----------------
हम
हल्ला करने को शायर हैं..
तुम खेल सियासी चालों का
हम इक टुकड़ा हैं खालों का...
मारो कि हम हैं सहने को
अब बचा नहीं कुछ कहने को...
क्या शोक जताना काफी है
क्यूँ अब भी जगना बाकी है...
-समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
-शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जब आप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितने ही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं..बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर से अब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा.
----------क्या यही ????????????????? बाकी तो कुछ भी जोड़ लो....वाक्य सार्थक ही बनेगा.
आज खुद अपनी परछाई से
घबरा गया हूँ.......
लगे है कि तेरे
दामन में आ गया हूँ....................
-----------विशेष टीप:
आज क्षुब्द मन ने किसी भी ब्लॉग पर टीप करना उचित न समझा...अतः उम्मीद है आप समझेंगे.
77 टिप्पणियां:
हिन्दू कायर ही है . हमारी मानसिकता भी कायर है . हम रोने के आलावा कुछ कर भी नहीं सकते .
मन बहुत उदास है. सैकड़ों जाने ,तमाम पुलिस अफसर की जानें गयी और धरोहर के जैसी कई पुरानी इमारतों का नुक्सान हो गया. यह क्या हो गया है आमची मुंबई को, किसकी नज़र लगी है इस शहर को कुछ समझ नही आता..... हे ईश्वर इन चरमपंथिओं को सदबुद्धि दो. मानवता की यही पुकार है.....
मन बहुत उदास है. सैकड़ों जाने ,तमाम पुलिस अफसर की जानें गयी और धरोहर के जैसी कई पुरानी इमारतों का नुक्सान हो गया. यह क्या हो गया है आमची मुंबई को, किसकी नज़र लगी है इस शहर को कुछ समझ नही आता..... हे ईश्वर इन चरमपंथिओं को सदबुद्धि दो. मानवता की यही पुकार है.....
जी समीर जी मन व्यथित है -क्या करुँ क्या ना करुँ के अंतर्द्वंद में फंसा हूँ !
जी समीर जी मन व्यथित है -क्या कहूं / करुँ ,क्या ना कहूं /करुँ के अंतर्द्वंद में फंसा हूँ !
hindustan kayar nahin, hamare neta satta ke bhukhe ho gaye hai. unko vote kee fasal katani hai. narayan narayan
आज तो सभी का मन क्षुब्द है क्या कहें
किंकर्तव्यविमूढ़ कुछ कह नहीं पा रहा हूँ. संवेदनशील प्रविष्टि.
आपकी मनोदशा का अनुमान लगा पा रहा हूं । आप अकेले नहीं हैं । हम सब आपके साथ ही हैं ।
ईश्वर मारे गए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें . उनके परिजनों को दु:ख सहने की ताकत दें .
हम भी निःशब्द और स्तब्ध हैं। ...क्या कहें?
.....ॐ शान्तिः।
रोने की जरूरत नहीं, हिन्दू को छोड़ एक भारतीय बन जाएँ। देखिए कितनी मजबूती आती है।
दिखती हैं
जो दरारें
और पैबंद
यह नजर का धोखा है
जरा हिन्दू-मुसमां
का चश्मा उतार कर
अपनी इंन्सानी आँख से देख
यहाँ न कोई दरार है
और न कोई पैबंद।
हूं,,,,,,,,,,,,,,,,।
प्रिय भाई, आपका मन कितना क्षुब्ध होगा और कितनी घुटन होगी यह मैं भी महसूस कर सकता हूँ. फिर भी आपकी कविता का पहला चरण यदि "हम हिन्दुस्तानी, कायर हैं" होता तो मुझे लगता कि आपने मुझे भी अपने साथ शरीक कर लिया है. क्या हमारे लिए एकजुट होना ज़रूरी नहीं है. क्या हम इस चुनौती का सामना अलग-अलग रहकर कर सकते हैं.
