रविवार, अगस्त 23, 2009

दुबले हैं तो दौड़ते हैं!!

११ तारीख को रात ९ बजे ४ घंटे की हवाई यात्रा ७ घंटे में पूरी कर ह्यूस्टन पहुँच गये थे. जैसा कि बताया था, नीरज रोहिल्ला एयरपोर्ट लेने आ गये थे. पहली मुलाकात थी मगर दूर से हमने उनको और उन्होंने हमको पहचान लिया.

एयरपोर्ट से उनके घर की दूरी लगभग ६० मील याने तकरीबन ४५ मिनट की कार ड्राईव.


अमेरीका का अजब शिगूफा है. बस सबसे अलग दिखना है, मानो यही मोटो हो. आज भी माईल में दूरी आँकते हैं जबकि पूरा विश्व किलो मीटर पर आ गया है. तापमान फेरेन्हाईट में, पेट्रोल गैलन में, वजन पॉण्ड में. हमारा क्या है, हम तो सी ए हैं, एक से दूसरे में बदल जल्दी से करके समझ लेते हैं.

कनाडा अच्छा है या बुरा, क्या पता-मगर कनाडा में दूरी ये मूढमति घंटों और मिनटों में आँकते हैं. किसी से पूछो कि एयरपोर्ट कितना दूर है तो बतायेगा कि हूम्म!! ४० मिनट ड्राईव!! मानो स्पीड, साईकिल या कार या रिक्शा-इन सब बातों से कुछ लेना देना ही न हो.

कई बार लगता है कि कह दें- आओ बेटा भारत. फिर भेजेंगे तुम्हें ट्रेन से. जब चलेगी तब न ड्राईव. खड़ी में क्या? दिल्ली में बैठ जाना कार में २० मिनट की ड्राईव पर. ऐसे उलझोगे ट्रेफिक जाम में कि सुबह के निकले शाम पूरी होगी २० मिनट की ड्राईव.

खैर, उनकी वो जाने. हमने तो जब उनके उल्टे बिजली के स्विच पर कुछ नहीं कहा-नीचे ऑफ और उपर ऑन, तो और क्या कहें. हमें तो इनके उल्टी तरफ ड्राईव से भी कोई परेशानी नहीं.

हमें तो इस हिन्दी लेखन क्षेत्र में भी कई बार अमरीकी हस्तक्षेप लगता है. ऐसे ऐसे शब्द इस्तेमाल करेंगे कि आम पाठक को समझ आए या न आये, बस अलग दिखना है. दिखे भी क्यूँ नहीं-आखिर साहित्यकार श्रेणी से आते हैं.

बात नीरज की हो रही थी और कहाँ चली गई. मानो, भारत, पाकिस्तान की संधि वार्ता हो, कभी ट्रेक पर रहती ही नहीं.

हाँ, तो नीरज, सब जानते हैं कि वो एक मैराथन धावक है. ह्यूस्टन मैराथन जैसी उच्च श्रेणी की मैराथन में हिस्सा लेने वाला. वो अपनी यूनिवर्सिटी, अपना शहर आदि मजे से घूमाते घर ले जा रहे थे. तरह तरह की बात में पता चला कि लेने आने के पहले ७ माईल दौड़ कर आये हैं. हमें लगा कि सुबह से निकले होगें तो शाम लौटे होंगे. फिर भी पूछ लिया तो आँख निकलते निकलते ही रह गई. ५० मिनट में दौड़े. हद है.

फिर जब तारीफ की गई तो पता चला कि हफ्ते में तीन दिन ७-७ माईल दौड़ते हैं और रविवार को १५. गरमी का आलम ह्यूस्टन में न पूछो. १०० डीग्री फेहरनाहाईट से ज्यादा याने ४३ डीग्री सेल्सियस से उपर. बिना एसी के तो कार से हम कूद गये होते और ये सज्जन इसमें दौड़ते हैं. हम तो उनके बारे में सोच कर ही दो पौन्ड अमरीकन लूज़ कर गये.

किसी तरह घर पहुँचे तो रही सही कसर नीरज बाबू ने अपने दौड़ का लॉग और दौड़ने के पाँच जोड़ी जूते दिखा कर पूरी कर दी. साल भर में १००० माईल से उपर दौड़ चुके हैं. सीधे दौड़ रहे होते तो वाशिंग्टन के आसपास कहीं मिलते.

एम एस एक्सेल में डाटा मेन्टेन किये हैं कि किस दिन कितना, कहाँ से कहाँ तक, क्या तापमान, आदि आदि. खुद के तो खैर क्या काम आता होगा. खुद तो जानते ही हैं कि कितना दौड़े और कैसे मगर हमारी बैण्ड बजवाने को काफी था.

रात अपने कमरे में सोने पहुँचे तो पत्नी व्यंग्य बांण लिये अर्जुन की तरह मछली की आँख का निशाना साधे तैयार-कुछ तो शरम करो. उनको देखिये, कितना दौड़ते हैं. आप इसका आधा भी कर लें तो बात बन जाये. उसे कैसे समझाऊँ कि अब इस उम्र में बात बन भी जाये तो फायदा क्या?

हमने समझाने की कोशिश भी की कि भई, उसे देखो..एकदम दुबला पतला है, इकहरा से भी कम कोई विशेषण हों तो नवाजा जाने योग्य, सो दौड़ लेता है. और फिर अमरीका में तो ये लोग स्लिम ट्रिम या एकदम फिट कहलाते हैं.

