शनिवार, अगस्त 22, 2020

सुझावों का व्यक्तित्व बहुत कमजोर होता है


तिवारी जी को किसी ने बताया था कि अगर जीवन में सफल होना है, तो अपना एक मेंटर (उपदेशक) बनाओ। साफ शब्दों मे कहा जाए तो उस्ताद बनाओ। उन्हीं उस्ताद से उन्होंने सीखा था कि जनसेवक को जनता के लिए किए जा रहे कार्यों और योजनाओं के लिए जनता से सुझाव लेना चाहिये। उन सुझावों को अच्छी नजर से देखना परखना चाहिये। फिर अपने साथियों (जिसे मंत्रीमंडल भी कहते हैं) से सलाह करना चाहिये। परियोजना अमल हो जाने पर जनता से फीडबैक लेते रहना चाहिये। साथ ही यह भी समझाया कि  ‘निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
आई आई टी में दाखिले के लिए जो मास्साब ट्यूशन पढ़ाने आते थे, उनकी दाखिले के बाद क्या जरूरत? अतः जैसे ही सफल हो गए तो सबसे पहले तो मेंटर (उस्ताद) को अलग किया। मगर सलाहें झोले में सहेज कर रख लीं।
कुर्सी पर काबिज होते ही जो मकान मिला वो एकड़ों में फैला था। उसी के आंगन के आखिरी कोने में निंदक की कुटिया बनवा दी गई। निंदक शोर मचाता तो काम में विघ्न पड़ता अतः तिवारी जी का घर साउण्ड प्रूफ कर दिया गया। कुर्सी में बड़ी ताकत होती है अतः आनन फानन में उस कुटिया में निंदक के आने जाने का मार्ग भी पिछली सड़क से करवा दिया गया। लेकिन उस्ताद की सलाह से टस से मस न हुए। बहुत बाद में पता चला कि निंदक का दर्जा देकर उस्ताद को ही उस कुटिया में रखा गया था। जिसकी बातें सफल होने तक सलाह हुआ करती थीं, उसी की सलाहें सफल होने के बाद निंदा लगने लगी थीं। यही दुनिया का नियम हैं और मानव का स्वभाव।
जनता के सुझावों को इतना अधिक महत्व दिया गया की तिवारी जी ने एक सुझाव मंत्रालय ही बना डाला। उस मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी खुद अपने पास रखा।
जनमानस की भलाई हेतु हर परियोजना के लिए सुझाव मँगवाए जाते। जैसे ही सुझाव जनता से चल कर मंत्रालय में दाखिल होते वो सरकारी हो जाते। उन्हें फाइल में रखवाया जाता। सुझावों को किसी की बुरी नजर न लग जाए अतः उन्हें देखने पर ही अघोषित पाबंदी लगा दी गई। उन फाइलों को अलमारी में ताला लगा कर बंद करवा दिया जाता।
सुझावों का व्यक्तित्व बहुत कमजोर होता है। जैसे ही परियोजना पूरी हो जाती है तब कुछ सुझाव, सुझाव से बदल कर यथार्थ हो जाते हैं और कुछ सुझाव बेकार। अब किसका क्या हुआ, ये तो पता करोगे तो पता चलेगा मगर यह तय है कि परियोजना आ गई है अतः सुझाव अब सुझाव नहीं रहे। अब उन्हें सरकारी रद्दी का दर्जा प्राप्त हो गया है। जनता के मासूम हाथों से चलकर सरकारी कागजों के राजमार्ग से गुजरते हुए सरकारी रद्दी में तबदील होना ही  सुझावों की जीवन यात्रा है।
अतः उस परियोजना से संबंधित सुझावों की सरकारी रद्दी को कतरन बनवा कर उसे पैकिंग मटेरीयल की तरह से इस्तेमाल करने के लिए नीलाम करवा दिया जाता। इस तरह से तिवारी जी ने, न सिर्फ पैकिंग के श्रेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सफल कदम उठाया बल्कि पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता भी दर्शाई। एक तीर से दो निशाने तो बहुतेरे लगा लेते हैं, लेकिन तिवारी जी का तो अंदाज ही निराला है। अतः तीसरा निशाना उनके चाहने वालों ने यह कह कर लगवाया कि इसे कहते हैं मौलिक सोच।
वह अपने साथियों से सभी परियोजनाओं पर सलाह लेते। सभी मंत्रीमंडल के साथी बारी बारी अपनी सलाह रखते, जिसे तिवारी जी कान में यूएनओ स्टैन्डर्ड वाले ट्रांसलेटर हैडफोन लगा कर ध्यान से सुना करते। ट्रांसलेटर हैडफोन की खासियत यह होती हैं कि उसमें से आ रहा संवाद किसी भी भाषा में बोला गया हो, सुनने वाले की भाषा में परिवर्तित होकर सुनाई देता है। यह प्रोग्रामिंग के जरिए उस हैडफोन को सिखाया जाता है।  तिवारी जी के निर्देश पर उनके हैडफोन से हर संवाद का अनुवाद सिर्फ इतना ही होता था कि  ‘जी  साहब, आपने बिल्कुल सही सोचा है और मैं आपका अनुमोदन करता हूँ। आपकी जय हो, आप हो तो सब मुमकिन है’। तिवारी जी अपने साथियों की सलाह सुन कर आनंदित होते और उनको धन्यवाद ज्ञापित करते। धन्यवाद पाकर सभी साथी प्रसन्न होते कि  उनकी सलाह तिवारी जी पसंद आई। एक प्रसन्न टीम ही टीम लीडर की लीडरशिप की सफलता का प्रमाण होती है। इस तरह से तिवारी जी ने अपनी लीडरशिप का लोहा मनवा लिया था।
परियोजना के अमल होते ही तिवारी जी अपने उस्ताद की अंतिम सलाह को अमली जामा पहनाते हुए जनता का फीडबैक लेने के सर्वे कराते। जनता से निवेदन किया जाता की बिना किसी दबाव के निष्पक्ष सर्वे का विकल्प चुन कर तिवारी जी के कार्यों का आंकलन करें। जनता को चार विकल्प में से कोई भी एक चुनना होता बिना किसी दबाव के – (अ) बेहतरीन, (ब) अतुलनीय, (स)अद्भुत, (द) विश्व स्तरीय
अगले दिन सर्वे का परिणाम सार्वजनिक कर दिया जाता। तिवारी जी पुनः किसी नई परियोजना में पुनः इसी परिपाटी को अपनाते हुए अथक लगे रहते और एक सच्चे जनसेवक होने का श्रेय अर्जित करते रहते।  
-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अगस्त २३ ,२०२० के अंक में:


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3 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Very true, my experience to the suggestions given over last eight years is similar, no reciprocation, no visible action....
Excellent observation brought out in humour and characterized in Tiwari ji...😂😂😂🙏

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत ख़ूब लिखा। जनता के पास विकल्प ही यही तो क्या हो।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रोचक और सुन्दर आलेख।