सोमवार, अक्तूबर 09, 2006

भगवान से मुलाकत

बीती ४ तारीख को हमारे चिट्ठे पर एकाएक भगवान अवतरित हुये और हमारे कवि सम्मेलन वाले लेख पर टिप्प्णी लिख कर भाग गये.

"अगर पोस्ट कर देते अपने ब्लाग पर, तो हम भी चले आते, चलो खैर...."

और अपना नाम लिख गये कालीचरण. अदा देखते ही हम समझ गये कि हो न हो, यह इस ग्रह का नागरिक तो दिखता नहीं है. जरुर, कोई दिव्य शक्ति का धारक है जो ऎसी बात कर रहा है. हमने तुरंत उनके नाम पर चटका लगाया और पहूँच गये दिव्य लोक "भात भाजी". शक बिल्कुल सही निकला. दरवाजे पर ही तख्ती टांगे बैठे थे, हम अब भी भगवान हैं.."I am STILL God".

हम साष्टांग दंडवत की मुद्रा में आ गये. प्रभु दर्शन को कुण्डी खटखटाई, उधर से आवाज आई " कौन है इतनी रात गये.आराम भी नहीं करने देते". एक बार तो मन किया कि दबे पांव वापस भाग चलें, कहीं प्रभु आराम में विघ्न डालने के उपलक्ष्य में शाप रुपी माला न पहना दें. मगर तुरंत ही दूसरा ख्याल आया कि अब भाग भी जायेंगे तो भी क्या. वो तो भगवान हैं, जान ही जायेंगे कि कौन आया था. अब मरता क्या न करता, डले रहे साष्टांग, जब तक दर्शन नहीं हो गये. भगवान ने दर्शन दिये, हम धन्य हो ही रहे थे कि दहाडते हुये बोले: " कैसे आये हो इतनी रात गये".

घबराये तो हम थे ही सो घिघियाते हुये कहे: "प्रभु, आप तो नाराज हो गये. हमने जब अपने चिट्ठे के दरवाजे पर आपका छोड़ा संदेशा देखा तो क्षमा मांगने तुरंत भागते चले आये. अब आप ही बतायें कि ऎसी बदहवासी में समय का क्या ख्याल रहता है?"

भगवान गरजे:" अच्छा तो तुम हो उड़न तश्तरी. हमें काहे नहीं बताये पहले से, वो बफैलो वाले कवि सम्मेलन के बारे में, हमें भी आना था वहां". हमने उसी घिघियाये अंदाज को बरकरार रखते हुये अपनी बात धरी: " प्रभु, आपको क्या बताते, हम समझें आपको तो पता ही होगा, आप तो अंतर्यामी हैं" प्रभु भी थोडी छाती फुलाते हुये और साथ ही अपने बड़प्पन का परिचय देने के चक्कर में उगल गये: " अरे, अब काहे के अंतर्यामी." अब कह तो गये फिर एकदम सकपका गये कि अरे, यह क्या निकल गया मुँह से. हमने भी स्थिति भांपते हुये तुरंत फायदा उठाया और अपनी मुद्रा, घिघियारी से दो स्तर पदोन्नत कर सहज और फिर मजाकिया कर ली: " क्या प्रभु, आप भी पृथ्वी दोष का शिकार हो गये कि अब बिना बताये कुछ पता ही नहीं चलता फिर तो आप भी उन्हीं स्वयं-भू ईश्वरों की जमात के कहलाये जो सुबह से ही टी.वी. पर आसान जमा कर बैठ जाते हैं. सिर्फ अपनी राग गाते हैं और अपनी दुनिया में ही मगन रहते हैं, भले ही बाकी दुनिया में आग लगे."

