तिवारी जी शौकीन मिजाज के आदमी हैं।
उन्हें गुस्सा होने का शौक है। वो कभी भी कहीं भी अपना यह शौक पूरा कर लेते हैं।
उनके गुरु जी ने उन्हें बचपन में सिखाया था की हर इंसान को कोई न कोई एक शौक जरूर रखना चाहिये। जो शौक नहीं पालते, उनकी
जिन्दगी शोक में गुजरती है। अतः गुरु की सीख को शिरोधार्य करते हुए कालांतर में
उन्होंने गुस्से को अपना शौक बनाया। तिवारी जी उस जमाने के आदमी हैं जब गुरु का
दर्जा मां बाप से भी ऊपर ईश्वर तुल्य होता था। अब तो न गुरु का कोई दर्जा है और न
मां बाप का। आजकल तो बिना किसी दर्जे के विश्वगुरु बनने की होड़ में सभी जुटे हैं
और गाली खा रहे हैं। खा तो वो और भी बहुत कुछ रहे हैं मगर गाली सुनाई और सोशलमीडिया पर दिखाई दे
जाती है।
आज तिवारी जी अखबार वालों से
गुस्सा थे। उनका कहना है कि हम इस वैश्विक महामारी से नहीं डरते और न ही मौत
से। मगर मास्क इसलिए लगाए हैं की अगर गलती
से वायरस लग गया और रिपोर्ट पाज़िटिव आ गई, तो ये अखबार वाले हमें मात्र ५६ साल की
आयु में ही लिखेंगे कि ५६ साल का बुजुर्ग पॉजिटिव पकड़ाया। एक तो पकड़ाया ऐसे लिखते
हैं मानो कोई डाकू पकड़ाया हो और उस पर ५६ साल की बाली उम्र में बुजुर्ग?
तिवारी जी उनको बुजुर्ग लिखा
जाना बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे। बीमारी से भले न मरें मगर बुजुर्ग कहे जाने का
आधात उनका दिल नहीं बर्दाश्त कर पाएगा। वो तो ४ साल बाद होने वाले चुनाव लड़ने का
मन इसीलिए बना रहे हैं ताकि शहर को युवा नेतृत्व प्रदान कर पायें। वैसे इनको जिनसे विज्ञापन मिलता है वो तो ७० साल में भी युवा और कर्मठ
नेतृत्व करने वाला दिखाई देता है और बाकी हम ५६ साल में बुजुर्ग। इसीलिए ये अखबार
वाले हमें पसंद नहीं हैं।
इसी शौक के चलते एक बार वे
अपने मोहल्ले के कुछ लोगों से महज इस बात पर गुस्सा हो गए थे क्यूंकि उन्होंने तिवारी जी नेता जी कह दिया। तिवारी जी
का मानना है की वे समाजसेवी हैं और जब वे चुनाव लड़ेंगे तो नेतागिरी के लिए नहीं, समाज की सेवा के लिए लड़ेंगे। नेता
उनकी नजर में भृष्ट व्यक्ति होता है और वे अपने आपको नेता कभी नहीं कहलवाया सकते।
चूंकि वे पुराने समय के भावी
युवा हैं अतः उनकी अपनी मान्यताएं और समझ है। वह नेता नहीं समाज सेवी हैं। उनका
सहज और सरल जीवन एक साधु जीवन है तो वह स्वयं के लिए नहीं अपितु समाज के लिए जी
रहे हैं। वह जनता को भाषण नहीं देते, वे उसे प्रवचन पुकारते हैं। उनके प्रवचनों
में वादे नहीं, उच्च जीवन शैली हेतू सूक्तियां समाहित होती हैं। वह गरीबी दूर करने
से लेकर रोजगार के कूत अवसरों को उपलब्ध कराने वाले वाक्यों को उच्च जीवन जीने की
सूक्ति बताते हैं। समाज के शोषण, फिर वो चाहे जैसा भी हो उसे ईश्वर द्वारा
निर्धारित तप और परीक्षा का वह कठिन मार्ग बताते हैं जिसकी आग में तप कर यह समाज
सोना बनेगा और देश पुनः वही सोने की चिड़िया कहलाएगा जो न जाने कब और कहां उड़
गई।
वह अपने गुस्सा हो जाने के