इतना दुबला पतला कोई हमारे लाला समाज में होवे तो लोग डोनेशन जमा कर खाना खिलवाने ले जायें.


वही होता है असली लाला-

जो खाने में ले गोश्त
और
पीता हो छक कर हाला !!!


नीरज जैसी काया तो हमारे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बलिया-गोरखपुर स्पेशल बेल्ट, में पूरे खानदान की बदनामी करा दे. मगर मिर्जापुरी पत्नी को कौन समझाये? वो तो अपने आपको पूर्वी उत्तर प्रदेश का माने, जब न!! इसके लिए हर व्यक्ति में साहस नहीं होता.

फिट फाट नीरज

पत्नी तो और गुस्से में आ गई और कहने लगी कि दुबले हैं इसलिये दौड़ पा रहे हैं-ऐसा नहीं है. दौड़ रहे हैं, इसलिये दुबले हैं. और समझ लो, दुबले नहीं, वो मेन्टेन हैं.

'वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'

इस बात से मैं उतना ही कन्फ्यूज हो रहा हूँ जितना कि मैं इस बात से हमेशा रहा हूँ:

'वो मक्कार है इसलिए नेता है
या
वो नेता है इसलिए मक्कार है.'

सोने पूर्व तरह तरह की बहसें, संसारिक भाषा में वार्तालाप और राजनितिक भाषा में विमर्श, इस बाबत हुई कि मेन्टेन तो हम भी हैं पिछले ८ वर्षों से वही १०० का १००.. नींद निकालने की खातिर नेताई वादे आदि किये गये कि अब से हम भी दौड़ेंगे. मन ही मन नीरज को कोसा भी गया और सो गये.

अब टोरंटो आ गये हैं. वो तो अच्छा हुआ कि सामान वगैरह बीच में खो गया तो पत्नी के दिमाग से बात उतर गई और हमारा आराम जारी है. क्या पता कि कब याद आ जाये और गाज गिरे. जब याद आयेगा तो पाँच जोड़ी जूते खरीदने की बात याद दिलाऊँगा. शायद बात कुछ दिन टल जाये. लाला दिमाग तो है ही उसका भी. एक साथ पाँच जोड़ी तो खरीदने से रही, बस यही एक उम्मीद की किरण बाकी है.

वैसे पूरे टेक्सस में, इतनी गरमी के बाद भी, जितने लोग मुझे हर वक्त दौड़ लगाते दिखे..उतने मैने आज तक नहीं देखे थे.

नमन है तुम धावकों को मगर हमें तो बक्शो!!! हमारे आराम में क्यूँ विघ्न डालते हो.

चलो, हमारी तरफ से ओलम्पिक के सारे मैडेल तुम्हारे!!

खूब जीतो, फलो फूलो और हमें सोने दो!! गुड नाईट.

नीरज-दौड़ लगाते Indli - Hindi News, Blogs, Links

93 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

वाह बड़ा अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! दुबले भी दौड़ते हैं और ये बात बिल्कुल सही है क्यूंकि मैं हर रोज़ walking करने जाती हूँ तो काफी दुबले लोग दौड़ते हैं ! तब मैं ये सोचती हूँ कि मोटे आदमी तो दुबले होने के लिए दौड़ते हैं और exercise करते हैं पर दुबले भी अपना बॉडी मेन्टेन करने के लिए और तन्द्रुस्त रहने के लिए रोज़ाना दौड़ते हैं! आपने नीरज जी की तस्वीर अच्छी लगायी है!

श्यामल सुमन ने कहा…

अगर उल्टे स्वीच की तरह अमरीकी अंदाज में कहूँ तो आपकी ही तरह लगभग दो सौ पौण्ड वजन वाली रचना। इशारों इशारों में बहुत कुछ कह भी जाते समीर भाई।

एक सलाह - आराम में खलल न पहुँचे इसके लिए मेराथन वाले कार्यक्रम के समय टी० वी० बन्द कर दिया करें।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बहुत दिनो बाद आपके ब्‍लाग पर बहुत जल्‍दी टिप्‍पणी करने का मौका मिल रहा है।


मुझे याद है नीरज भाई की वह पोस्‍ट जिसमें उन्‍होने अपने वजन को लेख व्‍यंग लिखा था।

जो भी हो 60 मील 45 मिनट में मायने रखता है, 60 मील भारत में 4 घन्‍टे मे भी पूरा हो जाये तो भी अचछी बात होगी।

निर्मला कपिला ने कहा…

अमरीका मे तो कपडा लेने जाओ तो पूछते हैं कितने गज़ अब हमे तो अपना नाप मीटर के हिसाब से याद था लगे हिसाब लगाने हिसाब कुछ कमजोर रहा भारत आ कर सूट सिल्वाया तो कपडा कम निकला
अब लगता है हमे भी पतले होने के लिये मीलों मे रास्ता नापना होगा वर्ना कुछ कि. मी. तो सैर करते ही हैं मगर पतले नहीं हुये[वो अलग बात है कि खाने का खूब शौक है ] बडिया पोस्ट आभार्

