जब जब भी वो आये
एक अरसा किया इंतज़ार हमने
ना खत आया ना संदेशे आये.
वो जब कभी सपनों मे आये
सितम दर सितम बन के आये.
ख्वाबों मे भी एहसास इस कदर
वो दूरियों का लेकर आये.
नींद के उजाले मे भी
धुआं धुआं ही नज़र आये.
ऎसे मै जान लेता हूँ हरदम
कि यादों मे उनके ही थे साये.
जब आँसू आंख भिगा जाये
और नींद कहीं दूर सो जाये.
--समीर लाल
शनिवार, मार्च 25, 2006
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2 टिप्पणियां:
bahut khoob apno se dur rehane ka gham bahut geharayee tak le gayee..ye kavita...
daad kabool karein
cheers
रचना को गहराई से पढने के लिये बहुत शुक्रिया, सेहर जी.
समीर लाल
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