बरसों पहले जब तिवारी जी से पान की
दुकान पर नई नई मुलाकात हुई थी तब तिवारी
जी कुछ लोगों को मोहल्ले के बिगड़ते हालातों और नई पीढ़ी के संस्कारों पर उन हालातों
के दुष्प्रभाव पर ज्ञान दे रहे थे। घंसू
उनके ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि वो उनको गुरुजी बुलाने लगा। घंसू जब गुरुजी से
पूछता कि उन्होंने इतना ज्ञान कहाँ से
प्राप्त किया? तब वो मुस्कराते हुए बताया करते कि वो कभी किसी स्कूल नहीं गए। जो
कुछ सीखा, इस जीवन से ही सीखा। हर ठोकर से वो सबक लिया करते हैं। ज्ञान प्राप्ति के
लिए जीवन की पाठशाला से बेहतर कुछ नहीं -बस आपके अंदर सीखने की जिज्ञासा होना
चाहिए। तब जाकर घंसू को समझ आया कि जीवन तो उसने भी
जिया है लेकिन शायद जिज्ञासा की कमी रह गई होगी।
ज्ञान का तो ऐसा है कि जितना बांटो उतना
बढ़ता है और फिर तिवारी जी को तो सारा समय ज्ञान बांटने के सिवाय और कुछ काम ही
नहीं था। ज्ञान बढ़ता रहा और घँसू की भक्ति भी। अब तिवारी जी की नजर मोहल्ले से आगे
बढ़कर शहर की समस्याओं पर थी और उसके शहर भर के युवाओं पर हो रहे दुष्प्रभावों पर। दायरा बढ़ा तो घँसू अब उनको मास्साब
पुकारने लगे और न जाने कब यह किस्सा सुनाई देने लग गया कि तिवारी जी उस जमाने के
पाँचवीं पास हैं। तब यहीं चौक के पास का वो जर्जर भवन जिसमें आजकल आवारा पशु बैठे
रहते हैं वो एक 5वीं तक का स्कूल हुआ करता था। अब न तो वो स्कूल है और न उस स्कूल
के कोई रिकार्ड। अब मास्साब ज्ञान बाँट रहे थे और जितना बाँट रहे थे उसी गति से वो
बढ़ रहा था। बढ़ते बढ़ते कुछ ही दिन में चर्चा प्रदेश स्तरीय समस्याओं तक जा पहुंची। मास्साब
याने तिवारी जी का अपना स्टाइल भी थोड़ा बदला। अब वे कहा करते कि मुख्य मंत्री अगर
हमारी मानें तो हम तो वो स्कीम बताएं कि अपना प्रदेश पूरे देश में सबसे आगे हो और
यहाँ का युवा पूरे देश में अपने ज्ञान का डंका बजाए। मगर मुख्य मंत्री को उदघाटन
और झण्डा वादन से फुरसत मिले, तब न!! मत सुनो हमारी, हमें क्या। हमारा क्या
बिगड़ेगा। तुम्हारे प्रदेश के युवा ही बिगड़ेंगे। तिवारी जी की तारीफ इस बात पर जरूर
करना होगी कि उनके चिंतन का मुख्य बिन्दु युवा ही होते हैं। उनका यह मानना है कि
आज का युवा कल का राष्ट्र निर्माता है। हालांकि वो स्वयं भी और साथ ही उनके ज्ञान
सुनते दिन दिन भर पान की दुकान पर बैठे खाली लोग जिनमें घँसू भी शामिल था, कल के
युवा थे जिन्हें आज राष्ट्र निर्माण में जुटे होना चाहिए था मगर अपनी कमीज के दाग
भला कौन देखता है। ये वैसे ही बाबा हैं जो लोगों को माया से मुक्त होने का प्रवचन दे
देकर खुद माया से युक्त होकर अपना खजाना भर रहे हैं। प्रदेश स्तरीय ज्ञान ने
मास्साब को मास्साब से कब आचार्य बना दिया, यह तो घँसू ही जाने, मगर इधर कुछ समय
से वह उनको आचार्य जी कह कर संबोधित करता था। वो पुराने 5वीं वाले स्कूल की कहानी
भी थोड़ा सा बदली कि वो 8 वीं क्लास तक हुआ करता था और जब तिवारी जी ने वहाँ से
8वीं पास की उसके बाद से स्कूल बंद हो गया और तब से ही आवारा पशु उसमें आराम
फरमाते हैं। जब चौराहे पर बैठ कर सिर्फ ज्ञान ही बांटना है तो 5वीं क्या और 8वीं
क्या? कोई सरकारी नौकरी तो है नहीं कि कोई दस्तावेज मांगे।
घँसू की भक्ति और ज्ञान का
विस्तार तीव्रता से हो रहा था। मोहल्ले से शुरू हुई सलाह अब राष्ट्र स्तर की ओर मुड़
रही थी। अब आचार्य जी की चर्चाओ में मुख्य मंत्री का स्थान प्रधान मंत्री ग्रहण कर
चुके थे और प्रदेश के युवाओं का स्थान देश के युवाओं ने ले लिया था। अगर अब प्रधान
मंत्री आचार्य जी की सलाह मानें तो देश के युवा विश्व स्तर पर डंका बजाने को तैयार
खड़े थे। मगर तब मुख्य मंत्री ने न सुनी और अब प्रधान मंत्री नहीं सुन रहे थे। उनको
तो सालों साल उदघाटन और हरी झंडी के साथ साथ लगातार कपड़े बदल बदल कर चुनावी रैली
भी करनी होती है तो भला आचार्य जी के सलाह के लिए कब समय मिलता? आचार्य जी का अब
भी वो ही सुर- मत सुनो, हमारा क्या बिगड़ेगा? तुम्हारे देश के युवा ही बिगड़ेंगे।
घँसू अब उनको प्रधानाचार्य बुलाता। पता चला कि वे 12वीं पास हैं। स्कूल भी वही लेकिन
अब वो 12वीं तक होकर बंद हुआ और तब से आवारा पशुओं का आरामगाह बना।
पता नहीं मुझे अब ऐसा लग रहा
है कि निकट भविष्य में प्रधानाचार्य जी विश्व स्तर की चर्चा करेंगे और घँसू उनको
प्रमोट कर विश्व गुरु पुकारेगा। तब शायद ये बीए तक पढे हो जाएँ किसी विश्वविद्यालय से। प्रभाव
तो बढ़ ही रहा है कोई मांगेगा तो डिग्री भी दिखा देंगे दूर से।
सब बदला मगर ज्ञान आज भी उसी
पान की दुकान से बंट रहा है और सतत वहीं से बंटता रहेगा।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे के रविवार 12 जनवरी ,2025 के अंक में:
https://epaper.subahsavere.news/clip/15439
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