शौक को भी समाज सुधार की दिशा में लिया गया एक कदम ही मानते हैं। उन्होंने तुलसी
पढ़ा है और तुलसी की खासियत ही यही है की जिसका जो दिल करे वो उसे उन अर्थों में
समझ कर व्याख्या कर ले। अतः ‘भय बिन होय न प्रीत गोसाई’ की तिवारी जी की व्याख्या यह है की भय के बिना कोई काम
नहीं होता, यहां तक की प्रीत भी नहीं। अतः प्रेमपूर्वक काम करवाने हेतु उन्हें
गुस्सा करना पड़ता है। उन्हें ज्ञात है की इस शौक का विपरीत असर उनकी तबीयत पर पड़ता
है किन्तु समाज सेवा में समर्पित यह संत समाज की भलाई के लिए ये दर्द भी सहता है।
उनका विकास का मॉडल किसी
प्रदेश का नहीं, अध्यात्म और ध्यान का है। उनका मानना है की अगर इंसान ने अध्यात्म
और ध्यान का मार्ग अपना कर अपना चित्त शांत कर लिया तो वह खुशहाल हो जाएगा। फिर वह
अगर रोडवेज की टूटी बस मे भी यात्रा करेगा तो इस बात से कृतज्ञ महसूस करेगा कि अगर
यह न होती तो मैं आज थकाहारा पैदल जा रहा होता। जिस दिन समाज की ऐसी मानसिकता हो
जाएगी तो उसे हर जगह विकास ही विकास नजर आयेगा। विकास हेतु मानसिकता विकसित करना
जरूरी है।
मैं तो तब उनका मुरीद हो गया,
जब उन्होंने अपने द्वारा भविष्य में स्वीकार
की जाने वाली रिश्वत को दक्षिणा बताया। वह दक्षिणा जो कि लोग उनके द्वारा समाज
उत्थान हेतु किये गए कार्यों से अभिभूत होकर चढ़ावे में दे जायेंगे। कुछ और पूछने
की हिम्मत मुझमें थी नहीं।
क्या पता मुझ पर ही न वो
अपना शौक पूरा करने लगा जाएं। किसी के गुस्से से भला कौन नहीं डरता?
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के अगस्त ३,२०२० के अंक में:
ब्लॉग पर पढ़ें:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
7 टिप्पणियां:
बहुत खूब, इस अंक में बहुत दिनों बाद तिवारी जी से साक्षत्कार हुआ साथ ही गुस्से के शौक की नई परिभाषा और प्रकार की जानकारी मिली...😀😀😀
अरे जी कहाँ :) हमारे उधर सारे ऐसे जवानों को अब कुलपति बना कर किसी विश्वविद्यालय को जमींदोज करने के काम पर लगा दे रहें हैं जब 70 पर जवान हैं तो 56 को बुजुर्ग कहना वाकई नाइन्साफी है :) :)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-08-2020) को "अयोध्या जा पायेंगे तो श्रीरामचरितमानस का पाठ करें" (चर्चा अंक-3783) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शौक़ बड़ी चीज है...पान बाहर...पान मसाला...पालने वाले ही पाल सकते हैं...आपकी भाषा में...सन्नाट...👌👌👌
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रोचक रहा तिवारी जी से मिलना.... सच ही कहा आपने शौक न हो तो जिंदगी शोक में गुजरती है... वो अलग बात है कि तिवारी जी के शौक के चलते कई और लोगों की जिंदगी शोकग्रस्त हो गयी है.. सटीक व्यंग्य
आदरणीय सर,
ऐसा हास्य व्यंग्य की एक एक पंक्ति पढ़ कर हंसी आये और कटाक्ष ऐसा सटीक की सीधा सत्य एक बार में दिमाग में घुसा दे।
सुंदर हस्यसप्रद रचना के लिये हृदय से आभार। तिवारी जी का शौक कुछ और बढ़े और वे विकास करने में सफल हों तो बताइयेगा।
एक टिप्पणी भेजें