी कर गये.
रवि कामदार-ना तय था ना बात हुई.
फ़ुरसतिया: क्या बतायें, बात भी और मुलाकात भी.
पूर्णिमा वर्मन जी-बात भी और मुलाकात भी.
अमित गुप्ता-फोन नम्बर पाने की चाह पूरी नही हुई वरना बात करने की इच्छा बहुत थी.
प्रतीक पांडे-आगरा जाना था, भाई के नम्बर के लिये ईमेल किया, कोई जवाब नही आया, मगर फिर जाना भी नही हो पाया तो कोई चिंता नही.
अब सुनो, हम तो फुरसतिया से मिल कर बहुत ही हद कर दिये.पहली बार जब आगरा गये थे, आगरा का किला देखे और एक ही दिन को गये थे, फिर बहुते पछताये, क्यों सिर्फ़ एक दिन को आये.वही फुरसतिया से मिल कर लगा क्यों सिर्फ़ एक दिन को आये.बडी औसत काया-ना मोटे ना पतले, ना गोरे ना काले, ना लम्बे ना नाटे, ना सुंदर ना बदसुरत मगर इन सब के बावजूद ऎसी विलक्ष्ण प्रतिभा के धनी. क्या लेखनी है कि अच्छे अच्छे पानी भरें भाई.देख कर तो मानने को कोई तैयार ना हो कि यही फुरसतिया है जो चिठ्ठाजगत का पितामह, महा ब्लागर, बडे भईया, और ना जाने किन किन नामों से नवाज़ा गया है.
अब हमारे और हमारे परिवार के बारे मे तो पूरा उन्होंने लिख ही दिया है मगर उन्हे पंकज बेगानी जी की क्लास अटेंड करने की सलाह दी जाती है, हमारी फोटो तो बच गई क्योंकि हम सफ़ेद कुर्ता पजामा पहने थे नही तो अंदाज लगाना पडता..अरे भाई, जरा ब्राईटनेस पर ध्यान दो, वरना हम तो अंर्तध्यान हो जाते हैं.
वैसे हमसे गल्ती हो गई, आगे के लिये सभी को सलाह है: इतनी बडी शक्शियत से मिलना हो तो दो तीन को जाना, एक दो मुलाकात मे तो हवा भी नही लगेगी कि मिले कि नही.
क्या चीज़ हो भाई, फुरसतिया, कौन रचे है तुम्हे....नमित हूँ...आगे और भी बताऊँगा इनकी पोल.
चलते चलते एक शेर:
फिर फुरसतिया जी हमसे कुछ अरसे को दूर हो गये और अनूप भार्गव जी का एक एतिहासिक शेर मै याद करने लगा:
"कल रात एक अनहोनी बात हो गई
मैं तो जागता रहा खुद रात सो गई"
लेकिन अब सो जाता हूँ, वरना नौकरी चली जायेगी.
समीर लाल 'समीर'
बुधवार, अगस्त 09, 2006
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12 टिप्पणियां:
आहा! उडनतश्तरी फिर घरघरा उठी हैं. आपकी कमी चिट्ठाजगत में खल रही थी.
बडे दिनों बाद ! स्वागत है
आप नही आए पर चलो बहार तो आई।
स्वागत समीर भाई की उड़नतश्तरी का।
वैलकम बैक। अब जब थकान दूर हो चुकी हो और नींद पूरी हो चुकी हो तो फिर हो जाए, लाइन से आठ दस लेख।
आप को वापिस पाकर बहुत प्रसन्नता हुई। स्वागत है।
फिर से स्वागत! हम अपने खिलाफ फैलाई जा रही अफवाहों (विलक्ष्ण प्रतिभा के धनी,चिठ्ठाजगत का पितामह, महा ब्लागर, बडे भईया)का जवाब देने का विचार कर रहे हैं। इस बीच आपकी उडनतस्तरी प्रयोग किये थे। आप अब उड़ाइये।
लंबे अंतराल के बाद आपको वापस ब्लॉगजगत पर देख कर खुशी हुई ।
आपकी चिट्ठी पढ़ कर अच्छा लगा
चिट्ठा जगत के द्रोणाचार्य जी आपका पुन: पदार्पण पर हार्दिक स्वागत है। आपकी कमी खल रही थी इतने दिनों नहीं लिखने की सजा यह है कि अब रोजाना कम से कम एक लेख लिखना ही होगा ।
स्वागत है।
हम सब आपको बहुत "मिस" किये।
कितनी टिप्पणियों का नुसकान (आई मीन नुकसान) हुआ है मालूम है आपको।
ब्याज समेत देनी पडेंगी जी।
आपका ताज़ा क्लाम (लेख) पढते हुए खयाल आया कि अगर आप ये भी लिख देते
"शुऐब से कहा था कि अगले सप्ताह दुबई आने वाला हूं - आकर फोन करूंगा - और दुबई पहुंचे सप्ताह होगया और वहां से जाते जाते खयाल आया कि अरररे शुऐब को फोन करना था.........." ;) :) धन्यवाद आपने फोन तो किया :)
ऐतिहासिक शेर को याद रखनें के लिये धन्यवाद । स्वागत है आप का फ़िर से । मुलाकातों के इस सिलसिले मे लगता है सितम्बर के आखिरी सप्ताह में तुम से मिलना होगा । उत्सुकता से इंतज़ार हो रहा है ...
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