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव, जैसे आपको दौड़ने की बात-बात में नसीहत दी जाने लगी,ऐसे ही मेरठ में मेरे एक लाला दोस्त हैं.उनकी पत्नी भी मेंटेन करो, मेंटेन करो पर ज़्यादा ही ज़ोर देने लगी. अब बेचारे लाला भाई नाश्ते में जब तक देसी घी में तर पराठे, पूरी-कचौरी या ऐसी ही कोई और खाते-पीते घर की खुराक चट नहीं कर जाते, उनका दिन ही नहीं शुरू होता. एक दिन पत्नीजी को ज़्यादा ही ताव आ गया, फरमान सुना डाला- अब से बस कॉर्नफ्लेक्स या दलिया.लाला भाई डाइनिंग टेबल पर बैठे और पत्नी से कहा, ला कॉर्नफ्लेक्स ही ला. पत्नी खुश, फटाफट कॉर्नफ्लेक्स का बाउल ले आई. लालाभाई ने झट से गले से उतारा. पत्नी अभी मुड़ी भी नहीं थी कि लालाभाई बड़ी मासूमियत से बोले- ला चल अब नाश्ता ला.

Yunus Khan ने कहा…

का यार बड्डे आप भी । अरे दौड़ने के लिए जूते तो भोपाल वाले खरीदते हैं । अपन ठहरे जबलपुरिया । एक ठो कुत्‍ता खरीदो । और सुबह सुबह उसे अपने ऊपर ही 'छू' लगा दो । फिर देखो । दुबले और मोटे सबईं दौड़ते नजर आएंगे । जै नरबदा मैया की ।

बेनामी ने कहा…

इस उम्र में बात बन भी जाये तो फायदा क्या?

आप भी ना! :-)

कल हम इसे पढ़ कर भी खुश हो रहे थे

Ghost Buster ने कहा…

नीरज जी धावक हैं ये पता था, पर मैराथन धावक हैं ये हम नहीं जानते थे. लम्बी दूरी के दौड़ाक अक्सर ऐसे ही होते हैं. ज्यादा स्टेमिना वाले. वहीं कम दूरी वाले मस्क्यूलर होते हैं, ज्यादा पॉवरफ़ुल.

बढ़िया है, हमेशा की तरह.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सच में दौड़ना फायदेमंद है। पर इस उम्र में इस काया के साथ मत आजमा लेना वर्ना घुटने?

Udan Tashtari ने कहा…

॒ द्विवेदी जी,

समर्थन का बहुत आभार. पत्नी के लिए प्रिन्ट आऊट ले लिया है.उसके पिता भी वकील थे, अतः कौमी विश्वास की उम्मीद लगाये बैठा हूँ उसकी तरफ से आपके व्यक्तत्व पर.

बहुत आभार

समीर लाल

Unknown ने कहा…

वाह !
बहुत ख़ूब !
उम्दा !
हा हा हा हा हा हा
मज़ा ही आ गया...............

आप 100 के मैं 98 का ....
चलो दौड़ लगाएं
चलो दौड़ लगाएं
चलो दौड़ लगाएं सनम ...........................

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

बिलकुल दुबले है इसीलिए दौड़ने का नाटक करते है ,हमारे बराबर या आधे ही हो जाए फिर चल के ही दिखाए तो जाने

विवेक रस्तोगी ने कहा…

वाकई इन पतले लोगों ने तो हमारी भी आफ़त कर रखी है, दौड़्ते ही रहते हैं और घर पर सुबह शाम प्रवचन सुनना पड़ते हैं, हम लाला न सही पर हैं तो उनके जैसे ही, मतलब बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बेनामी ने कहा…

मज़ा आ गया पढ़कर. आप भाभीजी (मेरी) को समझा दें की हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति की तो फोटो तक से आदमी प्रभावित हो जाता है. ऐसी भी दौड़ दौड़ कर सेहत बनाने से फायदा ही क्या जिसे देख कर शायर यह कह उठे-
अस्थि पंजर की है उभरी तस्वीर
रोशनी पार हुई जाती है!
समीर भाई, आपने महसूस किया होगा कि जितने भी देशों में आपका जाना होता है, वहां की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा नजरें आप पर ही गडाता है, छरहरे, स्लिम, फिट, स्मार्ट जैसों पर तो नजरें फिसल कर रह जाती हैं.
बताइए पर्सनालिटी आप की और पब्लिसिटी मैं कर रहा हूँ. यह भी हैवी वेट बॉडी का कमाल है.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

समीर जी,इस पोस्ट के बहाने एक नयी जानकारी मिली कि इस ब्लोगर की जमात में एक मैथारन धावक भी शामिल है....नीरज रोहिल्ला।आभार।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

समीर जी!
आप भी अपना वजन घटाएँ।
यात्रा संस्मरण बढ़िया रहा।

संजय बेंगाणी ने कहा…

७-७ माईल

किलोमीटर में बताएं.... :) अमेरिका की हवा लग गई क्या?


नीरज भाई के बारे में जानना सुखद रहा....

बेनामी ने कहा…

नीरज के विषय मे जानकार अच्छा लगा . लेख
पूरा पढ़ कर ही सांस ली !!! और आप को अपनी
सेहत के प्रति मजाक छोड़ कर ध्यान देना चाहिये

रवि रतलामी ने कहा…

"...इतना दुबला पतला कोई हमारे लाला समाज में होवे तो लोग डोनेशन जमा कर खाना खिलवाने ले जायें...."