टीका टिप्पणियाँ तो हम पहले भी बहुत कर चुके. इससे केवल दरारें बढती हैं.फिर इस कार्य के लिए राजनीतिक नेता तो हैं ही. इस समय कुछ प्रश्नों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. १. यह कि हमारी खुफिया व्यवस्था कब चाक़-चौबंद होगी. २. यह कि इतनी बड़ी-बड़ी घटनाओं को हम कब गंभीरतापूर्वक लेंगे. ३.यह कि हम साम्प्रदायिक बुनियादों पर कबतक एक दूसरे की छीछालेदर करते रहेंगे और बिना किसी भेद-भाव के कम-से-कम देश से जुड़े मुद्दों पर एकजुट नहीं होंगे. ४. यह कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारी अनेक दुर्बलताओं का लाभ उठाकर पश्चिमी देशों ने हमारे विरुद्ध एक गुप्त षड़यंत्र रचने की योजना बनायी हो. ऐसा इसलिए भी सम्भव है कि दक्षिण एशियाई देशों का और विशेष रूप से भारत का विकास उन्हें बर्दाश्त नहीं है. और फिर पाकिस्तानियों को ख़ास तौर पर धर्म के नाम पर भड़काकर और भारतीयों को भ्रष्टाचार का लाभ उठाकर इस कार्य में आसानी से झोंका जा सकता है. हमें और भी ढेर सारे पहलुओं पर सोचना होगा.
हम कानून कड़े करने की बात करते हैं. हाँ कानून कड़े होने चाहियें. किंतु मुक़दमा चलाये जाने या यातनाएं देने के लिए नहीं. देशविरोधी आतंकवादी गति-विधियों में जो लोग भी रंगे हाथों पकडे जाएँ उन्हें जनता के बीच खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए. मुक़द्दमे केवल उनपर चलाये जाएँ जो संदेह के घेरे में हों और जिन्हें घटना स्थल से न पकड़ा गया हो. जो लोग मोबाइल या फोन से बम पाये जाने सम्बन्धी झूठी सूचनाएं पुलिस को देते हैं उन्हें भी कड़े दंड दिए जाने चाहिए. जिनके पास से खुले आम आर डी एक्स पकड़ा जाता है, वे कुछ भी सफाई दें, उन्हें आतंकी मानना चाहिए. ए.टी.एस की ही तरह हर संवेदनशील शहर में एनजीओज़ के आतंक विरोधी दस्ते बनाए जाने चाहिए. जो बारीकी से असामान्य गतिविधियों का विश्लेषण करते रहें और ए.टी.एस के सहयोगी बनें.
समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
" यही हाल शायद सभी भारतीय नागरिक का होगा और इसी असमंजस की स्थति भी, हर कोई आज अपने को लाचार बेबस महसूस कर रहा है और रो रहा है अपनी इस बदहाली पर ..."
स्ताभ्द दुखी और शोकाकुल हूँ..
फिर बम फटे,
निकली राजनैतिक फायदो की आग,
प्रत्यारोपो का धुँआ,
फिर खूब बिकें अखबार,
नपुंसक शांती के चीथडे,
फिर हुआ साफ,
मीडिया की कमाई का रास्ता,
टीम इंग्लैण्ड लौटी अपने घर,
मिला विराम खेलो को,
नए तरीके से खेले जाएगे,
मिला विषय चाय के ठेलो को,
उपजी पुनः चिंता की रेखाएँ नेताओ की तोंदो पर,
फिर गिरी गाज,
वादो का ईसबगोल तलाशती चमचो की फोजो पर,
इसी दौरान बढा लिया लोकतंत्र ने अपना ईमान,
शांतीपूर्ण संपन्न हुआ मतदान,
निकल आए चमनप्राश के डिब्बे,
मूक लोग कंबलो में दुबके,
गजब ठंड है,अबके।।
kitne bebas aur lachacr mhesoos kar rahe hain khud.......
kayar khena uchit nahi hai kyunki....
mere anusaar batain banae wala ek samaj jo sirf batain banana janta hai har kisi par ungli uthana janta hai chahain wo koi bhi jo marne wala wo police officer ya koi bhi uske sahas aur uski veerta koi sab nazar andaaaz kar dete hain......
