मैं कभी कोई
कविता नहीं कहता
बस
कोई कविता मुझे कह जाती है-
मेरा
वक्त न जाने कब मेरा रहा है
वो
तो गुजर जाता है यह खोजने में
कि ये मेरा वक्त आखिर गुजरता कहाँ है
मैं कोई कहानी नहीं, मैं निबंध भी नही
मैं
किसी उपन्यास का हिस्सा भी नहीं
कभी बहुत दूर तलक अगर सोच पाऊँ तो
मैं
किसी आप बीती का किस्सा भी नहीं
सोचता
हूँ फिर आखिर मैं ऐसा कौन हूँ
एक
शक्स जो कभी कविता नहीं कहता
मगर
कविता उसे हमेशा कह जाती है-
-समीर
लाल ‘समीर’
10 टिप्पणियां:
बेहद सुंदर सृजन
बहुत बढ़िया !!
वाह!!!
क्या बात ...
लाजवाब👌👌
मगर कविता उसे हमेशा कह जाती है..
मन के भावों का सटीक उद्बोधन!
वाह! अप्रतिम मैं कविता नहीं कहता कविता मुझे कह जाती है ।
शानदार।
कविता कभी लिखी नही जाती ये खुद ही सवार हो जाती है आत्मा पर अभिव्यक्ति के लिए।सुन्दर प्रस्तुति समीर जी।होली की बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें 🙏🙏
क्या बात है सर
बेहतरीन आत्माभिव्यक्ति।
सादर।
उम्दा अभिव्यक्ति । सादर ।
बहुत बढ़िया
रंगपर्व की हार्दिक शुभकामनायें
कभी-कभी कोई रचना लगता है कि हमारे भीतर उतर कर हमसे लिखवा रही है…ऐसी ही रचना …👌👌
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