शनिवार, फ़रवरी 16, 2019

आई लव यू अभिव्यक्ति नहीं, अनुभूति हुआ करती थी



भारत में वेलेंटाईन डे का प्रचलन कब से आया यह तो ठीक ठीक पता नहीं. इतना जरुर याद है जब बीस साल पहले भारत छोड़ा था तब तक कम से कम हमारे शहर, जो महानगर तो नहीं था किन्तु फिर भी बड़ा शहर तो था ही, में नहीं आया था. हमारे समय में तो खैर बीबी को भी आई लव यूबोलने का रिवाज न था. लड़ नहीं रहे. डांट नहीं रहे. मार पीट नहीं कर रहे. तो इसका अपने आप यहीं मतलब होता था कि आई लव यू’.
तारीफ करने में भी यही हाल था. अगर खा रहे हैं तो इसका मतलब ही है कि खाना अच्छा बना है वरना तो मूँह बना कर बोल ही देते कि क्या खाना बनाया है? इतना नमक भी कोई खाता है क्या? कोई तो थाली उठा कर फेंक देते थे. अगर ये सब नहीं किया है मतलब कि खाना ठीक बना है. कपड़े और मेक अप की भी कभी तारीफ न करते. खराब लगा तो जरुर बोल दिया करते थे कि ये क्या कपड़े पहने हैं? या क्या बंदर जैसा मूँह रंग लिया है?
लाल गुलाब की उपयोगिता भी अलग थी. बुके जैसी प्रथा सिर्फ किसी महिला का पुरुष द्वारा मंच से सम्मान के लिये थी. लाल गुलाब अचकन में लगा कर चाचा नेहरु बना करते थे बाल दिवस पर. बारात के स्वागत में भी लाल गुलाब के फूल चाँदी के धागे से लपेट कर लोगों के कोट में लगाये जाते थे. लाल गुलाब देकर प्यार जताना तो ख्वाब में भी नहीं आता था.
तब अगर विवाह पूर्व प्रीत हो जाये तो प्यार का इज़हार नजरों से होता था. किताब में छिपा कर दिये पत्रों से होता था. लड़की की सहेलियों के भाईयों कें माध्यम से होता था. साईकिल से बार बार उसके घर के सामने से निकलने से होता था. गुलाब इज़हार का माध्यम न था. न फोन होते थे, न व्हाटसएप, न फेसबुक. जो था वो बस फेस वेल्यु, वो भी दूर दूर से देखी.
प्रेम पत्र का आदान प्रदान, छिप छिपा कर दो मिनट के लिए उससे उसकी सहेली की उपस्थिति मे मिल कर ही जीवन भर साथ रहने के ख्वाब बुनना और फिर घर से भाग कर शादी कर लेना और पूरे शहर में चर्चा का विषय बन जाना ही प्रथा थी.
इस वेलेन्टाईन डे ने आकर तो एकदम प्रेम क्रांति ही ला दी है. क्रांति भी ऐसी कि एकदम आधुनिक क्रांति. जिस बात के लिए क्रांति हुई, उससे जैसे ही मतलब सधा तो क्रांति का अर्थ ही बदल गया. लोकपाल के लिए क्रांति अलोकपाल पर जा ठहरी जैसे ही सत्ता हाथ लगी. इमानदारी की क्रांति करने से  लाये गये सत्ताधीश खुद ही अपने मित्रों को मालामाल करने में लग गये.
वेलेंटाईन डे के आने से, आज जितना खुले आम प्रेम का इज़हार हो रहा है. जितना आसानी से फूल देकर आई लव यू बोला जा रहा है. जितनी आकांक्षायें गिफ्ट के लेने देन और प्रेम के इज़हार के लिए बढ़ी हैं, प्रेम की उम्र उतनी ही घट गई है. प्रेम बंधन उतने ही ढीले हो गये हैं.
बहुत अधिक मीठा भी कड़वा लगने लगता है. शायद यही कारण होगा. इत्ता ज्यादा प्रेम का इज़हार कि उम्मीदें आसमान छूने लगें और फिर जब हकीकत के धरातल पर कदम रखो तो आसमन दूर नज़र आये और फिर दूरियाँ बढ़ने लगें उतनी ही जितना की आसमान दूर है.
आज के संबंध जितनी आसानी से आई लव यू बोल देने के साथ एक ताजा गुलाब देने से बन जाते हैं, उतनी ही तेजी से गुलाब के मुरझाते ही टूट जाते हैं. अपवाद तो खैर होते ही है.
मगर ऐसा लगता है कि वही वक्त बेहतर था जब इज़हारे मोहब्बत आई लव यूअभिव्यक्ति नहीं, अनुभूति हुआ करती थी..
आई लव यू भी अब एक जुमला ही बन गया है जिसे निभाना कतई जरुरी नहीं.
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में सोमवार फरवरी १७, २०१९ को:    


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3 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 136वां बलिदान दिवस - वासुदेव बलवन्त फड़के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति। सच्चाई बयां करता आपका यह लेख पढ़कर मज़ा आ गया।👌😊

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सटीक आलेख। अब तो आई लव यू बस शब्द बन कर रह गए हैं।