शनिवार, जुलाई 24, 2021

जीवन में सफलता का अद्भुत रहस्य

 


तिवारी जी पान की दुकान की तरफ सर झुकाए चले आ रहे थे। हाथ में एक किताब थामे थे। किसी से कोई बात चीत नहीं। न जाने मन ही मन क्या सोच रहे थे। चेहरे की गंभीरता को देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि निश्चित ही किसी बड़ी योजना की उधेड़बुन में लगे हैं।

अभी सुबह का सात भी ठीक से नहीं बजा था। पान की दुकान अभी खोलने की तैयारी में चौरसिया जी लगे थे। तिवारी जी बेंच पर बैठ गए। नमस्ते बंदगी के बाद तिवारी जी अखबार में खो गए और किताब कंधे पर टंगे झोले में रख दी गई। बीच में बीच तिवारी जी झोलें में झांक लेते मानो किताब से पूछ रहे हों कि तुम ठीक से और आराम से तो हो न? कुछ चाय वगैरह तो नहीं पिओगी? ये तिवारी जी का नया सा स्वभाव था। पूर्व में कभी इतना चुप और इस तरह से बार बार झोले में झांकते उनको कभी नहीं देखा था।

याद आता है एक समय में तिवारी जी ने बिल्ली पाली थी। पाली तो क्या थी, न जाने कहां से आकर पल गई थी। सब उसे भगा देते थे और तिवारी जी ने भगाया नहीं तो उनकी होकर रह गई। तिवारी जी अकेले प्राणी – घर पर न खाना बनना और न चाय। सो दूध होने का सवाल ही नहीं, अतः बिल्ली के रह जाने से कोई नुकसान की भी संभावना नहीं थी। तिवारी जी स्वयं कभी मंदिर, कभी मित्र तो कभी रिश्तेदारी में खा पी कर मस्त रहते और चाय नाश्ता चौराहे पर कोई न कोई करा देता या कभी कदा मजबूरीवश खुद खरीद कर भी खा पी लेते थे। पिता जी कुछ दुकान मकान बनवा कर गुजरे थे अतः किराये से नित शाम की दारू और चखने का इंतजाम भी हो ही जाता था। तिवारी जी इसे बुजुर्गों का आशीष मान कर पूर्ण श्रद्धा से दारू ग्रहण करते। इसीलिए वो अक्सर पीकर भावुक हो जाते। नम आंखों से अपने बुजुर्गों को याद करते हुए कहते कि पहले के लोग कितने भविष्यदृष्टा हुआ करते थे। अब नई नस्लों में वो बात नहीं रही। बिल्ली भी मालिक का अनुसरण करते हुए अड़ोस पड़ोस में कहीं न कहीं दूध पर हाथ साफ कर ही लेती। ऐसा लगता था जैसे तिवारी जी और बिल्ली दोनों का यह मानना था कि ऊपर वाले ने जन्म दिया है तो भोजन पानी की व्यवस्था करना भी उसी की जिम्मेदारी है। कभी पड़ोसी बिल्ली की शिकायत करते भी तो तिवारी जी अव्वल तो यह कहते कि हमने उसे घर जैसी बड़ी चीज दे रखी है और तुम्हें उसको एक पाव दूध पिलाने तक में परेशानी है? तुममे कुछ मानवता बची भी है या नहीं? और अगर दान दक्षिणा से इतना परहेज है तो अपना घर बंद रखा करो। ये किसी और के घर खा पी आयेगी। प्रभु ने उसे धरती पर भेजा है तो उसके भोजन की व्यवस्था भी वो ही करता है। तुम नहीं तो किसी और का दरवाजा खुला छुड़वा देगा मगर अपने जीवों को भूखा नहीं रहने देगा। तिवारी जी तब उसे अपनी गोद में उठाये चौक आया करते थे और कोई कुत्ता उसे न झपट ले अतः उसे अपने झोले में डाल कर अखबार पढ़ने और बातचीत करने में मगन रहते। तब भी उनको बिल्ली के लिए झोले में बार बार झांकते कभी नहीं देखा था। बाद में वो बिल्ली मर गई थी मगर झोला कंधे पर बना रहा। अब बिल्ली की जगह किताब ने ले ली है मगर साथ ही तिवारी जी के व्यवहार में यह परिवर्तन भी आ गया है।