मैंने मरने के लिए
रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है
????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान
और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा
के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना
मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते
हैं
अक्षय-मन
मैंने मरने के लिए
रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है
????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान
और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा
के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना
मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते
हैं
अक्षय-मन
दुर्भाग्य से यही सच है।
अपनी एक जुटता का परिचय दे रहा हैं हिन्दी ब्लॉग समाज । आप भी इस चित्र को डाले और अपने आक्रोश को व्यक्त करे । ये चित्र हमारे शोक का नहीं हमारे आक्रोश का प्रतीक हैं । आप भी साथ दे । जितने ब्लॉग पर हो सके इस चित्र को लगाए । ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं । आईये अपने तिरंगे को भी याद करे और याद रखे की देश हमारा हैं ।
अपनी एक जुटता का परिचय दे रहा हैं हिन्दी ब्लॉग समाज । आप भी इस चित्र को डाले और अपने आक्रोश को व्यक्त करे । ये चित्र हमारे शोक का नहीं हमारे आक्रोश का प्रतीक हैं । आप भी साथ दे । जितने ब्लॉग पर हो सके इस चित्र को लगाए । ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं । आईये अपने तिरंगे को भी याद करे और याद रखे की देश हमारा हैं ।
-समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
सिर्फ़ मौन .............................................
आज तो जहां देखो, उदासी पसरी पड़ी है।
जब मन ऐसा हो तो गला फाङकर चिल्लाओ वंदेमातरम्
hu bas itana hi kehenge shahidon ko salam,unke kaaran hum mehfuz hai.
...वाकई यह वह दौर है, जहाँ हर कोई निशब्द है. पर वक़्त हर घाव पर मरहम लगा देता है, बशर्ते हम उससे कुछ सीखें !!
Sab ke man ka yahi haal .... Shok kahe.n ya akrosh nateeja ki ham sab kuchh sahane ko mazboor hai.n
आपने वास्तविकता ही सामने रख्खी है।...हम लोग सच ही में कायर है।
समीर जी,
दिल बहुत उदास है । बस और क्या कहें, यहाँ अपने बाकी मित्र जो हिन्दुस्तानी नहीं हैं उन्होने भी संवेदनायें व्यक्त की हैं लेकिन फ़िर भी आज दिल सच में बहुत उदास है ।
हिन्दू शब्द इतना अश्लील नहीं की काटा जाय. है रोष तो व्यक्त करो, कल मैं और आप भी हो सकते है.
rajnitik udasinta aur vote ki rajniti ko hinduo ki kayarta ka naam nahi dena chahiye. jo militry, ats police aur stg ke sipahi apani jaan ki baazi laga rahe hain kya wo hindu nahi hai.
अब वक्त है.. सख्त कार्यवाही का... बातें छोडे़.. सामना करो..
:-(:-(:-(:-(:-(
आपने कभी सोचा है की अमेरिका पे दुबारा हमला करने की हिम्मत क्यों नही हुई इनकी ?अगर सिर्फ़ वही करे जो कल मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा है तो काफ़ी है.....अगर करे तो....
फेडरल एजेंसी जिसका काम सिर्फ़ आतंकवादी गतिविधियों को देखना ....टेक्निकली सक्षम लोगो को साथ लाना .रक्षा विशेषग से जुड़े महतवपूर्ण व्यक्तियों को इकठा करना ....ओर उन्हें जिम्मेदारी बांटना ....सिर्फ़ प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करना ,उनके काम में कोई अड़चन न डाले कोई नेता ,कोई दल .......
