शनिवार, जून 19, 2021

ऑक्सीजन की चाह में वृक्षारोपण

 


अस्पतालों में ऑक्सीजन की भीषण कमी हो गई। हाहाकार मचा। जिसको जो समझ में आ रहा था वो उस पर तोहमत लगा रहा था। दोषारोपण हेतु लोगों को खोजा जा रहा था। कई दशकों पहले परलोक सिधार चुके लोग भी चपेट में आ रहे थे। जानवरों के डॉक्टर तक व्हाटसएप पर फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी न आने देने के उपाय बता रहे थे। एक ओर जहाँ भीषण कमी थी वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन बिखरी पड़ी थी। कोई कहता था कि दो सिलेंडर फलानी जगह हमारे पास हैं, जरूरत मंद संपर्क करें। किसी के पास पाँच होते थे। दिया गया फोन उठता नहीं था। वे जरूरतमंदों को व्हाटसएप पर खोज रहे थे और जरूरतमंद उन्हें अस्पतालों में। व्हाटसएप और अस्पताल के बीच का पुल टूट गया था और लोग उसी टूटे पुल से गिर गिर कर ऑक्सीजन के आभाव में दम तोड़ रहे थे।

इसी बीच किसी ज्ञानी ने ऑक्सीजन के बारे में अपना वीडियो वायरल किया। उसने कमी का दोषी आम जनता को बताया। उसने कहा कि तुमने पेड़ काटकाट कर अपने मकान बना लिये। कारखाने खोल लिए। नए पेड़ लगाए नहीं तो ऑक्सीजन कहां से आए? अब भुगतो। दोषारोपण की आग असल आग से भी तेजी से फैलती है। आमजन ने अपना बचाव किया कि हमारे एक पेड़ काटने या लगाने से क्या होता है? सरकार को देखो, पूरे के पूरे जंगल साफ कर डाले।

आरोप का निशाना अपनी ओर घूमते देख वन मंत्री चौंके। उन्हें सपने में भी उम्मीद न थी कि स्वास्थय मंत्रालय की बजाए उनका मंत्रालय ऑक्सीजन की कमी के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा। इसके पहले की बात ज्यादा आगे बढ़ती, उन्होंने आनन फानन में एक सार्वजनिक कार्यक्रम कर कलेक्टर कार्यालय के सामने वृक्षारोपण कर पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। प्रमाण स्वरूप शिलालेख लगाया गया। तस्वीरें खींची गईं जिन्हें अगले रोज प्रमुख अखबारों ने मुख्य पृष्ठ पर छापा। वनों में सौ पेड़ कट जाते हैं, तब न कोई समारोह, न सेल्फी और न कोई समाचार मगर एक वृक्षारोपण की ऐसी कवरेज। मंत्री जी द्वारा बताया गया कि पेड़ बड़ा होकर ऑक्सीजन की समस्या का निदान कर डालेगा। एक फुट का पेड़ भी मंत्री जी के मुखार बिन्द से अपनी भावी उपलब्धि को सुन मंत्री जी के सामने नतमस्तक हो गया। उसे बिना फल आए ही झुकता देख लोगों को ख्याल आया कि भारी गरमी में उसे बो तो दिया है मगर पानी डाला ही नहीं। मंत्री जी अभी भाषण दे ही रहे थे अतः उनकी उपस्थिति ने कमाल दिखाया और तुरंत ही वृक्ष के लिए पानी की व्यवस्था की गई। पेड़ पुनः सीधा खड़ा हो गया।   

वृक्षारोपण करके मंत्री जी जा चुके थे। शाम को घर लौटती बकरी उस पेड़ को खा गई। जानवरों मे मंत्री जी द्वारा लगाये या आमजन द्वारा लगाये या खुद से उग आये पेड़ में भेद करने की परम्परा अभी तक नहीं आई है। उन्हें तो इससे भी मतलब नहीं है कि अमीर ने पेड़ लगाया है या गरीब ने या किसी हिन्दू ने लगाया या मुसलमान ने। मजहब के भेद तो इंसानों की फितरत है, जानवर इससे अछूते हैं। बकरी हिंदुस्तान की हो या पाकिस्तान की, दोनों का स्वभाव एक ही है।

सरकारी अधिकारियों से जानवर इसीलिए भिन्न हैं। अधिकारी घूस खाता है, और उसे अलमारी में बंद करके धर देता है अपने भविष्य के लिए। बकरी का मूलतः स्वभाव पत्ती खाना, दूध देना, और आगे पत्तियों की उपज जारी रहे, नए नए पेड़ फूले फलें, इस हेतू ऑर्गैनिक खाद की नित उपलब्धता बनाए रखना होता है।

जब बकरी पेड़ खाकर चली गई तब वहां सिर्फ एक शिलालेख लगा रह गया कि  ‘इस वृक्ष का वृक्षारोपण माननीय तिवारी जी, मंत्री, वन विभाग द्वारा आज दिनांक को किया गया’। किसी व्हाटसएप जागरूक नागरिक की नजर इस पर पड़ी तो उसने शिलालेख और उसके पीछे नदारत वृक्ष की फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर इस कैप्शन के साथ डाल दी कि जैसे व्हाटसएप पर ऑक्सीजन उपलब्ध है वैसे ही मंत्री जी का पेड़ कलेक्टरेट के सामने। किसी ने उसे फॉरवर्ड करते हुए लिखा कि फिर एक पेड़ फाईलों में उगा। किसी ने उसे ऑक्सीजन की फैक्टरी का भूमि पूजन बताया। किसी ने उसे मंत्री जी को टैग कर दिया। मंत्री जी आग बबूला हो उठे और वहाँ पुनः वैसा ही वृक्ष लगवा कर उसके साथ सेल्फी खिंचा कर सोशल मीडिया पर डाली और वायरल हो रही पोस्ट को विपक्षियों की साजिश बताया।

बकरी का कोई सोशल मीडिया पर एकाउंट तो था नहीं अतः वह प्रसन्न चित्त इस बवाल से अनभिज्ञ पुनः शाम को उसी राह से घर लौटती हुई नया पेड़ भी खा गई। यहीं जानवर और इंसान एक जैसे हैँ, दोनों को ही नियमित अंतराल पर भूख लगती है। 

फिर सोशल मीडिया पर बवाल कटा, फिर पेड़ लगा किन्तु इस बार जासूस भी लगा दिए गए। पता किया जाए कि कौन सी विपक्षी पार्टी इस साजिश में लगी है। बकरी को क्या पता कि उसकी जासूसी हो रही है। वो फिर पेड़ खाने को हाजिर हो गई मगर इस बार पकड़ ली गई। जो बात वृक्ष के आजू बाजू एक बाड़ा लगाकर रोकी जा सकती थी उसे जासूसी विभाग की मदद से रोका गया।

बकरी को पकड़ कर मंत्री जी बंगले पर ले जाया गया। उस रात मंत्री जी ने अपने बंगले पर मित्रों के साथ शराब और उसी बकरी के कबाब की दावत उड़ाते हुए भविष्य में ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था के लिए किए गए सुरक्षा प्रबंधों की जानकारी दी और ठहाकों की आवाज गूंज उठी।

दूध से मिली ताकत को दूध देने वाले को मारकर खा जाने की फितरत भी बस इन्सानों की है। जो ताकत देता है उसी को मार देना यूं ही तो सीखा है।     

-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 20, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/61254470

 

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चित्र साभार: गूगल 

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2 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellently presented irony of human behaviour,,,,

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सटीक लिखा है। शुभकामनाएँ।