मंगलवार, अक्तूबर 10, 2006

कुण्डली सीखो हे कविराज

// इस लेख के पहले कृप्या एक पाती-समीर भाई के नाम जरुर पढें, तो ज्यादा आन्नद आयेगा//

आज नारद फीड पर नजर के घोडे दौड़ा रहे थे कि एकाएक नजर एक पाती-समीर भाई के नाम पर गई, हम घबराये कि क्या हो गया, भईया. तुरंत चटका लगाये और पहुँच गये:

एक पाती-समीर भाई के नाम

आपकी कुण्डलियाँ पढ़-पढ़कर हमारा मन व्याकुल हो उठा है कुण्डलियाँ लिखने को, मगर हम ठहरे इसमे बिलकुल अनाड़ी, क्या करें???

अब तक ऐसे कांडों मे न जाने कितने लोगों को अधीर होते, उत्साहित होते, आतुर होते और न जाने क्या क्या होते देखा था, पर आपको इस अंदाज में व्याकुल होते देख हमारे तो आँख से अश्रुधार ऐसी फूटी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. अब जब लेख लिखने लगे हैं तो मन कुछ हल्का होता जा रहा है.आशा है पूरा लेख हो जाने पर आपकी व्याकुलता इन्डेक्स में त्वरित गिरावट आयेगी, ऐसी आशा की जाती है.

बड़ी शिकायती लहजे में कविराज जी कह रहे हैं कि वो प्रतीक जी, जीतू भाई, अनूप जी सबके पास गये और हमें गुगल चैट का आमंत्रण भी भेजे जो हमने स्विकार नहीं किया, इसलिये खुली पाती को ईमेल माना जाये.

वाह कविराज जी, आपने इतने दर खटखटाये मगर हमें एक ईमेल भी नहीं? आपका चैट का आमंत्रण भी मिल गया मगर हम समझे कवि है, जरुर कविता सुनायेगा, इसीलिये टक्कर देने के उद्देश्य से सोचे कि पहले कुछ सुनाने के लिये कवितायें लिख लें तब आमंत्रण स्विकारें. वरना तो आप ही आप सुनाते, हम सिर्फ वाह वाह कहते रह जाते औपचारिकतावश. चूँकि आप भी कवि हैं तो आप भी वाह वाह में छुपे आह आह को समझ न पाते और उसे सही की वाह वाह मान कर झिलाते चले जाते. तो सांप के काटे का जहर उतारने के लिये सांप का ही जहर चाहिये, यही सोच कर कविता लिखने में जुटे रहे और आप ईमेल की आड़ में झाड़ ही काट लिये, पूरी पोस्ट ही लिख मारे. हम घबरा गये, तुरंत आमंत्रण भी स्विकार कर लिये और आपकी पोस्ट रुपी ईमेल पर टिप्पणी रुपी पावती भी धर आये:

देखा था गुगल चैट पर, कल ही आपको कविराज
पेंडिंग पड़ा निवेदन भी, एक्सेप्ट कर लिया आज.
एक्सेप्ट कर लिया आज कि अब हम लिखेंगे लेख
कुण्ड़ली पर जो अल्प ज्ञान है तुम भी लेना देख
कहे समीर कि हमरा तो सिर्फ़ कुण्ड़लीनुमा लेखा
नियम लगे हैं बहुत से, जब असल कुण्डली देखा


कविराज जी, आपका लेख भी अच्छा बन गया. अच्छा कहने के लिये जो मापक यंत्र हमने इस्तेमाल किया है वो लेख को मिली हुई टिप्प्णियों की संख्या है. हालांकि यह यंत्र हमेशा सत्य परिणाम नहीं देता है, ऐसा मेरा मानना है और मेरी यह मान्यता तब और बलिष्ट हो जाती है, जब मेरे लेखों को टिप्पणी नहीं मिलती है. खैर, छोड़िये न इन बातों को, इसमें क्या रखा है. मगर आज तो आपके केस में इस यंत्र ने बिल्कुल ठीक कार्य किया है.

तो आपने लेख लिखने में महारथ हांसिल कर ली. हाईकु में वाह वाही तो आप लूट ही रहें हैं, खास तौर पर ब्लागर हाईकु पर तो सच्ची वाली वाह वाह भी:

समीर नहीं
अब बदलो नाम
कुंडली किंग


हमारी टिप्प्णी:

क्या लिखते हो, भाई.

