जरा हट के में सोचता हूँ ऐसी कुछ बातें लिखूँ जो हमारी स्थापित सोच, संस्कृति और समाज से जरा परे हटकर हों.
आज देखिये न!! पड़ोस में दो घर छोड़ कर नये लोग आये हैं. अभी सामान का आना लगा ही है. आदतानुसार पहुँच लिये हम हाय हैलो करते. बातचीत के दौरान पता चला भरा पुरा परिवार है.
घर में एक महिला, एक पुरुष और पाँच बच्चे हैं ७ वर्ष से लेकर १८ बरस तक के. इनमें से तीन महिला के बच्चे हैं और २ पुरुष के. तीन महिला के बच्चों में दो उसके पहले पति से हैं और एक दूसरे पति से. अब तीसरे यह साहब हैं जिनकी दूसरी पत्नी से इन्हें दो बच्चे हैं. पहली वाली से भी एक लड़की थी, जो अब अपने बॉय फ्रेंड के साथ रहने लग गई है. बड़ी हो गई है-पूरे २० साल की. यह साहब बहुत खुश हैं कि अगले साल जून में वह इस महिला के साथ शादी करने वाले हैं. रह तो अभी भी वैसे ही एक साथ हैं. मगर तब पति पत्नी हो जायेंगे. फिर इनके भी बच्चे होंगे.
कुछ हैं मेरे और कुछ हैं ये तुम्हारे
आएंगे जो कल को वो होंगे हमारे.
है तो खुशी की बात मगर हमारे लिये जरा हट के.
नोट: अगर आपके पास भी ऐसे किस्से हों तो आप मुझे ईमेल करें. मुझे अगर उचित लगा तो आपके साभार से उसे इस श्रृंखला में छापने का प्रयास करुँगा.
शुक्रवार, अगस्त 31, 2007
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32 टिप्पणियां:
आपके यहां तो जरा ज्यादा एडवांस मामला है. पर हमारे यहां भी एक मेडिकल सुपरिण्टेण्डेण्ट थे जिन्होने एक नर्स से विवाह किया. वह उनकी तीसरी पत्नी थी और डाक्टर साहब उनके दूसरे पति. बच्चे मैं नहीं गिन पाया. :)
अच्छा है। सबकुछ हट कर ही है
जर्मनी में दो साल रहने के दौरान मैंने पाया कि वहां परिचय में अगर किसी स्त्री ने बताया कि वह अविवाहित है तब भी उससे पूछा जाता था कि आपके कितने बच्चे हैं। मुझे ये सवाल बेवकूफी भरा लगता था, लेकिन यूरोपीय समाज के लिए बिन-ब्याही माताएं एक हकीकत हैं।
ज्ञानजी ने बता दिया कि आप कनाडाई नक्शेबाजी ना झाड़ें, इलाहाबाद ज्यादा पीछे नहीं है।
दो हिन्दी फ़िल्में.. हमारे तुम्हारे.. और शायद खट्टा मीठा..
ममला काफी हट के है मजा आया :)
अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा।
एकदम 70 के द्शक की फोटु जबरी लाए हो लालाजी. :)
आपके इस परिवार पूराण पर पहले भी एकठो पोस्ट पढे थे. :) मजेदार थी, यह भी है.
अपने तो चिपकु पडोसी है.. जाते ही नही.. कोई सोणी कुडी कभी आएगी तो जरूर मसाला देंगे. :)
भारतीय संस्कृति की महानता के बारे में भी लिखे.
नया छायाचित्र अच्छा है लेकिन इसे कुछ और ब्राईट कर दें -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
एक बात और सौतेले बच्चे अराम से साथ साथ रह रहे है, हमारे यहाँ यह दूर्लभ नहीं लगता?
जरा हट के...यहाँ के लिए हैं शायद :) वहाँ के लिए यह आम बात ही है:)
अरे, ऐसे में तो हिसाब रखने में बड़ी दिक्कत होती होगी, कि पहली से कौन-कितने, दूसरी से कौन-कितने वगैरह!! तौबा!!
