जब कनाडा आया था तो यहाँ के नियमों के हिसाब से कार चलाना पुनः सीखना पड़ा.
सारे नियम जुदा भारत से. सड़क के उल्टी तरफ गाड़ी चलाना, स्टेयरिंग उल्टी तरफ, कोई क्लच नहीं-बस, ब्रेक और एक्सिलेटर. ऑटो गियर. एक बार लगा दिया और बस, फिर एक्सिलेटर और ब्रेक पर ध्यान दो.
तेज रफ्तार और हर थोड़ी देर में बेक मिरर में देखना कि पीछे से चला आ रहा बंदा कितनी दूर है या क्या एक्शन ले रहा है. जिसे आप पीछे छोड़ आये, उसका भी ध्यान रखो. पीछे छूटा और रात गई, बात गई वाली बात नहीं चलती.
काश, मेरी जिन्दगी में भी ऐसा नियम बना होता बैक व्यू मिरर में लगातार देखते रहने का. पलट कर देखता हूँ तो आगे ठोकर खा कर गिरने का खतरा बन जाता है. बैक व्यू मिरर का सिस्टम है नहीं. बस, जो गुजर गया वो गुजर गया. याद में बसा लो. कभी याद करके आंसू बहा लो, कभी मुस्करा लो मगर देखने का जोखिम मत लो पलट कर.
कितने लम्हें हैं जिन्हें देखने का मन करता है. फिर से जी लेने का मन करता है मगर हाय!! ये जीवन. ऐसी सुविधा ही नहीं देता.
आंसू बहता हूँ, लोग हँसते हैं. हँसता हूँ लोग इर्ष्या करते हैं. अजब दुनिया है.
बस, वन वे ट्रेफिक है हर तरफ. जिधर निकल पड़ो वो तुम्हारी इच्छा है. बस, वापसी की चाह मत रखना.
क्या पीछे छूटे भी मुझे नहीं देख पाते. क्या उनके मन में वही सवाल नहीं उठते. फिर वो ही क्यूँ नहीं आगे आ कर मेरा गुजरा सावन लौटा जाते. उन्हें कौन रोकता है आगे बढ़ने से. अपनी स्पीड बढ़ाने से.
मगर मैं ही कब अपनी स्पीड बढ़ा कर किसी को कुछ लौटा पाया जो कोई मेरे लिए यह काम करेगा. मैं भी तो बस उसी के लिए परेशान हूँ जो मैने खोया है. दूसरे की चिन्ता मैने कब कब की जो मेरी कोई करेगा.
पर अपनी कमीज में कब किसे दाग नज़र आये हैं. बस, यूँ ही जिन्दगी दौड़ी जा रही है और मैं आज का सीन ख्त्म कर पैक अप मोड में आ गया हूँ. नहा लूं तो सो जाऊँ.
कल उठ कर फिर वन वे ट्रेफिक का हिस्सा बन जाऊँगा खुशी खुशी.
ये सब बातें तो तब परेशान करती है, जब आप दिन की पूरी यात्रा कर आराम करने निकलते हैं..फिर. फिर क्या-एक दिन गाड़ी रुक जायेगी. फिर न हम होंगे और न हमारी सोच. यात्रा पूरी हो जाएगी.
तब कोई और यही सोच रहा होगा.
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
-समीर लाल ’समीर’
110 टिप्पणियां:
shukria,aapke sujhav ka swagat hai.
car ke madhyam se aapne kya khub kaha hai!
'बैक व्यू मिरर का सिस्टम है नही'
है क्यो नही समीर जी! हम जो पीछे छोडते है वही पीछे छूटता है. और फिर उन्हे देखने के लिये पीछे देखने की जरूरत ही नही है वे तो हमसे पहले ही हमारे आगे आ जाते है और फिर हिसाब माँगने लगते है कि ---
आपने तो अपने इस आलेख से हमे भी उसी कसक से रूबरू करवा दिया.