पर, मुझे तो आज तक किसी ने खाना क्या नाश्ते के लिए भी नहीं पूछा....

Puja Upadhyay ने कहा…

समीर जी, आज की पोस्ट झकास लगी...वाकई ऐसे marathon रनर से मिल कर टेंशन तो हो ही जाती है, इतना दौड़ना...तभी तो इतने दुबले...मेरा मतलब फिट हैं...पर कितना भी सोचें, दौड़ने की बात सोच कर ही हिम्मत जवाब दे देती है...कांस्तंत रहना बेहतर है :)
बहुत अच्छी लगी आज की पोस्ट, बेहद मजेदार :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

'वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'

इस बात से मैं उतना ही कन्फ्यूज हो रहा हूँ जितना कि मैं इस बात से हमेशा रहा हूँ:

'वो मक्कार है इसलिए नेता है
या
वो नेता है इसलिए मक्कार है.'

बहुत ख़ूब !
बढ़िया है, हमेशा की तरह.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ये हर पत्नी की नैसर्गीक समस्या है...अपने पति को फिट देखना...खुद चाहे टुनटुन की मौसेरी बहिन हों लेकिन पति शाहरुख़ खान से कम नहीं दिखना चाहिए...अब कौन समझाए की पेट का निकलना "खाते पीते घर के हैं, रंजो गम से दूर हैं" की निशानी है...आप दौड़ने मत लग जाना कहीं...हमारे जैसे बनो...बढ़िया रीबोक या अडिदास के जूते पहनो...घर से चार कदम पर पेड़ के नीचे रक्खी बेंच पर बैठो अल्साओ मित्रों से हा हा ही ही करो और घर आने से पहले साथ लायी पानी की बोतल से पानी लेकर कुछ छींटे मुंह पर मार कर फिर घर में हाँफते हुए घुसो...पत्नी भी खुश और आप भी...कहिये पते की बात बताई ना..तो दो ताली...

(हमने देखा है की दुबले पतले लोग भी बीमार पढ़ते हैं और उनको भी वोही रोग लगते हैं जो खाते पीते लोगों को लगते हैं...थोडी देर में लगते हों ये बात तो ठीक है लेकिन थोडी देर में रोग लगें केवल इसलिए जीवन को इतना कष्टमय करना कहाँ की समझदारी है?)

नीरज

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हा, हा, नीरज की काया देख अकाल का अहसास होता है और अपनी/आपकी देख उसका कारण स्पष्ट होता है।
नीरज के जूते जितना चलते हैं, आपके/मेरे उसका तिहाई भी न चलें। आप तो पांच नहीं, पंद्रह खरीदने का बजट बनायें! :)

Shiv ने कहा…

बहुत बढ़िया पोस्ट. नीरज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.

"सोने पूर्व तरह तरह की बहसें, संसारिक भाषा में वार्तालाप और राजनितिक भाषा में विमर्श,..."

राजनीतिक भाषा में आजकल इसे चिंतन कहा जाता है. भारत की खबर रखा करिए भैया. ये नहीं कि ह्यूस्टन पहुँच गए तो भारत की राजनीतिक भाषा भी भूल गए....:-)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

नमन है तुम धावकों को मगर हमें तो बक्शो!!! हमारे आराम में क्यूँ विघ्न डालते हो.

चलो, हमारी तरफ से ओलम्पिक के सारे मैडेल तुम्हारे!!

खूब जीतो, फलो फूलो और हमें सोने दो!! गुड नाईट.


लाजवाब लिखा जी, हमारा भी आपके उपर वाले कथन को सवा सौ प्रतिशत समर्थन है. हम भी बहुत पीडित हैं.:)

रामराम.

मीत ने कहा…

वही होता है असली लाला-

जो खाने में ले गोश्त
और
पीता हो छक कर हाला !!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

वो कहावत है ना- हाथ कंगन को आरसी क्या/ पढे़ लिखे को फ़ारसी क्या। अब अमेरिका में है तो उल्टी चाल में हर्ज ही क्या? खटका ऊपर करो या नीचे, बत्ती जलने से मतलब। लेखन दायें से बायें हो या बायें से दायें, पढ़ने से मतलब:)

Alpana Verma ने कहा…

बहुत ही रोचक लेख है.
नीरज जी के बारे में भी जाना.नीरज जी की दौड़ तो वाकई काबिले तारीफ़ है!
बात कहाँ की कहाँ पहुँच कर ....गनीमत है फिर अपने मुद्दे पर आ ही जाती थी.
--
आप ने लिखा-'हम तो उनके बारे में सोच कर ही दो पौन्ड अमरीकन लूज़ कर गये'--तो रोजाना दिन में चार बार उनके बारे में सोच लिया करें ८ पोंड रोज़ के हिसाब से वज़न कम होना भी बहुत बड़ी उपलब्धी हो जायेगी! (:p)

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

ऊँ विघ्नहर्ता सबके कष्ट दूर करें :::)))
द्विवेदी जी सही सलाह दे रहे हैं इस (?) उम्र में बिना डाक्टरी सलाह व्यायाम करना सही नहीं है . लाला और हाला , बच्चन साहब ने लिख दी मधुशाला बिना लिए हाला !

