शनिवार, नवंबर 25, 2017

छेड़छाड़ का इतिहास

अति की तरह ही छेड़छाड़ को भी हर हाल में बुरा माना गया है. फिर वो चाहे लड़की से हो, भूगोल से हो या इतिहास से.
अति सर्वत्र वर्जिते!!
लड़कियों से छेड़छाड़ करना तो खैर सदियों से हमारी परम्परा और संस्कृति का हिस्सा रही है और इसे मान्यता भी लगातार पुरुष प्रधान मानसिकता देती आई है. हालात तो यहाँ तक रहे हैं कि उत्तम प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री तक, लड़कियों से छेड़छाड़ के चरम, बलात्कार तक के बचाव में खड़े यह कहते नजर आते थे कि लौंडे है, लौंडों से गल्ती हो जाती है..इसे जाने देना चाहिये. लड़कियों को ख्याल रखना चाहिये कि ऐसा पहनावा न पहनें या ऐसे समय घर से न निकलें जो लड़कों को उकसाये...हद है!!
वहीं हाल ही में जब दूसरी तरफ इस छेड़छाड़ को रोकने के लिए एण्टी रोमियो स्कवाड बनाया गया, तब वो तो खुद ही छेड़छाड़ पर उतारु हो गया. वह उसे कमाई का एक नया जरिया मान बैठा इसे. भाई बहन का साथ निकलना मुश्किल कर दिया इस स्कवाड ने. यह भी नये नये स्थापित तंत्र की सोच के साथ छेड़छाड़ का चरम ही कहलाया.
भूगोल से छेड़छाड़ करने के लिए किसी के भी भूगोलिक नक्शे में से थोड़ी सी भू गोल कर दो, बस हो गई भूगोल से छेड़छाड़. भूगोल से छेड़छाड़ यूँ तो बहुत नहीं होती मगर छेड़छाड़ का एक अन्य अर्थ फिरकी लेना भी होता है... अगर आप में फिरकी लेने का गहन अर्थ जानने की तीव्र इच्छा हो तो कृप्या आमिर खान की फिल्म पीके देख लें.. मगर बस.. फिरकी का अर्थ जानने के लिए रेक्मेन्ड किया है..बाकी आप अपने विवेक का इस्तेमाल करें कृप्या... ऐसे में किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर फिरकी लेकर मजे लेना भी इन्सानी फितरत का हिस्सा ही है. उदाहरण के तौर पर, कभी एकाएक ऑनलाईन मैप में भारत के नक्शे से कश्मीर ही गुम हो गया था. भारी बवाल कटा, हल्ला मचा और कश्मीर फिर भारत में आ जुड़ा. यह दीगर बात है कि वो न कभी अलग हुआ था और न कभी होगा. सोच कर देखें कि अगर कभी वो अलग होकर पाकिस्तान में जा मिला तो भारत और पाकिस्तान दोनों समय समय पर अपने ही देश में अन्य दहकते मुद्दों से देश का ध्यान कैसे भटकायेंगे? कश्मीर का विवादित बने रहना ही दोनों देशों की सियासत के लिए मुफीद है, इसे कोई नहीं सुलझायेगा. जो इसे सुलझायेगा, वो खुद ही इसकी आग में जल जायेगा. बस इतनी सी बात है.
अब बात करते हैं इतिहास की. बीती घटनायें इतिहास बन जाती हैं. आज मेरा लिखना कल इतिहास कहलायेगा. इतिहास बखानेगा कि एक लेखक हुआ करते थे समीर लाल समीरजो उड़न तश्तरी के नाम से लिखते थे अखबार में. ऐसे में कोई नवोदित फुदक कर सामने आयेगा और कहेगा कि उड़न तश्तरी ने आखिर लिखा ही क्या था, जो उनको याद किया जाये? उन्होंने तो लेखन के नाम पर बस मजाक किया है..मसखरी की है. असल लेखन तो हमारे जैसे लेखकों के आने के बाद से शुरु हुआ है मानो ये न आये हों सन २०१४ आया हो. २०१४ के बाद से लेखन ने अपने परचम को विश्व स्तर पर लहराया है...वरना तो पिछले कई दशकों में कुछ हुआ ही नहीं लेखन के क्षेत्र में. प्रेम चंद, मंटो, रेणु, शरद जोशी, परसाई, निराला, टैगौर से लेकर कबीर, तुलसी, गालिब तक...सब एक ही जुमले में नेस्तनाबूत हो गये...मानो एकाएक कोई नया ग्रह ऊग आया हो, जिसका कोई इतिहास है ही नहीं!!
इतिहास को इतिहास बना देने की साजिश ही इतिहास से छेड़छाड़ कहलाती है..अब इसमें गाँधी नेहरु का मजाक उडा लो तो..और पटेल जो यूँ भी लोह पुरुष माने गये हैं, उनका लोहा मनवा लो तो...या किसी हत्यारे को जायज ठहरा कर उसका मंदिर बनवा लो तो..
बस इतना समझ लेना कि इतिहास पेंसिल से लिखी इबारत नहीं है जो जुमले रुपी रबर से पोंछी जा सके..वो पत्थर में खुदी वो लिखाई है जो सदियों तक अमर रहती है...
पद्मावति महज एक फिल्म है..और फिल्म मनोरंजन का साधन है..वो कुछ भी स्थापित नहीं करती...पद्मावति का इतिहास पत्थर में खुदा है..और तुम एक फिल्म से घबरा कर बवाल मचा रहे हो !!
मनोरंजन, सियासत और फिरकी में भेद करना सीख लो वरना हर दिन दंगे मचाते नजर आओगे और सफल वो होंगे जिन्होंने तुमसे दंगे मचवाने के लिए पासा फैंका था इतिहास से छेड़छाड़ का.
आज जो तुम कर रहे हो न!! वो ही कल इतिहास होगा..ऐसा करो कि शर्मिंदा न हो कल, जब तुम पलट कर देखो वरना कहीं अपने किये को देख कर खुद ही को अपने ही इतिहास से छेड़छाड़ करने को आमादा न होना पड़े.