वहॉ जी! क्या खुब पर हकीकत के आसपास जो आपने तानाबाना बुना वो हर मनुष्य के करीब से गुजरा। आपको पढना और फिर उसमे रम्मजाना(विलिन) एक सुन्दर प्रेरणास्पद हो जाता है जीवन मे।
आभार
हे प्रभू यह तेरापन्थ
SELECTION & COLLECTION
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए.
बी एस पाबला
बैक व्यू मिरर से याद आया कि हम हमेशा स्कूल में कन्फ्यूज रहते थे कि उत्तल दर्पण क्या है और अवतल दर्पण क्या है ( Convex & Concave) .
फिर एक दिन किसी ने बताया कि जो ड्राईवर के पास होता है वो उत्तल दर्पण और जो डेन्टिस्ट के पास होता है वो अवतल दर्पण।
कनाडा का रूल इंडिया में भी फॉलो होता है ...कई सडकों पर उल्टी दिशा से आना...बिना क्लच का इस्तेमाल किये केवल एक्सलरेटर पर पैर जमाये रखना और ब्रेक तो तब लगाना जब लगे कि इसे भी यूस करके देखते हैं कि कैसा लगता है :)
यादों को कुरेदने वाली पोस्ट।
मुझे तो एक शेर याद आता है यह आलेख पढ़ कर
खोया जो पा न सके ..जो पाया था वही खो बैठे
जब भी तसव्वुर में वो एक शख्स आया तो रो बैठे
खालिस अपना है ..इसलिए बेशक टिपण्णी कर सकते हैं बिना डरे ..!!
..फिर. फिर क्या-एक दिन गाड़ी रुक जायेगी. फिर न हम होंगे और न हमारी सोच. यात्रा पूरी हो जाएगी.
"बिल्कुल, एक न एक दिन तो सभी की यात्रा पूरी होनी है और हमारी जिंदगी भी वनवे की तरह ही है जो मंजिलें निकल गईं, उन पर पहुँचना बहुत आसान नहीं होता बिल्कुल वनवे की तरह" ।
इसे क्या सेंटियाना कहते हैं या नोस्टेल्जिक होना?
उधर तो ठीक है बड्डे इधर सारे नियम भूल जाना ज़रूरी है इधर का ओर जो भी याद आया हो उधर एप्लाय न करियो जो जिधर फ़िट वो उधर हिट
बस, जो गुजर गया वो गुजर गया. याद में बसा लो. कभी याद करके आंसू बहा लो, कभी मुस्करा लो मगर देखने का जोखिम मत लो पलट कर.
कितनी गहरी बाते आप यूँ ही सहज भाव से कह डालते है |
दिन जो पखेरू होते पिंजरे में मैंरख लेता
पलता उनको जतन से मोती के दाने देता
aapki soch badi payari hai,rear view mirror philosophy.
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
आज तो बहुत सूफ़ियाना अंदाज में? क्या बात है सरजी? सब खैर तो है? शुभकामनाएं.
रामराम.
गुरुदेव, भावनाओं का दर्द क्या होता है, अच्छी तरह समझता हूं...कभी-कभी इंसान को हर-दिल-अज़ी़ज़ होने की भी कीमत चुकानी पड़ती है...इतना ही कहूंगा...चश्मेबद्दूर...
हां, एक बात और, पुरानी फिल्म श्री 420 के एक गाने की पंक्तियां ज़रूर लिखना चाहूंगा...
मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के...
जिंदगानी के सफ़र में तू अकेला ही नहीं है
हम भी तेरे हमसफ़र हैं...
मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के...
आ गए मंज़िलों के निशान
लहरा के झूमा झुका आसमान
लेकिन रूकेगा न ये कारवां
आ हा हा आ
मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के...