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह!क्या बात है. इतना रोचक लिखते हैं न, कि पूरा पढ जाती हूं एक सांस में. और नीरज जी की पत्नी के तेवरों ने तो हम दुबलों को जीवन दान सा दे दिया...हा..हा..

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

यही कारण है की अमेरिका को एक अलग दुनिया के नाम से भी पुकारा जाता है,आदमी से लेकर जानवर सब कुछ दूसरे देशों से ही दिखाई देते है.एक बार दिल्ली की सड़को पर उन्हे छोड़ दिया जाय फिर देखिए उनके मिनट का घंटा और घंटे का दिन ना बन जाए तब कहे.

अच्छी प्रस्तुति ..बधाई

anuradha srivastav ने कहा…

वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'
जब हमें ये बात समझ आ जायेगी तब बात करेंगें आपसे...........

anuradha srivastav ने कहा…

वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'
जब हमें ये बात समझ आ जायेगी तब बात करेंगें आपसे...........

डॉ .अनुराग ने कहा…

चार पांच दिन उनके पास रुक जाते तो थोडा फिगर बना आते....खैर नीरज का तो हमें मालूम है ....अकसर दौड़ते रहते है ...आप का कोई बल्ब जला नहीं...

Unknown ने कहा…

आपके लेख का शीर्षक "दुबले हैं तो दौड़ते हैं!!" के स्थान पर "दौड़ते हैं तो दुबले हैं!! होना था!

अजित वडनेरकर ने कहा…

हम तो उनके बारे में सोच कर ही दो पौन्ड अमरीकन लूज़ कर गये

जबर्दस्त शैली में लिखा है। दौड़ना न बने तो कम से कम तेज चलना ही शुरू कर दें हुजूर...भाभीश्री की इतनी डांट खा कर भी कैसे कैसे तर्क बुनने मे लगे हुए हैं? ये अच्छा बात नहीं है !!!

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

सच में मज़ा ला दिया, दुबले-पतले से लेकर मोटे तक अमरीका से लेकर इंडिया तक, मीट्रिक सिस्टम से लेकर ब्रिटिश सिस्टम तक, खुले रास्तों से लेकर जाम तक, मिनटों कि ड्राइव से लेकर रफ्ता - रफ्ता चाल तक, लाला से लेकर प्याला तक, और भी न जाने क्या-क्या...............
वाह भाई वाह....
बधाई.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

आप पत्नी को नीचे लिखा हुआ प्रिंट आउट करके दें. नहीं देंगे तो भिजवाने का प्रयत्न किया जाएगा:

----------------
जहाँ चाह वहाँ राह
कसरत करो सेहतमंद रहो, ज्यादा दिन जीओ
दौड़ लगाओ वजन घटाओ, वजन घटाओ हैंडसम कहलाओ
चीजों को भूलो मत, याद रखो - याद दिलवाओ
किसी चीज का पीछा मत छोड़ो
झुकती है दुनिया - झुकाने वाला चाहिए.
------------
बस उपरोक्त पंक्तियों का प्रिंट आउट उन्हें दे दीजिए फिर मजे ही मजे..... :)

बेनामी ने कहा…

आप तो सारी दुनिया में दौडते रहते हैं, कुछ आप पर भी तो असर होना चाहिए।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

सदा ने कहा…

बहुत अच्‍छी लगी आपकी प्रस्‍तुति, आभार्

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

समीरजी! आफत करवा दोगे घर-घर मे ?
यह सभी लिखने की बाते नही है। आजकल सभी ''ब्लोगर-पतियो'' की ''पत्निया'' ब्लोग पढती है। जिस तरह ''ताई'' सुबह सुबह ''बरमुडाज'' पहना कर झाडु से ताऊ को सडक पर भागने के वास्ते घर से हकाल देती है, उसी तर्ज पर वे सभी भी बोलेगी जाओ- दोडो- और फिट फाट नीरज बन जाओ।

सुन्दर- मजेदार- राम-राम

आभार।

आप धर्म कि धारणाओ को दो भागो मे बॉट दीजिए-

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

समीर जी,
कनाडा की कल्चर के बारे में बढ़िया जानकारी मिलती है.

Creative Manch ने कहा…

"वो मक्कार है इसलिए नेता है
या
वो नेता है इसलिए मक्कार है."

अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़कर
आपकी लेखन शैली आकर्षक है


*********************************
प्रत्येक बुधवार सुबह 9.00 बजे बनिए
चैम्पियन C.M. Quiz में |
प्रत्येक रविवार सुबह 9.00 बजे शामिल
होईये ठहाका एक्सप्रेस में |
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M VERMA ने कहा…

मै तो दुबला था तब भी मोटो जैसा दौडता था. अब मोटा हूँ (लोग कहते है मै नही) तब भी मोटो जैसा ही दौडता हूँ.

Batangad ने कहा…

गजब दौड़ाया आपने माईल में ...

