मगर मेरे प्रयास को यहाँ देखें:
आफिस कुण्डलियाँ
॥१॥
काम जरुरी ना करो, देर शाम को जाये
न माना पछतायेगा, हानि बहुत कराये.
हानि बहुत कराये कि जब सूरज ढल जाये.
भर लो रम का ज़ाम, साथ सोडा मिलवाये.
बीच बीच मे चुनगे फिर खाना तुम पान
सोकर उठो जब चैन से, तबहि करना काम.
॥२॥
आफिस मे बस कीजिये,उतना सा ही काम
नौकरी चलती रहे, शरीर करे आराम.
शरीर करे आराम जब भी मूड बना लो
कागज़ कलम निकाल और कविता लिख डालो.
कह समीर कविराय खेचो जेब से माचिस
सिगरेट लो जलाय भाड मे जाये आफिस.
आफिस दोहा
नौकरी वहां चाहिये, काम न हो अधिकाय.
मै बैठा कविता रचूँ,बौस समझ ना पाय.
15 टिप्पणियां:
Ai hai!
kya baat hai!
Theluwa
ठेलुवा जी
आपको पसंद आयी, धन्यवाद.
समीर लाल
अति सुन्दर!!
अच्छा लगा नितिन जी, आपने पसंद किया.
समीर लाल
ओफ़िस की कुंड़़लियां एसी मन को बहुत लुभाए,
काम के संग संग ही कविता कैसे रची जाए,
कविता कैसे रची जाए, बड़ा ही सरल उपाय,
किव समीर की कुंड़़ली में बखान मिल जाए
आनंद भए काम पर भी औ घर को वापि स
कविता की कविता और ओफ़िस का ओफ़िस -
ओफ़िस जैसे विषय पर आपकी हल्कि फ़ुल्की और सरल अभिव्यक्ति वाली कुंड़्लिया अच्छी लगी- हमनें मात्र प्र्तिक्रिया दी है, और हमें कुंड़्ली लिखने का ग्यान नहीं है- रेणू आहूजा.
क्या बात है, रेणू जी. चार चाँद लगाती आपकी पंक्तियां लाजबाब हैं, बधाई.
समीर लाल
Wah!!! aapki kavita aur dohon ne to waqai...parhkar maza aagaya
daad kabool karein
बहुत शुक्रिया, सेहर 'फ़िजा' जी.
समीर लाल
सर! बहुत मज़ा आया पढ़ कर।
सादर
कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जय हो, जय हो, समीर लाल जी की जय हो.
६ वर्ष पूर्व की प्रस्तुति पढकर मजा आ गया जी.
यशवंत जी की हलचल का आभार.
नौकरी वहां चाहिये, काम न हो अधिकाय.
मै बैठा कविता रचूँ,बौस समझ ना पाय.
अरे वाह ऐसी नौकरी मिले तो मुझे भी बतायें\ कुन्डलियाँ भी कमाल की हैं\ शुभकामनायें।
सही चित्रण है ऑफिस का ..
nice :)
welcome to my blog :)
sundar rachna
एक टिप्पणी भेजें