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
सुन्दर.
india me U Turn lena , Sadak ho ya jeevan ka koi aham mudda bahut aasan hai .
ek galat exitaur fir lambaa safar .
maine dekha hai ek var jo is blog par aae
aapakee likhane kee shailee use fir se bulae |
india me U Turn lena sadak ho ya jeevan ke aham mudde badaa aasan hai .
aapaka ek galat exit safar ko aur lamba karata hoga ?
india me peak hours me B M W ko bhee rengate dekhane ka lutf uthaya ja sakata hai .
aapake blog par jo ek var aae
lekhanee aapakee fir use bulae.
कितने लम्हें हैं जिन्हें देखने का मन करता है. फिर से जी लेने का मन करता है मगर हाय!! ये जीवन. ऐसी सुविधा ही नहीं देता.
महसूस तो कर ही सकती है .. शुभकामनाएं !!
गहरी से गहरी बात को अपने सरल शब्दों से कह जाना। सच आपकी लेखनी का जवाब नही।
समीर जी, एक और विचारोतेजक लेख. लेकिन एक बात कहूंगा की आपकी यह बार-बार बैक व्यू मिरर टटोलने की आदत अच्छी नहीं है ! आख़िरी स्लोगन भी अच्छा लिखा है, इस उम्मीद के साथ इसकी भी तारीफ़ करता हूँ की यह भी आप ही का लिखा होगा ;-)
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
बस chalati का नाम gaadi है.... chalate rahiye....
udan tastari मत bana dena car को............
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"...फिर...फिर क्या-एक दिन गाड़ी रुक जायेगी. फिर न हम होंगे और न हमारी सोच. यात्रा पूरी हो जाएगी. तब कोई और यही सोच रहा होगा. मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए.. सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है..."
समीर जी,
लिखा सच है पर कहां मानता है मन ?
डिप्रेशन जैसा कुछ हो रहा है मुझे तो...
हर बार की तरह एक उम्दा पोस्ट...
गांव पर का बुढा बरगद तुझको रोज बुलाता हैं,
जो दुनिया में नहीं वो यहाँ हैं, यहाँ बेक व्यू मिर्रार नहीं फिर भी हम पीछे वाले को भी देखा लेते हैं,
गड़ी के बहाने अपनी बात कह रह है....खूब कही.
SAMER BHAI ..... UDAASI KA SABAB KYA HAI ........ HAMEIN TO AAP AKSAR YAAD AATE HO .... KYA HUM BHI TUMHE YAAD AATE HAIN .......
GAHRI BAT LIKHI HAI AAPNE ....
याद करते रहिये भइया. बैक-व्यू मिरर तो दिल में होता है.
"मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए"
आपने 'बैक व्यू मिरर' देखने पर मजबूर कर दिया!
गाड़ी चलाने से ही यह सब सोचना पड़ता है। तभी मैं ऐसा काम ही नहीं करती। ना गाड़ी, ना रियर व्यू मिरर, जिसको लौटना हो लौट आए जिसे आगे बढ़ना हो बढ़ जाए। मैं सदा वहीं की वहीं खड़ी !
घुघूती बासूती
यही तो जिन्दगी है।
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
आगे वालों पर नजर रखो,
पीछे वालों का ध्यान रखो।
इसी का नाम जीवन है।
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
यह तो बहुत नाइन्साफ़ी है!
बैक व्यू मिरर हिन्दी ब्लॉगिंग में भी बहुत ज़रूरी है.. आपको हमेशा यहां इसका सफलता से इस्तेमाल करते देखा है.. इसके इस्तेमाल की अहमियत समझाने के लिए शुक्रिया..
.. हैपी ब्लॉगिंग
बैक व्यू मिरर हिन्दी ब्लॉगिंग में भी बहुत ज़रूरी है.. आपको हमेशा यहां इसका सफलता से इस्तेमाल करते देखा है.. इसके इस्तेमाल की अहमियत समझाने के लिए शुक्रिया..
.. हैपी ब्लॉगिंग
पीछे देखना इतना ज़रूरी भी नहीं. अगर आगे जाने में कोई शक न हो.
