शनिवार, सितंबर 24, 2022

भूखे मरने से प्रसाद ही बेहतर

 



वह बचपन से ही, मेधावी कहना तो उचित न होगा किन्तु चतुर बालक था। गरीब घर में पैदा हुआ था। माँ पास की बस्ती के घरों में काम करने जाती। माँ के साथ घर के आस पड़ोस में रहने वाली अन्य गरीब महिलायें भी बस्ती में काम करने को जाया करतीं। सभी अपने छोटे बच्चों को किसी एक के घर पर किसी बड़े बच्चे की देखभाल में छोड़ जाती। वही बड़ा बच्चा सब की देखभाल करता, समय समय पर दूध और खाना दे देता। सब छोटे बच्चे आपस में खाते, खेलते और सोये रहते और बड़ा बच्चा अपनी पढ़ाई भी करता रहता। पूरा मोहल्ला हिन्दू मुसलमान नहीं, एक परिवार हुआ करता था उस जमाने में।

वह छोटा चतुर बालक सब कमजोर बच्चों का दूध और खाना छीन कर अपने दो तीन खास दोस्तों को खिला पिला देता और चारों मिलकर कमजोर बच्चों पर खूब हंसा करते। कभी कोई कमजोर बच्चा शिकायत करने की बात करता तो चारों मिलकर उसे खूब डराते, धमकाते और मारते। ताकतवर से सभी डरते हैं। कभी कोई शिकायत कर भी देता तो चारों ताकतवर जोर से चिल्ला कर और कभी यह चतुर बालक अपनी आँख से घड़ियाली आँसू बहा कर अपने को बेदाग और कमजोर को गलत साबित कर देता। सब का दूध और खाना खाकर चारों इतने ताकतवर हो गए कि कमजोरों ने उनको अपना मालिक मान लिया और विरोध के बदले भक्ति करने लगे। इस बहाने कम से कम प्रसाद तो प्राप्त हो ही जाएगा भले ही भर पेट भोजन न भी मिले। भूखे को दो निवाले ही काफी – यह बात बच्चे भी समझते थे।

चतुर बालक जब बड़ा होने लगा तो विज्ञान और गणित में उसे कभी रुचि न आई- बस काम भर की सुनी सुनाई बात को गलत सलत सुना कर खुद को विद्वान साबित करता रहता। उसे विज्ञान और गणित की कोई उपयोगिता न दिखती। हाँ, किसी कवि को कविता करते सुना तो साहित्य पढ़ने का दिल हो आया। हल्का फुलका पढ़ा भी मगर बस काम भर का। उसी दौरान एक मार्डन हिस्ट्री की किताब हाथ लगी और वो जान गया कि आज के मंच के कवि दूसरों की कविता उड़ा कर और घिसे पिटे चुटकुले सुना कर विख्यात हुए जा रहे हैं और अकूत धन संपदा एकत्रित कर रहे हैं। बस!! फिर साहित्य से किनारा कर इसी राह पर चल निकलने का मन बनाने लगा।

कहते हैं न कि अगर आप किसी गुलशन में विहार करने जाओगे तो सिर्फ गुलाब की महक ही लूँगा, ऐसा तो होता नहीं। वहाँ तो चम्पा भी होगी, चमेली भी होगी और गेंदा भी होगा। सभी अपनी सुवास बिखेर रहे होगें और नाक तो इंसान होती नहीं कि महक महक में भेद करे। वो तो समभाव से सभी को ग्रहण करेगी।

अतः जब वह बालक मार्डन हिस्ट्री की बगिया में विचरण कर रहा था तो उसमें उसे आज के राजनीतिज्ञों का जीवन परिचय और कार्यशैली के बारे में भी ज्ञान अर्जित हुआ। उसकी तो मानो मनोकामना पूरी हो गई हो। वो इतना प्रसन्न हुआ मानो अंधे को दो आंखें मिल गई हों। कहते हैं ईश्वर ने सब के लिए एक न एक हीरा छिपा कर रखा है। बस आवश्यकता है कि आप अपनी खोज अनवरत जारी रखें, कौन जाने कहाँ छिपाया हो। अकसर तो लोग आलस और अपनी नियति में न पाना मानकर जीवन भर खोज ही नहीं पाते हैं और कुछ होते हैं जो कांच के टुकड़े को ही हीरा मान कर प्रसन्न हो लेते हैं।  बालक चतुर था और उसे मार्डन हिस्ट्री की किताब में हीरा प्राप्त हो चुका था।

