सोमवार, मई 29, 2017

आपकी मानहनि कित्ते की हुई?


शाम टहलने निकला था. सामने से आती महिला के कारण तो नहीं मगर उसके साथ पतले से धागेनुमा किसी डोरी में बँधे बड़े से खुँखार दिखने वाले कुत्ते के कारण वॉक वे छोड़ कर किनारे घास पर डर कर खड़ा हो गया. कुत्ता मेरे सामने से बिना मुझे देखे निकल गया मगर शायद वह महिला मेरा डर भाँप गई और मुस्कराते हुए बोलीं- डरो मत. यह मेरा कुत्ता है, वेरी हम्बल. किसी से कुछ नहीं कहता और न भौंकता है. मुझे उस कुत्ते की स्थिति पर थोड़ी दया भी आई मगर यूँ तो कितनी ही महिलाओं के पतियों को भी इसी हाल से गुजरते देखा है तो किस किस पर रोईये का भाव ओढ़ कर पहले तो मैं चुप रहा.
फिर महिला का बातूनी नेचर देख कोतुहलवश उससे पूछ ही लिया कि क्या कभी घर में कोई चोर घुस आये तब भी नहीं भौंकेगा या काटेगा उसे?
महिला पुनः मुस्कराई और बोलीं- कहा न, मेरा कुता है. वेरी हम्बल..न भौंकता है और न काटता है. दूसरे कुत्ते इस पर भौंकते भी हैं तो ये मेरे पीछे आकर छुप जाता है मगर मजाल है कि कभी भौंका हो या काटा हो किसी को. मेरा कुत्ता है, वेरी हम्बल!!
बहुत कोशिश की कि अपनी टहल जारी रखूँ मगर रहा नहीं गया..मूँह से निकल ही गया कि इससे अच्छा होता कि आप इसके बदले में बकरी पाल लेती..कम से कम रोज १.५ से २ लीटर दूध ही दे देती.बाकी का स्वभाव, व्यवहार तो बिल्कुल ऐसा ही रहता.
मुझे लगा था कि उन्हें मेरा सुझाव पसंद आयेगा मगर वो तो उल्टा ही भड़क गई. कहने लगी ऐसे स्वभाव, व्यवहार देख कर हिसाब लगाते हो तो हिम्मत है तो अपने उनको जाकर कहो कि ५६ इंच के सीने के बदले ५६ इंच की जुबान का दावा किया करें.
मुझे गुस्सा आ गया. मैने कहा आपको उनके बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिये. हम आप पर मानहानि का दावा कर देंगे उनकी तरफ से. वो भी गुस्से में थी तो कहने लगीं मैं भी कर दूँगी कि इन्होंने मेरे कुत्ते को बकरी कहा.
मैने कहा कि कित्ते की मानहानि हुई मैडम आपकी? वह बोलीं कि खुद ही गिन लो..२ लीटर दूध रोज के हिसाब से बकरी कम से कम १८ साल तक तो जिन्दा रहेगी ही, तो कितना हो जायेगा मय ब्याज के? और तुम्हारी कित्ते की हुई?
मैने साफ कह दिया कि १० करोड़ से कम का तो प्रश्न ही नहीं उठता..वो कहने लगी १० करोड़ किस हिसाब से, वो तो बताओ?
मैने कहा कि ५६ ईंच ५६ ईंच करती हो और इतना भी नहीं जानती कि उनसे कोई हिसाब नहीं माँग सकता..उन्होंने कह दिया कि १० करोड़ तो १० करोड़..बस्स!! ऐसे हिसाब देने लग गये तब तो दिन भर खाता बही लेकर हिसाब ही करते रह जायेंगे..विकास कब करेंगे, विदेश कब जायेंगे, भाषण कब देंगे?
नोट बंदी से काला धन समाप्त हो गया. सब भ्रष्टाचार खत्म हो गये. कश्मीर शांत हो गया..इसका कैसा हिसाब? उन्होंने कह दिया कि हो गया मतलब हो गया. अब चाहे आपको जो दिखे..आँखों देखे पर नहीं, रेडियो पर सुने पर विश्वास करना सीखो..वे वहीं से बोलते हैं. हमारे यहाँ उनसे हिसाब मांगना पाप माना जाता है..यह धर्म के खिलाफ है.
वो घबरा कर माफी मांग कर निकल गई.
मुझे क्या, मैं तो टहलने निकला था सो टहल के वापस आ गया.