समीर भाई, ये तो अच्छा हुआ कि आपको ऐसे लोग नहीं मिले जो रास्ते में कील और कांटे बिछाकर आपकी कार के पंचर होने का इंतज़ार करते और साइड पर खडे होकर मज़े ले रहे होते ज़ब आप स्टेपनी बदलने में पसीने पसीने हो रहे होते. दुनिया में ऐसे परपीडकों की भी कमी नहीं है.
सुखद क्षणों को याद करना अच्छा लगता है.भूले बिसरे पल कभी अचानक बिन बुलाये मेहमानों की तरह मन पर धावा बोल दें तो उन्हे दुत्कारा भी नहीं जा सकता.
आपकी बांते मन को छू गयीं.
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है. ...yatra ouri ho jayegi baat padh ke man udas sa ho gya...woods r lovely dark and deep..miles to go before i sleep....
ham to aap ko padh kar hi maza le lete hain.aap ko tippani karana sooraj ko diya dikhana hai.
3 Lineaa to bahut khoob hai :)
शायद यही इस ज़िंदगी का मज़ा है कि आप जो चाहे वो आप ना पाए। और, बहुत कुछ बेहतरीन आपको बिना चाहे ही मिल जाए।
समीर सा,
क्या खूब लिखा है नाविक के तीर की तरह छोटे होते हुए भी गहरे उतर जाता है.''आंसू बहाता हूँ तो लोग हंसते है,हंसने लगता हूँ तो ईर्ष्या करने लगते है.''
बहुत खूब बधाई!
जिंदगी बस आगे चलाने का नाम हैं..पीछे बीते बातों से सीख लो और आगे बढ़ो..
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए.
बहुत सुंदर शेर....
सच कहा आपने...एक एक शब्द सच.......और इतनी संजीदगी से कहा कि एक एक शब्द अपना ही लगने लगा...
अजी अब क्या कहे, अगर बेंक मिरर होता तो ओर कितनी मुस्किले होती ? अभी तो हम सामने देख कर ओर सबधानी से भी चलते है, लेकिन थोडा ध्यान हटते ही कोई ना कोई ठोक देता है, ओर चोट भी ऎसी की... हम कुछ नही कर सकते, अगर उस पर मुसिबत बेंक मिरर की होती तो कोन जी पाता....
बहुत सुंदर लिखा आप ने, एक जिन्दगी का फ़ल्स्फ़ा ही लिख दिया. राम राम जी की
बेहद सुन्दर. यही जीवन है.
कमाल है ...कितना सच कहा आपने...और ये भी कि ..जाने कितने पलों को दोबारा जीने का मन करता है...मगर कोइ बैक व्यू मिरर नहीं..आज बहुत कम में बहुते कह दिये...ई ट्रक में आपका फ़ोटो कतना बढिया आया है जी..मुदा ई आपका ट्रक फ़ोटो में कार जैसा लग रहा है....का कहे ...कारे है...का मजाक कर रहे हैं....आप और कार में.....एक दम से सेंटी कर दिये आप...
यात्रा पूरी हो जाएगी. तब कोई और यही सोच रहा होगा. मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए.. सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
आदरणीय समीर जी ,
आपने तो लेख पढ़वाकर एकदम गम्भीर माहौल बना दिया॥लेकिन एक सच्चाई यह भी है । नवरात्र की हार्दिक मंगलकामनायें।
पूनम
एक प्रवासी के मन के प्रतिनिधि स्वर के ज़रिये कितनी अपनी और हम सबकी बात कह दी दादा!
"fir ek baar bahut hi sunder guruji...."
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कोहरा छट ही जायेगा . हम जिन्हें याद करते है वह हमें भी याद करते होंगे जरुर लेकिन महसूस नहीं करने देते .
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
behad sundar panktiyaan hain...
सही चित्रण
मै क्या कहूँ.......... पहले तो बहुत कुछ दिमाग में उमड़ पड़ा था अपने लखनऊ और कनाडा के ट्रैफिक नियमो की तुलना करने के लिए.....