प्रभु सकुचाये और उवाचे:" वैसे तो मैने भी उसी महान धरती पर नर्मदा की गोद में जन्म लिया है किन्तु जब यह सारे तथाकथित भगवान झूठमूठ की तपस्या के लिये अप नार्थ में बद्रीनाथ केदारनाथ साईड के जंगलों की तरफ जा रहे थे, हमने असल तपस्या के लिये कांक्रीट के जंगल चुने. हमने अभियांत्रिकी की तपस्या पूरे पांच साल की." अब जब ये सारे भगवान अपने मठ खोल खोल कर भारत में टीवी के माध्यम से प्रसारित एवं प्रचारित हो रहे हैं और प्रचार पाते ही विदेशों की तरफ नजर दौडाते हैं ताकि आर्थिकता का ढांचा भी मजबूत हो जाये, तो हमने सीधे ही अमरीका का रुख किया और यहीं पर मठ की स्थापना कर डाली. प्रचार प्रसार के लिये भी टीवी की बजाय इंटरनेट का हाथ थामा. अब नया प्रयोग है तो समय तो लगेगा ही मगर मै अब तक मिले समर्थन और भक्तों की संख्या से संतुष्ट हूँ और सुनहरे भविष्य के प्रति आशान्वित भी.

हमने बात आगे जारी रखने के उद्देश्य से पूछा, "तो भगवन, जैसी की भ्रांति है कि आप अंतर्यामी हैं, वो क्या गलत है." बोले "भाई, अब तुम से जब इतनी बात हो ही गई है तो किसी से बताना नहीं मगर हम कोई अंतर्यामी-वामी नहीं हैं, वो तो हमारा खबरी है न! नारद, वही हमें सब बताता है सो हम जान जाते हैं. अब पिछले माह काम के अधिकता के कारण उसे दिल का दौरा पड़ा तो हमारी सूचना का साधन बंद. अब तो काफी ठीक हो गया है. कह रहा था एक दो हफ्ते में फिर से काम पर लग जायेगा. मगर अभी डाक्टर ने थोड़ा सतर्क रहने को कहा है तो सारी खबर रोज नहीं दे पायेगा. पता नहीं कोई फार्मूला गांठा है कि कुछ तो रोज सुनायेगा, कुछ एक हफ्ते में और कोई कोई तो महिने में और तो और कोई तो तब तक नहीं, जब तक खबर पैदा करने वाला आकर खुद नारद को खबर न करे. अब देखो क्या होता है, जैसा भी है-है तो बड़ा सहारा.

हम कहे:" महाराज, नारद की अनुपस्थिती में कुछ और खबरिये पैदा हुये थे जो अपनी अपनी राग में लोगों तक सब खबर पहूँचा रहे थे. कुछ तो पूरी कथा की तर्ज पर जैसे ऊ चिट्ठा चर्चा वाले. उसी में तो हमारे कवि सम्मेलन वाली खबर भी थी. आपको मालूम चल जाता अगर इस बीच आप उनको साथ रखते तो. देखिये न, ऎसन छपी थी:

" उधर टोरंटो से तीन घंटे की दूरी पर स्थित बफ़ैलो(क्या नाम है) में आयोजित कवि सम्मेलन में हिंदी के धुरंधर ब्लागर अपने जौहर दिखायेंगे जिनमें शामिल होंगे राकेश खंडेलवाल,अनूप भार्गव और उड़नतस्तरी वाले समीर लाल. "

भगवान एकदम क्रुद्ध हो गये, बोले:" हम तो सिर्फ खबरों पर भरोसा रखते हैं और फिर नज़रिया अपना बनाते हैं कि कैसे उस खबर पर क्या करना है. मगर यहां तो ये अपना नजरिया ही गड़बडा़ देते हैं, किसी की तारिफ और किसी की खिंचाई( हमार नारद की भाषा में-चिकाई) तो कौनों को कवर ही नहीं किये और कौनों को दो दो बार. नहीं भईया, ये कोई खबरी थोड़े ही हैं, यह तो विश्लेषक टाईप कुछ दिखते हैं, इन चिट्ठा चर्चा वालों का काम दूसरा और नारद का काम दूसरा. हमें तो बस खबर बताओ, बकिया हम खुद देख लेंगे.

