हर शाम जिन्दगी को फ़कत काटता रहा
जामों के बाद जाम हर इक नापता रहा.
ऎसा कहाँ कि तुमसे मुझे आशिकी नही
इक बेवफ़ा से वहमे वफ़ा पालता रहा.
कब दोस्तों से थी मुझे उम्मीद साथ की
अपना ही साथ देने से मै भागता रहा.
बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा.
बिखरे नही समीर की दुनिया सजी हुई
ख्वाबों से भरी आँख लिये जागता रहा.
--समीर लाल 'समीर'
रविवार, मई 21, 2006
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21 टिप्पणियां:
बहुत खूब!!
हर पंक्ति को बार बार बांचता रहा!!
वाह, भई, नितिन भाई, बहुत धन्यवाद.
अब सो भी जाओ ।आंख भारी हो गयी होगी।
जी, अनूप भाई, शुभ रात्रि.बहुत धन्यवाद.
तारीफ़ के लिये मुझे अल्फ़ाज़ मिल सकें
हाथों में ले लुघात उसे ताकता रहा
बहुत धन्यवाद, राकेश भाई.ऎसे ही उत्साहवर्धन करते रहें...
समीर लाल
कुछ हल्के पुलके पल देने का शुक्रिया !
ध्न्यवाद, मनीष जी.
वाह वाह, वाह वाह।
|| क्या ग़ज़ल कही है सर क्या तो मैं कहूँ
बस वाह! वाह! वाह! ही आलापता रहा ||
सादर...
बिखरे नही समीर की दुनिया सजी हुई
ख्वाबों से भरी आँख लिये जागता रहा.
बहुत सुंदर शायरी है समीर जी ...
बधाई एवम शुभकामनायें.
बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा.
बहुत ही खूबसूरत गज़ल ! हर लफ्ज़ दिल को छूता है और असर डालता है ! हर शेर लाजवाब है ! बधाई स्वीकार करें !
ऎसा कहाँ कि तुमसे मुझे आशिकी नही
इक बेवफ़ा से वहमे वफ़ा पालता रहा.
बहुत खूब कही आपने. वहम वफा पाले रखने में बुरा क्या है जो जिंदगी को यह सोच ही सुकून दे और.......इसी वहम में गुजर जाए हा हा हा
'बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा'
अक्सर लिखे को पढ़ती हूँ और.......... खुद को और कभी अपने प्रीतम को पाती हूँ उन शब्दों में.रो देती हूँ कभी और....कभी मुस्करा देती हूँ. बातों में छुपी बात को मान लेती हूँ इसी तरहा.और........ये हर पल मुझे उसके पास होने का अहसास देते हैं.हा हा हा ऐसिच हूँ मैं भी और........मेरा कृष्णा भी.
'बिखरे नही समीर की दुनिया सजी हुई
ख्वाबों से भरी आँख लिये जागता रहा'
नही बिखरने देंगी आपकी दुनिया को.न जागिये नही सोये हुए बंद आँखों में भी यह दुनिया हमसे दूर नही जा सकती.मुझ जैसी अल्प बुद्धी जीव से दूर न जा सकी आप जैसे विद्वान,संवेदनशील इंसान से दूर कैसे जा सकेगी साँसे लेती है आपमें.......आपकी वो दुनिया दादा!
बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा.
वाह सर!
सादर
जिंदगी क्या ये दिन यूं ही गुजर जायेंगे
गर इस तरह जिंदा रहे मियां हम तो मर जायेंगे
बहुत खूब!!
http://www.poeticprakash.com/
ऎसा कहाँ कि तुमसे मुझे आशिकी नही
इक बेवफ़ा से वहमे वफ़ा पालता रहा.
...बहुत खूब...हरेक शेर लाज़वाब..आभार
बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा.
वाह! क्या बात है.
आपके बातों में छुपी बात मानने का भी जबाब नही है,जी.
संगीता जी ने अपनी हलचल के शिखर
पर रखा है आपकी "ख्वाबों से भरी आँख को'.
बधाई व शुभकामनाएँ.
बातों में छिपी बात भाँपना बहुत बड़ी बात है .
बेबात हुई बात पर यह बात क्या कही
बातों मे छुपी बात भी मै मानता रहा.
वाह समीर जी , क्या बात कही है आपने ....
बहुत सुंदर
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