लेकिन आखरी पंक्तियों को पढ़ते हुए मुझे आपकी कुछ तकलीफ महसूस हुई तो बाकी सब अपने आप ही थम गया............
चलिए इक जोक सुनाता हूँ............................
,,,,,,,,,,,........................
मिलाना होगा तब सुनाऊंगा......
गजब देश है - भूत में देखते भविष्य साधा जा सकता है।
हम तो कभी सहज न हो पायें वहां। :(
ek taraf to aap kehte hain....
जिसे आप पीछे छोड़ आये, उसका भी ध्यान रखो. पीछे छूटा और रात गई, बात गई वाली बात नहीं चलती. काश, मेरी जिन्दगी में भी ऐसा नियम बना होता बैक व्यू मिरर में लगातार देखते रहने का. पलट कर देखता हूँ तो आगे ठोकर खा कर गिरने का खतरा बन जाता है. बैक व्यू मिरर का सिस्टम है नहीं. बस, जो गुजर गया वो गुजर गया.
aur doosri taraf...
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
bada jhol hai bahi....
hamahoon kanfyuziya gaye hain !!
बहुत अच्छा भैया, लेकिन एक बात कहूंगा कई बार बहुत कुछ भूलना भी अच्छा रहता है । जिसका इशारा आप ने हल्के से किया भी है :
"पर अपनी कमीज में कब किसे दाग नज़र आये हैं"
इसलिए जैसी दुनिया है वैसा ही मज़ा लोऔर खुश रहो ।
एक गुज़ारिश : ये टिप्पड़ियों को सेंसर क्यों करते हैं यदि कोई गलत टिप्पड़ी आये तो बाद मे भी हटा सकते हैं । सिर्फ़ गुज़ारिश है यदि उचित लगे तो ध्यान दीजियेगा ।
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है
क्या बात कह दी समीर भाई आपने
आप ही तोड़ दो कुहरे की चादर ,गोरखपुर वाले तो रोज आपको याद करते हैं
सच कहा समीर जी आपने वन वे है , ये जिन्दगी ! आज मैंने अपनी पोस्ट पर अपनी कुछ यादो को जरुर याद किया है .शुक्रिया
गहरी बात कही है आपने. जिन्दगी में पुराना भूल के नया सीखना पड़ता है, कभी तलवार तो कभी मियान ही बदलनी पड़ती है वक्त के साथ. कमल हासन ने एक पुराने साक्षात्कार में कहा था, "कानून पसंद आदमी हूँ, बायीं और ड्राइव करता हूँ, दाईं और ड्राइव करने का मन करे तो अमरीका चला जाता हूँ." तब से सोच रहा हूँ कि आम हिन्दुस्तानी का सड़क पर जूता पहनने का दिल भी करे तो शायद वह मंशा भी पूरी नहीं हो सकती मगर बड़े आदमी... कुछ भी कर सकते हैं.
आज फिलॉस्फी हावी है, क्या बात है जी? बानप्रस्थ तो अभी काफ़ी दूर है?
समय की धारा वन वे ही है जी, यू टर्न लेकर वापस नहीं आ सकती! :)
माँ दुर्गा इस नव रात्र में कृपा करें
संगदील , संजीदा विचार धारा से ,
आशा की तरफ बढा जाए हर मुश्किल के होते हुए , मायूसी भरे लम्हों से ,
फिर ,
जीवन धारा को उर्जावान बनाते हुए ,
खुशी बटोरी जाए
भक्ति और साधना में मन लगे
-- यही भावना के साथ ,
स स्नेह,
- लावण्या
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
जी हाँ। यह बात हिट कर गई। रियर व्यू मिरर । बहुत बड़ी बात बड़ी सहजता से ज़रूर कही है जी आपने मगर आपके दिल का दर्द झलक ही पड़ा। हम समझ सकते हैं। ओय आ जाओ यार वापस तुसी, नई ते मैणू भी संग लै चलो उत्थे। अब जी नहीं लगदा इत्थे।
"आंसू बहाता हूँ,लोग हँसते हैं.हँसता हूँ लोग इर्ष्या करते हैं."
