बुधवार, अक्तूबर 05, 2022

जिंदगी शायद इसी कशमकश का नाम है!!

 


आज सुबह जब टहलने निकला तब

आदतन हर रोज की तरह अरमानों का

इक बादल उठा लाया था साथ अपने ,

दिन गुजरा और बदला कुछ मौसम,

सूरज अब डूबने को हुआ है लालायित –

और मैं खोज रहा हूँ उस बादल को

वो भी खो गया कुछ मुझसा मेरे साथ

या फिर बरस गया है कहीं कुछ यूं ही

पसीनों की उन झिलमिल बूंदों के साथ

जो मुझे ले आई हैं दिन के उस पार से

इस पार तक एक नया मैं बनाते हुए !!

हर रोज इक बादल खो जाता है मेरा

इन मेहनतकश पसीने की बूंदों के साथ –

जिंदगी शायद इसी कशमकश का नाम है!!

मगर साथ ही मुझे इस बात का भी भान है-

सूरज डूबता ही है फिर से ऊग आने के लिए!!

-समीर लाल ‘समीर’  

 


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6 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

डूबता सूरज फिर उगने का संदेश देता है...और सुबह आशाओं के बादल...बस इससे ज़्यादा जीने की क्या वजह चाहिये... सुन्दर रचना...👌

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

डूबता सूरज भी उम्मीदों को बंधा रहा है और नित नए अरमानों के बादल का सृजन ज़िन्दगी को ऐसे ही कशमकश में डाले रखता है । सुंदर अभिव्यक्ति

रंजू भाटिया ने कहा…

सूरज का निकलना एक उम्मीद है। सुंदर लिखा आपने

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सूरज डूबता ही है फिर से ऊग आने के लिए!!
बहुत सुंदर जीवन में उम्मीद जागते भाव ।

Sweta sinha ने कहा…

सकारात्मकता को टोहती भावपूर्ण सुदर अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम
सादर।

Sudha Devrani ने कहा…

और मैं खोज रहा हूँ उस बादल को

वो भी खो गया कुछ मुझसा मेरे साथ

या फिर बरस गया है कहीं कुछ यूं ही

पसीनों की उन झिलमिल बूंदों के साथ
वाह!!!
क्या बात...