शनिवार, अक्तूबर 17, 2020

आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स और मशीन लर्निंग से बदलती दुनिया

 



पान की दुकान पर मुफ्त अखबार के अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को अगर विश्व विद्यालय किसी संकाय की मान्यता देता तो तिवारी जी को निश्चित ही डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा जाता। डॉक्टरेट बिना मिले भी वह पान की दुकान पर प्रोफेसर की भूमिका का निर्वहन तो कर ही रहे थे। जो कुछ भी अखबार से ज्ञान प्राप्त करते, पान की दुकान पर उन्हीं की तरह फुरसत बैठे लोगों को अपना छात्र मानते हुए उनके बीच ज्ञान सरिता बहाते रहते। सब कुछ व्यवस्थित है, एक मान्यता को छोड़ कर। मान्यता नहीं है, इसलिए तो प्रोफेसर तिवारी को इस हेतु कोई तनख्वाह मिलती है और ही छात्रों से कोई शुल्क लिया जाता है।

छात्रों की हाजिरी भी तिवारी जी बस मुस्कराते हुए ऐसे लेते किजिंदा हो? कल दिखे नहीं’? छात्र का मन हो तो जबाब दे वरना पान सुरती दबाए चुप खड़ा मुस्कराता रहे। बस इसी मामले में इनकी कार्यशैली और व्यवहार सरकारी विद्यालयों से मिलता है।

आज तिवारी जी हाल ही में हुए विश्व स्तरीय सम्मेलनआर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में भातर के विश्वगुरु बनने की संभावनापर व्याख्यान दे रहे थे। यह विषय तो उपस्थित छात्रों के लिए एकदम अनजाना था। अतः तिवारी जी बिना व्यवधान के खुद की समझ के अनुसार सही गलत जैसा भी हो, बोल रहे थे। अनजाने विषय में यह सुविधा रहती है। जिस तरह हमारे शहरी नेता कभी CAA तो कभी NRC तो कभी कृषि बिल पर जनता को समझाने लगते हैं जबकि पता उन्हें भी कुछ नहीं होता।

तिवारी जी बता रहे हैं कि भविष्य वर्तमान से एकदम अलग होगा। अब तक तो निरबुद्ध चालाक लोग आपको बुद्धू बनाते थे किन्तु इस योजना के तहत असली बुद्धि वाले लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स (कृत्रिम बुद्धि) वाली मशीनें बनाएंगे जो इंसानों की तरह काम करने लगेंगी। उनके अंदर इंसानों की तरह ही अनुभव और माहौल से नित सीखते जाने की क्षमता (मशीन लर्निंग) भी होगी।

इंसान को गलतियों का पुतला माना गया है। इंसान के जोड़ घटाने में गलती हो सकती है इसीलिए केलकुलेटर से जोड़ कर उसे सत्यापित किया जाता है। इस सत्यापन की विधि से तो कुछ लोग आज भी इतना प्रभावित हैं कि कंप्यूटर  से जुड़ कर निकले बिल को पहले जुबानी जोड़ते हैं और फिर केलकुलेटर से जोड़ने के बाद ही उसे सही मानते हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स वाली मशीन और इंसानों में यही फरक है। वो भी पहले पहल ऐसा ही करेगी। फिर वो सीख जाएगी कि कंप्यूटर  से निकला जोड़ बार बार सही रहा है अतः उसे आगे से सही मानकर पुनः सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं हैं।

सम्मेलन में बताया गया कि कैसे और कब चीन विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब बना। अब भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स का हब बनने की काबिलियत रखता है। अगले २० से २५ साल के अंदर ऐसा हो जाने की संभावना है।  हालांकि जो कुछ पिछले -  बरसों में हो जाने की संभावना थी, उसमें से क्या हुआ और क्या नहीं, उसके ट्रेक रिकार्ड को खंगालने की आवश्यता नहीं है। सदैव आगे देखो और चलते रहो की नीति पर चलना ही विश्व गुरुतत्व प्राप्त करने का मार्ग है।

इतना ज्ञान पटकने के बाद तिवारी जी ने अपनी वाणी को विराम दिया और नया पान मुँह में भर कर गलाने लगे।

लोगों के दिमाग में तरह तरह के प्रश्न रहे थे कि जब हर तरफ मशीनें काम करने लग जाएंगी तो हमारे रोजगार जो बिना इनके हुए भी खत्म होते जा रहे हैं, उनका क्या होगा। कोई सोच रहा था  कि माना मशीन गल्तियों का पुतला हो तो भी गलती तो कर ही सकती है। कहीं गलती हो गई और मिसाईल वगैरह छोड़ दी तब?   

अब बारी तिवारीजी के सबसे मेधावी छात्र घंसू की थी। घंसू जानना चाहता है कि इसमें भिन्न क्या है?

आज असली बुद्धिमान इंसान याने कि मास्साब अपने असली छात्रों की बुद्धि में असली ज्ञान का भंडार भरते हैं और तब असली बुद्धि वाले अपने ही द्वारा निर्मित मशीनों की कृत्रिम बुद्धि में असल ज्ञान भर रहे होंगे।

असली छात्र बुद्धिमानी लेने के साथ साथ अपने आसपास के माहौल और तौर तरीकों से सीखता हुआ समाज में अपनी दक्षता के हिसाब से स्थापित हो जाता हैकोई अधिकारी बनाता है। कोई कामगार तो कोई नेता और कोई ज्ञान गुरु बाबा। कोई व्यापारी बन जाता है तो कोई अभिनेता। कोई चोर तो कोई डकैत। कोई ईमानदार तो कोई भृष्ट।

कृत्रिम बुद्धि वाली मशीनें भी अपने आस पास के माहौल से सीखेते सिखाते समाज में इन्हीं को तो रिप्लेस करेंगी और उन्हीं बातों को अंजाम देंगी। बल्कि बिना गलती के और आज से अधिक तेजी से।

आज जब सरकारी कछुआ चाल ने इतने सालों में सोने की चिड़िया को एक विलुप्त प्रजाति बना दिया है और दूध की नदियों का दूध पानी में बदल दिया है। तब घंसू सोच रहा है कि जब यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स वाली मशीनें इंसानों को रिप्लेस कर देंगी, तब सोने की चिड़िया को स्मृति से भी विलुप्त होने में और नदियों के दूध से बदले पानी को भाप हो कर गुम जाने में कितने दिनों का वक्त लगेगा?

अरे अगर कुछ बनाना ही है तो ऐसा कुछ बनाओ जो आज के असंवेदनशील हो चले समाज की बुद्धि में कुछ ऐसा भर दे कि उसकी संवेदनाएं पुनः जागें। वो एक बार फिर सहिष्णु हो जाये। इंसान जब सुबह उठ कर आईना देखे तो उसमें उसे इंसान ही नजर आए -हैवान नहीं।   

तिवारी जी ने इतनी देर से मुँह में गलता पान, स्वच्छता अभियान में अपने योगदान स्वरूप एक जोरदार पीक के साथ सड़क पर थूका और अपने घर की राह पकड़ी।

कल फिर जो हाजिर होना है अखबार से अर्जित अगले ज्ञान के साथ।

-समीर लालसमीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अकतूबर १८, २०२० के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/55742528

 

 

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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

कितनी बड़ी और सही बात कही आपने। यूँ यह कटाक्ष है पर सत्य है। चाय के टपरी पर या पान की दुकान पर जो क्लास चलती है या देश दुनिया की बहस होती है, वह सचमुच आम आदमी के अनुभव का ज्ञान होता है। जय हो!

Unknown ने कहा…

Bahut hi Sundar laga.. Thanks..

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