-समीर लाल ’समीर’

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शनिवार, मई 27, 2017

मानहानि कि अपमान में इजाफा


हम गवां उसी चीज को सकते हैं जो हमारे पास होती है. जैसे अगर रुपया है ही नहीं, तो उसे आप गवां कैसे सकते हैं? बाल अगर हैं ही नहीं सर पर, तो उसकी हानि कैसे होगी.
मात्र मान (इज्जत) ऐसी चीज है जिसकी हानि उसके बिना हुए भी होती रहती है. यह हानि भी संसद की केन्टीन में सस्ते खाने से लेकर हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में फ्री चलने की तरह ही सिर्फ नेताओं के लिए आरक्षित है.
जैसे व्यापार में हुये लॉस को निगेटिव प्राफिट भी कहते हैं, वैसे ही मानहानि को आपमान में वॄद्धि भी कह सकते हैं. लेकिन नेताओं को पब्लिक में यह कहना अच्छा नहीं लगता, इस हेतु मानहानि को जुमले के तौर पर इस्तेमाल किये जाने का फैशन है.
जैसे ही कोई विरोधी नेता किसी नेता के अपमान में वृद्धि करता है, नेता तुरंत कोर्ट में मानहानि का दावा ठोंक देता है मय हर्जाने में १० करोड़ के.
अब हैरान कोर्ट होती है और पौ बारह मीडिया की. अव्वल तो यह आँकना कि जो इनके पास था ही नहीं, उसकी हानि कैसे हो गई और शोध का विषय यह कि इस हानि का मूल्य १० करोड़ कैसे आँका गया?
खैर मानहानि तो जाँच के बात पता चली कि इनके अपमान की वॄद्धि को नाम दिया गया था. उसने इन्हें काला चोर कह दिया था. जबकि पूर्व में वे मात्र चोर जाने जाते थे. यहाँ तक तो बात समझ में आई. चोर ही कहते रहते तो न इनके अपमान मे वृद्धि होती और न ही मानहानि का मुकदमा झेलना पड़ता. अब शोध विषय बच रहा कि दस करोड़ की कीमत मात्र चोर से काला चोर प्रमोट हो जाने पर? वो कैसे?
नाम न बताये जाने की शर्त पर उनके खासमखास ने खुलासा किया कि कोई नेता जी पर भूले से भरोसा करने वाला व्यापारी उनके के पास १० करोड़ की निगेटिव सफेद रकम सुरक्षा की दृष्टि से कुछ समय के लिए इनके पास रखवा कर जाने वाला था ताकि आयकर के छापे का मौसम गुजरते ही वापस ले जायेगा. इससे सुरक्षित स्थान और भला क्या हो सकता था. उसने जब सुना कि नेता जी काले चोर हैं तो उसने मन बदल दिया और वो रकम कहीं और ठिकाने लगा दी.
नेता जी पास रख कर जाता तो ऐन केन प्रकारेण उसे नेता जी दबा ही लेते. अतः मानहानि के हर्जाने के रुप में उनको यह दिलाये जाये. बात तो पते की है.
तुलसी दास कह गये हैं:
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ..
बिधि मतलब विधाता और हमारे यह नेता खुद को किसी विधाता से कम तो कभी आँकते नहीं इसलिए जसु अपजसु याने मान अपमान, हानि लाभु मतलब हानि लाभ...सब विधाता का खेल है..
आप आम जन बस तमाशा देखें,ध्यान रहे कि यह खेल आपके लिए नहीं है.