कानून में बदलाव ओर सख्ती की जरुरत .....
किसी नेता ,दल या कोई धार्मिक संघठन अगर कही किसी रूप में आतंकवादियों के समर्थन में कोई ब्यान जारीकर्ता है या गतिविधियों में सलंगन पाया जाए उसे फ़ौरन निरस्त करा जाए ,उस राजनैतिक पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए .उनके साथ देश के दुश्मनों सा बर्ताव किया जाये .......इस वाट हम देशवासियों को संयम एकजुटता ओर अपने गुस्से को बरक्ररार रखना है .इस घटना को भूलना नही है....ताकि आम जनता एकजुट होकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाये ओर शासन में बैठे लोगो को भी जिम्मेदारी याद दिलाये ....उम्मीद करता हूँ की अब सब नपुंसक नेता अपने दडबो से बाहर निकल कर अपनी जबान बंद रखेगे ....इस हमले को याद रखियेगा ......ये हमारे देश पर हमला है !
आज कुछ नहीं कहना बस ईश्वर अल्लाह भगवान ईसा मसीह उन शहीदों की आत्मा को शांति दे और हम सभी की कायरता को दूर करे ताकि आतंक के खिलाफ हम स्वयं ही कुछ कर सकें
बड़ा ही दुखद प्रसंग है . निरंतर बढ़ रहे अराजक वातावरण को देखकर मन दुखी हो जाता है किस व्यवस्था को अक्षम कहे जिसके फलस्वरूप निरीह लोगो की जान जा रही है . आज आपकी पोस्ट और टी.वी पर लाइव समाचारों को देखकर हृदय और भी व्यथित हो रहा है ........
हमारे तंत्र को धीरे धीरे नेताओं ने दीमक लगा दिया है। वह केवल भाट बन कर रह गया है राजास्तुति करने के लिए...वर्ना कोई कारण नहीं कि इतना बडा हादसा उसकी नाक के नीचे हो रहा हो और उसे पता भी न चले!!!
wo kya bachayenge matribhumi ko jo roj maa(mother)ko bechte hain,
kayar kahlane ka gam nahin unhen, wo to satta jane par sarmate hain
कब तक रोएंगे। अब तो रोने को आंसू भी कम पड़ने लगे हैं। किसका लालच है ये, कौन विभीषण है ये, कब तक ये हमें बूँद बूँद चूसेगा!
टिपण्णी करने की श्रधा नहीं थी अभी....सामान्य होने में एक दिन और लगेगा... लेकिन सिर्फ़ ये बताने को की हमने आप को पढ़ लिया है टिपिया रहा हूँ...
नीरज
सैकड़ों वर्षों की तानाशाही गुलामी ने हिन्दुस्तानी मानसिक्ता को गुलामी का ही आदि बना दिया है, वह आज भी अपने लिए सोचने से कतराती है और एक राज परिवार की माँग करती है जो उन पर राज कर सके। भ्रष्ट मानसिकता साथ जो अपना नफ़ा दूसरे की कीमत पर देखे और फिर "आई डोन्ट गिव अ डैम" वाली सोच। इतना ही काफ़ी है कदाचित्, और राम जी में अटूट विश्वास क्योंकि उनके भरोसे ही देश चल रहा है!! :)
समझ नहीं आ रहा है कि यह समय शोक व्यक्त करने काहै, या अपने नाकारा प्रशासन को कोसने का।
हम भी स्तब्ध है। मन में गुस्सा में उबल रहा है। इस आतंकी हमले के लिए इस्लाम के नाम पर दहशतगर्दी फैलाने वाले और इन्हें खाद-पानी मुहैया करानेवाले लालू-मुलायम, वामपंथी और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार समान रूप से जिम्मेदार है। अब भी सरकार चेत जाये और आतंकवादियों को अविलंब कठोर दंड देने की व्यवस्था करें।
...रोकर भी क्या होगा...आंसू बचेंगे तभी तो रो सकेंगे हम और आप।