शायद यही दुनिया की रीत है!!!
एक्सिलेटर बढ़ा, ब्रेक न दबा,
पेट्रोल जलता है तो जलने द॥
आईना तैरा धुंद्लाया हुआ,
बीती बातो को टलने दे।
आँसू न बहा, फ़रयाद न कर,
दिल जलता है तो जलने दे!
-मन्सूर अली हाश्मी
समीर जी ! गुजरा सावन अगले साल फिर आएगा ............. ''मुझे वो याद आते हैं ,जिन्हें हम याद न आये '' तो फिर याद करने का फायदा ही क्या ????????
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
वाकई बैक व्यू मिरर तो होना ही चाहिये था मगर ये भी सच है कि अगर ये मिरर होता तो इतनी कविता कहानियां अफसाने कहाँ लिखे जाते ? बहुत बडिया पोस्ट है शुभकामनायें
थोडा सा दर्शन बघारुं तो ये कह सकता हूँ कि हम पीछे इस लिए लौटना चाहते हैं समीर जी क्यूंकि जब पिछला वक़्त कभी वर्तमान था, हमने ठीक से जिया नहीं...आज भी हम या तो अपने वर्तमान या फिर भविष्य में जी रहे हैं...
बधाई, इस आध्यात्मिक रचना के लिए...
दिल को छु गयी और इक आह निकल गयी, बीते लम्हे न जाने कहाँ खो जातें है.
समीर जी आगे ध्यान दीजिये ज्यादा बैक व्यू मिरर पर नजर रहेगी तो आगे कैसे चलेंगे, सामने आने वाले से टक्कर होने का खतरा रहेगा, मुझे तो बैक व्यू मिरर बिलकुल पसंद नहीं लेकिन खुद को पीछे के खतरों से बचाने के लिये देखन पड़ता है। इसलिये यादें भी कभी किसी कोने से झांकती नज़र आ ही जाती है, आगे बढ़ने के लिये मुझे मुंह फेरना ही पड़ता नहीं तो आगे का सफर मुश्किल हो जायेगा
...काश ऐसे ही विचार, भाव हमारे मन को हर रोज छूएं, झकझोरें। ऐसा होता है समीर जी हम दौड़ते रहते हैं जिंदगी को पकडऩे के लिए, जब ऐसा उत्तम सोचते हैं लगता है जिंदगी तो पीछे छूटती चली जा रही है। दिल को छू लिया आपके शब्दों ने।
क्या सोचके लिखे थे ?
सरदार बहुत खुश होगा ?
शाबाशी देगा ?
क्यो ?
शाबाश!
bahoot sundar....par hame lagta hai ki agar "GITA" mein likhi baatein sahi hai to hamaare jiwan mein sabhi baaton ka hisab hota hai:))
पिछले दिनों में जाने का आप्शन होता तो हम तो कुछ वर्ष पहले में ही टिके रह जाते !
वैसे पसंद आया ये अंदाज. नोस्टालजिक करती हुई पोस्ट.
यादें अक्सर सुख दायक होती हैं। ऐसा सबके साथ होता है।
( Treasurer-S. T. )
"आंसू बहाता हूँ, लोग हँसते हैं.
हँसता हूँ लोग इर्ष्या करते हैं.
अजब दुनिया है............. "
"मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए....."
"सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है."
बेहतरीन उक्तियाँ आपने अपने दिल से उकेरी हैं.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त.
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सारे नियम जुदा भारत से......