-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे अखबार में मई २८, २०१७ को प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/19363813

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शनिवार, मई 20, 2017

शीर्षक विहीन


जनता के बिना किसी नेता की कल्पना करना भी संभव नहीं. नेता होने के लिए जनता का होना जरुरी है. भक्त न भी हों तो भी चलेगा. भक्त नेतागिरी में नया कान्सेप्ट है. इससे पहले इनके बदले पिछ्लग्गु एवं चमचे हुआ करते थे. भक्त भगवान के होते थे. अब पिछ्लग्गु ही भक्त कहलाते हैं या नेता भगवान हो लिए हैं, यह तो ज्ञात नहीं मगर युग बदला जरुर है. वैसे नेता की कल्पना कुर्सी, माईक, भाषण, मंच के बिना करना भी कहाँ संभव है. भाषण भले वक्त के हिसाब से बदलता रहे मगर रहेगा लोक लुभावन और जुमलेबाजी से भरपूर ही. बेहतरीन वादों, अपवादों, आक्षेपों से भरापूरा भाषण सड़क से संसंद तक का मार्ग प्रशस्त करता है.
खैर, छोड़िये इन नेताओं की. सोच कर देखें बिना बहते पानी की नदी? नहीं सोच सकते न? अब वो दिल्ली की यमुना को मत बीच में लाईये. वो अब नदी नहीं, राजनीति का माध्यम है जैसे कश्मीर एक राज्य न होकर...और कर्नाटक में कावेरी का जल पानी न होकर..  और हाँ, भारतीय हैं तो चुप तो रह नहीं सकते..सीधे बात मान जायें तो नाक न कट जायेगी..इसलिए बोलेंगे जरुर कि आग का भी दरिया होता है..सुना नहीं है क्या?  
ये इश्क नहीं आसां, इतना तो समझ लीजिये
एक आग का दरिया है ,और डूब के जाना है..
अब आपको क्या बतायें..यह वाला दरिया शायरों की उड़ान है, उनका क्या वो तो महबूबा के बदन पर आसमान से चाँद और सितारें लाकर टांक दें. शायर फेंकने पर आ जाये तो उनके सामने तो नेता के जुमले भी मंच छोड़ कर भाग खड़े हों. ५६ इंच का सीना क्या टिकेगा भला उस सीने के सामने जिस सीने में बंदे ने जमाने भर का दर्द छिपा रखा है अपनी दिलरुबा को खुश देखने के लिए..
ऐसी ही क्या कभी बिना शीर्षक के कुछ लिखा जा सकता है? लेखक को हर वक्त एक विषय की तलाश रहती है और उस विषय की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक जानदार शीर्षक की. बिना शीर्षक आप ५०० शब्दों का भी अगर कुछ लिख कर छाप दो, तो कोई क्यूँ पढ़ना शुरु करेगा? उसे मालूम तो पड़ना चाहिये कि क्या पढ़ रहा है!!
इसलिए आज चूँकि हमारे पास शीर्षक नहीं है.. याने की शीर्षक विहिन हैं..अतः सोच रहे हैं कि कुछ न लिखें..कौन पढ़ेगा ऐसे में?
मगर ये क्या, आपने तो फिर भी पढ़ ही लिया..आप जैसे प्रबुद्ध पाठक होते ही कितने है इस जहां में..  

-समीर लाल ’समीर’
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गुरुवार, मई 18, 2017

