जबसे इन्टरनेट और
व्हाटसएप की दुनिया आबाद हुई है मानो दुनिया ही बदल गई है. जो जैसा दिखता है वो
वैसा होता नहीं है. या यूँ कहें जो जैसा होता है वैसा दिखता नहीं है.
अपवादों को छोड़ दें तो
आभासी दुनिया में सेल्फी ने सेल्फ कॉन्फिडेन्स बूस्टर का काम किया है. जीरो सेल्फी
में हीरो नजर आता है. फिल्टर लगा कर जब सेल्फी खींच कर लगाई तो बहुत सारे
काम्पलिमेन्ट तो हमें ही मिल गये कि कनाडा जाकर रंग साफ हो गया है जबकि असलियत तो
ये हैं कि जो काम सैकड़ों फेयर एण्ड लवली क्रीम हमारी जवानी में न कर पाई, वो काम
एक फिल्टर ने सेल्फी पर कर डाला. काश!! हमारी जवानी में भी सेल्फी का दौर होता. कई
बार मन यही सोच कर रुआंसा सा हो जाता है. फिर मन को खुद की सेल्फी दिखा कर खुश कर
लेते हैं.
मेरे एक मित्र जो अपने घर
से चार कदम नुक्कड़ पर पान खाने भी कार से जाते हैं और लौट कर कुछ और काम करने के
पूर्व आराम करते हैं. कौन जाने कार में चढ़ने उतरने से थके या पान खाने में जबड़े
हिलाने से मगर थके जरुर. वो आये दिन अपनी सेल्फी हाफ पैण्ट और टीशर्ट पहन कर पसीना
पसीना पोज में चढ़ाते हैं कि फीलिंग हैप्पी- फुल मैराथन. मुझे पूरा विश्वास है कि
मैराथन भी उन्होंने उसी कार में बैठ कर पूरी की होगी मगर सेल्फी खिंचवाने के लिए
उतरने चढ़ने में पसीना पसीना हो गये होंगे.
मैराथन जहाँ एक ओर
आयोजकों की मोटी कमाई का जरिया बना हुआ है वहीं दूसरी ओर दौड़ने वालों से ज्यादा
सेल्फीबाजों का महोत्सव बन गया है. उस रोज उनके घर फोन लगाया तो नौकर से पता लगा
कि साहब और मेमसाहब दोनों फोटोग्राफर को लेकर मैराथन में गये हैं सेल्फी खिंचवाने.
नौकरों का यही हाल है घर का भेदी लंका ढाहे. नौकरों के चक्कर में बहुतेरे साहब
लंबा नपाये हैं फिर चाहे वो सीबीआई या आरबीआई के सरकारी नौकर ही क्यूँ न हों. तो
इतना सा खुलासा अगर इस नौकर ने कर भी दिया तो ठीक है.
हम तो खैर उस देश के वासी
है जिसका विकास ही सेल्फी की जकड़ में है. जिसका विकास एम्बेस्डर स्वयं सेल्फी पीर
है. कैमरे पर चौकीदारी करने वाला कमरे के पीछे भागीदारी में जुटा है. कैमरे पर
सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाला कैमरे के पीछे मितरों के विकास में लगा है.
मैराथन से याद आया आजकल
शुभकामनाओं का मैराथन उत्सव चल रहा है. जैसे मैराथन में कोई दौड़ता है, कोई चलता
है, कोई सिर्फ आता है मगर सेल्फी सभी खिंचाते हैं और डीपी बनाकर चढ़ाते हैं. वैसे
ही उत्सवधर्मी देश में शुभकामनायें देने का ऐसा प्रचलन चल पड़ा है कि अगर कोई
पैमाना हो इसे नापने का तो दिल्ली के प्रदुषण से ज्यादा घातक सिद्ध होगा.
एक एक बंदा एक एक बंदे को
एवरेज चार से छः बार बधाई और शुभकामनायें चिपका रहा है फिर भी और चिपकाने को भूखा
है, मानो ससुराल में जमाई जी का स्वागत हो रहा है. एक पूड़ी ओर. जमाई बाबू खा खाकर
बेहोश होने की कागार पर हाथ से प्लेट ढांके हैं मगर सासु माँ साईड से जगह देखकर एक
पूड़ी और सरका ही गईं. भ्रष्टाचारी नेताओं की भूख को पछाड़ने का माददा अगर किसी में
है तो वो शुभकामनाओं के प्रदानकर्ताओं में है.
स्टीकर, कॉपी पेस्ट, टेक्सट,
जीआईएफ, जेपीजी, विडिओ, पीडीएफ, यूट्यूब और भी न जाने क्या क्या है इस शुभकामनाओं
के मैराथन में..मगर हर का सार..बधाई और शुभकामनायें. हालत ये हो गये हैं कि मरनी
करनी में भी बधाई और शुभकामनायें देने से न चूक रहे हैं ये लोग.
आपके पिता जी दुखद निधन
पर सादर नमन. ॐ शांति. गोवर्धन पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें. ईश्वर आप पर
ऐसी ही कृपा सालों साल बरसाये, यही कामना.
दूसरा कह रहा है, रात के
ग्यारह बज गये हैं. १० बजे के बाद से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियाँ उड़ रही
हैं दिल्ली में. अभी तक कर्ण भेदी पटाखों की आवाज थम नहीं रही. दुखद एवं शर्मनाक.
दीपावली के इस पर्व पर आप सभी को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें. धूम धड़ाके के साथ
मनायें.
इन आभासी दुनिया के शुभकामनाकर्ताओं
ने मार्केट पर ऐसा कब्जा कर लिया है कि अब आप किसी के घर सच में जाकर शुभकामना दें
तो अगला सोचता है कि मिठाई खाने भुख्ख्ड़ चले आये वरना शुभकामना तो व्हाटसएप पर भी
दे सकते थे.
लोगों की परवाह किये बगैर
जो जितनी शुभकामना बरसा रहा है वो उतनी पा रहा है, फिर भले ही अंदर अंदर लोग उससे
चाहे परेशान ही क्यूँ न हों. कौन देखने जा रहा है कि क्या वो सच में आपको शुभकामना
दे रहा है कि भरमा रहा है. यह बात हमारे सेल्फी पीर और उनकी टीम भली भाँति जानती
है और इसी तरह विकास की सेल्फी चिपका चिपका कर झूठ सेल्फी ही सही, वोट तो ले ही
जायेगी आपका.
फिर आप जैसे आज शुभकामना
संदेश डिलिट करने में परेशान हो, तब विकास की तस्वीरें
डिलिट करते रहना, वो तो पाँच साल को पुनः स्थापित हो ही जायेंगे.
सोते रहना है कि जागना है
अब, आप तय करो और एक सेल्फी खींच कर डीपी बनाओ कि हम जाग गये हैं अब.
समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे में रविवार नवम्बर ११, २०१८
ब्लॉग पर पढ़ें:
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#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-11-2018) को "ऐ मालिक तेरे बन्दे हम.... " (चर्चा अंक-3153) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Very sharp observation on a small topic of Selfie, build into a complete article with satire on what people present is different from reality.
Great!!!!!
रोचकता से भरपूर समसामयिक लेख ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. सालिम अली - राष्ट्रीय पक्षी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सेल्फी की हकीकत को खरी-खरी बयाँ करती रोचक पोस्ट
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