गुरुवार, मार्च 23, 2006

आफिस कुण्डलियाँ और दोहा: एक प्रयास

आफिस कुण्डलियाँ और दोहा मात्र एक प्रयास है, अनुभूति की साईट पर दिये सारे नियमों का पालन किया है. कुण्डलियाँ और दोहा पर काफ़ी विस्तार से समझाया गया है यहाँ देखें: http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm

मगर मेरे प्रयास को यहाँ देखें:

आफिस कुण्डलियाँ
॥१॥

काम जरुरी ना करो, देर शाम को जाये
न माना पछतायेगा, हानि बहुत कराये.
हानि बहुत कराये कि जब सूरज ढल जाये.
भर लो रम का ज़ाम, साथ सोडा मिलवाये.
बीच बीच मे चुनगे फिर खाना तुम पान
सोकर उठो जब चैन से, तबहि करना काम.

॥२॥

आफिस मे बस कीजिये,उतना सा ही काम
नौकरी चलती रहे, शरीर करे आराम.
शरीर करे आराम जब भी मूड बना लो
कागज़ कलम निकाल और कविता लिख डालो.
कह समीर कविराय खेचो जेब से माचिस
सिगरेट लो जलाय भाड मे जाये आफिस.

आफिस दोहा

नौकरी वहां चाहिये, काम न हो अधिकाय.
मै बैठा कविता रचूँ,बौस समझ ना पाय. Indli - Hindi News, Blogs, Links

15 टिप्‍पणियां:

इंद्र अवस्थी ने कहा…

Ai hai!
kya baat hai!

Theluwa

Udan Tashtari ने कहा…

ठेलुवा जी

आपको पसंद आयी, धन्यवाद.

समीर लाल

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

अति सुन्दर!!

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा नितिन जी, आपने पसंद किया.

समीर लाल

renu ahuja ने कहा…

ओफ़िस की कुंड़़लियां एसी मन को बहुत लुभाए,
काम के संग संग ही कविता कैसे रची जाए,
कविता कैसे रची जाए, बड़ा ही सरल उपाय,
किव समीर की कुंड़़ली में बखान मिल जाए
आनंद भए काम पर भी औ घर को वापि स
कविता की कविता और ओफ़िस का ओफ़िस -

ओफ़िस जैसे विषय पर आपकी हल्कि फ़ुल्की और सरल अभिव्यक्ति वाली कुंड़्लिया अच्छी लगी- हमनें मात्र प्र्तिक्रिया दी है, और हमें कुंड़्ली लिखने का ग्यान नहीं है- रेणू आहूजा.

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है, रेणू जी. चार चाँद लगाती आपकी पंक्तियां लाजबाब हैं, बधाई.
समीर लाल

Dawn ने कहा…

Wah!!! aapki kavita aur dohon ne to waqai...parhkar maza aagaya

daad kabool karein

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शुक्रिया, सेहर 'फ़िजा' जी.

समीर लाल

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सर! बहुत मज़ा आया पढ़ कर।

सादर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Rakesh Kumar ने कहा…

जय हो, जय हो, समीर लाल जी की जय हो.
६ वर्ष पूर्व की प्रस्तुति पढकर मजा आ गया जी.

यशवंत जी की हलचल का आभार.

निर्मला कपिला ने कहा…

नौकरी वहां चाहिये, काम न हो अधिकाय.
मै बैठा कविता रचूँ,बौस समझ ना पाय.
अरे वाह ऐसी नौकरी मिले तो मुझे भी बतायें\ कुन्डलियाँ भी कमाल की हैं\ शुभकामनायें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सही चित्रण है ऑफिस का ..

Monika Jain ने कहा…

nice :)
welcome to my blog :)

आशा बिष्ट ने कहा…

sundar rachna