हम कहे:"आप ठीक कहते हैं भगवान. आप तो सब जानते हैं, इनका काम दूसरा है. यह नारद के विक्लप नहीं. इनकी अलग महत्ता है और नारद की दूसरी" तो भगवान मैं चलता हूँ. आगे कभी ऎसा कार्यक्रम हुआ तो जरुर सूचित कर दूँगा. अगर न भी आ पाया तो ईमेल से, जरा अपना ईमेल दे देते"

भगवान प्रसन्न दिखे, बोले लिखो मगर किसी को देना मत नहीं तो स्पाम की बड़ी समस्या हो जाती है :"दानव डाट नचान ऎट @@@@.com" हमें हल्की सी हंसी आ गई. भगवान तो भगवान. तुरंत समझ गये कहने लगे "बेटा, जब मैं नाचता हूँ तो बिल्कुल दानव हो जाता हूँ और फिर जो तांड़व मचता है कि देखने वाले देखते रह जाते हैं."

हमने तुरंत साष्टांग दंड़वत किया और रुख किया अपने घर का. तो ऎसी रही भगवान से हमारी भेंट.


अब वापस आकर बैठे हैं तो चिट्ठा चर्चा के भविष्य को लेकर चिंता में वजन कम हुआ जा रहा है, थोड़ी मदद करें, बतायें कि नारद की वापसी के बाद चिट्ठा चर्चा का क्या स्वरुप होना चाहिये. क्या, जैसे वो चल रही है, उसे वैसा ही चलाना चाहिये या कि कोई और स्वरुप?



-एक प्रस्तुति के साथ विदाई--

हमरे दर पर आये थे, एक दिन श्री भगवान
हम भी मिलकर आ गये, अपना सीना तान.
अपना सीना तान, वो कुछ परेशान से लगते
नारद की बीमारी से आम इन्सान से दिखते
कह समीर कविराय कि नारद जल्दी आ जाओ
भगवान बहुत ही दुखी दिखे, अब न तड़पाओ.


--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

6 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

कनपुरिया भाषा में कहें तो गजनट! मजा आ गया पढ़ के. वाह-वाह.चिट्ठाचर्चा का भविष्य तो समय तय करेगा वैसे मुझे लगता है कि आजकल सबसे ज्यादा अगर कोई चिट्ठा लिखा-पढ़ा जा रहा है तो वो है चिट्ठाचर्चा. मुझे नहीं लगता कि नारद के वापस आने से इसकी उपयोगिता में कोई कमी होगी.

Laxmi ने कहा…

भगवान यानी कालीचरण के अन्तर्यामीपन में का पता तो मुझे तभी चल गया था जब उन्होंने मेरे चिटठे पर लिखा था कि अब हमें मिलना चाहिये क्योंकि वे न्यूयार्क में हैं और मैं न्यू जर्सी में! बढ़िया लिखा है और नारद से बहुत उम्दा जोड़ मिलाया है। बधाई।

बेनामी ने कहा…

समीर जी,

भाई आपने तो भगवान जी से छलावा कर दिया, बेचारे ने आपको भोला भाला ब्लगोड़ा समझ कर अपने भेद बता डाले और आपने ने एक पत्रकार की तरह "आफ़ द रिकार्ड" कही बातों को भी छाप डाला। बेचारे भगवान जी - जाने अब क्या करें।

भगवान के दर्शन करा कर तथा हास्य का प्रसाद दे कर आपने मन आनंदित कर दिया।

पंकज बेंगाणी ने कहा…

नारद बीटा स्थिति में उपलब्ध है ही... कुछेक तकनीकी बातें क्लीयर होते ही यह विधिवत रूप से ओनलाईन होने वाला है।

नारद की वजह से चिट्ठाचर्चा के महत्व का कम हो जाना युक्तिसंगत नहीं है। चिट्ठाचर्चा में लगभग सभी मह्त्वपूर्ण चिट्ठों का विश्लेषण मिल जाता है, और क्या चाहिए!!!

आपके भगवान का बीपी नोर्मल रहे, तथा आपका फिगर मेंटेन रहे ऐसी कामना है. ;-)

संजय बेंगाणी ने कहा…

सही प्रस्तुति हो तो मोर्डन युग में भी गाँधी को बेचा जा सकता हैं, वही बात चिट्ठाचर्चा पर लागु होती हैं. जो अब खुद ही एक सुरूचिपूर्ण चिट्ठे का रूप ले चुका हैं. जब तक प्रतिभावान लोग लिखते रहेंगे चिट्ठाचर्चा चर्चा में रहेगा.

आलोक ने कहा…

वाह क्या लिखा है