यह पोस्ट कुछ देर मे वापस आ रही है...कृप्या इन्तजार करें.
--समीर लाल 'समीर'
गुरुवार, अप्रैल 27, 2006
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--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
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दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।
-अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से
और क्या इस से ज्यादा कोई नर्मी बरतूं
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
-जाँ निसार अख्तर
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
-शायर अज्ञात
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3 टिप्पणियां:
ठीक है साब
यूं तो आपकी पोस्ट का इंतज़ार है, अलबत्ता इस बात पर बालीवुड़ का एक गाना ज़रूर याद आ गया.....
"तो आन दे, आन दे, आन दे......"
पूरा तो हमें भी याद नही.
-रेणु
हाँ तो आई पोस्ट वापस या नहीं।
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