सुजलाम सुफलाम, मलयज शीतलाम//शस्यश्यामलाम,
मातरम//शुभ्रज्योत्स्ना
पुलाकितायामिनिम//फुल्लाकुसुमिता द्रुमदला शोभिनीम//सुहासीनीम,
सुमधुर
भाषिणीम//सुखदम,
वरदाम,
मातरम//
तिवारी जी भाव विभोर हुए मंच से आँख मींचे पूरे
स्वर में गीत गा रहे थे. वे ’भाषा का स्तर और संयमित भाषा के महत्व’ पर बोलने के
लिए आमंत्रित किये गये थे. वे सरकारी उच्च भाषा समिति के मनोनीत गैर सरकारी प्रदेश
महासचिव हैं अतः उन्हें मुख्य अथिति भी बनाया गया था.पद बना रहे इस हेतु आजकल हर
मंचों से अपने बोलने की शुरुवात इस गीत से करते हैं. कुछ लोगों के बोल लेने के बात
अभी गीत खत्म कर वो अपनी बात कहने को ही थे कि एकाएक माइक खराब हो गया. माइक वाले
को आवाज दी गई मगर वह नदारत. पता चला कि उसे आख्यान व्याख्यान से क्या लेना देना?
उसे तो आज कमाई हुई है तो वो कुर्सी वाले के साथ दारु पीने निकल गया है और रात में
माइक खोलने ही लौटेगा.
तिवारी जी का कार्यक्रम असमय ही वीर गति को
प्राप्त हुआ और वो ही हाल उनके भाषा के संयम का हुआ. वे एकाएक माइक वाले को
गालियाँ बकने लगे जोर जोर से चीख चीख कर. तिवारी जी के मूँह से ऐसी निम्न स्तरीय
भाषा और गालियाँ निकलते देख सभी दिग्गज संभ्रांतों और अपने आपको स्तरीय भाषा के
मठाधीष और ठेकेदार समझने वालों का चेहरा हक्का बक्का रह गया. हालांकि व्यक्तिगत
तौर पर उनके हाल भी बेहाल ही हैं मगर चोर जब तक पकड़ा न जाये, चोर नहीं कहलाता. हमाम
में तो सभी नंगे हैं मगर मंच पर अपना नहीं तो मंच का तो ख्याल रखना था, ऐसा सबका
मानना था.
उपस्थित लोगों ने माइक वाले को दी जा रही
गालियाँ सुनी मगर उसने बस न सुनी जिसे सुनाई गई थी. वो तो दारु पीने में मगन था.
गाली माइक वाले के पिता को भी बकी, मगर उन्होंने भी नहीं सुनी. दिवंगत के कान नहीं
होते. इसीलिए कहा जाता है कि दिवंगत का असम्मान करना आसमान की तरह मूँह उठाकर
थूकने जैसा है. सारा थूक तुम्हारे मूँह पर ही गिरेगा और जो देखेगा वो हँसेगा कि ये
इनके चेहरे पर कौन थूक गया? इसी कतार में बकी गई गालियाँ न उसकी दादी ने सुनी और न
ही उसके नाना ने, क्यूँकि वह भी दिवंगत थे. सुनी तो उसकी माता जी ने भी नहीं,
क्यूँकि वह तो घर पर सो रहीं थी.
अगले दिन के अखबारों ने इस समाचार को मुख
प्रष्ठ पर पूरी तवज्जो से छापा कि ’स्तरीय भाषा के महत्व पर आख्यान देते हुए
तिवारी जी ने भाषा के निम्नतर स्तर का नया रिकार्ड बनाया’. बेवजह तिवारी जी भड़के.
अगले ही रोज उन्हें उच्च भाषा समिति के प्रदेश महासचिव पद से भी हटा दिया गया. अब
वे लेटर पैड में प्रदेश महासचिव के आगे पैन से भूपू (भूतपूर्व) लगाकर ज्ञापन जारी
करते हैं, जिसे कोई नहीं छापता. भूपू वह भौंपू होता है जिसे सिर्फ बजाने वाला ही
सुनता है बाकी कोई नहीं. यह मात्र अपने सामाजिक सम्मान की गिर चुके महल की आखिरी
दीवार को बल्ली से टिका कर उसे भी महल कहलवाने का कवायद है. जबकि वो भी जानता है
कि अब न ये महल रहा और न ही उसकी शान और शौकत. मगर यह भी उतना ही सच है कि राजा
चाहे फकीर ही क्यूँ न हो जाये मगर किस्से तो राज दरबार के ही सुनायेगा. भले ही एक
फकीर से राज दरबार के किस्से सुन लोग उसे पागल ही करार क्यूँ न दे दें.
आजकल तिवारी जी चौक पर पान की दुकान पर बैठे
घंसू और अन्य चौकबाजों को ’गालियों के सामाजिक महत्व एवं भाषा में उनकी अपयोगिता’
पर आख्यान देते नजर आते हैं. धीरे धीरे उनको सुनने वालों की संख्या भी दिन ब दिन
बढ़ती जा रही है. कंठ तो शुरु से ही मधुर पाया था तो गालियाँ भी लयबद्ध तरीके से
बिना सुर टूटे बककर तब अपना आख्यान शुरु करते हैं कि कुछ बातें बिना गाली का संपुट
लगाये समझ में आ ही नहीं सकती. बिना गाली के वो बात अपना वजन खो देगी.
आगे कहते हैं कि दो खास मित्रों की दोस्ती की
गहराई भी आपस में बातचीत के दौरान बकी गई गालियाँ से ही नापी जाती है, तो दूसरी
तरफ, दुश्मन से दुश्मनी कितनी है उसे नापने में भी गालियाँ ही सहायक होती हैं.
तिवारी जी बताते हैं कि तुम क्या जानों इसका
सांस्कृतिक महत्व. यूपी और बिहार में तो विवाह के शुभ मौके पर लड़की वाले लड़के के
एक एक रिश्तेदार का नाम ले लेकर गालियाँ गाते हैं तब दो परिवार आपस में परिवारिक
संबंधी बन पाते हैं.
तो आगे से याद रखना कि कोई यदि आपको गाली बक
रहा है तो जरुरी नहीं कि दुश्मनी ही कर रहा है. हो सकता है उसके साथ आपका जीवन भर
का प्रगाढ संबंध जुड़ रहा हो.
-समीर लाल ’समीर’
दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मई
१२, २०१९ को:
5 टिप्पणियां:
बहुत खूब !! बिना एक भी गाली का उपयोग किये, गाली के सभी प्रकार और आयाम अवतरित कर डाले। साथ ही किसी व्यक्ति के अंतर- बाहिर व्यक्तितव का अंतर्द्वंद विभिन्न परिस्थितियों में उसकी भाषा बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है ! इतना ही नहीं गाली का सांस्कृतिक पर्यवेक्ष भी संदर्भित किया है। यह आपकी उत्कृष्ट लेखनी का प्रतीक है |
लिखते रहिये, लिखते रहिये, ....अगले लेख के इंताजर में ....
वैसे भी गालियो का सामाजिक मह्त्व के साथ साथ अब तो राजनैतिक महत्व भी बढ गया है
और फिर हमारा देश इस बात पर गर्व भी तो कर सकता है कि वह विश्व में सबसे बडा गाली उत्पादक देश है
बेहतरीन अंदाज़
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-05-2019) को "लुटा हुआ ये शहर है" (चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती जी की 101वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सटीक आलेख
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