कृप्या यहाँ पर अपना ज्ञान न बांटे, यहाँ सभी ज्ञानी हैं


हमारे शहर की पान की दुकान पर एक बोर्ड लगा हुआ है कि कृप्या यहाँ पर अपना ज्ञान न बांटे, यहाँ सभी ज्ञानी हैं.
ज्ञानी के ज्ञानी होने के लिए मूर्खों का होना अति आवश्यक है. सोचिये अगर सभी अच्छे हों और कोई बुरा हो ही न तो अच्छा होने की कीमत तो दो कौड़ी की न रहेगी.
एक अमीर दूसरे अमीर को सलाम नहीं ठोकता. अमीर को सलाम ठोकने के लिए गरीब का होना आवश्यक है.
यह बड़ी बेसिक सी बात है. अब यदि कोई इतना भी न समझे तो हम क्या करें.
एक जमाना वो था कि जब हम कहीं यदि हवाई जहाज से जाते थे तो पूरे शहर को यह खबर जाने के एक महिने पहले से और आने के एक महिने बाद तक किसी न किसी बहाने से सूचित करते रहते थे. हालत ये थे कि धोबी को भी कपड़े देते वक्त हिदायत दे देते थे कि समय पर धोकर ला देना, फलानी तारीख को बाहर जा रहे हैं हवाई जहाज से. और एक जमाना आज का है कि पता चलता है वो धोबी ही अपने से अगली सीट पर बैठा हवाई जहाज से शिमला चला जा रहा है छुट्टी मनाने स्लिपर पहने.
महत्वपूर्ण की महत्ता ही अमहत्वपूर्ण लोगों से होती है. यदि सभी महत्वपूर्ण हो लिए तब तो समारोहों में सामने वाली कुर्सियों के लिए मारा काटी मच जायेगी. लाल किले पर १५ अगस्त को गणेश खोमचा वाले सबसे सामने बैठे हैं और मित्र बराक ओबामा स्टैंड में भीड़ के बीच खड़े भाषण सुन रहे हैं.
रेडिओ पर यह सुनते ही कि अब समय आ गया है, जब वीआईपी संस्कृति को बदलकर ईपीआई (हर व्यक्ति महत्वपूर्ण) कर दिया जाए, रमलू चपरासी घर के रास्ते पर सीना चौड़ा किये निकल पड़ा और सामने से आते रिक्शे वाले को चांटा रसीद कर दिया. देखते नहीं कि हम आ रहे हैं. तुमको हमारे रास्ते में नहीं आना चाहिये, हम महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं. रेडिओ नहीं सुनते क्या? अभी बोल कर चुप भी न हो पाये थे रिक्शे वाले ने पलट कर चांटा रसीद कर दिया..हम भी महत्वपूर्ण है, तुमको रास्ता छोड़ना चाहिये था. रेडिओ ध्यान से सुना करो.
अजब सा माहौल पैदा कर दिया है इनकी इस घोषणा ने.
जिसे देखो वो ही महत्वपूर्ण हो गया मानो कि महत्वपूर्ण न हुए हमारे जमाने के एल आई सी एजेन्ट हो गये..जिसे देखो वो ही एल आई सी एजेन्ट होता था.
अब तो जी कर रहा है कि जनहित में खुद से ही मना कर दूँ कि जी, हम महत्वपूर्ण नहीं हैं...कम से कम सामने वाले की महत्ता ही बन जाये.
-समीर लाल ’समीर’



