शनिवार, जुलाई 15, 2017

छिद्दन बाबू कहत रह चिंता में सरकार

बताते हैं छिद्दन बाबू का नाम चिन्तन के अपभ्रंश से बना. बचपन में उनका नामकरण चिन्तन हुआ था. जथा नाम तथा काम की तर्ज पर बचपन से हर विषय पर इतना अधिक चिन्तित हो लेते कि पूरा परिवार परेशान हो उठता. ऐसे में ही एक बार बारिश को देखकर ऐसा चिन्तित हुए कि कहने लगे कि जाने कौन को ऐसी गजब गुंडई छूटी है कि पूरा आसमान छेद डाला. बचपने के इस चिन्तन की चर्चा पूरे गांव में माखौल का विषय बनी और चिन्तन बाबू को लोग छिद्दन बाबू पुकारने लगे, मगर उनकी हर विषय पर चिन्तित रहने की आदत न गई.
इसी चिन्ता चिन्ता में पढ़ लिख तो अधिक न पाये मगर दखल हर विषय में देने लगे. प्रभु की कृपा से वाणी भी ओज़ भरी पाई तो कालान्तर में जब किसी विषय पर चिन्तित होकर अपनी चिन्ता प्रकट करते और उसका हल सुझाने का दावा करते तो लोग उन्हें मगन होकर सुनते.
सुबह से लेकर शाम तक वह चौराहे पर चौरसिया जी की पान की दुकान के बाहर बैंच पर बैठे पर चिन्तन करते रहते और जहाँ चार पाँच सुनने वाले इक्कठे हो जाते तो अपना ओजस्वी भाषण भी दे डालते. यही उनकी दिनचर्या रही है.
छिद्दन बाबू का तकिया कलाम रहता कि अरे ससुरे, हमसे तो पूछ लेते एक बार..हम बताते न उनको समस्या का हल चुटकी में. बात करते हैं!!
इसी हल बताने की श्रृंखला में कभी वह नोट बंदी पर चिन्तन करते हुए पाये गये कि ये तो कोई तरीका न हुआ काला धन निकलवाने का.. अरे ससुरे, हमसे तो पूछ लेते एक बार..हम बताते न उनको, काला धन मिनटों में बाहर निकलवा देते. हम तो वो बला हैं कि काला धन तो क्या, काला नाग बिल में मिनटों में बिना बीन बजाये बाहर निकाल डालें..बात करते हैं. ऐसे में कोई अगर पूछ बैठता कि छिद्दन बाबू, अगर आपसे पूछते तो आप क्या हल बताते? छिद्दन बाबू लगभग चीखते हुए कहते कि पूछते तब की तब बताते..अब उनने अपनी मन की कर ली है तो अपनी ही करें..हमसे न पूछें..वरना तो हमारा गुस्सा जानते ही हो..इधर उनकी स्कीम और इधर हाथ में हमारा जूता..बात करते हैं!
बस, गुस्से में रिसाये बोलते रहते कि पहले पूछते तो हल बताते..अब जाओ अपने मन की ही करो!! मगर कभी हल न बताते..
उनके जानने वालों को बस उस दिन का इन्तजार है जब कोई किसी बात के हल पर अपना तरीका न आजमाकर पहले छिद्दन बाबू से हल मांगने आ जाये और लोग देखें कि कैसे छिद्दन बाबू ने चुटकी बजाते ही हल कर दी समस्या. मगर यह भी काला धन निकल आने की तरह ही शास्वत इन्तजार का विषय ही बना रहा गया है अब तक तो.
आज छिद्दन बाबू भारत चीन समस्या को लेकर चिन्तित दिखे. कहने लगे ये तो हमेशा की समस्या रही है फिर आज क्यूँ कूद कर सामने आ रही है. वैसे भी इसका हल तो चुटकी में निकाल सकता हूँ मगर ससुरे हमसे पूछे तब न.. करने दो उन्हें उनके मन की.
अभी पहले का चिन्तन का कोई हल निकल न पाता इसके पहले एक नई समस्या की चिन्ता की आँधी पुरानी चिन्ता को अपने गुबार के नीचे दबा डालती. लोग उनके नये ओजस्वी भाषण सुनने लगते और पुरानी समस्या भूल जाते..ऐसा लगता कि वो समस्यायें अब न रही और बस, एक ही समस्या बच रही है कि भारत चीन न भिड़ जायें आपस में...
गहराई से सोचें तो यह मात्र छिद्दन बाबू की चिन्ता के साथ नहीं है ..पूरा देश इसी लपेटे में हिचकोले खाते हुए जिये जा रहा है...और हमारे रहनुमा इस बात से भली भाँति परिचित हैं कि आज की समस्या को हल करने के लिए कल बस एक नई समस्या ही तो चाहिये..जनता का क्या है वो उसके हल के लिए बिलबिलाने लगेगी..
यही नियति है जनता की और यही तरीका भी इतने बड़े देश को चलाने का...
भारत चीन के आगे कई जहाँ और भी हैं..आगे आगे देखिये होता है क्या!!
-समीर लाल ’समीर’

भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई १६, २०१७ अंक में प्रकाशित
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9 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

Wonderful observation and depiction

Atul Gupta ने कहा…

वाह वाह। गज़ब का प्रहार। हर सरकार का प्रयास है-

सोचने के लिए हर वक़्त उन्हे एक विषय देना चाहिए।
जो हो रहा है "समीर" उससे नज़र तो हटना चाहिए।

Tapashwani Kumar Anand ने कहा…

वाह सर आपने तो बिलकुल सजीव वर्णन कर दिया समाज का.. आज पूरा समाज २ हिस्सों में बँटा है
१. छिद्दन बाबू
२. श्रोता गण
जो बुद्धिमान हैं वो राजनीति में चले गए हैं ।

PRAN SHARMA ने कहा…

Aapki lekhni Ke Kya Hee Kahne !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सटीक और बेहतरीन लिखा.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर। आगे कुछ नहीं होगा।

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १७५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "१७५० वीं बुलेटिन - मेरी बकबक बेतरतीब: ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गली-गली में छिद्दनों की भरमार हो गयी है। सच कहें तो देश ही छिद्दनमय हो गया है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

समाज का सजीव वर्णन कर दिया सर जी