एक नया प्रयोग..गीता सार...आज के समय के लिए..
क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे
व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...
भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है
और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है
(पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार
में ले लेना)
कल घूस नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा
होगा.
नोटबंदी और नोट बदली का दौर चल रहा है...
तनिक धीरज धरो...हे पार्थ,
वो कह रहे हैं न, बस पचास दिन मेरा साथ दो..दे दो!!
फिर उतनी ही जगह में डबल भर लेना.
१००० की जगह २००० का रखना.
इस धरा पर कुछ भी तो शाश्वत नहीं..आज यह सरकार
है..
हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे....का मंत्र कभी
खाली नहीं जाता;;
अतः कल कोई और सरकार होगी..
वैसे भी तुम्हारा क्या गया, कोई
मेहनत का पैसा तो था नहीं, जो तुम रो रहे हो...
माना कि इतने दिन छिपाये रखने की रिस्क ली मगर
उसके बदले ऐश भी तो की, काहे दुखी होते हो.
(सोचो, छापा पड़ने के पहले ही सब साफ सफाई हो गई
वरना क्या करते? इसी बात का उत्सव मनाओ..
अगर छापा पड़ जाता तो नौकरी से भी हाथ धो बैठते )
तुम्हें जो कुछ मिला, यहीं से मिला
जो कुछ भी आगे मिलना है, वो भी यहीं
से मिलेगा.
पाजिटिव सोचो..आज नौकरी बची हुई है
वो कल भी बची ही रहेगी..
सब ठेकेदार आज भी हैं
वो सब के सब कल भी रहेंगे..
शायद चेहरे बदल जाये बस..
साधन खत्म नहीं किये हैं..बस, नोट खत्म किये हैं..
इन्तजार करो, नये छप रहे हैं..
साधन बने रहें तो नोट कल फिर छपकर तुम्हारे पास ही आयेंगे..
लेन देन एक व्यवहार है..और व्यवहार भी भला कभी
बदलता है..
.
आज तुम अधिकारी हो, तुम ले लो.. कल कोई और होगा..वो ले लेगा और परसों कोई और.
कल तुम अधिकारी नहीं रहोगे
परसों तुम खुद भी नहीं रहोगे
यह जीवन पानी केरा बुदबुदा है...
और तुम इसे अमर मान बैठे हो और इसीलिए खुश हो
मगन हो रहे हो.
बस यही खुशी तुम्हारे टेंशन का कारण है.
बस इसलिए तुम इतना दुखी हो...
कुछ नहीं बदलेगा..आज ये फरमान जारी हुआ है..कल
नया कुछ होगा.
जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, वह
मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.
और खुद को खुदा साबित करने की जुगत...
आँख खोलो..जिसे तुम अपना मानते रहे और हर हर
करते रहे- वो भी तुम्हारा नहीं निकला.
जीवन में हर चोट एक सीख देती है..
यही जीवन का सार है...
जो इन चोटों से नहीं सीखा..
उसका सारा जीवन बेकार है...
तो हे पार्थ ..आज इस चोट से सीखो...
अब तुम अपने घूस के रुपये को सोने को समर्पित करते
चलो..
कागज को कागज और सोने को सोना समझो..
यही इस जीवन का एक मात्र सर्वसिद्ध नियम है..
अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने सीए से भी
शेयर करो
वह तुम जैसों के लिए धरती पर प्रभु का अवतार
है..
प्रभु को दान देने से जीवन धन्य होता है..
उसकी शरण में जाओ..
वही तुम्हारी जीवन नैय्या पार लगवायेगा..
और जो मनुष्य इस नियम को जानता है
वो इस नोटबंदी और काला धन को ठिकाने लगाने की टेंशन
से सर्वदा मुक्त है.
ॐ शांति...
-स्वामी समीर लाल 'समीर'
फोटो: गुगल साभार
8 टिप्पणियां:
बहुत मजेदार। ... वैसे भी तम्हारा क्या गया। ..
कुछ नहीं बदलेगा..आज ये फरमान जारी हुआ है..कल नया कुछ होगा.
जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, वह मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.
प्रभु ! धन्य हैं आप !!! महाभारत के बीच समय निकालकर मुझे कृतार्थ किया। ..
बहुत बढ़िया।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 25 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन तंज....
मजेदार प्रस्तुतिकरण ,आज का गीता सार
बहुत उपयुक्त ,समयानुकूल !
सामयिक व्यंग्य
वाह।
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