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शनिवार, मई 13, 2017

टॆलीफोन



टॆलीफोन विषय पर यह निबंध क्लास ५ की रंजू की उत्तर पुस्तिका से उड़ाया है.
टॆलीफोन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं. एक आई फोन, दूसरा सेमसंग और तीसरा अन्य.
इसे ऐसे समझे जैसे भारत में तीन प्रकार के लोग होते हैं- एक नेता, दूसरे उनसे गाढ़े संबंध रखने वाले व्यापारी और बाकी के अन्य.
आई फोन एक स्टेटस सिंबल..सब कुछ इन्हीं के इर्द गिर्द नाचता, सेमसंग गुणवत्ता का प्रतीक ये न टेका लगाये तो स्टेटस वालों की स्टेटस भी न बन पाये और बाकी चायनीज फोन से लेकर नोकिया तक अन्य..हैं तो ठीक ..न हैं तो ठीक..काम हैं आई फोन और सेमसंग को उनके उचित स्थान पर बनाये रखना.
फोन हमारे जीवन में बहुत उपयोगी हैं. फोन का मुख्य इस्तेमाल स्लेफी लेना है. इस्तेमाल की द्वितीय पायदान पर स्लेफी को शेयर करने से लेकर औरों की फोटो खींचना, चैट, व्हाटसएप, एस एम एस, फेसबुक, नेट, इन्स्टाग्राम, ट्वीटर, पिन, वेब सर्फिंग, नेवीगेशन, स्काईप, फेस टाईम आदि है. इस्तेमाल की एक प्रमुख कड़ी जो दूसरी पायदान को बराबरी से शॆयर कर रही है वो है एम एम एस बनाकर ओर बात रिकार्डिंग कर के ब्लैक मेल करना है. तीसरी पायदान पर गाने सुनना है. इसके बाद ऑन लाईन आर्डर, मूवी टिकिट,  बैंकिंग, रेल्वे से हावाई जहाज की यात्रा आदि आता है. चौथी ओर अन्य पिछड़ी पायदानों पर मौसम की जानकारी, केलकूलेटर एप के बाद ऑन लाईन पोलिंग, गेम्स और  मिस्ड काल का नम्बर आता है. अंतिम पायदान पर कुछ लोग इसका इस्तेमाल, अगर मिस्ड काल का जबाब न आये और काम अपना अटका हो तो, फोन लगा कर बातचीत के लिए भी करते हैं.
सब्जी और अन्य जरुरत की चीजें जो खराब होने और खत्म हो जाने पर खरीदी जाती हैं के विपरीत फोन नये फोन के माँडल आ जाने पर परिवार में और आपकी समाज में स्टेटस के हिसाब से खरीदा जाता है.
मैं एक आई फोन परिवार का हिस्सा हूँ. हमारे घर में मम्मी के पास लेटेस्ट आई फोन ७ है. पापा के पास उसके एक पहले वाला आई फोन ६ एस है..और उनका पुराना आई फोन ६ मेरे पास है. यह क्रम इसी क्रम में नये मॉडल आने पर बदल जायेगा जैसे की अब तक बदलता रहा है.
मम्मी के पास सेल्फी के लिए एक सेमसंग का लेटेस्ट मॉडल भी है. पापा सेल्फी कम खींचते हैं मगर उनका काम आई फोन से चल जाता है.  उनकी सेल्फी भी अक्सर मम्मी ही सेमसंग से खींच देती हैं. उनके पास एक फोटोशाँप ५०३० है जो ५० साल के इंसान को ३० साल का बना कर दिखाता है. वो अपनी और पापा की सेल्फी इस साफ्टवेयर से पास करा कर शॆयर करती हैं. मित्रों की वॉव और लाईक ही उनके जीवन का लक्ष्य है.
मेरे फेस बुक पर मेरी क्लास के बहुत बच्चे ओर २०० अलग से फ्रेंण्ड हैं. आश्चर्य है कि इनमें से ११ लोगों को मैं पर्सनली भी जानती हूँ. इट इज ए बिग एचिवमेन्ट इन दिस फोन ऐरा....आई फील प्राऊड...कितनी लकी हूँ न मैं....कभी कभी सेलिब्रेटी वाली फीलिंग आती है.
अगर ये फोन न होता तो दुनिया कितनी सूनी होती...मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती. तब मैं भला अपने बेस्ट फ्रेण्ड  राहुल से कैसे कनेक्ट हो पाती?? आई कान्ट इवन थिंक...वैसे मिली तो अभी नहीं हूँ उससे मगर उसके बिना कितना अधूरा सा होता ये जीवन!!
राहुल का सपना है कि एक दिन वो ऊबर टैक्सी चलायेगा..काश!! किसी दिन जब मैं अकेली टैक्सी बुलाने लगूँगी..तब राहुल ड्राईव करता हुआ मेरे दर पर आये..
आई एम सो एक्साईटेड...इस फोन ने जीवन को कितना रसमय बना दिया है..एक परपज दिया है जीने का..
कैसे होंगे उस युग के लोग जब आई फोन और सेमसंग नहीं रहा होगा..
मुझसे तो सोचा भी नहीं जा रहा...
-समीर लाल ’समीर’
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गुरुवार, मई 11, 2017