शहीदों को सलाम करने के बाद शायद खुद पर ही इल्जाम धरा जाये तो सबसे सही होगा।
मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में मारे गये सभी नागरिकों और शहीद हुए सभी बहादुरों को हार्दिक श्रद्धान्जली। देश हर बार की तरह एक बार फिर उनकी शहादत को भुला देगा और उनकी शहादत को यूं ही जाया होने देगा, और आतंकवादी एक बार फिर निर्दोष लोगों को मारेंगे, फिर कोई मोहन चंद शर्मा, हेमंत करकरे, विजय सालस्कर और अशोक काम्टे अपनी देशभक्ति के जोश में देश पर शहीद हो जायेंगे और नामर्द नेता एक बार फिर बकवास करेंगे ” हम किसी को छोड़ेंगे नहीं। जिन्हें पकड़ चुके हैं उन्हें फांसी पर लटकाने में आनाकानी करेंगे। एक बार फिर गृहमंत्री अपने सूट बदल बदल कर आयेंगे और चैनलों परपनी सफाई पेश करेंगे।
टीवी चैनल इस बीच फिर नाग, भूत- भूतनी और एलियन को गाय का दूध पिलाने बैठ जायेंगे।
….और हम क्या करेंगे? एक बार फिर चैतन्य की तरह मुट्ठियाँ भींचते हुए अगली पोस्ट लिखने बैठ जायेंगे। हद है बेबसी की भी।
छलनी है.. दिल
कौन कहता है आकाश में छेद नही हो सकता,
एक पतथर तो जरा दम से उछालों यारो।
दुष्यंत की गजल के एक शेर से सब स्पष्ट हो जाएगा।
अब तक देश का नेतृतव शिखंडी बना बैठा रहेगा
देखिये आगे क्या होता है
परमात्मा हम शोक-संतप्त कायरों को शक्ति दे।
" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
sahi kaha aapne.
दिल मे बहुत गुस्सा है सब के, कब तक कायर बने रहैगे???
इतने भी सहन शील ना बनो की दुशमन अपनी दुष्टा से आप को दुख देता जाये,
सर समय अब दुःख व्यक्त करने का नहीं रह गया है | अब समय है कुछ करने का | यह जवां भारत अब जागेगा | मैंने भी इसी विषय पर ब्लॉग लिखा है - पढ़ें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं |
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
singhsdm ने कहा…
मन बहुत उदास है. सैकड़ों जाने ,तमाम पुलिस अफसर की जानें गयी और धरोहर के जैसी कई पुरानी इमारतों का नुक्सान हो गया. यह क्या हो गया है आमची मुंबई को, किसकी नज़र लगी है इस शहर को कुछ समझ नही आता..... हे ईश्वर इन चरमपंथिओं को सदबुद्धि दो. मानवता की यही पुकार है.....
.................yahi maine kaha...yahi sabne kaha...asal men to kuchh kahane ko bhi man nahin rah gayaa...
बहुत ही दुखी हूँ और बहुत ही गुस्से में। आशा है हम अब कुछ करेंगे । ईश्वर सबकी रक्षा करे। आगे ऐसा कभी न हो।
kafi achchha likhte ho!!!!!
aap kafi achchha ikhte ho!!!
हम हिन्दुस्तानी कायर हैं
हल्ला करने को शायर हैं..
तुम खेल सियासी चालों का
हम इक टुकड़ा हैं खालों का...
समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
ठीक ही कहा है समीर जी। इस के बाद कुछ कहने को रह ही क्या रहा है।
आदरणीय लाल साहब,
हद्द-दर्जे की शर्मनाक बात है ये भई. बतलाइए जिस वक्त हम सब मिलकर ग़ज़ल और सेहरा पढ़ने की बातें कर रहे थे, हमारे मुल्क का आसमान तप्त लाल हो रहा था. और एक के बाद एक फ़ातेहा पढ़ दिए गए.
