सोमवार, अप्रैल 11, 2022

टिक्का मसाला- यमी यमी यम यम!!

 



कभी कभी लगने लगता था कि मांसाहारी भोजन करके शायद मैं हिंसा कर रहा हूँ. कोई बहुत बड़ा पाप. आत्म ग्लानि होने लगती है और एक अपराध बोध सा घेर लेता है खासकर तब, जब कि मांसाहार के साथ कुछ जाम भी छलके हों. अपराध बोध भी सोचिये कितना सारा होगा जो हम जैसी काया तक को पूरा घेर लेता है. कहते हैं पी कर आदमी सेंटी हो जाता है. वही होता होगा इस मसले में.
तीन चार दिन पहले टीवी पर एक अनोखा समाचार देखा. देखते ही मांसाहारी होने की पूरी ग्लानि और अपराध बोध जाता रहा. उस दिन से निश्चिंत हुआ. अब मुर्गे को कटते देख कोई हीन भावना नहीं आती बल्कि खुशी होती है. वो कौम, जिसकी जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार कर खा गयी हो, उस पर कैसी दया और उस पर कैसा रहम. किस बात की आत्म ग्लानि? अच्छा ही हुआ-जब तुम्हारी कौम में हमको मारने की ताकत आई तो तुमने हमें अपना भोज बनाया और आज हममें ताकत है तो हम तुम्हें खा जायेंगे. खत्म कर देंगे.
टीवी ने बता दिया कि डायनासॉर के पूर्वज मुर्गे थे. टी वी दिन भर ढोल पीटता रहा कि मुर्गे डायनासॉर के बाप थे और उनके पूर्वज थे. टीवी वाले अंधो तक को दिखाकर माने और बहरों को सुना कर हर मसले की तरह.
मुझे तो पहले ही डाउट था कि जरुर कुछ न कुछ बड़ा पंगा किया होगा तभी तो मानव इन्हें खाने पर मजबूर हुआ. अभी बकरे की पोल खुलना बाकी है मगर जान लिजिये, उसकी पंगेबाजी भी जब खुलेगी तो ऐसा ही कुछ सामने आयेगा. पंगेबाजी का अंत तो ऐसा ही होता है चाहे किसी भी स्तर की पंगेबाजी हो. सिर्फ हिन्दी ब्लॉगजगत में पंगेबाजी जायज है और वो भी सिर्फ अरुण अरोरा ’पंगेबाज’ की.
अब तो शाकाहारियों को देखकर लगता है कि देखो, हम तुम पर कितना अहसान कर रहे हैं. वो मुर्गे जो डायनासॉर बन सकते हैं और तुम्हें और तुम्हारे समाज को पूरी तरह नष्ट कर सकते थे, उन्हें कनवर्जन के पहले ही खत्म करके हम तुम्हें भी बचा रहे हैं. काश, धर्म परिवर्तन जो कि इतना ही खतरनाक कनवर्जन है, के पहले भी ऐसी ही कुछ व्यवस्था हो पाती.
कल ही एक मुर्गा मिल गया था. पूछने लगा कि ऐसी क्या बात है, जो आप जैसी उड़न तश्तरी हमसे इतना नाराज हो गई?
हमने उसे साफ साफ कह दिया कि तुम हमसे बात मत करो, आदमखोर कहिंके. तुम तो वो बने जिसकी जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार कर खा लिया. बर्बाद कर दिया. कहीं का नहीं छोड़ा. तुम पर क्या रहम, तुम्हारा तो यह अंजाम होना ही था.
हमारा खून तो तब से खौला है कि यह डायनासॉर आये कहाँ से, जबसे हमने जोरासिक पार्क फिल्म देखी थी. बस, भरे बैठे थे. जब पता चला कि यह तुम्हारा कनवर्जन हैं, तब से तुमसे नफरत सी हो गई है. मैं तो चाहता हूँ कि तुम्हारा नामो निशान मिट जाये इस धरती से.

मुर्गा मुस्कराया और बोला, " आपका साधुवाद, आप मानव प्रजाति के लिये कितना चिन्तित हैं. मगर हम मुर्गे जैसी ही एक आदमखोर प्रजाति ही तुम्हारी ही शक्ल में तुम्हारे बीच बैठी यही काम कर रही है, उसका क्या करोगे, मिंया. वो भी तो यही कर रहे हैं मगर अपनों के साथ ही कि जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार दें, बर्बाद कर दें. कहीं का नहीं छोड़ें. "
मैं चकराया और पूछने लगा, ’कौन हैं वो?"
मुर्गा हँस रहा है. हा हा हा!! कहता है "तुम्हारे नेता और कौन!!"
बात में दम थी अतः मैं सर झुका कर निकल गया. इस मुर्गे पर न जाने क्यूँ मुझे रहम आ गया. नेता टिक्का मेरे आँखों के सामने तैर जाता है कि अगर उनका भी मुर्गों सा हश्र करने लगे मानव तब??
फिर पशोपेश मे हूँ कि मांसाहारी बने रहूँ या शाकाहारी हो जाऊँ?
-समीर लाल ‘समीर’


भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल 10 , 2022 के अंक में:
https://www.readwhere.com/read/c/67348319
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2 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellent satire on politicians and paradox To-Be-Or-Not-To-Be nonvagetarian and connecting evolution of life on earth. I wish Darwin was there to read it

संजय भास्‍कर ने कहा…

WAH GAJAB BADHIYA DISH H