रंगों से भरी दुनिया में कलर ब्लाईंड समझदारी



रंगों की पहचान के मामले में भारतीय पुरुष से ज्यादा निर्धन, दयनीय और निरीह प्राणी कोई नहीं होता. हम भारतीय पुरुषों को बस गिने चुने रंग मालूम होते है जैसे नीला, पीला, लाल ,गुलाबी, भूरा, हरा, सफेद और काला आदि. ज्यादा स्मार्ट हुए तो नीला और बैंगनी में फर्क कर लेंगे या काला और सिलेटी में. इसके आगे का काम लगभग से चल जाता है जैसे हल्का, गाढ़ा या करीब करीब हरा कह कर.
हुआ यूँ एक मित्र के पास एक शो के दो पास रखे हैं और वो किसी वजह से शहर के बाहर जा रहा है, अतः मुझसे पूछा कि अगर आप और भाभी जाना चाहो तो चले जाओ. एक तो हम नये नये और फ्री का पास मिल रहा हो तो क्यूँ मना करते. हाँ कर दी. उसने अपने एक दोस्त का फोन नम्बर दे दिया और कहा कि जब ऑडिटोरियम जाने लगो तो उसे फोन कर देना. वो टिकिट भिजवा देगा वहीं.
इण्डिया से नये नये आये थे तो कमीज जो सबसे रंगीन सिलवा लाये थे, वही पहन कर निकले. ऑडिटोरियम के पास स्टेशन पर पहुँच कर फोन लगाया तो मित्र के मित्र, जो कि कनेडियन थे, ने कहा कि उनका लड़का ऑडिटोरियम की तरफ ही से निकल रहा है, आप उसको पार्किंग के सामने मिल जाना और टिकिट ले लेना. वैसे आप किस कलर की शर्ट पहने हैं, वो बता दिजिये तो मैं उसे मोबाईल पर इन्फार्म कर देता हूँ वो आपको देख लेगा और हाथ हिला देगा.
अब हमारी रंगीन कमीज फिरोजी. अंग्रेजी मे क्या बोलेंबचाव का एक ही रास्ता था कि हमने कह दिया कि आप चिन्ता न करें, आप हमें कार के बारे में बता दिजिये हम पहचान लेंगे.
पार्किंग में वो कार ले जाता तो उसे जबरदस्ती पार्किंग चार्जेज लग जाते अतः पार्किंग के बाहर सड़क पर मिलना ही तय पाया. उन्होंने बताया कि वो टील कलर की सेडान कार से आयेगा. आप हाथ हिला देना.
फोन रख लगे सोचने कि ये भला कौन सा रंग होता है? आने जाने वाली कारों का ताँता लगा था और उनमें कम से कम पाँच तो ऐसे रंग रहे होंगे कारों के, जिन्हें हमारी सीमित पहचान क्षमता कोई भी नाम देने से इन्कार कर रही थी. एक होता तो बाकी पहचान कर उसे मान लेते टील. मगर यहाँ तो अनजान रंगों की भीड़ चली जा रही थी. ऐसे में हाथ हिलाने लगे तो सब पागल ही समझेंगे हर कार को हाथ हिलाता देख कर.
दस मिनट खड़े सोचते रहे. अपनी कमीज के रंग का अंग्रेजी भी याद नहीं आ रहा था आखिरकार हार कर बेवकूफ नजर आने से बेहतर विकल्प का सहारा लिया.
उन्हें फिर से फोन लगाया और कहा कि एकाएक पत्नी की तबीयत खराब लगने लगी है. अतः तुरंत घर वापस जाना होगा. आप अपने बेटे से कह दिजिये कि वो परेशान न हो और किसी को भी पास दे दे या वेस्ट जाने दे.
पत्नी को बता दिया कि उनका लड़का कहीं जरुरी काम में फंस गया है तो आ नहीं पा रहा है. लौटना पड़ेगा.
घर आकर नेट पर अधिक से अधिक रंगों के नाम अंग्रेजी में सीखे. फिरोजी मतलब टर्काईस जान गये. टील रंग भी नेट पर देखा. खड़ी तो थी बिल्कुल उसी रंग की सेडान पार्किंग के सामने. मगर अब क्या, वो तो पास फेंक कर ४ घंटे पहले जा चुका होगा और शो भी खत्म हो चुका होगा.
अब तो मैं मर्जेन्टा, टैन, बर्गेन्डी जैसे कठिन रंग भी पहचान जाता हूँ मगर पत्नी की मूँह से सुना धानी रंग अभी पहचानना बाकी है. नेट पर मिल नहीं रहा और उससे पूँछू तो फिर वो ही अहम!! कौन बेवकूफ नजर आना चाहेगा.
वैसे, कभी सोचता हूँ कि अगर रंग होते ही न तो क्या होता?
दुनिया भले बेरंग होती मगर रंग भेदियों की जमात से तो कितनों को मुक्ति मिल गई होती. लेकिन इन्सान तो इन्सान है, तब झगड़ने का कोई और मुद्दा निकाल लेता.
-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में:

http://epaper.subahsavere.news/c/18978937
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सोमवार, मई 08, 2017