और फिर, भारत की वो भीड कहां जो रेयर व्यू मिरर का मज़ा दे सके:)
car se aapne bahut hi oomda baat kahi hai..... waaqai mein zindagi mein bak view mirror nahi hota..... ham peeche mud ke nahi dekh sakte .....
bahut achcha laga padh ke........
deri se aane ke liye maafi chahta hoon...... aapse..... main Lucknow mein nahin tha....... apne native place Gorakhpur mein tha..... aur wahan lite rehti nahi hai..... to net kya use karta..... aur agar lite rehti bhi hai.... to BSNL ka server 24 ghante mein se 46 ghante down hi rehta hai..... aur inverter bhi hai to sab ghar mein chillate hain ki zyada mat use karo ......... nahi to raat mein dikkat ho jayegi.... hehehehehehehehe..... jabki Gorakhpur megacity hai..... dekhiye ab hamare UP ke megacities ko....? haan! Rajdhani ki baat alag hai..... aur us pe yahan ke Gomtinagar colony ki..... Asia ki sabse badi aur posh colony hai..... yahan lite nahi jaati....... haan! par kabhi kabhi........ kabhi kabhi se mera matlab har 5/6 ghante pe 10/15 min ke liye zaroor chali jaati hai.... rajdhani hai..... shayad isiliye..... agar megacity hoti to shayad 15/16 ghante ke liye......
hehehehe.......
apki post padh ke ....... achcha laga ......... intezar rehta hai apka....
aur! haan..... aapke ashirwaad se mera blog TATA wala is baar bhi hit raha hai...... akhbaaron se lekar doordarshan ke rashtriya TV channel LOKSABHA TV ke sahitya manch pe bhi charchit raha.....
........ apko shat shat NAMAN.........
Mahfooz.......
बस, यूँ ही जिन्दगी दौड़ी जा रही है !
और मेरे यादों का कैनवास बड़ा होता जा रहा है!!
हाँ ये इंद्रजाल जैसे हैं जो हमे उलझाते रहते हैं. आपको पढ़कर कुछ नया अहसास हुआ.
कुहरा ररूर छटेगा । आभार ।
बैक व्यू मिरर तो बस बहाना है,
यह तो खुद का ही फ़साना है
इस राह कभी कम रफ़्तार लेन को पकड़ना भी मज़बूरी है
आगे चलते को ओवरटेक करना ग़र, लेन बदलना ज़रूरी है
"काश, मेरी जिन्दगी में भी ऐसा नियम बना होता बैक व्यू मिरर में लगातार देखते रहने का."
मेरे गुरुदेव ने तो बहुत पहले ही (कक्षा 9 मैं) जीवन के रियरव्यू मिरर के बारे में बता दिया था, अत: नियमत नजर रहती है उस पर
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
हे भगवान ये क्या दिखा दिया आपने
अभी अभी देखा बैक व्यू मिरर तो लगा है
पर उसमे़ पीछे की गाडी़ मे बीबी आती दिख रही है
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। कामना है, आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। आपने अच्छा लिखा है।
यात्रा पूरी हो जाएगी. तब कोई और यही सोच रहा होगा. मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए.. सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
जी बहुत खूब लिखा है आपने .......
पीछे देखते जाना एवं आगे से नजर न हटाना यही तो प्रकृति का शास्वत नियम है!जहां चूक हुई वहीं बंटाढार।
शानदार लेख
आपके बैक व्यू मिरर के बिम्ब पर सादर समर्पित हैं अपनी लम्बी कविता 'पुरातत्ववेत्ता " से यह अंश
" और अपनी स्वप्नजीविता में सुख की शैया पर लेटा मनुष्य /जिसकी स्मृतियों में बीते दिन नहीं ठहरते ? जिसे चिढ है इतिहास बोध जैसे गरिष्ठ शब्दों से ? जिसके मनमन्दिर में बजती हैं सिर्फ वर्तमान की घंटियाँ / नहीं चलना चाहता उनके (पुरतत्ववेत्ताओं के ) साथ इतिहास की उबड़खाबड़ सड़कों पर / कि उसका अतीत तो फकत होश सम्भालने की उम्र तक है / और ,,दुनिया के अतीत से उसे क्या लेना देना . समीर भाई यह बैक व्यू मिरर मे देखने की आदत ही तो आगे के खतरों से आगाह करती है सड़क पर भी और ज़िन्दगी में भी -शरद कोकास
ek miror hamare andar bhee hota hai. usme thoda ruk kar dekhna padta hai . dekhte raho our chalte raho ...........beharhaal kehne kaa tareeka bahur achchha hai . badhai..