सुशील छौक्कर ने कहा…

हम भी सोच रहे थे कि दोडा करे। पर सुबह पाँच पाँच मिनट के चक्कर सूरज बाबा निकल आते है। खैर मजेदार पोस्ट। कुछ जानकारियाँ मिली।

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब नीरज जी जो दुबले है वो दौड़ सकते है और मोटे लोग क्या उड़नपरी जैसे दौड़ सकते है यही तो फर्क है पातलो और मोटो के बीच का वर्ग विभेद . आप कितना दौड़ लेते है प्रतिदिन जी

बेनामी ने कहा…

धीरू जी ने भी खूब कहा

हमारे बराबर या आधे ही हो जाए फिर चल के ही दिखाए तो जाने

हा हा

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

समीर जी, हमारी मानिये तो आप अब दौडना शुरू ही कर दीजिए। नहीं तो देर-सवेर गृ्हमन्त्री (या उनके बेलन) के दबाव में ही सही दौडना तो पडेगा ही..:) वैसे भी जो काम मरजी से किया जाए वो ज्यादा अच्छा रहता है।।

समयचक्र ने कहा…

"इतना दुबला पतला कोई हमारे लाला समाज में होवे तो लोग डोनेशन जमा कर खाना खिलवाने ले जायें" हा. हा.. हा लाला समाज में भी बहुत से दूबरे पतरे है . सभी को आपके फरमान से अवगत करा देता हूँ.

naresh singh ने कहा…

यहाँ जब दौड़ने का समय होता है तब आपके वहा पर क्म्प्यूटर के सामने बैठने का सम्य होता है । घूमने तक तो ठीक है लेकिन दौडना बोले तो राम राम ।

Manish Kumar ने कहा…

मज़ेदार वर्णन रहा आपकी मुलाकात का !

Prem Farukhabadi ने कहा…

Sameer bhai,
sare bloggers fit rahen aur blog jagat mein hit rahen.sport spirit jagane ke liye dhanybaad.

अजय कुमार झा ने कहा…

प्रभु....ये कैसी लीला है...काहे ऐसन टाईटल दिये..बताइये तो...कहां दुबले....कहां आप..कहीं कोइ कनेक्शन है का....आप न हमरे जैसे बचवन का काहे टेस्ट लेते हैं...अरे आपको कौन मना किया है...शुरू किजिये...मुदा दौडिएगा तो यहां पंहुचने से पहले रुकियेगा नहीं...है मंजूर तो कहिये....

Waterfox ने कहा…

दौड़ना शुरू तो हमने भी किया था, जिम जाना शुरू किया था. 1 महीने हफ्ते के सातों दिन गये, अगले महीने से 6, फिर क्रमशः 5,4 और अभी दो महीने मिला के भी 30 दिन नहीं कर सके! आप तो फिट हैं, किसलिए दौड़ना भागना!

चन्दन कुमार ने कहा…

bafhiya hai

Rajesh Srivastavaa ने कहा…

लाल साब, ज़िन्दगी में वजन जरूरी है. और मेरी मानिए, हम भी बहुत दौड़-धुप कर चुके, १३८ पौंड (अमेरिकन) से १२८ पौंड लाने में जितनी मिहनत है, its not worth. फिलहाल हम १३२ के status quo पे हैं, खाते-पीते घर के दीखते हैं :-) ! वैसे एजेक्स में Audley और Taunton के नुक्कड़ पे एक बढ़िया recreational park type है. ना जी ना, Not suggesting anything :-)

डा. अमर कुमार ने कहा…


लिजीए इन भाई से बात किजीए !
ऎई कईसे लाला हँय जि, अपनी ललाइन को समझाये नहिं पाए जि ?
कि लाला लोग फ़िज़ूल का मेहनत नहिं करते हँय,
हम बुद्धी से काम करते हँय, हम दौड़ने के अँदेशा में बुद्धी लगा लगा कर वईसे हि दुबरायेंगे, जईसे कज़ियान टोला के काज़ी साहेब ।
त कल्हे से ध्यान लगाके बईठीए, और सोचीए की हम नीरज बौआ से 10 मीटर आगहिं दौड़ रहे हँय.. अउर हँफ़्फ़ हँफ़्फ़ हाँफ़ रहे हँय ।
हँफ़्फ़ते हँफ़्फ़ते जब पसिना छुटने लगे त अँखियाँ खोल के नींबू पानी पिजीए । जुता के बचल पईसवा से भौजी नींबू मँगवा देंगि !

वाणी गीत ने कहा…

बहुत रोचक ढंग से अपनी और नीरजजी की काया को लपेटा...
अब क्या बताएं ...भगवान् की कृपा से हमारा पूरा परिवार ही दुबला पतला मतलब... बीमार नहीं है ..मगर गाहे बगाहे लोग अनाज की बोरिया घर मुफ्त में पहुँचाने का ऑफर दे ही देते हैं ...जलते हैं हमसे ...!!

शरद कोकास ने कहा…

समीर भाई दुबले तो दौड़ते ही है ..लेकिन आप भी तो दौड़ते (भागते) यहाँ तक आ ही गये.. शादी की सालगिरह मुबारक हो-शरद कोकास

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

wah , lal sahab , kamaal likhte hain aap.

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत ही रोचक रचना है । आज की सुबह प्रसन्नता की अनुभूति से उजली हो गयी । बहुत बहुत बधाई ।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

आप के पोस्ट्स बहुत हँसाते हैं (ऐसे वाले)। :-)

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव और श्रीमती समीर लाल को शादी की सालगिरह की हार्दिक बधाई. गुरुदेव आज ताऊ ने अपने ब्लॉग पर खोला है, आपके फलने-फू...फू...फूलने का असली राज

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

बहुत ही रोचक रचना है ...