उसने राजनीति की गहन जानकारी एकत्रित की, देशाटन किया और हीरे को तराशता रहा। चतुर तो था ही अतः आवश्यक मार्ग और ज्ञान अपनी समझ से अर्जित कर लेता। अपनी समझदारी अपनी होती है। बुद्ध ने भी अपनी समझदारी से ही निर्वाण प्राप्त किया था – बालक ने यह बात कहीं पढ़ ली थी।

कुछ दिन, न जाने क्यूँ, वो जुलाहों की बस्ती में रहकर जाल बुनने के गुर सीखता रहा और फिर दोस्तों ने देखा कि उसने अपना ठिकाना बदल लिया है। अब वो बहेलियों के गाँव में रह कर पंछी पकड़ने में महारत हासिल कर रहा था। वहीं किसी प्रबुद्ध ज्ञानी बहेलिये से उसने पंछियों की भाषा बोलना और समझना भी सीख लिया। जैसे ही उसने इस विधा में महारत हासिल की, उसने घोषणा कर दी कि अब वो चुनाव लड़ेगा।

तीनों मित्र अब तक अच्छे खासे व्यापारी हो चले थे। तीनों मित्रों पर बचपन के छीने हुए दूध और खाने का कर्ज तो था ही और बालक की आदत से भी परिचित थे कि आगे भी खिलाता पिलाता रहेगा जी भर के। तीनों ने मिलकर अपने धन बल से इसे चुनाव लड़वाया। चतुर बालक ने बड़ी सुंदरता से जाल बुना और बड़ी कुशलता के साथ उसे हर तरफ बिछा दिया। फिर उसने पंछियों की भाषा में मंचों से भावव्हिल कर देने वाले गीत गाना प्रारंभ कर दिया। पंछी भाव विभोर होकर आ आकर जाल में फँसते चले गए और चतुर बालक बड़ी चतुराई से चुनाव जीत गया। चारों मित्र फिर एकजुट होकर खूब हँसे।

अब भी वो कमजोर पंछियों को जाल में फंसा फंसा कर उनका माल छीनकर अपने मित्रों की तिजोरियाँ भर रहा है और शिकायत करने वालों की दुर्गति देखकर कमजोर उसकी भक्ति में रमें हैं।

भक्तों का नजरिया आज भी वही वही पुराना वाला है कि भूखे मरने से प्रसाद ही बेहतर – कुछ तो पेट में जाएगा।

-समीर लाल ‘समीर’

 भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार सितंबर 25, 2022 के अंक में:

 https://epaper.subahsavere.news/clip/366

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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

एक बार गांव में 5- 7 लोग हाथी साथ लेकर भिक्षा मांगने के लिए आए। जब वे लोग गांव में प्रवेश हुए तो ना जाने क्यों, सारे गांव के कुत्ते इकट्ठे होकर उस पर भौकने लगे। हाथी अपनी मस्त चाल चलता जा रहा था और कुत्ते अपने पूरे जोर से भौक रहे थे बहुत से लोग आकर हाथी को हाथ भी जोड़ते थे और कुछ लोग खाने के लिए भी दे रहे थे। एक बच्चा जो अपने बाप के साथ खड़ा, यह सब कुछ देख रहा था, अपने बाप से पूछता है पिताजी यह कुत्ते हाथी पर क्यों भौक रहे हैं, हाथी से कुत्तों की क्या दुश्मनी है, यह हाथी तो आया भी पहली बार गांव में है। पिता उत्तर देते हैं कि कुत्तों को हाथी से समस्या नहीं है, उनको समस्या इस बात से है कि लोग हाथी के सामने हाथ भी जोड़ रहे हैं और उसको खाना भी दे रहे हैं, वह हाथी से नहीं इन लोगों द्वारा दी जा रही इज्जत से जलते हैं, इसलिए जलते हैं क्योंकि हाथी को बहुत ज्यादा मान्यता और इज्जत मिल रही है।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सटीक व्यंग।