आपने ठीक फ़रमाया के ये अच्छा नहीं हुआ, न होना चाहिए था ये ! न
इस क्रूर घट्ना ने जैसे संवेदनहीन ही कर दिया है| श्रध्दांजली उन शहिदों को जिन्होने अपने देश और देश के लोगों के लिये अपना बलिदान दिया|
सही कहा आपने। जब लोहा गर्म हो तो हथौड़ा पड़ना ही चाहिए। सोई हुई कौम, जिसे अपनी उदरपूर्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं पता। फ़िर हम कह्ते हैं जनजीवन सामान्य हो गया, हम लोग हिम्मत वाले हैं!
हिम्मत माय फ़ुट!!
सब कुंठित व स्वार्थी हैं।
:(:(
इसलिये तो निराला जी जिंदगी भर चिल्लाते रहे-
ओ काहिल-जाहील अंधे अभागो
अब भी समय है अब तो जागो !!
-समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
satik panktiyaan.
समीर जी आपकी भावनाओं को हम समझ सकते है क्योंकि हम भी उसी दौर से गुजर रहें हैं
ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः!
आतंकवाद की सही परिभाषा: राजनैतिक और आपराधिक गठजोड़ को आतंकवाद कहते हैं .
Mai apne blogpe likhna chaah rahee thee lekin transliteration kaam nahi kar raha ...filhaal Mumbai aayee hun...un shaheeddonke pariwarwalonse milne...ek documentary banane jaa rahee hun...jateeywaad, aatankwaad, raajkaran, aur policing ko leke...bohot abhyas karna hai, qanoonko samajhna hai, pichhale kayi warshonse diye gaye sujhawonko anginat sarkaron ne andekha kar rakha hai...interviews lene hain..kaam bohot hai..kaheenbhi chook nahee sakti...lekin logonko jhakjhor de, antarmukh hoke sochneko majboor kare aisee peshkash karna chahti hun...aap sabhise saath deneki darkaar hai..kaam akele ek wyaktika nahee...
Aur yahan ek tippanee jisme likha hai" Hindu" kayar hain...mujhe dukh hai...ham kyon aajbhi Hindu ya Muslim in shabdonme baat karte hain? itna sabkuchh honeke baadbhi ham khudko "Hindustani" honeka ailaan kyon nahee karte? Hamare raajkarnee, ye aatankwaadee yahee to chahte hain...hame khudke faydeke liye taqseem karna chahte hain...divide & rule...jo angrejon ne kiya...! Ab to aankhen kholo...ab jab band honeko aayee hain...Bhagwanke liye ab "Hindu" ya Musalmaan" is shabdonka prayog chhod " Bharatwaasi", "Hindustani" inka prayog karen !
Meree aapse darkhwast hai Sameerji....aapka blog bohot log padhte hain..uske zariye gar aap meree baat logntak pohonchayen to mai taumr aapki shukrguzaar rahungi...
Aapne likhe to hameshaki tarah behtareen hai...par ab mujhe khule maidanme nidartaase utarna hai...jaanti hun, ye khatarnaak hai mere liye, lekin ab parwah nahee...khule aam mujhe un bhediyon(shayad bhediye apna apmaan mehsoos karen)ko lalkarna hai, un raajnetayonko lalkarna hai....jinhone apne swarthke liye jantako mohra bana rakha hai, jinke kaaran hamne jaanbaaz, jinpe Hindko naaz tha, aise afsaronko kho diya hai...laanat hai unpe...thunkna chahti hun saraam unke muhpe...buland aawaazme hehna chahti hun," Ham ek Hain, ham Ek Hain"...
