सुना है आज होली है
हम बेवतन-
आज फ़िर आँख अपनी हमने
आंसुओं से धो ली है.
हर तरफ़ बस रंग होंगे
साथी सारे संग होंगे
गुलाल और अबीर माथे पे मल
नाच गानों मे मगन होंगे.
सुना है आज होली है
हम बेवतन-
आज फ़िर आँख अपनी हमने
आंसुओं से धो ली है.
बच्चों की टोली मे हूड़दंग होंगे
अभिवादन मिठाईयों के संग होंगे
पिचकारियों की बौछारों से
भीगे सारे चमन होंगे.
सुना है आज होली है
हम बेवतन-
आज फ़िर आँख अपनी हमने
आंसुओं से धो ली है.
मंगलवार, मार्च 07, 2006
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4 टिप्पणियां:
आप्की इस कविता में मात्र्भूमी के प्रेम की यादों का रंग अनूठा है. हम तो यह रच्ना पढ कर आपको इत्ना ही कहेंगे कि:
बेवतन हो कर भी ,
वतन के रंग याद है?
उड़्ते अबिर गुलाल,
गुझिया की महक याद है?
दोस्तों की टोली,
लाल पीले रंगों की चट्क याद है?
ऐसे बेवत्नोंं को प्र्णाम,
जिन्हें अब भी,
वतन की मिट्टी याद है,
दूर र्ह कर भी
भारत जिन्के मन मे आबाद है.
रेणु जी
बहुत सुंदर पंक्तियों मे आपने बात कही है, बधाई.
मेरी बात पसंद करने के लिये आभार.
शुभकामनाओं सहित
समीर लाल
समीर जी, बेवतन होकर भी दिल हिंदुस्तानी है यही बडी बात है। आपकी कविता पढकर, मन फिर विचलित हो उठा।
हम फिर भी रंग खेल लेते हैं
यहाँ रहकर याद कर लेते हैं
उस बचपन की होली को
जहाँ यारों की यारी होती
बडों का प्यार-दुलार होता।
दाद कबूल करें
और अब आज्ञा दें...
फि़जा़
फ़िजा जी
यादें बहुत अच्छी साथी हैं, मन बहलाने के लिये.
धन्यवाद, आपको पसंद आई.
समीर लाल
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