कड़ी निंदा


उनको इतना समझाया था कि चाहे भड़काऊ भाषण देकर देशद्रोह कर लो या कंपनी खोलकर करोड़ों का घोटाला कर लो या  बैंक से दूसरों की कमाई का हजारों करोड़ पैसा लेकर देश से भाग जाओ या नहीं तो गोरक्षक सेना में ही शामिल होकर गुंडागीरी कर लो..
इतना भी न बन पड़े तो लव जेहाद के नाम पर प्रेमी युगलों को मारो...या फोकट में  आते- जाते एयरलाईन के कर्मचारियों को जूते से पीट लो  कोई कुछ नहीं कहेगा. .. ज्यादा से ज्यादा कुछ माह की जेल हो जायेगी फिर छूट जाओगे ..
या फिर चाहो तो सेना के जवानों को थप्पड़ मारो या पत्थर से मारो, बदले में प्लास्टिक की गोली से गुदगुदा दिये जाओगे, बस्स!
ये भी न चले और ज्यादा ही कुछ करने का मन हो तो बलात्कार कर लो..नाबालिग हुए तो तीन साल में छूट जाओगे वरना सात साल में..या ज्यादा से ज्यादा फाँसी चढ़ा दिये जाओगे..मगर कोई कुछ कहेगा नहीं...
इन्सान सब झेल सकता है मगर अपना अपमान नहीं.... और किसी ने ज़रा सा कुछ कह दिया तो मान की हानि यानि घोर अपमान हो सकता है
इसीलिए मना किया था कि कभी ऐसा हमला न करना जिसमें बड़े लोग नाराज हो जायें और नाराज हो कर अपमानित कर दें.
बड़े लोग नाराज होते हैं तो ऐसा हिकारत भरा चेहरा बना कर कड़ी निंदा करते हैं कि लगने लगता है अरे सर!! प्लीज..गोली मार दो मगर निंदा न करो. और उस पर इतनी कड़ी निंदा..
जब जब भी ऐसी नाराजगी की बात होती है तो बड़े लोग तुरन्त बयान जारी कर कृत्य की कड़ी निंदा तो करते ही है..साथ में इतनी जोर की आवाज में मुँह तोड़ जबाब देने की चेतावनी देते हैं कि चाहे नक्सली हो या आतंकवादी, भीतर तक दहल जाता है...कड़ी निंदा से अपमानित हो अवसाद से भर कर आत्महत्या कर लेने का मन बना बैठता है.
मगर बड़े लोगों की नाराजगी की क्या कहें कड़ी निंदा पर भी नहीं रुकते...हर बार कहते हैं कि अगर अब भी न समझे...तो यहाँ तो मारेंगे ही..घर में घूस कर भी मारेंगे.
बाप रे बाप!!! इसके बाद भला वो अपने घर में रुकेंगे क्या? घर ही बदल देते होंगे पक्का!! वैसे कभी न इस पार मारा न कभी उस पार घूस कर..अतः जमीनी हकीकत का अंदाज तो है नहीं कि घर बदल देते होंगे कि नहीं?
वैसे एक बात तो है इन बन्दों की रिकवरी रेट अर्थव्यवस्था की रिकवरी रेट से बहुत तेज है.
नोटबंदी के बाद दावा था कि अब न पत्थर फिंकवाने के लिए पैसे बचे हैं प्रायोजकों के पास और न नक्सलियों के पास गोली बारुद खरीदने के...अर्थ व्यवस्था को तो खैर पूर्वावस्था में आने में अभी बरसों लगेंगे मगर ५ महिने में जिस तरह से यह पत्थरबाजी के प्रायोजक और नक्सलवादी  पूर्वावस्था को प्राप्त हुए हैं..चौंका देने वाला है. उनका अर्थ व्यवस्थापिक ग्रोथ !!
इनकी इस त्वरित रिकवरी की कड़ी निंदा होना चाहिये और इस रिकवरी को मुँह तोड़ जबाब दिया जाना चाहिये.
वैसे ज्यादातर बड़े लोग कड़ी निंदा करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है. हालातों की समीक्षा के लिए तुरंत समय नहीं रहता है इसलिए १५ दिन बाद की बैठक बुलाई जाती है.
निंदा,मुँह तोड़ जबाब की धमकी और समीक्षा बैठक के बाद फाईल बंद कर दी जानी है हमेशा की तरह..एक नई घटना के इन्तजार में.


-समीर लाल ’समीर’

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