तिवारी जी एक अत्यन्त जागरूक नागरिक हुआ करते थे। जागरूकता का चरम ऐसा कि सरकार अगर पटरी से जरा भी दायें बायें हुई और तिवारी जी आंदोलन पर। हर आंदोलन का अपना अपना अंदाज होता है जो कि उस आंदोलन के सूत्रधार पर निर्भर करता है। तिवारी जी के आंदोलनों का अंदाज ईंट से ईंट बजा देने वाला होता था। मजाल है कि तिवारीजी आंदोलन पर हों और सरकार का कोई भी मंत्री चैन से सो पाये। सोना तो दूर की बात है, बैठना भी मुश्किल हो जाता था।
सरकार की पुरजोर कोशिश होती कि अव्वल
तो तिवारी जी आंदोलन पर बैठे ही न और अगर बैठ गए हैं तो जितना जल्दी हो सके, उनकी
मांगें मान कर आंदोलन खत्म करवाया जा सके।
तब तक वह चूंकि सिर्फ अत्यन्त जागरूक
नागरिक थे अतः उन्हें अपने गांधीवादी होने का गौरव भी था और गांधीवाद बचाए रखने का
जज्बा भी। कई बार सरकारों ने आंदोलन न करने के लिए उन्हें रुपये, पद आदि के
प्रलोभन भी देने की पेशकश भी की किन्तु हर बार
उससे मामला बिगड़ा ही। सादा जीवन और उच्च विचार वो अपनाते भी थे और सिखलाते भी थे।
उनके कई चेले उन्हीं से सादा
जीवन और उच्च विचार की शिक्षा लेकर आंदोलनों के राजमार्ग पर सरपट भागते हुए विधायक
और सांसद हो गए। सभी ने अपनी जमीन जायदाद,
कोठियाँ, गाड़ियों और बैक बैलेंस आदि के किले को इतना मजबूत बना लिया है कि कोई बड़े
से बड़ा सेंधिया भी उसमें सेंध लगा कर उनके गांधीवाद को हानि नहीं पहुंचा सकता।
जैसे जैसे उन्हें गांधीवाद पर खतरे के बादल मंडराते दिखते वैसे वैसे वो अपने किले
की सभी दीवारों को मजबूत करते चले जाते।
किन्तु तिवारी जी जागरूक
नागरिक बने रहे। आंदोलनों की रफ्तार और अंदाज वैसे ही कायम रहा और ईंटों से ईंट
बजती रहीं। तिवारी जी गांधीवाद ओढ़ते बिछाते रहे और चेले विधायक सांसद बनते रहे।
तिवारी जी का मानना था कि जब तक देश में एक भी नागरिक भूखा सोएगा तब तक मैं सरकार
को सोने नहीं दूंगा। तिवारी जी के लिए कहा जाता था कि गेंदबाजी तो कोई भी कर सकता है
मगर तिवारी जी की तरह फिरकी फेकना सबके बस की बात नहीं। मंहगाई, बेरोजगारी, भूखमरी,
स्वच्छता, बिजली पानी जैसे आम मुद्दों को भी ऐसे खास बनाकर आंदोलन किया करते जैसे
ये आज आई एकदम नई समस्या है और इसके लिए मौजूदा सरकार जिम्मेदार है। न जाने कितनी
सरकारें वो इन्हीं मुद्दों पर गिरवा चुके हैं।
कहते हैं हिमालय फतह करने के
लिए भी एक बार में एक कदम ही बढ़ाना होता है। एक एक कर कदम बढ़ते रहे और वो दिन भी
आया जब आंदोलनप्रेमी तिवारी जी की जागरूकता चरम सीमा पर पहुँच गई। बड़ी तादाद में
विधायक और सांसद चेलों के संग सरकार में विराजमान हुए। गांधीवाद का सबसे बड़ा उपासक
जब सत्ता में काबिज़ हुआ तो उसने गांधीवाद
को सेंधियों से बचाने के इत्ता मजबूत किला बनाया कि उसकी कुछ दिवारें तो विदेशों तक
जा पहुंची। स्वीटजरलैण्ड में सबसे ऊंची और गुप्त दीवार तानी गई।
अब तिवारी जी कहते पाये जाते
है कि अच्छे लोग अच्छे इसीलिए कहलाते हैं क्यूँ कि बुरे लोग भी हैं समाज में। अमीर
अमीर कहलाता ही इसलिए है क्यूँ कि कोई गरीब भी है। सुख का मजा ही क्या पता लगेगा अगर
दुख न हों। इसलिए मंहगाई, बेरोजगारी, भूखमरी का रोना छोड़ इसे साक्षी भाव से देखो एवं
स्वीकारो। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं – उनको समझने की कोशिश करो।
पेट्रोल मंहगा हुआ है तो
पैदल चलो, साईकल चलाओ और अपना स्वास्थ्य बनाओ। स्वास्थ्य अनमोल है। गैस मंहगी हुई है तो सब्जियां कच्ची
खाओ – सलाद खाओ। पकाने से सब्जियों का नूट्रिशन खत्म होता है। अतः उत्तम भोजन करो
और स्वस्थ जीवन जिओ। क्या हुआ अगर पेट्रोल और गैस महंगा हो गया? डॉक्टर और दवाई का
जो खर्चा बचा आज और भविष्य में – उस को निहारो और खुश रहो। खुश रहने से भी स्वास्थ्य
मे इजाफा ही होता है।
तिवारी जी को लगता है कि देश
भर में रसोई का कचरा उठाने वाली नगर निगम की सारी ट्रक बेच देना चाहिए और लोगों को
कम्पोस्ट खाद आंगन में गड्ढा खोद कर इस कचरे से बनाना चाहिए। फिर इसी खाद का
इस्तेमाल कर घर की बगिया में ऑर्गैनिक सब्जियां उगाओ और बिना पकाये कच्ची ही खाओ। सब्जी
मंहगी होने का टंटा भी खत्म और स्वास्थ्य भी उत्तम।
सब उपाय बता कर तिवारी जी नगर
निगम के सारे ट्रक बेचने में व्यस्त हो गए हैं। किला और बुलंद करना है। आखिर
गांधीवाद को हर हाल में सेंधियों की सेंधबाजी से बचाना जो है।
चाहे जो हो जाए – गांधीवाद
पर आंच न आए।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार फरवरी 28, 2021 के अंक
में:
http://epaper.subahsavere.news/c/58739659
ब्लॉग पर पढ़ें:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
9 टिप्पणियां:
What inspired me was life of Gandhi ji cladding with two cloths and travelling on lowest class of transport, antiques in present times. Since he could come down to lowest level of a deprived man, he could could connect a vast spectrum of countrymen.
Yet, people are using, rather abusing name of Gandhi, to camouflage their intent and actions so shamelessly.
An excellent satire ...
तिवारी जी के माध्यम से बढ़िया तंज ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सियासी के पास हर बात का जवाब है । गांधी वाद बचाने के लिए जनता की ऐसी तैसी मिलके करते हैं
बढ़िया व्यंग्य
लाजवाब लेखन।
बहुत खूब!
दिलचस्प व्यंग्य
बहुत सच लिखा आपने
एक टिप्पणी भेजें