शनिवार, जून 27, 2020

लोकल को वोकल करने मे आत्म निर्भरता



हाल ही में लवली सिंग को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि हम असफल होने के लिए योजना नहीं बनाते बल्कि असफल होते ही इसलिए हैं कि हमने कोई योजना ही नहीं बनाई। आधी से ज्यादा जिन्दगी इसी ज्ञान के आभाव में असफलताओं से गलबहियाँ करते बीत चुकी हैँ। खैर कोई बात नहीं देर आए मगर दुरुस्त आए। उसके आसपास न जाने कितनी जिन्दगियाँ ऐसे ही रीत गई। कुछ एक मित्र जरूर दीगर स्थानों से उम्र के अलग अलग पड़ाव में बिना बताये चोरी छिपे यही ज्ञान प्राप्त कर आये थे। फिर आनन फानन में योजना बना कर सफल गुंडे हो गए। योजना से मिली सफलता के कारण योजना बनाने की लत लग गई। अतः निरंतर योजनाबद्ध तरीके से सफलता के राजमार्ग पर चलते हुए सफल गुंडे से सफल खनन माफिया, फिर नेता और अंततः सफल मंत्री होकर पदासीन हुये। सरस्वती माता तो उनसे बचपन से ही कुपित थीं लेकिन सफलता के इस राजमार्ग के हर ठीये पर माँ लक्ष्मी उन पर इस कदर मेहरबान हुईं कि मंत्री बनते ही वह माँ सरस्वती की कृपा भी खरीद लाये एवं एक विश्वविद्यालय नें उन्हें मानद डॉक्टरेट से विभूषित कर दिया। फिर डॉक्टरेट की लाज रखने हेतु उन्हें बीए की स्नातक की उपाधि भी जुगाड़ना पड़ी। यहाँ भी माँ लक्ष्मी ने साथ दिया एवं अब उनके खादिम १२ वीं की मार्कशीट के इंतजाम में जुटे हैं। शायद कभी किसी पत्रकार वार्ता में कोई पत्रकार मांग ही न बैठे। उन्होंने ऐसा होते हुए देखा है। योग्यता सफलता की कुंजी है। इस दावे को धता बताने के लिए सफलता अपने साथ योग्यता भी ले आती है। यह दूरदर्शिता उनकी इसी योग्यता का परिणाम है। सफलता के साथ पैकेज डील में आई योग्यता का ही तो नतीजा है कि आज योग्यता से सफल हुए आई ए एस अफसर नेताओं के आगे हाथ जोड़े आदेश लेते नजर आते हैं।
जहाँ मित्र की सफलता से लवली सिंग गर्वित दिखते, वहीं मन ही मन में इस बात से खिन्न भी रहते कि मित्र ने योजना वाली सूक्ति उनसे छिपाई। अतः अब वो भी योजनाबद्ध तरीके से सफलता प्राप्त करेंगे और मंत्री से भी ज्यादा बड़ा सफलता का परचम लहराएंगे।
अनेकों योजनाओं पर विचार किया मगर सभी सरकारी योजनाओं सी नजर आती। सुनने और कागज पर तो अच्छी दिखती मगर जब गहराई में झाँको तो एकदम खोखली। सरकार को तो बस चुनाव में सफल होना होता है अतः सरकार का काम ऐसी योजनाओ से चल जाता है। सरकार के लिए सरकारी योजनाएं व्यक्तिगत सफलता की वृहद योजना का मात्र एक ऐसा हिस्सा है, जो जनता को बहलाने के काम आता है। जैसे कि बच्चे को सुलाने की वृहद योजना में सफल होने के लिए माँ बच्चे को सपने में परियों के आने की बात कहती है। बच्चा सो जाता है। माँ की योजना सफल हो जाती है। बच्चा सुबह उठता है तो रात मे कही माँ की बात भूल जाता है। माँ इस बात को जानती है।
एकाएक उसके दिमाग में ऐसी योजना आई, जिसके सफल होते ही उसका मंत्री मित्र तो क्या, पूरा मंत्री मण्डल ही उसके आगे हाथ जोड़े खड़ा रहेगा। उसने बाबा बनने की ठान ली थी। इस हेतु उसने कार्ययोजना पर काम करना भी शुरू कर दिया कि भक्तों को कैसे फाँसना है। आज पहली बार उसे लगा कि उसकी जिस आशिक मिजाजी को लोग उसकी असफलता की वजह बताते थे, वो ही आज उसकी सफलता का मुख्य स्त्रोत होगी। उसकी तमाम महबूबायें उसकी प्रथम पंक्ति की भक्त बनकर अन्य भक्तों के लिए आकर्षण का ऐसा कारण बनेंगी कि पूरा पण्डाल ही भक्तों से पट जाएगा। वाक चातुर्य की उसमें कोई कमी न थी। यही तो वजह थी कि निक्कमेपन और फक्कड़ जेब के बावजूद भी महबूबाओं की कभी कोई कमी नहीं रही।