ह्म्म, गुरुवर, कहीं "जैसा देश वैसा भेष" वाले हालात न कर लेना।
एक बार एक साहब जो विधुर थे और उनके दो बच्चे थे , ने एक विधवा महिला से विवाह कर लिया जिनके तीन बच्चे थे। नये विवाह के बाद दो बच्चे और हुए।
एक दिन साहब के दफ्तर में उनकी पत्नी का फोन आया आप सब काम छोड़कर जल्दी घर आओ, आपके बच्चे और मेरे बच्चे मिलकर हमारे बच्चों को पीट रहे हैं।
:)
आपका शेर वज़न में नहीं है उसे दुरुस्त कर लें अगर व्याकरण के हिसाब से देखें तो सही यूं कुछ होगा
कुछ हैं मेरे और कुछ हैं ये तुम्हारे
आएंगे जो कल को वो होंगे हमारे
अब वज़न पूरा होता है अब ये उर्दू की एक ख़ास बहर पे आ गया है । जिसे बहरे रमल मुसद्दस सालिम कहा जाता है । आप इसे अब गा कर देखें ये आपसे गाते बन जाएगा । बहर में होने की विशेषता ही यही है कि उसे आसानी से गाया जा सकता है । आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगें।
सुबीर भाई
आपने मार्गदर्शन किया-बहुत आभार. अन्यथा लेने का कोई प्रश्न ही नहीं. आप तो बस मार्गदर्शन करते चले, हमेशा आभारी रहूँगा. अभी तो इस विधा में बहुत कुछ सिखना है आपसे. सुधार कर लिया है.
-समीर
इनसे जरा हटके ही रहना अच्छा है!
आपकी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।
दीपक भारत दीप
बहुत उम्दा,मजा आया,महसूस भी किया है.लेकिन यहाँ के लिए जरा हट के है .
माफ़ करना जी अभी देख पाया
@ अमित..एक सोफ़्ट वेयर बना डालो समीर भाइ की मदद लो अच्छा बिकेगा..:)
रिशते अच्छे है ..यह मेरे दूसरे नंबर के पापा की चौथे नंबर की मिसेज की तीसरी नंबर की लडकी है..मेरी दूर के रिशते की बहन..:)
अच्छा है. थोडा और बडा लिखते तो मजा आ जाता.
अच्छा है. थोडा और बडा लिखते तो मजा आ जाता.
अच्छा है. थोडा और बडा लिखते तो मजा आ जाता.
यहा जर्मनी मे, मेरे घर एक जर्मन से जान पह्चान हुई, बातो बातो मे पता चला की जानब के आठ भाई ओर हे..आठो के बाप अलग अलग हे,
aisi baat nahi hai ki hamare desh me aise kisse nahi hote.
हमारे अमरीकी प्रवासी ई छाया ने भी अमेरिका के बारे में लिखते हुए इस तरह की बातों का जिक्र किया था। मुझे तो पेज थ्री के इस गाने की याद आ गई
कितने अज़ीब रिश्ते हैं यहाँ पर
दो पल मिलते हैं
साथ साथ चलते हैं
जब मोड़ आष तो बच के निकलते हैं
कितने अज़ीब रिश्ते हैं यहाँ पर
बहुत खुब। सही कहा । हमारे - तुम्हारे। हिन्दुस्तान में तो आज भी नानूराम जैसे लोग हैं जो नब्बेबरस की उम्र में भी चौबीसवीं संतान के पिता बन जाते हैं। उनके जैसे कुछ लोग एकाध शादी और कर लेने की ख्वाहिश भी रखते हैं।
क्या किस्सा है गुरूदेव मगर मुझे आज कल हमारे हिन्दुस्तान में भी बहुत बदलाव नजर आ रहा है विदेशी हवा यहाँ भी विराजमान है...कौन किसकी औलाद है कहना मुश्किल हो जाता है जब आये दिन शादीयाँ टूटती और नये रिश्ते जुड़ते है,अब हमारा भारत भी ईंडिया जो बन गया है...
सुनीता(शानू)
कुछ हैं मेरे और कुछ हैं ये तुम्हारे
आएंगे जो कल को वो होंगे हमारे.
is very humorous!
Great style of writing.
I too will wait for the next in this series..
मामला तो वाकई हट के है. मैं ये सोच रहा था कि क्या वहां का ऐसा पूरा समाज ही है?
अगर है तो क्या ऐसी जीवन शैली मे वो खुश रह पाते हैं?
आएंगे जो कल को वो होंगे हमारे.
भाई साहब ! इरादा क्या है ?
bohat badhiya, sir ji
mere do, tumhare do,
hamare chaar
bus ho gaya
family planning ka nek vichar :)
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