// ध्यान से देखें, टाईपो नहीं है. टिप्पणी में वाक्य समाप्ति पर सच में पूर्णविराम लगाया है, प्रश्नवाचक (?) चिन्ह नहीं. //

तो हम कह रहे थे कि लेख आप लिखें, हाईकु में आप पताका फहरायें, कविता आप करें, गजल आप लिखें, क्षणिकायें आप लिखें और अब मात्र बचा हुआ एक आईट्म, कुण्ड़ली भी व्याकुल होकर करने लगें तो बाकी सब ब्लागर, जीतू भाई की शैली में, क्या तेल बेचें. कुछ तो छोड़ दो, महाराज. हर मैदान में तो आपका झंड़ा ही फहरा रहा है फुरुर फुरुर..कहीं तो हमें भी, झंड़ा न सही, फटा हुआ रुमाल टांगने की जगह तो दे दो, हे महारथी.

वैसे, हम जानते हैं कि अगर हम नहीं बतायेंगे तो भी आप चुप थोड़े बैठोगे. अरे, जब हमारे चैट का निमंत्रण न स्विकार करने की बात आपने नगाड़ा बजा बजा कर वाया प्रतिक भाई, अनूप भाई, जीतू भाई को बताते बताते पूरे ब्लाग जगत को बता दी तो यह कोई दबेगी छुपेगी थोड़ी. फिर कोई न कोई दयालु आपको वो पता भी बता ही देगा, जहाँ से नियम टीप कर हम पूरी तो नहीं, मगर कुण्डलियों के समान दिखने वाली रचनायें लिखना सीख गये. तो हम भी सोचते हैं कि चलो छोड़ो यार, बता ही देते हैं. ज्यादा होगा तो रुमाल जेब में ही रखे रहेंगे और गाहे बगाहे हाथ से ही हवा में लहरा दिया करेंगे.

ठीक है जैसी हरि इच्छा:

हमने सबसे पहले इसके बारे में पढ़ा था अनुभूति पर और फिर इस बारे में कभी कुछ नहीं पढ़ा, तो सो ही आप भी कर लो और अगर वहां जाकर नहीं पढ़ना तो वह भाग विशेष यहां पुनः आपकी सेवा में पेश है. अब चूँकि लेख का इस्तेमाल आपको जानकारी देने हेतु किया जा रहा है, अतः मुझे विश्वास है कि पूर्णिमा वर्मन जी इसके इस हिस्से के बिना अनुमति के पुर्न-प्रकाशन का बुरा नहीं मानेंगी:



कुण्डलियाँ

इसके आरंभ मे एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्रायें होती हैं. दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छ्न्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है.

उदाहरण-

दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान.
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान.
ठाऊँ न रहत निदान, जयत जग में रस लीजै.
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै.
कह 'गिरधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत.
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत.


दोहा

इस छ्न्द के पहले-तीसरे चरण में १३ मात्रायें और दूसरे-चौथे चरण में ११ मात्रायें होती हैं. विषय(पहले तीसरे)चरणों का आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे-चौथे) चरणों का अन्त लघु होना चाहिये.

उदाहरण-

मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय.
जा तन की झाँइ परे, स्याम हरित दुति होय. (२४ मात्राएं)


रोला

रोला छंद में २४ मात्रायें होती हैं. ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है. अन्त में दो गुरु होने चाहिये.

उदाहरण-

'उठो उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो.
१२ १२ २ २१, २१ २१ १२ २२ (२४ मात्रायें)
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो.
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो.
भारत के दिन लौट, आयेंगे मेरी मानो.



गण और मात्राओं के विषय में अधिक जानकारी के लिये अनुभूति पर देखिये.



आशा है अब आप कुण्डली कला मे पारंगत हांसिल करेंगे और शीघ्र ही कुण्डलियाँ दागना शुरु करेंगे.

हम तब तक आपके लिये कुण्डली-वीर का खिताब धो-पोंछ कर रखने की तैयारी में निकलते हैं.

--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

17 टिप्‍पणियां:

Pratyaksha ने कहा…

गुरु जी आपके सिखाने का तरीका पसंद आया :-)

पंकज बेंगाणी ने कहा…

लालाजी यह तो बहुत कठीन है :(

मै तो मेरी थर्ड क्लास कविता ही लिखुंगा. आप लगे रहो.. साथ में कविराज को लगाए रहो

संजय बेंगाणी ने कहा…

कैसा लगेगा अगर मैं कहूँ," मैं कविता नहीं कर सकता क्योंकि मैं गणित में कमजोर हूँ."

Jitendra Chaudhary ने कहा…

ह्म्म, बहुत मुश्किल है यारा!
लेकिन कोशिश करिए, हिम्मते मर्दा, मददे खुदा।

हालाँकि अपने बस की नही है, ये कविताए। हम तो श्रोता है भई। अगर सभी लिखने लगेंगे तो सुनने वाले नही बचेंगे,इसलिए हमारी सीट आरक्षित है श्रोताओं में।आह आह वाले।

बेनामी ने कहा…

भ्राता जनों! क्या भैया कोई ऐसा साँफ़्टवेयर है जो वर्ड काउंट की तरह ही मात्रा काउंट भी करता हो।

लिखने वालों को लिखने में आसानी और पढ़ने वालों को गल्तियाँ निकालने में भी आसानी।

Jagdish Bhatia ने कहा…

समीर जी, इस सारे गणित के अलावा हृदय में और भावनाओं में भी कुछ कवियों जैसा होता होगा। क्या इसे भी सीखा जा सकता है?