-समीर लाल समीर
दैनिक सुबह सवेरे, भोपाल के रविवार २६ नवम्बर, २०१७ में प्रकाशित:   
http://epaper.subahsavere.news/c/24002361

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शनिवार, नवंबर 18, 2017

विकास का मायने: क्वालिटी क्रिस्प रहे

दिखता है खुली आँखों विकास. !! वो जुमले वाला नहीं..दूसरा वाला और वो भी २०१४ के बाद वाला नहीं..जो अनवरत होता ही रहता है वो वाला.
कभी रेडिओ पर गाने सुना करते थे, फिर ट्रांजिस्टर पर सुनने लगे, फिर स्पूल वाले टेप रिकार्डर पर सुने, ग्रामोफोन पर सुने. फिर एल पी पर सुने..और ज्यादा विकसित हुए तो कैसेट वाले टेपरिकार्डर पर सुने. विकास होता गया. वॉक मैन, आई पॉड, सीडी, डीवीडी, एमपी३..सब आते, अपनी अपनी विकास गाथा सुनाते और इतिहास का हिस्सा बनकर गुम हो जाते.
पहले कोयले के इंजन वाली पैसेन्जर ट्रेन से चला करते थे खरामा खरामा जिस दूरी के लिए तीन तीन दिन तक, वो विकसित होते होते तूफान और राजधानी एक्स्प्रेस जैसी फटाफट ट्रेनों के माध्यम से एक दिन में पूरी होने लगी.. सुना है बुलेट ट्रेन आने वाली है, उसमें तो चढ़े नहीं कि उतरने की लाईन में लग जाने वाली स्पीड बताते हैं. मगर अब तक सुने सुने ही हैं, देखे नहीं हैं इसलिए यह जुमला निकल जाये, तो कोई गारंटी नहीं. आज ही किसी ने आर टी आई करके पता किया तो मालूम हुआ कि बुलेट ट्रेन खरीदने का तो कोई एमओयू ही नहीं हुआ है अब तक.
कम्प्यूटर को ही देख लें, ऐसा विकास कि कमरे की साईज वाले कम्प्यूटर से भी कई गुना ज्यादा ताकतवर कम्प्यूटर आपकी गोदी में लैपटॉप बने बैठा है.
वैसा ही विकास आज इंसानी मानसिकता में हुआ है. मुझे याद है कि हमारे समय के दलित नेता एवं कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री रहे नेता जो बिहार के सासाराम से आते थे, उनके सुपुत्र के पोस्टर पूरे देश में प्रिंट करके दिवालों पर लगाये गये थे. किसी लड़की के साथ आलिंगनबद्ध हुए और केन्द्रीय मंत्री जी से इस्तिफा मांगा जा रहा था. पोस्टर देखकर लोग कहते थे कि हाँ, लग तो कोई लड़की ही रही है. मने लग भर जाना काफी था, दिखना दिखाना तो दूर की बात.
इस फील्ड में विकास भरपूर हुआ और अब तो खुले आम विडिओ सीडी भी दिखा दो तो लोग मुकर जा रहे हैं कि ये डॉक्टर्ड है. दिल्ली सरकार के मंत्री जी की सेक्स कांड वाली सीडी देखकर तो लगता था वाकई सेक्स काण्ड है. प्रिंट के जमाने में लोग इस्तिफा मांगते थे, आज विकसित जमाने में लोग मांगते तो जरुर हैं मगर इस्तिफे की जगह सीडी. जिसे देखो वो ही मांगता था कि है क्या वो वाली सीडी? उसमें सेक्स सीडी वाला कंटेंट था और कटेंट तो राजा होता है. ये अलग बात है उसे भी झुठलाया जाता रहा वो भी उनके द्वारा जो उसको चटखारे लेकर देख रहे थे.उनकी पार्टी की आंतरिक लोकपाल समीति भी वो सीमित ५ मिनिट की सीडी ३ घंटे देखती रही. ये होती है कला सीडी बनाने की.