सारी योजना पर दिन रात विचार कर रहा था। अब नाम लवली बाबा रख लिया था और लेटेस्ट वाली महबूबा  राजेश्वरी का माँ रोज़ी के नाम से सेक्रेटरी बनना भी तय हो गया था। भगवा वस्त्र, खड़ाऊ आदि की व्यवस्था भी कर ली थी। कुछ भजन कंठस्थ कर लिए थे एवं पंचतंत्र की कहानियाँ रटना जारी था। विदेशों और उनकी राजधानियों के नाम याद करना शुरू कर दिए थे। कहते हैं कि २४ घंटे में एक बार आपकी जुबान पर सरस्वती का वास होता है। ऐसा ही कोई क्षण रहा होगा, जब वह विदेशी नामों में चीन को चाईना याद कर रहा होगा और करोना ने उसके देश की पावन धरती पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया। देश लॉकडाउन में चला गया। अब महबूबायें अन्य भक्तों को तो क्या आकर्षित करतीं, खुद ही सोशल डिस्टेनसिंग के चलते दूरियाँ बना कर निकल गई हैं। जान भी जहान भी, दोनों चाहिए। बचे रहे और जहान भी बचा रहा तो ऐसे बाबा तो मिलते ही रहेंगे। सारी योजना सरकारी सी होती नजर आई। बस कागजों पर कागजी हवाई जहाज उड़ाती हुई।    
कहते हैं जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैँ, तब भी एक दरवाजा जरूर होता है जो खुलता है। जरूरत होती है संयम के साथ उसे तलाशने की। सो तलाशा गया।
अब लवली सिंग फेसबुक पर ऑनलाइन आश्रम खोलेंगे। भक्त रूपी फालोअर जुटाने के लिए खुद का नाम बदल कर ‘लवली बाबा’ की जगह ‘लवली बेबी’ रख लिया है।
रोज़ी पर निर्भर रहने की बजाय स्वयं को लवली बेबी बना कर आत्म निर्भरता का मार्ग चुना है। अब लवली बेबी पंचतंत्र की लोकल कथाओं को फेसबुक पर अपने प्रवचनों के माध्यम से वोकल करेंगी।
-समीर लाल ‘समीर’         
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून २८,२०२० के अंक में:
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5 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellent and very much timely.....

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बाबा बनने से ज़्यादा सफल कोई काम नहीं अपने देश में। बाबा व्यवसायी तो बन ही गए थे। पर अब बाबा से बेबी जाना और तगड़ा काम। बहुत बढ़िया।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सरलता की सीडियाँ कमाल की हैं आज कल ... पर सच भी हैं ... करारा व्यंग है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया जुगलबन्दी।

dj ने कहा…

क्या बात है आदरणीय कमाल का व्यंग सटीक कटाक्ष। निशब्द कर दिया आपने। लवली सिंह की आत्मनिर्भरता का जवाब नहीं लोकल को खूब वोकल किया.. लक्ष्मी माँ की कृपा से सरस्वती माँ की कृपा कितनी ही खरीद लें रसूख़दार परन्तु स्थाई रूप से कृपा पात्र रह न पाएंगे. परिकथा योजना की सरकारी योजनाओं से तुलना कमाल कर गई। लवली बाबा [बेबी] को ऑनलाइन आश्रम हेतु शुभकामनाएँ।
आपका लेखन हमेशा ही १ लेख को बार बार पढ़ने पर मजबूर करता है इतना प्रभावी लेखन बहुत कम देखने को मिलता है।