शनिवार, मई 22, 2021

बचना है तो मोशन लैस हुए घर में बैठे रहो

 

यह उस भक्तिकाल की बात है जब भक्त का अर्थ होता था प्रभु की सेवा में रत. भगवान की पूजा अर्चना करके भक्त अपनी भक्ति भाव को प्रदर्शित करते थे. उन दिनों की अच्छे दिन का कान्सेप्ट नहीं हुआ करता था, तब सिर्फ बुरे, बहुत बुरे और कम बुरे दिन हुआ करते थे, ऐसा बताया है अभी अभी किसी ने.

वक्त को सबसे बलवान माना गया है, वो कितना कुछ बदल देता है. बन्दर को मनुष्य बना कर दिखा देता है.यह अलग बाद है कि एक जमात इतनी सदियों बाद भी स्वभाव और हरकतों से बन्दर ही रह गई. उस पर से आमजन का दुर्भाग्य यह कि वो उन्हीं को अपना रहनुमा चुन कर उस्तरा थमा देता है. ऐसे में वो बन्दर आमजन का सिर नहीं मूढ़ेंगे तो करेंगे क्या? यही उनका स्वभाव है. इसमें शिकायत कैसी?

वक्त के साथ बदलाव की बयार ऐसी चली कि भगवान के भक्त पाखंडियों की कतार में लगा दिये गये और भक्त शब्द पर कब्जा किसी खास आका के अनुयायिओं का हो गया. इनका भक्ति भाव प्रदर्शन करे का तरीका भी पूजा अर्चना से बदल कर अभक्तों को गाली गलौच करने में बदल गया.

आभाव, जिसे अंग्रेजी में लैस पुकारा गया, का प्रभाव भी बदलते वक्त के साथ ऐसा हुआ कि जिस क्लॉथ लैस को कभी निवस्त्र या नंगा कहा जाता था वो फैशन का परिमाण बन गया. जो कभी शेम लैस माना  जाता था वो आज बोल्ड की परिभाषा बन गई.

नये युग को नई की पहचान देता, हर तरफ लैस ही लैस का परचम लहराने लगा है. लैस कभी इतना ज्यादा हो जायेगा, इसकी उम्मीद न तो लैस ने की होगी और न ही मोर ने. ये मोर वो वाला नहीं है जिसे दाना खिलाया जाता है. वैसे तो उसने भी इस तरह डायना खिलाए जाने की उम्मीद कब की थी?  

कारों में की लैस एन्ट्री, ड्राईवर लैस कारें, पेपर लैस दफ्तर, पल्युशन लैस वातावरण, वर्कर लैस एसेम्बली लाईन (रोबोटिक्स), कमिटमेन्ट लैस रिलेशनशीप, पॉयलट लैस हवाई जहाज, फीमेल/ मेल लैस कपल आदि आदि न जाने कितने सारे लैस.

हिदी मे लिखे जा रहे इस आलेख को भी आप इत्मिनान से हिन्दी लैस आलेख कह सकते हैं. ब्लेम लैस भला मैं कैसे बच कर निकल सकता हूँ मगर मजबूरी है क्या करें? जिस देश की राज भाषा हिन्दी होते हुए भी, हिन्दी दिवस हिन्दी लैस हो गये हैं, हिन्दी दिवस पर कवियों को सम्मान पत्र अंग्रेजी में दिये जा रहे हैं. राष्ट्र विकास की अधिकतर योजनाओं के नाम हिन्दी लैस हुए जा रहे हैं- मेक इन इन्डिया हो, डिजिटल इन्डिया हो, स्मार्ट सिटी हो या कैशलैस सोसाईटी की अवधारणा और तो और सेंट्रल विस्टा ही देख लें. सभी हमारे हिन्दी लैस हुए जाने की चुगली कर रहे हैं.  

कैश लैस सोसाईटी तो खैर जब होगी तब होगी लेकिन फिलहाल तो कैश लैश बैंक और कैश लैस आमजन की जेबें हैं.

आज की ताजा ताजा लैस में वैक्सीन लैस दौर में 18 साल से ऊपर के सभी को वैक्सीन देने की घोषणा, आक्सिजन और बेड लैस अस्पताल और उन सब के ऊपर आसूँ लैस विलाप करती मोशन आउए संवेदन लैस सरकार.

जाने कौन सी परिकल्पना को अंजाम देने की तैयारी है, ये तो वो ही जाने मगर एक आमजन के दिल में तो बस यही तमन्ना है कि वक्त एक ऐसा चमत्कार कर दे कि सरकार पॉवर लैस हो, फिर अपने आप करप्शन लैस सोसाईटी से लेकर विकसित देश की अवधारणा तक पूरी होने में वक्त नहीं लगेगा. फिलहाल तो मोशन लैस हुए घर में बैठे रहो वो ही सांस लैस होने से बचे रहने का एकमात्र उपाय है.

 

-समीर लाल ’समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मई 23, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/60625187

 

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2 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellent use of word "Less" in humorous style....

Arun sathi ने कहा…

करारा प्रहार