कालेज
के दिनों की याद आई. हम दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाया करते थे तो सब मिलकर चिकन
पकाते थे. वो स्वाद अब तक जुबान पर है और
बनाने की विधि भी कुछ कुछ याद थी. बस फिर क्या था, मैंने एलान कर दिया कि आज रसोई खाली करो, चिकन हम
बनाएंगे.
अँधा
क्या चाहे, दो आँखें. पत्नी
तुरंत रसोई खाली करके टीवी के सामने जा बैठी. हमने तमाम
मशक्कत करके प्याज़ काटने से लेकर मसाला भुनने तक में जान लगाते हुए दो घंटे में
आराम आराम से चिकन बना डाला. बना भी बेहतरीन और सबने खाया भी
दबा कर अर्थात बेहतरीन बने का प्रमाण भी सामने आ गया तुरंत. बस
फिर क्या था, पत्नी और बच्चों की तरफ से एक सुर में घोषणा
हुई कि अबसे जब भी नॉन-वेज बनेगा, मैं
ही बनाया करूँगा. मैंने भी सोचा, अच्छा
है. हफ्ते में एक बार तो बनता है, बना
दिया करेंगे. अतः बनाने लगे. खूब तारीफ़
होती. तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. लोग तो स्क्रिप्ट लिखकर
फिल्म अभिनेताओं से अपनी तारीफ करा लेते हैं.
देखते
देखते पत्नी आये दिन कहने लगी की आज सादा खाने का मन नहीं है,
आज फिश खाने का मन है, तो आज आपके हाथ की एग
करी, तो कभी कीमा, कभी चिकन. बस फिर क्या था, कुछ ही महीने में मैंने पाया की
जहाँ पहले हफ्ते मे एक दिन नॉन-वेज के लिए आरक्षित था और
बाकी दिन वेज. वहीं अब एक दिन वेज और बाकी के दिन नॉन-वेज पर
आ गये. आरक्षण का यही तो कमाल है. शुरु होता है कहीं से फिर
वो ही वो दिखता है. हमारा स्टेटस भी अब कुशल रसोईए मे बदल दिया गया.
अब
जब मैं कहता कि वेज खाने का मन है तो बता दिया जाता कि बिल्कुल ऐसे ही तो बनाना है, बस चिकन की जगह आलू डाल देना या कभी एग भूर्जी जैसे बनाते हो ना, उसमे अंडे की जगह टिंडोरा काट कर डाल देना. याने की
अब सातों दिन खाना मैं ही बनाता. कोई चाल काम ना आती.
बना कर देने की बजाय यूट्यूब के लिंक दे दिया जाता कि इसमें से देख
कर बना लो, मगर बनाओ ज़रूर. तुम्हारे
हाथ मे स्वाद का जादू है, देखो सब कितना स्वाद लेकर खाते हैं.
क्या बोलता? खाते तो पहले भी थे ही सब. कभी पत्नी
की शिकायत तो किसी से ना सुनी और न ही की. खैर, महिलाओं की शिकायत करने के लिए भी तो हिम्मत चाहिए.
एक
कथा सुनी थी कि असली बनिया वो होता है जो अगर भूले से कुएँ में गिर जाए,
तो यह सोच कर कि गिर तो गये ही हैं, क्यूँ ना
स्नान कर लिया जाए फिर मदद के लिए गुहार लगाएँगे. लोगों का
क्या है, अभी जैसे बचाएँगे वैसे ही तब बचाएँगे. नहाना तो निपटाते ही चलें, कम से कम घर पर पानी ही बचेगा.
यही
सोच कर मेरी लाला बुद्धि ने भी जोर मारा कि खाना तो अब बनाना ही है तो क्यूँ ना
इसकी रिकॉर्डिंग करके यूट्यूब पर खाने का चैनेल ही शुरू कर दिया जाए.
देर सबेर पॉपुलर हो गया तो कमाई का ज़रिया बन जाएगा वरना नाम तो हो
ही जाएगा. ऐसा ही कुछ सोच कर तो हिन्दी ब्लॉग पर लिखना शुरू
किया था.१३ साल लिखते हुए पूरे हो गये, कमाई की गुंजाइश तो अभी
आने वाले १३ साल भी नज़र नहीं आती मगर नाम तो कुछ कुछ मिल ही गया. अब तो लगने लगा है की हिन्दी लेखन से कमाई में बस देर है, सबेर तो शायद है ही नही. विकास से मिलता जुलता है,
सुनें रोज मगर देखने के लिए आँख तरस जाये.
यूएफओ
किचन के नाम से चैनेल शुरू हो गया. हम खाना बनाएँ,
पत्नी शूटिंग और रिकॉर्डिंग करें. अब वो बहाना
भी ख़त्म कि खाना बना कर थक गये, अब ज़रा बढ़िया चाय बना कर पिला
दो. जब तक हम यह बोलें, उसके पहले ही
वो कह उठती हैं, शूटिंग करते करते थक गये, खाना तो बन ही गया है. अब ज़रा चाय भी बना लो,
तो आराम से बैठ कर तुम्हारे साथ चाय पियें. अब
चाय भी अब हम बनाने लगे. रात में की गई शूटिंग की थकान सुबह
तक तारी रहती तो सुबह की चाय भी हम पर ही. कसम से अगर शूटिंग
करने के लिए किचन में ना आना होता तो अब तक तो किचन का रास्ता भी इनको जीपीएस से
देख कर आना पड़ जाता.
ऐसे
ही तो आदत बदलती है. ये नेता और बड़े अधिकार कोई
पैदायशी बेईमान थोड़ी न होते हैं.सहूलियत मिल जाती है और
मौका लग जाता है तो हो लेते हैं. कौन नहीं धन धान्य और आराम
चाहेगा? आराम मिलने का मौका लग गया तो कर रहे हैं.
एक
बड़ी दिलचस्प बात किसी ने यूट्यूब पर कमेंट करके पूछी कि आप कितने प्यार से खाना
बनाते हो हँसते मुस्कराते हुए और न तो कोई गंदगी होती है, न ही कभी मसाला कम
ज्यादा और न ही कभी खाना देर तक पकने से जला.
अब उनको कौन समझाए कि जो दिखाया जाता है, वो
वो होता है जो दिखाना होता है. सब कुछ पूरा पूरा
दिखायें तो हमारा चैनेल तो बहुत छोटी सी बात है, सरकार भी
दुबारा ना बन पाये. ये बात हम भी जानते हैं, सरकार भी और फ़िल्में बनाने वाले भी. फरक सिर्फ़
इतना है कि बाद वाले दो यही सब अच्छा अच्छा दिखा कर एक दिन में 50- 50 करोड़ बना लेने का माद्दा रखते हैं.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अक्टूबर
२७, २०१९ में प्रकाशित:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
5 टिप्पणियां:
घर से निकले हरि भजन को, ओटन लगे कपास.
Excellently extrapolated domestic traits, likes-dislikes into overall scenario. Great going....
या कह लें, जो दिखता है वही बिकता है !
व्वाहहहह..
बेहतरीन..
सादर.
"अब उनको कौन समझाए कि जो दिखाया जाता है, वो वो होता है जो दिखाना होता है. सब कुछ पूरा पूरा दिखायें तो हमारा चैनेल तो बहुत छोटी सी बात है, सरकार भी दुबारा ना बन पाये."
क्या बात कही है सर....हास्य-व्यंग से भरपूर मगर सत्य उजागर करती हुई कमाल का सृजन,सादर नमस्कार सर
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