अब आया है हार्दिक पटेल का सेक्स सीडी काण्ड...कंटेंट के नाम पर शून्य.. बड़े चाव से लोग देखने जा रहे हैं और सेक्स छोड़ कर सब पाकर लौट आ रहे हैं मायूस होकर..कहने लगे कि इसमें तो कुछ है ही नहीं.. कोई पार्ट २ भी है क्या? हमने पूछा कि क्या देखने गये थे तो शरमा गये, कुछ बोले ही नहीं..बस इत्ता कहा कि इनने बेवकूफ बना दिया इसमें भी फिर से...
ये भी जुमले जैसा ही निकला...दरअसल जिज्ञासावश हम भी देख आये..कोई हार्दिक जैसा दिखता शक्स..चलो, माना कि हार्दिक ही होगा..किसी लड़की के साथ एक कमरे में है..उसके फोन पर दोनों कुछ देख सुन रहे हैं और हम सांस थामें देख रहे हैं कि अब क्या होगा..आखिर सेक्स सीडी है ..फिर एकाएक कमरे में अँधेरा हो जाता है और फिर गुलाबी सी रोशनी..और कोई दो शक्स कैमरे के सामने से नीचे होते हुए बिस्तर में खो जाते हैं. कहो सो ही गये हों.. नींद ही न लग गई हो.. मगर लगे हल्ला मचाने कि ये देखो सेक्स सीडी...इतनी निराशा तो पुरानी फिल्मों में भी न होती थी..जहाँ ऐसे मौके पर दो तोता तोती चोंच भिड़ाने लगते थे संकेतात्मक प्रक्रिया के लिए...मैं सोचता हूँ कि ये अगर सेक्स सीडी है तो इससे बेहतर तो कोई यू सर्टिफिकेट फिल्म ही देख लो, इस लाईन का बेहतर कन्टेट तो उसमें मिल जायेगा.. आखिर सेन्सर बोर्ड है ही क्यूँ?? और वो देखता क्या है?
खैर, आप पूछोगे इसमें विकास की क्या बात? इसे उससे क्यूँ जोड़ रहे हैं?....
तो ऐसा है कि यह अपवाद सा हो लिया है...जबकि हर क्षेत्र में विकास हो रहा है...सेक्स काण्ड प्रिंट से विकसित होकर सीडी में अटक गया है..हर बार जब भी सेक्स काण्ड का भंडाफोड़ होता है..सीडी ही जारी होती है...अरे भई..विकास की इस यात्रा में अब डीवीडी जारी करो..एमपी ४ जारी करो..वही सीडी पर अटके हो..क्यूँ?
एक विकास जो साफ नजर आता है वो है टर्मिनोलॉजी का..सेक्स सीडी ये लोग अब यूट्यूब पर अपलोड नहीं करते..बल्कि वायरल करते हैं.
जुमला देखें..हमने इनकी सेक्स सीडी यू ट्यूब पर वायरल कर दी है..
हे प्रभु..आपका काम अपलोड करना है और देखने वालों का काम वायरल करना है...इतना तो समझो.
मानो सेक्स सीडी न हो..कोई ईवीएम हो..कि ठान कर बैठ गई हो कि बस इनको ही जीताना है...वोटर चाहे कुछ भी कहे!! वोट इनको को ही पड़े...इनके वोट वायरल कर डालती है ईवीएम..
उम्मीद है कि जल्द ही एक विकास का झटका और लगेगा और कल कोई सेक्स डीवीडी जारी होगी...
बस!! भाई जी..मेरा एक निवेदन है कि क्वालिटी क्रिस्प रहे वरना नेता तो गये तेल लेने...आमजन निराश होता है!!
-समीर लाल समीर

दैनिक सुबह सवेरे भोपाल के सोमवार नवम्बर २०, २०१७ के अंक में प्रकाशित:

http://epaper.subahsavere.news/c/23843541

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