रविवार, सितंबर 25, 2016

सच कह न पायेंगे लब...



सच कह न पायेंगे लब, आँखों की जुबां पढ़ना
पढ़ पाओ खुद को जब तुम, औरों की जुबां पढ़ना...
जो तुम में बस गया है किरदार अजनबी सा
उसे जानने की खातिरगैरों की जुबां पढ़ना..
किस प्यार से चमन को सींचा है बागबां ने...                
जब  गंध कुछ न बोलेभौरों की जुबां पढ़ना..
है सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल 
इक दौर क्या मुनासिबदौरों की जुबां पढ़ना..
जाना समीर ने कब गम है किसी को कितना
मुस्काते गुल मिलेंगेखारों की जुबां पढ़ना..


-समीर लाल समीर
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10 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Behtreen

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर ... खारों की जुबां गर पढ़ पायें तो सब कुछ कितना सरल हो जाए .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आपकी तो बात ही क्या - कितने दिनों बाद कलम को मौका मिला ,आशा है ये क्रम चलता रहेगा !

Laxmi ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है। "सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल इक दौर क्या मुनासिब, दौरों की जुबां पढ़ना" बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है। बधाई।

Parul kanani ने कहा…

Behad umda sir

मनोज भारती ने कहा…

बहुत खूब !!!


कविता रावत ने कहा…

जाना समीर ने कब गम है किसी को कितना,
मुस्काते गुल मिलेंगे, खारों की जुबां पढ़ना..
बहुत सुन्दर ...!?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अवश्य पढ़ेंगे दिल और नजर की जुबां .....

Parul kanani ने कहा…


है सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल
इक दौर क्या मुनासिब, दौरों की जुबां पढ़ना...
kya khoob keha sir

संजय भास्‍कर ने कहा…

Gurdev बहुत खूब :))