ॐ
Samerji,
Aapka blog bohot padha jaata hai...pathak varg anginat hai...isliye aapke saamne apni jholee failaye khadi hun...meree awwaz jahan ho sake pleeeeeeeeeeeez sunwa deejiye...jo documentary banane jaa rahi hun, mere akeleka kaam nahee...poora teamwork hoga...dedicated to the cause..mere paas samay kam kaam bohot hai...gehrayise 1947 le leke aajtaki atankwaad, jaatiwaad aur suraksha karmi...in sabke baareme kya sujhaw diye gaye, kaunsi aur kitne commission baithe, kistarah supreme courtke aadeshonka bhi palan nahi hua...harek cheez mujhe ahyaspoorwak pesh karni hai...Indian Penal Code padhna hai...qanoon wyawaathame kyon badlaav nahi laya gaye....kyon angrezonke zamaneke qanoon waisehi chal rahe hain, jin qanoononki tehat suraksha karmiyonke haath baandh diye gaye hain...par seenepe goli unke daagee jaatee hai...antargat suraksha karmiyonka kisqadar badhaal hai....sabka parda faash karne jaa rahi hun..kaam kathin hai...kaheenbhi sahi jaankaaree deneme chook nahi sakti...ab maidane janse lalkarna chah rahee hun, pooree nirbhaytase..anjaam chahe jo ho..kamse kam ek aawaaz to uthe...us awazko aur mazboot karneke liye aapko darkhwast kar rahee hun...adhikse adhik logontak apni baat pohochana chahti hun..ummeed hai aapke dwarse nirash nahee lautungi
Kal Dr. Anuragji ke blogpe tippanee deneki bohot dertak koshish karti rahi...kuchh to mere comp ke softwearme dikkat hai, jiskaran tippaneeka box maximise nahi ho raha tha aur mai unke blogpe likh nahi paa rahee thi..kya is khabarko aap untak pohocha sakte hain??Ek Hindustani aurat apne deshke liye bheek maang rahee hai, bas itnahee samajh leejiye...apki taumr shukrguzaar rahungi..
Ek ghutan si ha man men,aakrosh ha,junun ha dukh ki koi seema nahi kuch samjh nahi aata kaya karen...
-समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
ठीक बात है, हम समझ ही नही पाते और दुश्मन वार पर वार करते जाते हैं
आदरणीय समीर भाई<
-समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त
मैं शोक व्यक्त करुँ या
शहीदों को सलाम करुँ या
खुद पर ही इल्जाम धरुँ....
आपकी भावनाएं सभी में आ जाए तो देश की ओर कोई आंख उठा कर भी नहीं देख सकता ।
hamari khokhli vyastha ujagar ho gai, tantra kis tarah laparwah hai samne aa gaya, ab samay aa gaya hai ki kaum jage aur leaderon ko ye ahsas karaye ki bayanbaji band karen aur pakistan men chal rahe training camps ko nestnabood karne ka nirnay len, varna tarikh kabhi bhi inhen maaf nahin karegi.seemit sansadhanon ke bavzud hamare sainikon ne bahaduri se loha liya aur jaan ki parwah na karte hue munh_tod jawab diya. is jazbe aur shahadat ko salam.
rajeev chaturvedi
अब तो कहेंगे जो मुस्लिम पाकिस्तान की क्रिकेट मैच पर पटाखे छुड़ाते हैं या सच्चे दिल से हिन्दुस्तानी नहीं हैं वे पाकिस्तान चले जायें तो ही शायद उनका मुस्लमान होना सार्थक रहेगा यहाँ तो बस उन्हें काफ़िर ही नज़र आते हैं! यह मेरी उनसे अपील है क्योंकि वे दूसरे हिन्दुस्तानी मुस्लमानों को भी बदनाम कर रहे हैं!
main ye nazm padhkar stabd rah gaya.
sach mein hum kise dosh de . ye desh ab dheere dheere banana country bante ja raha hai ..
aapki panktiyon ne bahut pabhavit kiya .
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
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