तब तक उनके मुंह लगे चेला घंसू भी चौक पर पधार चुके थे। आज उसने ठान ली थी कि वो तिवारी जी से किताब का रहस्य जानकर ही रहेगा। पहले तो तिवारी जी यह कर टालते रहे कि तुम नहीं समझोगे। मगर जब वो नहीं माना तो तिवारी जी को बताना पड़ा।

तिवारी जी ने बताया कि उन्हें व्हाटसएप से एक गहन ज्ञान की बात पता चली है कि यदि जीवन को सफल बनाना है तो किताब से दोस्ती करो। बस! तब से तिवारी जी एक बढ़िया किताब बाजार से खरीद लाए हैं। उसे एक अच्छे दोस्त की तरह साथ रखते हैं। दोस्ती और प्रगाढ़ हो जाए इस हेतु भले ही उसे झोले में रखे हों मगर कुछ कुछ समय में उसका ख्याल रखते रहते हैं। उनका विश्वास है कि जल्द ही यह दोस्ती यारी में बदल जाएगी और वे सफल हो जायेंगे।

कौन सी किताब है? पूछने पर उन्होंने बताया कि कौन सी तो नहीं पता किन्तु दुकान वाले ने बताया था कि अंग्रेजी की एक बेहतरीन किताब है। दोस्त बना ही रहे हैं तो हिन्दी की किताब को क्यूं दोस्त बनाना? वो तो खुद ही सफल नहीं हो पाती, मुझे क्या सफल बनाएगी?

अंग्रेजी किताब से दोस्ती निश्चित ही सफल बनाएगी – भले ही पढ़ न पायें उसको। मैसेज में भी तो साफ साफ लिखा था – सफल होने के लिए किताब से दोस्ती करो। पढ़ने के लिए तो कहीं न लिखा था।

व्हाटसएप का ज्ञान है- कोई मजाक थोड़े ही है।

-समीर लाल ‘समीर’

 भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 25, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/62022813

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13 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

It is an excellent multi-threaded article. It ia perfect connect of Tiwari ji, cat, God, correlate habit of daily drinking to benevolence of predecessors, freelance uninvited-guests surviving on neighbours, book, psychology of befriending book, possession of book vis-a-vis inability to read it forget about understanding, jhola and last but not the least competence of Ghansu to digest mindset of his Guru Towari ji.

Superb, completely non-political

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नमन है व्हाट्सएप्प के ज्ञान को और तिवारी जी को भी सही समझा । 😆😆😆
आज कल सच्ची ज्ञान हर जगह पसरा पड़ा है बस लेने वाला चाहिए । बने वालों की कोई कमी नहीं ।
ज़बरदस्त व्यंग्य ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना सोमवार 26 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अच्छा याद दिलाया। हम भी अपने कई दोस्तों की सुध ले लेते हैं।

Sudha Devrani ने कहा…

कमाल का ज्ञान लिया तिवारी जी ने व्हाट्सएप से...
लाजवाब लेखन।

Sweta sinha ने कहा…

हा हा हा जैसा गुरू वैसा चेला।
ज्ञान तो ज्ञान होता है उस ज्ञान को ग्रहण करने वाले के बौद्धिक स्तर पर निर्भर करता है वह उसे किस प्रकार उपयोग करता है।
अति सरल,सहज भाव से गहन व्यंग्य।
प्रणाम सर
सादर।

उषा किरण ने कहा…

बहुत खूब 👌

Pammi singh'tripti' ने कहा…

बहुत बढ़िया व्यंग्य,. वाट्सएप का ज्ञान।

वाणी गीत ने कहा…

बढ़िया वाला ज्ञान बाटें हैं।

Bharti Das ने कहा…

बहुत बढियां

How do we know ने कहा…

अति उत्तम!

कविता रावत ने कहा…

बहुत खूब!

घनश्याम दास ने कहा…

सुन्दर, सामयिक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति! बहुत-बहुत बधाई.