बनी रहे जोड़ी राजा-रानी की जोड़ी रे...
नज़र लगाये न ये दुनिया निगोडी रे....
समीर जी और साधना जी को इस शुभ दिन की हार्दिक बधाई !!!!!

रचना त्रिपाठी ने कहा…

'वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'

वो मक्कार है इसलिए नेता है
या
वो नेता है इसलिए मक्कार है,
भाई साहब बात कहाँ कि कहां ले गये। बहुत खूब!

ऐसे तो मुझे आपको देखते ही हँसी आती है उस पर आपका यह पोस्ट पढ़कर मजा आ गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश का वर्णन शत-प्रतिशत सत्य है। यहाँ की बुजुर्ग महिलाएं कम पेट वाले पुरुष को देखकर उसकी पत्नी को उपदेश देना शुरु कर देती हैं। वह पति कैसा जिसका पेट न दिखे। इसके भुक्तभोगी हम भी है।

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

congrats..its a party tym....

surya goyal ने कहा…

अक्सर आपके ब्लॉग के चक्कर लगता रहता हूँ. बहुत अच्छा लिखते है आप. बधाई. क्यों बेचारे को इतना दौडाया आपने. अगर दौडाना ही था तो कुछ आप भी दौड़ लेते. फिलहाल शादी की वर्षगाठ की ढेर सारी शुभ कामनाये. कभी हमारी गुफ्तगू में भी शामिल हो कर हमारा मान बढा दिया करो. www.gooftgu.blogspot.com

Akanksha Yadav ने कहा…

...Lambi duri walon ki hi ajkal puchh hai.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

समीर जी, आजकल तो साइज जीरो का फैशन है. नीरल भाई को देखकर तो यही लगता है की पूरे फैशनपरस्त हैं. और आपने तो अपना साइज बता ही दिया. हमें तो ये जीरो से १०० तक की दौड़ बड़ी मनभावन लगी.बढ़िया लेख.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

समीर जी, आजकल तो साइज जीरो का फैशन है. नीरल भाई को देखकर तो यही लगता है की पूरे फैशनपरस्त हैं. और आपने तो अपना साइज बता ही दिया. हमें तो ये जीरो से १०० तक की दौड़ बड़ी मनभावन लगी.बढ़िया लेख.

राहुल सि‍द्धार्थ ने कहा…

आपको पढ़ना हमेशा सुखद लगता है..ब्लौग लेखक के लिए शारीरिक श्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम की जरूरत ज्यादा होती है जिसमें आप हमेशा लगे ही रहते हैं-बधाई.
वैसे सुबह-सुबह दोनों साथ जाए तो और

रंजना ने कहा…

हा हा हा हा....आपका हर रंग लाजवाब, गुदगुदा जाने वाला या फिर रुला जाने वाला.......विवरण परमानंद दे गया....वाह !!

महावीर ने कहा…

समीर जी, आज बड़ा ही शुभ और रोमांटिक दिन है, ये दुबले-मोटे का चक्कर छोड़िए, खूब माल-ताल खाइए, पीजिये जो दिल चाहे, दोनों किसी मनपसंद होटल में कैंडल-लिट डिनर का आनंद लीजिये. अगर दो पौंड वज़न बढ़ भी गया तो आपकी छवि में कोई अंतर नहीं आएगा.
आपके विवाह की वर्षगांठ पर कुछ आशा'र नीचे दे रहा हूँ:
(साधना जी, क्षमा करना मेरी अशिष्टता के लिए)

ये ख़ास दिन है, आज दोनों प्यार की बातें करो
कुछ तुम कहो कुछ वो कहें, इज़हार की बातें करो
जब दो दिलों की धड़कनें इक गीत सा गाने लगें
आंखों में आंखें डाल कर इक़रार की बातें करो
(लेकिन दुबले-मोटे का ज़िक्र न हो)
गर कीमती सा हार तुम लाए हो वो रख दो कहीं
बाहें गले में डाल कर, इस हार की बातें करो
साधना जी ने कहा है कि:
"कुछ तो शरम करो. उनको देखिये, कितना दौड़ते हैं.
आप इसका आधा भी कर लें तो बात बन जाये."

अब भूल जाओ जो कहा, किसने कहा औ क्या कहा
यूमे-मुहब्बत में फ़क़त बस प्यार की बातें करो
(वर्षगांठ को यूमे-मुहब्बत यानि प्रेम-दिवस भी कहा जाताहै.)
समीर जी और साधना जी को वर्षगांठ के शुभ-अवसर पर अनेक बधाइयाँ.
महावीर

दिलीप कवठेकर ने कहा…

तंदरुस्ती की रक्षा करता है लाईफ़बॊय भी. तो दैडना क्या ज़रूरी है?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली...यहां दिल्ली में द्वारका से अकबर भवन का रास्ता 20-25 मिनट से ज्यादा नहीं होना चाहिए पर मुझे रोज सुबह लगते हैं सवा से डेढ़ घंटे...दूरी व समय का यहां आपस में कोई संबंध नहीं है.

