ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब रात चाँदनी आती हैं
दिल की धडकन बड जाती है
तेरी यादें बहुत सताती हैं.
ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब कोयल कूह कूह गाती है
पैरों मे थिरकन होती है
तेरे गीत हवा सुनाती है
ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब हवा चमन महकाती है
आँखॊं मे आँसूं होते हैं
तेरे बदन की खुशबू आती है.
ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब मॊसम मे बदली छाती है
दिन मे अंधियारा होता है
जगे स्वपन तेरे दिखलाती है.
शुक्रवार, मार्च 10, 2006
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
10 टिप्पणियां:
ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब हवा चमन महकाती है
आँखॊं मे आँसूं होते हैं
तेरे बदन की खुशबू आती है.
बहुत ही सुकुमार सी, मधुर सी टीस जगाती रचना समीर जी ! मन को छू गयी आपकी यह कविता ! आभार आपका !
बहुत सुन्दर सर..
सादर.
in swaalon ke jwab milna bahut hi mushkil hai.....sundar rachna.....
bahut khub sir....
http://www.poeticprakash.com/
अब मौसम का ही तक़ाज़ा है ... :):)
वाह ....
बहुत ही बेहतरीन लिखा है ..
बहुत ही बढ़िया ...
बहुत सुन्दर गीत...
सादर.
बहुत ही बेहतरीन लिखा है ..ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब हवा चमन महकाती है
आँखॊं मे आँसूं होते हैं
//ऎसा क्यूँ हो जाता है
जब हवा चमन महकाती है
आँखॊं मे आँसूं होते हैं
तेरे बदन की खुशबू आती है.
waah. kamaal sirji .. kamaal :)
दिनांक 13/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
ऎसा क्यूँ हो जाता है......हलचल का रविवारीय विशेषांक.....रचनाकर...समीर लाल 'समीर' जी
एक टिप्पणी भेजें