फिर क्या-एक दिन गाड़ी रुक जायेगी. फिर न हम होंगे और न हमारी सोच. यात्रा पूरी हो जाएगी.
ये तो चिरंतन सत्य है ... बस ये यात्रा सार्थक हो यही सोच सकते हैं हम .
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर शब्दों में आपने हकीकत को बयां किया है आभार
ये बैक व्यु मिरर मिल जाये तो मजा आ जाये.. बडे़ काम का औजार है...
वैसे फोटो में जो गाड़ी आप चला रहे हो उसमें तो स्टेरिंग भी नहीं.. कमाल की गड़ी है..:)
यादें तो याद आने के लिए ही होती हैं। और सुखद यादों का फिर फिर याद आना एक अच्छी निशानी है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Wow!! I never knew someone can say so sweetly about the crazy car driving system of Canada. Nice reading it :)
sameer ji , der se aane ke liye...........kya kahun ........out of station tha. jo gujar gaya wo sirf yaadendekar gaya. beeta pal kahan lautta hai. bahut umda likha hai.
बहुत गम्भीर बात लिखी है आपने लेकिन यह हम सब के लिये सच्चाई है अच्छा लगा आपका यह लेख्।
हेमन्त कुमार
कहाँ से बात शुरु करके आप कहाँ ले जा रहे हैं, यह आपको बिना पढ़े कोई नहीं जान सकता है. आपकी यही शैली आकर्षित करती है.
बहुत अच्छा लिखा है. बैक व्यू मिरर, काश होता.
हम तो इन तिप्पणियों की संख्या से ही घबरा गये भाई और बेहोश होते-होते बचे, क्योंकि बैल व्यू मिरर से हमने आप्को देख लिया. फिर क्या था, टिप्पणी की गाडी चलानी ही पडी.
कार के प्रतीकों का इस्तमाल कर के क्या से क्या बात कह डाली आपने..एक दम इमोशनल कर देने वाली..इस बात ए मुझे असगर आहब का एक शेर याद आ गया जो मेरे दिल के बेहद क़रीब भी है
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस मे
अगर आसानियाँ हों, ज़िन्दगी दुश्वार हो जाये
सो अक्सेलरेटर पर पाँव मारिये सर जी और बताइये..What a ride!!!
'बैक व्यू मिरर' और ट्रेफिक संस्मरण उम्दा लगे. ....और यह सही भी है की आगे बढ़ना है तो पीछे का क्या देखना .
समीर जी आप के ब्लॉग के लिए $9.०० की दो AD की ऑफर आई थी लेकिन हिम्मत नही पडी की आप को इस छोटी सी रकम के लिए आप के ब्लॉग को प्रयोग किया जाए आगे आप बताएं ...कमलेश
गंभीर बात की सहज प्रस्तुति । आकर्षक लेख ।
समीर जी ,
दुनिया की हर एक बात में जिंदगी के फलसफे निकाल देना आपकी बड़ी ही खूबसूरत कला है |
बस ऐसे ही समझाते रहिये ...:)
हर बार की तरह लाजवाब .....!!
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
waah! triveni bhi khoob hai!
Na back view mirror na rewinding kee suwidha. na hee random access bus chlate chalo chalate chalo aur har pal khushee se jeeo.
वाह आनंद आगया आपकी पोस्ट पढकर।
बहुत सुंदर पोस्ट.
खुद ही देख लेना तुम क्या ये गुल खिलाती है
कह रही बहुत कुछ है ये लहर की खामोशी
ye sher dil tak utar gaya
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
दी है ये खबर किसने लोग लड़ रहे हैं सब
यूं न बदज़ुबां होगी उस कहर की खा़मोशी
bahut sunder sher
उस पार गगन मस्त है
जिंदगी यहाँ पस्त है
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