गिरिराज जोशी ने कहा…

गुरूदेव प्रणाम!!!

आपकी कुण्डलियों की सरलता देखकर मेरे मन जो भटकाव पैदा हुआ था वो कुण्डलियों की वास्तविक जटिलता से वाकिफ़ होने के बाद शान्त हो गया है, उम्मीद है भविष्य में यह मन कभी इस कदर नहीं भटकेगा। हमारे देश में मरने वाले की अंतिम इच्छा पूरी करने का रिवाज है सो मैने भी "मन" के मरने से पहले उसकी अंतिम इच्छा पूरी करते हुए कुछ प्रयत्न किया है।

हालांकि मैने कुण्डली नियमावली पढ़कर उसके प्रत्येक नियम को ध्यान में रखकर ही इसका निर्माण किया है परन्तु फिर भी आपसे निवेदन है कि जाँच लें और अपने बड़अपन को बरकरार रखते हुए गलतीयाँ हो तो क्षमा कर मार्गदर्शन करें।

यगण मगण तगण रगण जगण भवण नगण सगण
हो आठ गण यति गति ज्ञान, तब कहलाए चरण
तब कहलाए चरण, तुकान्त रोला मात्रा हो
चरण भाव-युक्त व मात्रा पूरी चौबीस हो
बुरा फंसा "कविराज" नचायेंगे तुझको गण
कुण्डलिया बाद में सिखना पहले मगण-यगण


आपका शिष्य
गिरिराज जोशी "कविराज"

rachana ने कहा…

वाह-वाह!! ये बिल्कुल शुद्ध है,अब इसमे कोई आह नही है!!
और आपके लेख पर की गई टीप्पणी आप पढते हैं या नही ये पता नही लग पाता.
और आपके यहाँ सिर्फ 'ब्लोगस्पाट' वाले को ही टीप्पणी की अनुमति है,मेरा चिट्ठा 'वर्डप्रेस' पर होने से मुझे अपने अंग्रेजी के पते से टीप्पणी करनी होती है..माफ करें.

Sagar Chand Nahar ने कहा…

सबको ट्रेड (कुंडली) सीक्रेट बता दिया!!!!!!!!!!
अब भुगतने को तैयार रहे जब हर कोइ कुंडली लिख लिख आपको पढ़ायेगा.... कि बतायें कैसी लिखी है।
एक कवि के लिए इससे बड़ी सज़ा क्या होगी?

अनुनाद सिंह ने कहा…

मुझे तो आपके द्वारा दिये गये कुंडलियों के उदाहरण ज्यादा पसन्द आये, विशेषकर 'उठो-उठो हे वीर..'

और भाई लोगों! सच तो यह है कि कोई भी छन्द लिखते समय सचमुच में मात्राएँ गिनने की जरूरत नही पड़ती है। अनुभवी(लिखने वाले और वांचने वाले, दोनो) लोग एक बार पढ़ते ही समझ जाते हैं कि मात्राएं ठीक हैं या नहीं। कविताकारी में अगर कुछ कठिन है तो वह है शब्द-सौन्दर्य, अर्थ-सौन्दर्य और भाव-सौन्दर्य लाना या पैदा करना।

बेनामी ने कहा…

सिखया आपने अच्‍छा है पर हम कितना सीख पाते है अब यह देख पाते है।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

आप कुण्डली के रहे पहले से सरताज
अब कूदे मैदान में एक और कविराज
एक और कविराज, विधायें और न दीखीं
असर कुण्डली शायद करती ज्यादा तीखी
अंक गणित में कविता की लम्बाई नाप
शिक्षा देते हो समीरजी अच्छी आप

Manish Kumar ने कहा…

हमेशा की तरह मजेदार शैली !

अनूप शुक्ल ने कहा…

बिधना भली मिलाई जोड़ी. मुक्त अर्थव्यवस्था के अनुपालन में गुरू-चेला खुले में बतिया रहे हैं.गंडा बंधा रहे हैं.जैसे कविराज के दिन बहुरे,वैसे सबके बहुरैं.

अनूप शुक्ल ने कहा…

गुरू महान हैं जो चेले को अपनी सारी विद्या सिखा दे रहा है.अब चेला देखें कित्ता अमल करता है इसे!

Laxman Bishnoi Lakshya ने कहा…

सिखाने का तरीका बहुत ही अलग और गजब लगा

Laxman Bishnoi Lakshya ने कहा…

सिखाने का तरीका बहुत ही अलग और गजब लगा