Astrologer Sidharth ने कहा…

हूं, ..... मुझे लगता है नीरज जी पतले हैं इसलिए दौड़ते हैं। उन्‍हें खिला पिलाकर दो सौ पौण्‍ड का कर दो फिर देखो दौड़ते हैं क्‍या। वही अपने देसी स्‍टाइल में गेहूं की बोरी बनाकर। सौ का सौ मेंटेंन करना भी मुश्किल काम है। थोड़ी सी चूक हुई नहीं कि सवा सौ का आंकड़ा दिखने लगता है। कोई तीस किलो का हो तो बत्‍तीस होने में समय लगता है लेकिन सौ से सवा सौ यूं होते हैं यूं...

इसी का दूसरा पक्ष है मोटा हूं इसलिए नहीं दौड़ता हूं। मोटा होकर भी दौडूंगा तो पतले यानि मेंटेन लोग क्‍या करेंगे।

Nitish Raj ने कहा…

bahut badhiya....par aap 100 kg ke nahin lagte.

surjeet singh ने कहा…

समीर भाई आपकी रचना ने तो मुझे भी प्रेरित कर दिया है ये अलग बात है कि मै ना तो आपकी कैटेगरी का हूं और ना नीरज भाई की...मैं नीरज भाई से थोड़ा तंदरुस्त हूं..लेकिन इस बात का यकीन है कि थोड़ा मेहनत कर लूंगा तो नीरज भाई की श्रेणी में आ जाउंगा..हालांकि मैं रोज ही ये प्रण करके सोता हूं कि सुबह-सुबह दौड़ने में अपनी सोसायटी के आवारा कुत्तों का साथ जरूर दूंगा...लेकिन अहले सुबह (मेरे लिए सुबह के 9 बजे)मैं चढ़ते सूरज को देखकर अपनी रणनीति बदल देता हूं...खैर अब आपकी रचना से मुझे प्रेरणा मिली है...

vikram7 ने कहा…

आप के यात्रा के प्रंसग अच्छे लगे, खास कर दॊड वाला

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

दौडते हैं, इसीलिए तो दुबले हैं। आपने कभी सोचा---?
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Manish ने कहा…

अजी दौड़ ही लीजिये..... भाभी ने कहा तो ठीक ही कहा होगा... :)

उधर स्वाइन फ्लू नहीं फैला क्या ??

Anjelanima_एंजेला एनिमा ने कहा…

बहुत बढ़िया सर जी ..पढकर अच्छा लगा।पहली बार आपके यहां आना हुआ...।सब आपकी मेहरबानी।

kavitaprayas ने कहा…

बहुत ही दिलचस्प लेखनी है आपकी समीर जी !

शरद कोकास ने कहा…

अपने देश मे एक को डॉ.ने सलाह दी रोज़ 5 मील दौडा करो हफ्ते भर बाद उसने डॉक्टर को फोन किया" डॉक्टर साब 35 मील आ गया हूँ और कितना दौडना है । भाभीजी के चक्कर मे ना आये आप रोज़ थोडा चले इतना काफी है ।

Tarun ने कहा…

Jhakkas majedaar shaandaar.....bahut hafton baad aaj koi post itne maje le le kar pari...........

रंजू भाटिया ने कहा…

हंसते हंसते भागते दोड़ते हम आज पहुंचे हैं आपकी इस पोस्ट पर ...फिट रहिये और यूँ ही हंसते हंसाते रहिये ..साथ तो यहाँ हम साधना जी का ही देंगे ..की वजन घटा लीजिये ...इस में लालापना मत दिखाइये :)

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वाह नीरज जी से मुलाकात रोचक रही आपकी तो ....नीरज जी मैराथन धावक है.आज ही पता चला ....

हम तो उनके बारे में सोच कर ही दो पौन्ड अमरीकन लूज़ कर गये....हा...हा....हा...बहुत खूब .....समीर जी कुछ दिन आप भी क्यों नहीं नीरज जी का साथ देते ....?

ये फिट-फाट नीरज जी आपके सामने तो हमें हड्डियों का ढांचा ही नजर आ रहे हैं जी ......!!

Asha Joglekar ने कहा…

वो दुबला है इसलिए दौड़ ले रहा है
या
वो दौड़ रहा है, इसलिए दुबला है.'

इस बात से मैं उतना ही कन्फ्यूज हो रहा हूँ जितना कि मैं इस बात से हमेशा रहा हूँ:

'वो मक्कार है इसलिए नेता है
या
वो नेता है इसलिए मक्कार है.'

Are chodiye Neeraj neeraj hai aur Sameer lal SAMEER LALl hain .

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

wah wah..BTW achha hua ki Neeraj jee ne aapko apne saath daudaya nahi..

Maloom pada hum pehchan hi nahi pa rahe hain ki bhai sameer jee kaun hain :) (I know ki ganda PJ tha lekin chalta hai kabhi kabhi)

Abhishek Ojha ने कहा…

नीरज भी न.. मौका मिला नहीं की दौड़ पड़े :)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

BAHOOT HI ROCHAKTA SE LIKHTE HO SAMEER BHAI ..... KALAM APNE AAP CHALNE LAGTI HAI YA . RUK RUK KAR LIKHTE HO .......
MAZAA AA JATA HAI BHAI PADH KAR.....

Satya Vyas ने कहा…

sameer ji. duble hi dodte hai padhi. rochak hai or satya bhi. ek jagah apne likha hai ballia gorakh pur belt . to main jana cha hata tha ki kya aap isi belt se hain . prayojan yeh tha ki main bhi apne ko ballia wasi hi manta hoon.
antatah dhanyawad
satya ...a vagrant